हृदय गदगद है, मन आह्लादित है, आप सब लोगन के बहोत बहोत बधाई हौ: PM नरेन्द्र मोदी
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. बाबा दरबार से समस्त श्रद्धालुजनन के प्रणाम करत हौं जो अपने अपने तरह से साक्षी बनत हौं, काशीवासीन के प्रणाम करत हईं। हृदय गदगद है, मन आह्लादित है। आप सब लोगन के बहोत बहोत बधाई हौ। साथियों हमारे पुराणों में कहा गया है जैसे ही काशी में प्रवेश करता है समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है। अलौकिक ऊर्जा अंतरात्मा को आलोकित कर देती है। दिव्य चेतना में अलग ही स्पंदन है, अलग ही आभा है।
शास्त्रों में सुना है जब भी कोई पुण्य अवसर होता है सारे तीर्थ, सारे देवियां शक्तियां उपस्थित हो जाती हैं। वैसा ही अनुभव बाबा के दरबार में आकर हो रहा है। लग रहा है जैसे हमारा समस्त चेतन ब्रह्माड जुड़ा हुआ है। वैसे अपनी माया का विस्तार बाबा ही जानें। हमारी मानवीय दृष्टि जाती है, बाबा धाम के विस्तार से पूरा विश्व जुड़ा हुआ है। साथियों आज भगवान शिव का प्रिय दिन सोमवार है। विक्रम संवत 2078 मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष दशमी तिथि एक नया इतिहास रच रही है। हमारा सौभाग्य है कि हम इस तिथि के साक्षी बन रहे हैं। आज विश्वनाथ धाम अकल्पनीय आनंद ऊर्जा से भरा है। उसका वैभव विस्तार ले रहा है। इसकी विशेषता आसमान छू रही हैं। आसपास जो प्राचीन मंदिर लुप्त हो गया है, उन्हें पुनर्सापित किया जा चतुका है।
बाबा अपने भक्तों की सदियों की सेवा से प्रसन्न हुए हैं। अत: आज के दिन का आशीर्वाद हुआ है। विश्वनाथ धाम का नया परिसर एक भवन भर नही हैं एक प्रतीक है भारत की सनातन संस्कृति का। प्रतीक है आध्यात्मिक आत्मा का, प्राचीनता का। आप जब यहां आएंगे तो आस्था के ही नहीं अतीत के गौरव का अहसास भी होगा। प्राचनिता व नवावनती सजीव हो रही है। पुरानत की प्रेरणा दे रही हैैं। साथियों जो मां गंगा उत्तरवाहिनी होकर बाबा के पांव पखारने काशी आती हैं। वह मां गंगा भी आज बहुत प्रसन्न हुइ हैं। अब हम जब बाबा के चरणों में प्रणाम करेंगे तो मां गंगा को स्पर्श करती हवा स्नेह देगी।
गंग तरंगों की कल कल का दैवीय अनुभव भी कर सकेंगे। बाबा विश्वनाथ सबके हैं। मां गंगा सबकी हैं। उनका आशीवाद सबके लिए है। लेकिन समय व परिसि्िथयों के चलते बाबा व मां गंगा की यह सेवा मुश्किर हो चली थी। रास्ता व जगह की कमी हो चली थी। बुजुगों को आने में दिक्कत हो चली थी। विश्वनाथ धाम परियोजना से यह सुलभ हो गया है। दिव्यांग भाई बहन, बुजुर्ग मांबहन बोट से जेटी तक आएंगे। एकसीलेटर से मंदिर तक अएंगे। संकरे रास्तों से परेशानी होती थी कम होगी। पहले यहां जो मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था, वह करीब पांच लाख वर्ग फीट का हो गया है। अब मंदिर व मदिर परिसर में 50, 60, 70 हजार श्रद्धालु आ सकते हैं।
पहले मां गंगा का दर्शन फिर विश्वनाथ धाम, यही तो है हर हर महादेव। मैंयहां आया था तो विश्वास लेकर आया था। विश्वास अपने से जाना बनारस के लोगों को। आ हिसाब किताब का समय नहीं लेकिन तब कुछ लोग ऐसे लोग भी थे जो बनारस के लोगों पर संदेह करते थे। कैसे होगा. होगा ही नहीं। मुझे आश्चर्य होता था कि बनारस के लिए ऐसी धारणाएं बना ली गई थी। ऐसे तर्क दिए जाने लगे थे। यह जनता बनारस की नहीं ती, हो भी नहीं सकती थी।
बहुत राजनीति, थोड़ी स्वार्थ इसलिए आक्षेप लगाए जा रहे थे
लेकिन कासी तो काशी है, काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है। जिनके हाथों में जमरू है उनकी सरकार है। जहां गंगा अपनी धारा बदल कर बहती हो, उस काशी को भला कौन रोक सकता है। काशी खंड में भघवान शंकर ने खुद कहा है. कह काशी प्रतिपद्ये... बिना मेरी प्रसन्नता के काशी में कौन आ सकता है। महादेव की इच्छा के बिना न कोई आता है और न कुछ होता है। यहां जो कुछ होता है महादेव क इच्छा से होता है। यह जो कुछ होता है महादेव ने ही किया है। इ विश्वनाथ धाम क बाबा आपन आशीर्वाद से बनवले हवें. केहू केतना बड़े होई अपने घरे के होई।
साथियों बाबा के साथ किसी और का योगदान है तो बाबा के गणों का है। बाबा के गण यानी हमारे सारे ... जो खुद महादेव के ही रूप हैं। जब भी बाबा को अपनी शक्ति अनुभव करानी होती है तो कासीवासयों को अनुभव करा देते हैं। काशी करते है दुनिया देखती है इदं शिवाय इदं नमामि..आज हर श्रमिक भाइयों का भी आभार व्यक्त करना चाहता हूं जिनका पसीना भव्य निर्माण में बहा है। कोरोना काल में काम रूकने न दिया। श्रमिक भाइयों से मिलने, आशीवाईद लेने का समय मिला. हमारे कारीगर सिविल इंजीनियरिंग के लोग, प्रशासन के लोग. वह परिवार जिनके घर हुआ करते थे सभी का अभिनंदन करता हूं। यूपी सरकार कर्मयोगी योगी आदित्यनाïथ व उनकी टीम को भी प्रणाम करता हूं जिन्होंने पूरा किया।
इतिहास को बनते बिगड़ते देखा है। सल्तनतें मिट्टïी में मिल गईँ लेकिन बनारस बना हुआ है। रस बिखेर रहा है। बाबा का धाम शाश्वत ही नहीं रहा है. हमेशा संसार को आश्चर्यचकित किया है। पुराणों में प्राकृतिक आभायुक्त काशी का वर्णन किया गया है। उत्सव सरोनरों से घिरी काशी का वर्णन है। समय एक सा नहीं रहता। औरंगजेब का अत्याचार साक्षी है जिसने तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की लेकिन देश की मिट्टïी बाकू दििनया से अलग है। यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैैं।
राजा सुहेलदेव जैसे राजा अपनी ताकत का अहसास कराते हैैं। वारेन हेसिंिटचग का क्या हाल किया था. यह तो काशी क लोग समय समय पर बोलते रहते हैैं। घोड़े पर हौदे व हाथी पर जिन जान लेकर भागल वारेन हेस्टिंग्स। आज समय का चक्र देखिए इतिहास के पन्नों पर सिमट कर रह गया है।
काशी के बारे में जितना बोलता हूं डुबता जाता हूं भावुक हो जाता है। शब्दों का विषय नहीं संवेदनाओं की दृष्टि है। मृत्यु भी मंगल है। सत्य ही संस्कार है। प्रेम ही परंपरा है।
शास्त्रों में भी काशी की महिमा गाते हुआ आखिर में मेटी ही मेटी ही कहा है, यानी जो कहा है उतना ही नहीं आगे भी है। शास्त्रों में कहा है शिवम... शिव शब्द का चिंतन करने वाले शिव को ही ज्ञान कहते हैं। यह काशी शिवमयी है, ज्ञानमयी है। इसलिए ज्ञान शोध अनुसंधान कासी व भारत के लिए स्वाबाविक निष्ठा हैं। शिव के कहा है सर्व क्षेत्रेषु... धरती के सभी क्षेत्रों में काशी साक्षात मेरा ही शरीर है। यहां का हर पत्थर शंकर है। हम अपनी काशी को सजीव मानते हैैं।
इसी भाव से अपने देश के कण कण में मातृभाव बोध होता है। शास्त्र कहते हैं..काशी में सर्वत्र हर जीव में भगवान विश्वेश्वर क ही दर्शन होती है। जीवत्व को शिवत्व से जोड़ती हैं। विश्वेश्वर शरणम... भघवान विश्वेश्वर की शरण में आने पर समबु्द्धि प्राप्त हो जाती है। आदि शंकराचार्य को डोमराजा से प्रेरणा मिली। भगवान शंकर की प्रेरणा से तुलसी ने मानस को पूर्णता लिखी। बुद्ध ने बोध पाया। कबीर, रविदास अहिंसा व तप की प्रतिमूर्ति चार जैन तीर्थंकरों की धरती है। राजा हरिश्चंद्र से विवेकानंद से मदन मोहन मालवीय तक का संबंध काशी की धरती से रहा है।
भारतेंदु, जयशंकर पं. रविशंकर, बिस्मिल्लिाह... स्मण को कहां तक ले जाएं। जिस तरह काशी अनंत उसी तरह काशी का योगदान अनंत है। काशी के विकास में इन महापुरुषों की ऊर्जा शामिल है। विरासत शालि है। हर मत मतांतर के लोग। भाषा वर्ग के लोग आते हैं तो जुड़ाव महसूस करते हैं। काशी हमारी देश की सांस्कृतिक राजधानी तो है ही।
काशी में विश्वनाथ का मंदिर तोड़ा गया तो निर्माण अहिल्या बाई ने कराया जन्मभूमि महाराष्ट्र कर्मभूमि इंदौर. नमन। दो ढाई सौ साल बाद काशी के लिए इतना काम अब हुआ है। बाबा की भव्यता बढ़ाने के लिए महाराज रणजीत सिंह ने सोना मढ़वाया था। पंजाब के लोगों ने दिल खोल कर काम किया। रानी भवानी ने दिल खोल कर काम किया। उत्तर दक्षिण नेपाली हर तरह की शैली के मंदिर मिल जाएंगे।
विश्वनाथ मंदिर आध्यात्मि चेतना का केंद्र रहा है। विश्वनाथ धाम और ऊर्जा देगा। काशी का दक्षिण व दक्षिण का काशी पर प्रभाव हम देखते हैैं। शास्त्र में लिखा है... सद्गुरु माधवाचार्य जी जब शिष्यों के साथ चल रहे थे कहा, काशी के विश्वनाथ पापों का हरण करते हैैं। सदियों पहले की भावना निरंतर चली आ रही है। काशी प्रवास ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। तमिल में लिखा है...। काशी नगरी के संत कवि का भाषण कांचीपुर में सुनने की दिशा बनाएंगे।
मेरा पुराना अनुभव है। घाट पर रहने वाले नाव पर चलने वाले साथी. अनुभव किया होगा। तमिल, कन्नड़ बंगाली बोलते हैैं जैसे लगता है तमिल में तो नहीं आ गए। जब अलग स्थान को सूत्र जुड़ते हैैं तो सौराष्ट्रे सोमनाथम से लेकर अयोध्या मधुरा काची का स्मरण करना सिखाया जाता है। द्वादश शिवलिंगों के स्मरण का फल सुनाया गया है। सोमनाथ से विश्वनाथ तक स्मरण से हर संशय दूर हो जाता है।