प्रयागराज संगम के नीचे मिली 45 किलोमीटर लंबी प्राचीन नदी, सरस्वती होने के संकेत
गाजीपुर न्यूज़ टीम, प्रयागराज. वैज्ञानिकों ने संगम के नीचे 45 किलोमीटर लंबी एक प्राचीन नदी को खोजा है. ये नदी सदियों से संगम के नीचे बह रही है. CSIR-NGRI ने हेलिकॉप्टर के जरिए इलेक्ट्रॉमैग्नेटिक सर्वे की मदद से इसकी खोज की है. सर्वे में पाया गया कि प्रयागराज में गंगा-यमुना के संगम के नीचे प्राचीन नदी बह रही है. इस खोज से उन पौराणिक मान्यताओं को बल मिल गया है, जिनमें कहा जाता है कि प्रयागराज में एक काल में तीन नदियों का संगम होता था. इनमें गंगा और यमुना के साथ सरस्वती नदी भी शामिल हैं. मगर बाद में सरस्वती नदी विलुप्त हो गई. या वैज्ञानिक भाषा में कहें तो सूख गई.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च-नेशनल जियोग्राफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (CSIR-NGRI) ने ये सर्वे किया. दरअसल, इंस्टीट्यूट ने गंगा, यमुना और अन्य नदियों के भूमिगत जलस्तर में कमी क्यों आ रही है, इसका कारण पता लगाने के लिए शोध किया.
जब नदियों का हेलिकॉप्टर के जरिए इलेक्ट्रॉमैग्नटिक सर्वे किया गया, तो पता चला कि संगम के आसपास जमीन के अंदर एक नदी बह रही है. इसकी लंबाई करीब 45 किलोमीटर है. यह 4 किलोमीटर चौड़ी और 15 मीटर गहरी है. ये नदी जमीन के अंदर मंझनपुर और करारी होते हुए संगम वाले इलाके तक पहुंचती है.
दरअसल ये नदी गंगा और यमुना नदी को भूमिगत जल का प्रमुख स्रोत है. जब इस नदी में पानी भरपूर होता है, तब गंगा और यमुना का जलस्तर भी बढ़ा हुआ रहता है. यानी कि गंगा-यमुना में पानी सिर्फ बारिश या हिमालय से नहीं आता बल्कि जमीन के अंदर भी इसका प्रमुख स्रोत है.
क्या कहती हैं पौराणिक मान्यताएं?
ऋग्वेद में सरस्वती नदी का जिक्र किया गया है. इसमें सरस्वती को यमुना के पश्चिम और सतलुज के पूर्व में बहते हुए बताया गया है. इसके अलावा यजुर्वेद, रामायण, महाभारत और श्रीमद भागवत गीता में भी सरस्वती नदी का उल्लेख है. कुछ मान्यताओं के अनुसार सरस्वती नदी हिमालय से निकलकर आज के पंजाब और हरियाणा में बहती थी. वहीं कुछ पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक प्रयाग के निकट सरस्वती नदी गंगा और यमुना में मिलकर त्रिवेणी संगम बनाती थी.