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आज बंद रहेंगी मीट की दुकानें, शाकाहार दिवस के रूप में मनेगी सिंधी संत टीएल वासवानी की जयंती

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश सरकार ने सि‍ंधी समाज के महान दार्शनिक संत साधु टीएल वासवानी की जयंती 25 नवंबर को शाकाहार दिवस घोषित करते हुए सभी पशुवधशालाएं एवं मीट की दुकानें बंद रखने का निर्णय लिया है।  महावीर जयंती, बुद्ध जयंती, गांधी जयंती एवं शिवरात्रि महापर्व की तर्ज पर टीएल वासवानी जयंती के दिन भी मांस रहित दिवस रहेगा। नगर विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव डा. रजनीश दुबे ने बुधवार को इसके आदेश जारी कर दिए। उन्होंने अपने आदेश में लिखा है कि प्रदेश के सभी नगरीय निकायों में स्थित पशुवधशालाओं के अलावा गोश्त की दुकानें बंद रखी जाएंगी। उन्होंने सभी अधिकारियों से आदेश का पालन कड़ाई से कराने के निर्देश भी दिए हैं।

कौन थे संत टीएल वासवानी : साधु वासवानी का जन्म हैदराबाद में 25 नवम्बर 1879 में हुआ था। अपने भीतर विकसित होने वाली अध्यात्मिक प्रवृत्तियों को बालक वासवानी ने बचपन में ही पहचान लिया था। वह समस्त संसारिक बंधनों को तोड़ कर भगवत भकि्‌त में रम जाना चाहते थे परन्तु उनकी माता की इच्छा थी कि उनका बेटा घर गृहस्थी बसा कर परिवार के साथ रहे। अपनी माता के विशेष आग्रह के कारण उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। उनके बचपन का नाम थांवरदास लीलाराम रखा गया। सांसारिक जगत में उन्हें टी. एल. वासवानी के नाम से जाना गया तो अध्यात्मिक लोगों ने उन्हें साधु वासवानी के नाम से सम्बोधित किया।

साधु वासवानी ने जीव हत्या बंद करने के लिए जीवन पर्यन्त प्रयास किया। वे समस्त जीवों को एक मानते थे। जीव मात्र के प्रति उनके मन में अगाध प्रेम था। जीव हत्या रोकने के बदले वे अपना शीश तक कटवाने के लिए तैयार थे। केवल जीव जन्तु ही नहीं उनका मत था कि पेड़ पौधों में भी प्राण होते हैं। उनकी युवको को संस्कारित करने और अच्छी शिक्षा देने में बहुत अधिक रूचि थी। वे भारतीय संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता के अनन्य उपासक थे। उनका मत था कि प्रत्येक बालक को धर्म की शिक्षा दी जानी चाहिए। वे सभी धर्मों को एक समान मानते थे। उनका कहना था कि प्रत्येक धर्म की अपनी अपनी विशेषताएं हैं। वे धार्मिक एकता के प्रबल समर्थक थे।

30 वर्ष की आयु में वासवानी भारत के प्रतिनिधि के रूप में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए बर्लिन गए। वहां पर उनका प्रभावशाली भाषण हुआ और बाद में वह पूरे यूरोप में धर्म प्रचार का कार्य करने के लिए गए। उनके भाषणों का बहुत गहरा प्रभाव लोगों पर होता था। वे मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते रहते थे। वे बहुत ही प्रभावषाली वक्ता थे। जब वे बोलते थे तो श्रोता मंत्र मुग्ध हो कर उन्हें सुनते रहते थे। श्रोताओं पर उनका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता था। भारत के विभिन्न भागों में निरन्तर भ्रमण करके उन्होंने अपने विचारों को लागों के सामने रखा और उन्हें भारतीय संस्कृति से परिचित करवाया।

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