Today Breaking News

बहुआयामी राजनीतिक व्यक्तित्व के धनी थे पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी

गाजीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली. आज पावन बड़ा दिन (क्रिसमस) है, जो मानवता में प्यार, सद्भावना और मानव कल्याण का संदेश देता है। साथ ही, ऐसी शख्सियत अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है, जिन्होंने जीवनभर अपनी मृदुलता, सरलता, प्यार से लोगों का दिल जीत कर ताउम्र देश की एकता और अखंडता के लिए कार्य किया। 

उनकी इन्हीं विशेषताओं के चलते देश में आज का दिन सुशासन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। भारत की राजनीति में ऐसे विरले व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सशक्त, समृद्ध और सुदृढ़ भारत के लिए कार्य किया। इनमें भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का नाम अग्रिम पंक्ति में है।

बहुमुखी व्यक्तित्व, कवि, पत्रकार, राजनेता और न्याय, समानता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के धनी वाजपेयी पूरी आत्मीयता से राष्ट्रवाद को समर्पित थे। वे कभी भी आदर्शात्मक राजनीतिक से विचलित नहीं हुए। वह एक सच्चे लोकतंत्रवादी और देशभक्त थे। राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी, जो बहुत ही प्रेरणादायक थी। 

राजनीति में उनकी अपनी वैचारिक संबद्धता के बावजूद भी उनको अन्य पार्टी के लोग पसंद करते थे। वाजपेयी में एक अनूठा गुण यह था कि वह अपने प्रतिद्वंद्वियों की भी प्रशंसा करते थे। राष्ट्रीय हित के मामलों में वे अपनी आलोचना को भी विनम्रता से स्वीकार करने में सहृदय की भावना रखते थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, वाजपेयी में देश का महान नेता बनने का माद्दा है, क्योंकि इनके लिए देश एक मंदिर के समान है।

राष्ट्र को जाति, रंग, धर्म के संकीर्ण विचारों से ऊपर रखा, समावेशी राजनीति को बढ़ाया आगे

भारतीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक वाजपेयी ने सद्भावना और आपसी विश्वास के आधार पर समावेशी राजनीति को निरंतर बढ़ाने का प्रयास किया, ताकि राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया हमेशा बरकरार रहे। उनका मानना था कि पार्टी, पावर और पद की राजनीति स्थायी नहीं। राष्ट्र और लोकतंत्र ही महत्वपूर्ण और शाश्वत हैं। उन्होंने सदैव राष्ट्र और लोकतंत्र को जाति, रंग, पंथ, धर्म और क्षेत्रीय के संकीर्ण विचारों से ऊपर रखा। उनका विचार था कि राजनीति का केंद्र बिंदु राष्ट्र का विकास होना चाहिए, जिसमें सभी वर्गों के लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए।

संसद के बाहर होनी चाहिए सियासी लड़ाई

जब लालकृष्ण आडवाणी को बिहार में रथयात्रा के दौरान गिरफ्तार किया गया, तब मैं सांसद था। एक सप्ताह तक संसद की कार्यवाही बाधित रही, लेकिन फिर वाजपेयी ने संसदीय बैठक में हमें कहा कि राजनीतिक लड़ाई संसद के बाहर होनी चाहिए। राजनीतिक शासन के प्रति उनका दृष्टिकोण इतना समावेशी व स्पष्ट था कि विपक्षी दलों को भी सरकार का हिस्सा होने का अहसास होता था। वे कहते थे कि संसद बहस, संवाद और चर्चा के लिए एक प्लेटफार्म है, किसी भी तरह की लड़ाई या हाथापाई के लिए नहीं।

क्षेत्रीय विवादों को भी कम किया, कई देशों से संबंध सुधारे

1998 में पोखरण परीक्षण के बाद अमेरिका सहित अन्य देशों द्वारा व्यापारिक, सामरिक व प्रतिबंध लगाने वाले बयानों से वह तनिक भी परेशान नहीं हुए। इस सबके बावजूद विभिन्न देशों से व्यापार संबंधों में सुधार किया और चीन के साथ क्षेत्रीय विवादों को भी कम किया।

धरातल पर लोगों को लाभ पहुंचाना रहा लक्ष्य

वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में सड़क, रेल और हवाई संपर्क में सुधार कर ढांचागत सुविधाओं को मजबूती प्रदान की। वाजपेयी का मानना था कि सरकार के असली मायने तभी हैं, जब वह धरातल पर लोगों को तुरन्त लाभ पहुंचाए, जिससे लोगों को प्रत्यक्ष रूप से फायदा मिले। बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने यह करके भी दिखाया।

भारत को विश्व गुरु बनाना ही सच्ची श्रद्धांजलि

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छ, पारदर्शी व सुशासन के माध्यम से वाजपेयी के दृष्टिकोण को मूर्तरूप दे रहे हैं, ताकि कोई भी पीछे न रहे और ‘आत्मनिर्भर भारत’ का सपना साकार हो।  वाजपेयी को सम्मानपूर्वक याद करना तभी सार्थक होगा, जब हम समाज के सभी वर्गों के बीच पारदर्शिता, समावेश और आत्मीयता को बढ़ावा देकर सुशासन सुनिश्चित करने के उनके दृष्टिकोण का पालन करें। आइए, हम कड़ी मेहनत करें और भारत को विश्व गुरु बनाएं, जो हमारे महान नेता को सच्ची श्रद्धांजलि होगी! (लेखक हरियाणा के राज्यपाल हैं।)

'