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श्रीकाशी विश्वनाथ कारीडोर : संतों से रूबरू PM मोदी ने कहा- नया इतिहास रच रही काशी, हृदय गदगद और मन आल्हादित

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का नव्य भव्य स्वरूप देश को समर्पित करने आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि मैं आपसे अपने लिए नहीं, हमारे देश के लिए तीन संकल्प चाहता हूं- स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भर भारत के लिए निरंतर प्रयास। गुलामी के लंबे कालखंड ने हम भारतीयों का आत्मविश्वास ऐसा तोड़ा कि हम अपने ही सृजन पर विश्वास खो बैठे। आज हजारों वर्ष पुरानी इस काशी से, मैं हर देशवासी का आह्वान करता हूं- पूरे आत्मविश्वास से सृजन करिए, इनोवेट करिए, इनोवेटिव तरीके से करिए। तीसरा एक संकल्प जो आज हमें लेना है, वो है आत्मनिर्भर भारत के लिए अपने प्रयास बढ़ाने का। ये आजादी का अमृतकाल है। हम आजादी के 75वें साल में हैं। जब भारत सौ साल की आजादी का समारोह बनाएगा, तब का भारत कैसा होगा, इसके लिए हमें अभी से काम करना होगा।

बोले, हृदय गदगद है

प्रधानमंत्री श्रीकाशी विश्वनाथ दरबार में बाबा का पूजन-अभिषेक के बाद मंदिर चौक में देश भर से आए संतों व विशिष्ट जनों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अपने भाव साझा किए। कहा, हृदय गदगद है, मन आल्‍हाद‍ित है। आप सब लोगन के बहोत-बहोत बधाई हौ। विश्वनाथ धाम का ये पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, ये प्रतीक है, हमारे भारत की सनातन संस्कृति का। ये प्रतीक है, हमारी आध्यात्मिक आत्मा का। ये प्रतीक है, भारत की प्राचीनता का, परंपराओं का। भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का।

विक्रम संवत 2078 मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष दशमी तिथि एक नया इतिहास रच रही है

उन्होंने कहा कि हमारे पुराणों में कहा गया है कि जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। भगवान विश्वेश्वर का आशीर्वाद, एक अलौकिक ऊर्जा यहां आते ही हमारी अंतर-आत्मा को जागृत कर देती है। अलौकिक ऊर्जा अंतरात्मा को आलोकित कर देती है। दिव्य चेतना में अलग ही स्पंदन है, अलग ही आभा है। शास्त्रों में सुना है जब भी कोई पुण्य अवसर होता है सारे तीर्थ, सारे देव-शक्तियां उपस्थित हो जाती हैैं। वैसा ही अनुभव बाबा के दरबार में आकर हो रहा है। लग रहा है जैसे हमारा समस्त चेतन ब्रह्मांड से जुड़ा हुआ है। वैसे अपनी माया का विस्तार बाबा ही जानें। हमारी मानवीय दृष्टि जहां तक जाती है, बाबा धाम के विस्तार से पूरा विश्व जुड़ा हुआ है। आज भगवान शिव का प्रिय दिन सोमवार है। विक्रम संवत 2078 मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष दशमी तिथि एक नया इतिहास रच रही है।

नया परिसर हमारे भारत की सनातन संस्कृति का प्रतीक

पीएम मोदी ने कहा क‍ि हमारा सौभाग्य है कि हम इस तिथि के साक्षी बन रहे हैैं। आज विश्वनाथ धाम अकल्पनीय आनंद, ऊर्जा से भरा है। उसका वैभव विस्तार ले रहा है। इसकी विशेषता आसमान छू रही हैैं। आसपास जो प्राचीन मंदिर लुप्त प्राय थे, उन्हें पुर्नस्‍थाप‍ित किया जा चुका है। बाबा अपने भक्तों की सदियों की सेवा से प्रसन्न हुए हैैं। बाबा विश्वनाथ धाम का ये पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, ये प्रतीक है, हमारे भारत की सनातन संस्कृति का। ये प्रतीक है, हमारी आध्यात्मिक आत्मा का। ये प्रतीक है, भारत की प्राचीनता का, परंपराओं का। भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का। आप यहां जब आएंगे तो केवल आस्था के दर्शन नहीं करेंगे। आपको यहां अपने अतीत के गौरव का अहसास भी होगा। कैसे प्राचीनता और नवीनता एक साथ सजीव हो रही हैं, कैसे पुरातन की प्रेरणाएं भविष्य को दिशा दे रही हैं। इसके साक्षात दर्शन विश्वनाथ धाम परिसर में हम कर रहे हैं।

मां गंगा का आशीर्वाद सबके लिए

उन्‍होंने कहा क‍ि प्राचीनता व नवीनता सजीव हो रही है। जो मां गंगा उत्तरवाहिनी होकर बाबा के पांव पखारने काशी आती हैैं। वह मां गंगा भी आज बहुत प्रसन्न हुई हैैं। अब हम जब बाबा के चरणों में प्रणाम करेंगे तो मां गंगा को स्पर्श करती हवा स्नेह देगी। गंग तरंगों की कल-कल का दैवीय अनुभव भी कर सकेंगे। बाबा विश्वनाथ सबके हैैं। मां गंगा सबकी हैैं। उनका आशीर्वाद सबके लिए है, लेकिन समय व परिस्थितियों के चलते बाबा व मां गंगा की यह सेवा मुश्किल हो चली थी। रास्ता व जगह की कमी हो चली थी। बुजुर्गों व दिव्यांगों को आने में दिक्कत होती थी। विश्वनाथ धाम परियोजना से यह सुलभ हो गया है। अब दिव्यांग भाई-बहन, बुजुर्गजन बोट से जेटी तक आएंगे। स्वचालित सीढ़ी से मंदिर तक आ पाएंगे। संकरे रास्तों से परेशानी होती थी जो कम होगी। पहले यहां जो मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था, वह करीब पांच लाख वर्ग फीट का हो गया है। अब मंदिर व मंदिर परिसर में 50, 60, 70 हजार श्रद्धालु आ सकते हैैं। पहले मां गंगा का दर्शन फिर विश्वनाथ धाम, यही तो हैै हर हर महादेव।

जिनके हाथों में डमरू है, उनकी सरकार है

पीएम ने कहा कि काशी तो काशी है। काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथों में डमरू है, उनकी सरकार है। जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हों, उस काशी को भला कौन रोक सकता है। मैं आज अपने हर उस श्रमिक भाई-बहन का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूं, जिनका पसीना इस भव्य परिसर के निर्माण में बहा है। कोरोना के विपरीत काल में भी, उन्होंने यहां पर काम रुकने नहीं दिया। मुझे अभी अपने इन श्रमिक साथियों से मिलने का, उनका आशीर्वाद लेने का सौभाग्य मिला है। हमारे कारीगर, हमारे सिविल इंजीनयरिंग से जुड़े लोग, प्रशासन के लोग, वो परिवार जिनके यहां घर थे सभी का मैं अभिनंदन करता हूं। इन सबके साथ यूपी सरकार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का भी अभिनंदन करता हूं जिन्होंने काशी विश्वनाथ धाम परियोजना को पूरा करने के लिए दिन-रात एक कर दिया। आतातायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किए, इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए।

इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है

प्रधानमंत्री ने कहा क‍ि औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है। जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की, जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की, लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है। यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं। अंग्रेजों के दौर में भी, हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया था, ये तो काशी के लोग जानते ही हैं। काशी शब्दों का विषय नहीं है, संवेदनाओं की सृष्टि है। काशी वो है- जहां जागृति ही जीवन है। काशी वो है-जहां मृत्यु भी मंगल है। काशी वो है- जहां सत्य ही संस्कार है। काशी वो है-जहां प्रेम ही परंपरा है। बनारस वो नगर है जहां से जगद्गुरु शंकराचार्य को श्रीडोम राजा की पवित्रता से प्रेरणा मिली, उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधने का संकल्प लिया। ये वो जगह है जहां भगवान शंकर की प्रेरणा से गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस जैसी अलौकिक रचना की। यहीं की धरती सारनाथ में भगवान बुद्ध का बोध संसार के लिए प्रकट हुआ। समाज सुधार के लिए कबीरदास जैसे मनीषी यहां प्रकट हुए।

संत रव‍िदास का भी ज‍िक्र क‍िया

पीएम ने कहा क‍ि समाज को जोडऩे की जरूरत थी तो संत रैदास जी की भक्ति की शक्ति का केंद्र भी ये काशी बनी। काशी अहिंसा, तप की प्रतिमूर्ति चार जैन तीर्थंकरों की धरती है। राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा से लेकर वल्लभाचार्य, रमानन्द जी के ज्ञान तक। चैतन्य महाप्रभु, समर्थगुरु रामदास से लेकर स्वामी विवेकानंद, मदनमोहन मालवीय तक। छत्रपति शिवाजी महाराज के चरण यहां पड़े थे। रानी लक्ष्मी बाई से लेकर चंद्रशेखर आज़ाद तक, कितने ही सेनानियों की कर्मभूमि-जन्मभूमि काशी रही है। भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, पंडित रविशंकर और बिस्मिल्लाह खान जैसी प्रतिभाएं। इस स्मरण को कहाँ तक ले जाया जाए। कितने ही ऋषियों,आचार्यों का संबंध काशी की पवित्र धरती से रहा है। काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण, भारत को एक निर्णायक दिशा देगा, एक उज्जवल भविष्य की तरफ ले जाएगा। ये परिसर, साक्षी है हमारे सामर्थ्य का, हमारे कर्तव्य का।

अगर ठान लें तो कुछ भी असंभव नहीं

अगर सोच लिया जाए, ठान लिया जाए, तो असंभव कुछ भी नहीं। हर भारतवासी की भुजाओं में वो बल है, जो अकल्पनीय को साकार कर देता है। हम तप जानते हैं, तपस्या जानते हैं, देश के लिए दिन रात खपना जानते हैं। चुनौती कितनी ही बड़ी क्यों ना हो, हम भारतीय मिलकर उसे परास्त कर सकते हैं। आज का भारत अपनी खोई हुई विरासत को फिर से संजो रहा है। यहां काशी में तो माता अन्नपूर्णा खुद विराजती हैं। मुझे खुशी है कि काशी से चुराई गई मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा, एक शताब्दी के इंतजार के बाद अब फिर से काशी में स्थापित की जा चुकी है। मेरे लिए जनता जनार्दन ईश्वर का ही रूप है, हर भारतवासी ईश्वर का ही अंश है, इसलिए मैं कुछ मांगना चाहता हूं। 

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