जेल से MLA का चुनाव जीतने वाला पहला बाहुबली, हरिशंकर तिवारी की दास्तां
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गोरखपुर. आज भले ही राजनीतिक दल खुद को माफियाओं को दूर रखने का दावा कर रहे हों लेकिन एक वक्त था जब वह दल की जरूरत हुआ करते थे। उन्हें पूर्वांचल के ब्राह्मणों का सिरमौर माना जाता है और हाल ही में उनके बेटे समेत पूरा परिवार समाजवादी पार्टी में शामिल हो गया। यहां बात हो रही है हरिशंकर तिवारी की।
कहते हैं कि देश की राजनीति का अपराधीकरण उन्हीं से शुरू हुआ था। एक वक्त उन्हें यूपी का डॉन कहा जाता था फिर बाहुबली राजनेता और फिर वह यूपी की सियासत के पंडित जी कहलाने लगे। वह 1985 का दौर था, जब इंदिरा गांधी के निधन के बाद पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर चल रही थी। उस वक्त हरिशंकर तिवारी यूपी की जेल में बंद थे। उन पर गैंगस्टर ऐक्ट के तहत कार्रवाई चल रही थी।
हर पार्टी की जरूरत बन गए थे हरिशंकर तिवारी
जेल से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में हरिशंकर तिवारी ने कांग्रेस उम्मीदवार को पटखनी देकर सनसनी मचा दी थी और वह भी बड़े अंतर से। उनकी ताकत दो भांपते हुए कांग्रेस ने भी अगले चुनाव में उन्हें टिकट दे दिया और 2007 तक गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से उनकी जीत का सिलसिला चलता रहा। इस बीच वह अलग-अलग दलों की जरूरत बनते गए। 1998 में कल्याण सिंह ने अपनी सरकार में मंत्री बनाया, तो बीजेपी के ही अगले मुख्यमंत्री बने रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह सरकार में भी वह मंत्री हुए। इसके बाद मायावती सरकार में मंत्री बने और 2003 से 2007 तक मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी मंत्री रहे।
पूर्वांचल की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले एनबीटी संवाददाता शफी आजमी बताते हैं, '1998 के बाद हरिशंकर तिवारी हर दल की जरूरत बन गए थे। यहां तक कि जब जगदंबिका पाल सूबे के एक दिन के सीएम बने तो उनकी कैबिनेट में भी वह मंत्री थे।' दरअसल 1998 में राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को सीएम पद से बर्खास्त कर लोकतांत्रिक कांग्रेस के जगदंबिका पाल को सीएम पद की शपथ दिलाई थी लेकिन अगले ही दिन बाजी पलट गई और कल्याण सिंह फिर से सीएम बन गए थे।
वीरेंद्र प्रताप शाही के साथ गैंगवार
हरिशंकर तिवारी का जिक्र हो तो वीरेंद्र प्रताप शाही का नाम जरूर आता है। जब पूर्वांचल की सियासी दुनिया में बाहुबलिओं का प्रवेश हुआ, तो इसके सूत्रधार हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप शाही ही थे। दोनों एक ही क्षेत्र के रहने वाले थे लेकिन वर्चस्व की लड़ाई को लेकर जमकर अदावत भी थी। 1980 का दशक ऐसा था जब शाही और तिवारी के बीच गैंगवार की गूंज देश-विदेश तक सुनाई देती थी।
शफी आजमी के मुताबिक, '1980 के दशक में छात्र राजनीति का वर्चस्व बढ़ा और गोरखपुर में ब्राह्मण- ठाकुर की लॉबी शुरू हुई। वीरेंद्र शाही को मठ का समर्थन मिला तो हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के नेता बनकर उभरे। यहीं से दोनों में गैंगवार शुरू होती है। उस वक्त खौफ इस कदर तक था कि गैंगवार से पहले ऐलान हो जाता था कि आज घर से कोई निकलेगा नहीं और स्थानीय लोग घरों में दुबके रहते थे। बाहर फायरिंग की आवाजें आती थीं और कई लोग मारे जाते थे।'
उस वक्त वीर बहादुर सिंह यूपी के सीएम हुआ करते थे। कहते हैं कि तिवारी और शाही दोनों पर नकेल कसने के लिए ही पहली बार यूपी में गैंगस्टर ऐक्ट लागू किया गया था। वीर बहादुर सिंह लॉ ऐंड ऑर्डर को विशेष महत्व देते थे और माफियाओं पर पैनी नजर रखते थे।
जब वीर बहादुर सिंह पर लगाए थे आरोप
इसके बाद 1985 में हरिशंकर तिवारी ने जेल में रहकर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी। एक इंटरव्यू में हरिशंकर तिवारी ने खुद यह बात कही थी कि वह राजनीति में इसलिए आए क्योंकि तत्कालीन सीएम वीर बहादुर सिंह ने उन्हें झूठे केस में फंसाकर जेल भेज दिया था। 1980 के दशक में हरिशंकर तिवारी के खिलाफ गोरखपुर में 26 मामले दर्ज हुए थे। इनमें हत्या करवाना, हत्या की साजिश, अपहरण, छिनैती, रंगदारी, वसूली, सरकारी काम में बाधा डालने जैसे कई आरोप थे। हालांकि किसी भी केस में वह दोषी साबित नहीं हो पाए।
2 बार लगातार हार के बाद छोड़ी राजनीति
2007 में पूर्व पत्रकार राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को मात दी। इस चुनाव में पहली बार उनकी जीत का रिकॉर्ड टूटा। राजेश त्रिपाठी बीएसपी के उम्मीदवार थे। इसके बाद 2012 में उन्हें दोबारा हार का मुंह देखना पड़ा और चौथे नंबर पर खिसक गए। 2 बार हार के बाद हरिशंकर तिवारी ने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे विनय शंकर तिवारी को दे दी। हरिशंकर तिवारी अभी भी लोकतांत्रिक कांग्रेस से जुड़े हैं।