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Chitragupta Puja : कायस्थों की थी अपनी एक अलग लिपि, अंग्रजों ने दिया था राजकीय भाषा का दर्जा

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. चित्रगुप्त पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि हो होती है। व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए चित्रगुप्त पूजा का विशेष महत्व है। आज चित्रगुप्त पूजा है। पुरातन हिंदू संस्कृति के अनुसार कर्म के आधार पर जाति का निर्धारण किया गया था। इसके अनुसार कायस्थों का काम लिखने पढ़ने का था। भगवान चित्रगुप्त की पूजा भी इसी वजह से होती है। इनका लेखा जोखा एक विशेष भाषा में होती थी, जिसे कैथी के नाम से जाना जाता था। कायस्थों की यह भाषा कोर्ट और दफ्तरों में खूब चलती थी। बहुत सारी भाषाएं समाप्त हो गई। भाषाओं का सभ्यताओं से सीधा लेना देना है। पुरातन सिक्कों और प्रतिलिपियों के संग्रहकर्ता अमरेंद्र आनंद बताते हैं कि भारत में कैथी एक प्रचलित भाषा थी। यह आज समाप्त हो गई है। इससे एक सभ्यता भी लगभग खत्म हो गई।

कायस्थों की भाषा कैथी

कैथी एक ऐसी भाषा थी जिसकी खुद की अपनी लिपि थी। इसकी शुरुआत एक जाति विशेष कायस्थों ने अपने प्रयोग के लिए की थी। यह धीरे धीरे जनमानस की भाषा हो गई। आज से 151 वर्ष पहले 1870 में ब्रिटिश सरकार ने इसे राजकीय भाषा का दर्जा दिया था। उस समय की कागजी मुद्रा, कोर्ट के दस्तावेज आदि पर इस भाषा को देखा जा सकता है। यह आज विलुप्त होती जा रही है।

कैथी लिपि में देवनागरी को घुमावदार (कर्सिव) लिखा जाता है

बताते हैं कि कायस्थों की यह भाषा न्यायालय और सरकारी दफ्तरों में खूब प्रचलित थी। खासकर बिहार, अवध और बंगाल के इलाकों में इसका प्रयोग अधिक होता था। कैथी या कायस्थी लिपि में देवनागरी को घुमावदार (कर्सिव) तरीके से लिखा जाता था। यह थी तो हिंदी की वर्णमाला ही, लेकिन लिखने का तरीका अलग होता था। कैथी लिपि का प्रयोग मारिशस, त्रिनिदाद और उत्तर भारतीय प्रवासी समुदाय के लोग भी करते थे। कैथी का प्रयोग भोजपुरी, मगही, हिंदी-उर्दू से संबंधित कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को लिखने के लिए भी किया जाता था।

जनलिपि थी कैथी

लगभग 700 वर्ष पहले से ब्रिटिश काल तक सरकारी कामकाज और जमीन के दस्तावेज भी इसी लिपि में लिखे जाते थे। अब इस लिपि के जानकार बहुत ही कम लोग रह गए हैं। गुप्त काल के शासकीय अभिलेख कैथी लिपि में लिखे जाने का प्रमाण मिला है। अंगिका, बज्जिका, मगही, मैथिली और भोजपुरी भाषाओं के भी साहित्य को कैथी में लिपिबद्ध किया गया है। कैथी जनलिपि थी।

शेरशाह ने कैथी में बनवाईं थीं मुहरें

अमरेंद्र बताते हैं कि शासकीय वर्ग में सबसे पहले शेरशाह ने 1540 में इस लिपि को अपने कोर्ट में शामिल किया। उस समय कारकुन कैथी और फारसी में सरकारी दस्तावेज लिखा करते थे। शेरशाह ने अपनी मुहरें भी फारसी के साथ कैथी लिपि में बनवाई थीं। कैथी में लिपिबद्ध कई धार्मिक ग्रंथ भी प्राप्त हुए हैं। मगही के कई नाटक और अन्य साहित्य कैथी में उपलब्ध है।

कैथी भाषा में लिखा था धनबाद का खतियान

धनबाद कोयलांचल में हाल के दिनों तक जमीन का खतियान कैथी भाषा में था। यहां कैथी और बांग्ला भाषा में खतियान थे। लेकिन इसे पढ़ने वाले गिने-चुने लोग ही था। धनबाद समाहरणालय संवर्ग में कैथी भाषा जानने वाले तमाम कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। खतियान का डिजिटलाइजेशन के दाैरान सेवानिवृत्त हो चुके कैथी के जानकार लोगों की मदद ली गई। खतियान का हिंदी में अनुवाद कर डिजिटल कर दिया। इसी के साथ खतियान से भी कैथी लिपि की विदाई हो गई है।

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