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बनारस बना देश का चौथा सबसे प्रदूषित शहर, हवा भी हुई बेहद खराब, एक्यूआई पहुंचा 355

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. बनारस की हवा दूसरे दिन भी खराब बनी रही। ठंड के कारण हवा में प्रदूषक तत्वों के जमने से प्रदूषण का स्तर बेहद खराब स्तर पर पहुंच गया है। आईक्यू एयर की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार बनारस देश के टॉप-10 शहरों में चौथे नंबर पर पहुंच गया जबकि 24 घंटे पहले बनारस देश भर में छठवां प्रदूषित शहर था।

जौनपुर प्रदूषण के मामले में पांचवें नंबर पर था। आईक्यूएयर की ओर से बुधवार की शाम जारी हवा के आंकड़ों में बनारस का एयर क्वालिटी इंडेक्स 355 दर्ज किया। टॉप-10 प्रदूषित शहरों की सूची में घाटमपुर पहले, नानापारा दूसरे और सीतापुर तीसरे नंबर पर था।

शहर का सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र

शहर की कॉलोनियों में साकेत नगर (365), बलभद्र कालोनी (362), रामनगर(355), नाटी इमली (314), लंका (294) का इलाका सबसे अधिक प्रदूषित रहा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार बनारस का एक्यूआई 185 रहा। अर्दली बाजार का एक्यूआई 210 दर्ज किया गया। पीएम 2.5 की अधिकतम मात्रा 311, पीएम 10 की अधिकतम मात्रा 246 और नाइट्रोजन ऑक्साइड की अधिकतम मात्रा 151 रही।

इस कारण से स्थिति हुई खराब

मलदहिया का एक्यूआई 209 और पीएम 2.5 की अधिकतम मात्रा 315, पीएम 10 की अधिकतम मात्रा 166, कार्बन डाईऑक्साइड की अधिकतम मात्रा 101 रही। भेलूपुर का एक्यूआई 177 रहा। पीएम 2.5 की अधिकतम मात्रा 278, पीएम 10 की मात्रा 152 और कार्बन डाईऑक्साइड की अधिकतम मात्रा 100 रही। बीएचयू का एक्यूआई 143 दर्ज किया गया।

इसमें पीएम 2.5 की अधिकतम मात्रा 268 और पीएम 10 की अधिकतम मात्रा 128 रही। बीएचयू के वैज्ञानिक प्रो. बीडी त्रिपाठी ने बताया कि ठंड बढ़ने के कारण हवा में प्रदूषक तत्वों की मात्रा जमने के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ गया है। शहर में जाम और निर्माण कार्यों में मानकों की अनदेखी से धूल और कार्बन कणों की संख्या हवा में ज्यादा बढ़ी है। 

क्यों घुट रहा है बनारस का दम

वायु प्रदूषण नीति निगरानी मंच ट्रैकर के अनुसार बनारस का दम घुट रहा है। बनारस में धूल कण, नाइट्रोजन और कार्बन कणों को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने बताया कि तीन सालों से बनारस की जो स्थिति खराब है इसके पीछे पीएम 2.5 कण और नाइट्रोजन उत्सर्जन जिम्मेदार है।

बीएचयू की ओर से किए गए अध्ययन के अनुसार 2018 में प्रदूषण के सबसे कारणों में यातायात व्यवस्था को चिन्हित किया था। इसके बाद पक्की सड़क की धूल और कूड़े में आग लगाने की गतिविधियां शामिल थीं। मौसम संबंधी कारकों के साथ, नाइट्रोजन और कार्बन मोनोऑक्साइड को भी प्रमुख गैसीय वायु प्रदूषकों के रूप में चिन्हित किया गया था।

आईआईटी कानपुर के प्रो. एसएन त्रिपाठी ने कहा कि वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानकों से अधिक है। स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के तहत सेंसर का उपयोग करके निगरानी, प्रदूषण स्रोतों को ट्रैक और कम करने में मदद की जा सकती है। ई-बसें भी वाहनों से होने वाले प्रदूषण को काफी हद तक कम करने में मदद कर सकती हैं। 

हृदय रोग समेत अन्य बीमारियों का खतरा

वाराणसी में वायु गुणवत्ता की निगरानी 2015 में शुरू हुई थी और आईआईटी दिल्ली और वायु प्रदूषण नीति निगरानी मंच ट्रैकर की ओर से संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन में पता चला कि पीएम 2.5 में हर साल तेजी से डेढ़ से तीन गुना की बढ़ोत्तरी हुई। 365 दिनों में 87 दिनों से अधिक वायु गुणवत्ता की हालत खराब रही।

इसके कारण हृदय रोग, स्ट्रोक, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, श्वसन संक्रमण और फेफड़ों के कैंसर की संख्या बढ़ी है। नवंबर में वायु प्रदूषण की गुणवत्ता खराब रही और फिर से दिसंबर में ठंड के साथ ही प्रदूषण का स्तर खराब होने लगा है।

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