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Mar Pit ki Dhara : मारपीट से संबंधित अपराध, भारतीय दंड संहिता (IPC) के अंतर्गत मारपीट से संबंधित अपराध

गाजीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली.  Mar Pit ki Dhara : विचारों में मतभेद से जीवन के सामान्य अनुक्रम में अनेक ऐसे मामले हो जाते हैं जिनमें लोग एक दूसरे के प्रति हिंसक होकर मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। कभी-कभी विवाद गाली गलौज से शुरू होकर मारपीट तक जाता है तथा मारपीट से होते हुए हत्या तक पहुंच जाता है। ऐसे विवादों में अपराधिक मानव वध और हत्या तक हो जाती है पर कभी-कभी चोट इतनी गंभीर नहीं होती है कि किसी व्यक्ति की हत्या हो जाए या उसकी मृत्यु कारित हो जाए। 

Mar Pit ki Dhara

यदि प्रहार हत्या के आशय से नहीं किया गया है केवल क्षति पहुंचाने के आशय से प्रहार किया गया है तो ऐसी परिस्थिति उपहति है, अंग्रेजी में हर्ट कहलाती है। मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराधों में जीवन के लिए संकटकारी अपराधों के बाद पहला विषय उपहति से संबंधित है उपहति अर्थात कोई ऐसा कार्य जिसके होने से मानव शरीर को किसी प्रकार की क्षति होती है। भारतीय दंड संहिता की धारा 319 से लेकर 338 तक उपहति के संबंध में उल्लेख किया गया है। 

उपहति भारतीय दंड संहिता 1860 अध्याय 16 के अंतर्गत धारा 319 से लेकर धारा 338 तक उपहति (चोट) के संबंध में उल्लेख कर रही है। उसमें मुख्य रूप से दो प्रकार की चोट है साधारण चोट तथा गंभीर चोट। इस आलेख में हम साधारण चोट के विषय में अध्ययन करेंगे तथा अगले आलेख में गंभीर चोट के संबंध में चर्चा की जाएगी। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 319 उपहति की परिभाषा प्रस्तुत करती है। इस परिभाषा के अनुसार जो कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा पहुंचाता है या रुग्ण में या अथवा रोग ग्रस्त करता है और दुर्बल तथा शैथिल्य करता है तो उसे उपहति कहा जाता है। उपहति के अंतर्गत वह समस्त कार्य आते हैं जिनसे किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट, बीमारी, दुर्बलता पैदा होती है अतः वह कार्य का अर्थ है किसी प्रकार की पीड़ा पहुंचाना जैसे कि किसी व्यक्ति को उसके बाल पकड़कर पीटना उपहति है। 

पीड़ा शारीरिक होना चाहिए मानसिक पीड़ा को धारा के अंतर्गत उपहति नहीं किया गया है तथा ऐसी शारीरिक पीड़ा के परिणामस्वरूप शरीर को किसी प्रकार का कष्ट दिया जाना चाहिए तब उपहति का अपराध घटित होता है। धारा 319 उपहति की परिभाषा प्रस्तुत करती है तथा धारा 320 घोर उपहति की परिभाषा का उल्लेख करती है। गंभीर चोट धारा 320 में वर्णित की गई है, कोई भी कृत्य अपराध की श्रेणी में तभी आता है जब वह स्वेच्छापूर्वक किया जाता है दुर्घटनावश नहीं, धारा 321 में यही बात कही गई है। सर्वप्रथम तो धारा 319 के अंतर्गत उपहति की परिभाषा दी गई है। 

शरीर को किसी प्रकार की पीड़ा दी जाना उपहति कहलाता है तथा धारा 321 के अंतर्गत स्वेच्छा से उपहति कारित करने को अपराध करार दिया गया है। यदि किसी व्यक्ति को स्वेच्छा से साधारण चोट दी जाती है जिससे उसके शरीर को किसी प्रकार की नुकसान पहुंचता है तो यह धारा 321 के अंतर्गत स्वेच्छा उपहति कारित करना कहलाता है। धारा 321 के अंतर्गत स्वेच्छा पूर्ण तरीके से उपहति कारित करने को अपराध करार दिया गया है। एक मामले में पति उत्तेजना के अंतर्गत पत्नी के पेट पर लात मारता है, पत्नी का प्लीहा बढ़ा हुआ है तथा उस पर हादसे से उसका प्लीहा फट जाता है।

 परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो जाती है। यह धारण किया गया कि वह उपहति का दोषी था क्योंकि पति को इस बात का ज्ञान था कि उसे उसकी मृत्यु हो जाएगी। अनीश बनाम उत्तर प्रदेश राज्य इलाहाबाद के एक प्रकरण में एक लड़का एक लड़की से प्यार करता था। वह छोटी थी यह लड़का उसे कोई प्रेम उत्तेजक या वशीकरण वस्तु खिलाना चाहता था। इस अभिप्राय से एक छोटे लड़के को प्रेरित किया गया कि वह उस लड़की को इस प्रकार की मिठाई खिला दे, उस लड़की ने उसके परिवार में कुछ अन्य सदस्यों ने मिठाई खाई जितने लोगों ने उसमे हाथ बंटाया उन सब में जहर खाने के कुछ लक्षण पाए गए, इस प्रकरण में यह माना गया कि लड़का क्षति पहुंचाने का आरोपी था। 

साधारण चोट के लिए दंड किसी भी प्रकार की साधारण चोट जो स्वेच्छा से पहुंचाई जा रही है जिसका उल्लेख भारतीय दंड संहिता की धारा 321 के अंतर्गत किया गया है इसके लिए दंड का निर्धारण संहिता की धारा 323 के अंतर्गत किया गया है। यह अत्यंत प्रचलित धारा है, सामान्य रूप से मारपीट के प्रकरणों में जिसमें कोई उपहति होती है पुलिस द्वारा धारा 323 के अंतर्गत प्रकरण बनाया जाता है। कोमल बनाम मध्य प्रदेश राज्य 2009 के एक प्रकरण में अभियुक्त क्रमांक 1 से 8 तक विचारण का सामना कर रहे थे और उनमें से केवल अभियुक्त क्रमांक 2 और अभियुक्त क्रमांक 4 को दोष सिद्ध किया गया था जबकि सभी शेष को विचारण न्यायालय द्वारा दोषमुक्त कर दिया गया था। 

अपीलकर्ता को अपने खुद के कार्य के लिए धारा 323 के अधीन दोषी पाया गया और ₹500 के जुर्माने से दंडित किया गया। जिसके अनुबंध व्यतिक्रम पर 1 महीने का सादा कारावास जुड़ा हुआ था। दोषसिद्धि के विरुद्ध अपीलकर्ता द्वारा कोई अपील फाइल नहीं की गई तथा राज्य द्वारा फाइल की अपील से तर्क प्रस्तुत किया गया था की धारा 149 के प्रमुख तत्वों को ध्यान में नहीं रखा गया। उच्च न्यायालय को स्वीकार करते हुए अपीलकर्ता के साथ धारा 304 ए के अधीन दोषी ठहराया गया। उसे 7 वर्षों के कारावास से दंडित किया गया। उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपीलकर्ता द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि उच्च न्यायालय ने इस बात को नोट किया था कि प्रकरण में कोई सामान्य उद्देश्य नहीं था इसलिए अपीलकर्ता को धारा 34 के साथ पाठीत धारा 304 ए के अधीन दोष सिद्ध करने का प्रश्न ही नहीं उठता है। 

इस बात का कोई साक्ष्य नहीं था अपीलकर्ता द्वारा मृतक के शरीर पर कोई शिकायत की गई थी। अभियुक्त संख्या 7 और 9 के पिता और भाई का स्वीकार करने योग्य नहीं था। उच्च न्यायालय अपीलकर्ता की भूमिका के संबंध में निष्कर्ष पर पहुंचा था यह गलत तरीके से अभिनिर्धारित किया गया की अपीलकर्ता ने मृतक के शरीर पर शिकायत की थी। नीचे की दोनों अदालतों द्वारा स्पष्ट रूप से यह भी निर्धारित किया गया था कि इस प्रकरण में कोई सामान्य उद्देश्य नहीं था। कोई ऐसी स्थिति में अपीलकर्ता किसी भी विधिवत जमाव का कोई सदस्य नहीं था। 

उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया कि उच्च न्यायालय को दोषसिद्धि में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहिए था जैसा कि वह विचार न्यायालय द्वारा अभिलिखित की गई थी, तदनुसार अपीलकर्ता के संबंध में विचारण न्यायालय के आदेश को पूर्वव्रत कर दिया गया और अपीलकर्ता के संबंध में उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया गया। भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के अंतर्गत स्वेच्छा से कोई चोट देने के परिणामस्वरूप 1 वर्ष तक के दंड का निर्धारण किया गया है।यदि किसी व्यक्ति द्वारा स्वेच्छापूर्वक कोई साधारण चोट पहुंचाई जाती है तो धारा 323 के अंतर्गत 1 वर्ष तक का कारावास दिया जाएगा। खतरनाक हथियारों के माध्यम से उपहति करना यदि चोट खतरनाक हथियारों के माध्यम से पहुंचाई गई है जिन हथियारों से किसी मनुष्य की हत्या की जा सकती हो ऐसी परिस्थिति को खतरनाक आयुध या साधनों द्वारा चोट पहुंचाना कहा जाता है। धारा 321, 322, 324 और 326 के अंतर्गत अवश्य साबित किया जाना चाहिए कि अभियुक्त ने इस ज्ञान के साथ कार्य किया था कि उस कार्य द्वारा अपराध के शिकार व्यक्ति को संभवतः उपहति करता है अर्थात घोरी उपहति करता है। 

उक्त धारा 326 के अंतर्गत साधारण उपहति के भयंकर स्वरूप को प्रस्तुत किया गया है अर्थात घोर उपहति को प्रस्तुत किया गया है। कैलाश प्रसाद कनोडिया बनाम बिहार राज्य के प्रकरण में अपराध से व्यथित व्यक्ति के किसी मर्म स्थान पर घोर चोट नहीं लगी थी और न ही गंभीर प्रकृति का कोई घाव बन पाया गया था तथा धारा 326 के अंतर्गत कारित की गई दोषसिद्धि धारा 324 के अंतर्गत परिवर्तित कर दी गई और कारावास की सजा 2000 के जुर्माने की सजा में बदल दी गई। इस आलेख में साधारण चोट और उससे संबंधित अपराधों का अध्ययन किया जा रहा है। 

धारा 324 के अनुसार यदि खतरनाक हथियारों के माध्यम से साधारण चोट दी गई है तो 3 वर्ष की अवधि के कारावास के दंड का निर्धारण किया गया है। इस प्रकार की चोट केवल हथियार द्वारा ही नहीं की जाती है अपितु अग्नि के द्वारा या किसी पदार्थ के द्वारा या फिर जहर के द्वारा यह किसी जीव जंतु के द्वारा भी दी जा सकती है परंतु है चोट साधारण होना चाहिए तभी धारा 324 के अंतर्गत दंडित किया जा सकता है। घोर चोट कौन सी होती है! गंभीर चोट किसे कहा जाता है! इसकी परिभाषा धारा 320 के अंतर्गत दी गई है जिसका अध्ययन अगले आलेख में किया जाएगा। 

अनिल कुमार पांडे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1982 के प्रकरण में अभियुक्त ने एक युवा लड़की के चेहरे पर तेजाब फेंक दिया था उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया अपराध उदारता के योग्य नहीं है परंतु फिर भी अपीलकर्ता के छात्र होने के कारण नीचे की अदालत द्वारा पारित 2 वर्ष और 5 वर्ष के कठोर कारावास को पहले से ही भोग लिए गए 14 महीनों के कठोर कारावास में न्यून कर देना न्याय संगत है और उसे ढाई हजार रुपए जुर्माने को बढ़ाकर ₹7000 जुर्माना करने का आदेश पारित किया गया वर्तमान में एसिड फेंकने के अपराध के परिणामस्वरूप नवीन धाराएं भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत जोड़ दी गई जिसमे आजीवन कारावास तक के दंड का प्रावधान है जिनका उल्लेख आगे किया जाएगा। 

हरदेव सिंह बनाम हरदेव सिंह 1997 के प्रकरण में अभियुक्त द्वारा कारित हमले के दौरान प्रत्यक्षदर्शी साक्षी को क्षति कारित हुई थी चिकित्सक और अन्य प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के साक्ष्य द्वारा उसके साक्ष्य का प्रतिपरीक्षण हुआ था। परिस्थितियों के अधीन निर्धारित किया गया कि अभियुक्तगणों की एक विधि विरुद्ध जमाव के सदस्य थे प्रत्यक्षदर्शियों साक्षी को क्षति कारित की थी और धारा 324/149 के अधीन अपराध किया। संपत्ति हथियाने के उद्देश्य से चोट पहुंचाना भारतीय दंड संहिता की धारा 327 संपत्ति हथियाने के उद्देश्य से किसी अवैध कार्य को करने के लिए मजबूर करने हेतु किसी व्यक्ति को कोई उपहति करना दंडनीय अपराध करार देती है। जैसे कि यदि किसी व्यक्ति से घड़ी छीनने के उद्देश्य से उसे मुक्का मारना धारा 327 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। 

किसी व्यक्ति को कोई संपत्ति बेच देने हेतु मजबूर करना और ऐसे मजबूर करने के परिणामस्वरुप उसे चोट पहुंचाना धारा 327 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। इस धारा के अंतर्गत 10 वर्ष तक की अवधि के दंड का निर्धारण किया गया है। कोई अपराध करने के आशय से जहर देना भारतीय दंड संहिता की धारा 328 के अंतर्गत भी साधारण चोट के संबंध में उल्लेख है। कोई अपराध करने के आशय से यदि किसी व्यक्ति को जहर देकर ऐसी चोट पहुंचाई गई है या कोई हानिकारक औषधि खिलाकर ऐसी चोट पहुंचाई गई है तो धारा 328 के अंतर्गत 10 वर्ष की अवधि तक के दंड का निर्धारण किया गया है। इस संबंध में ऑगस्टिन बनाम स्टेट ऑफ केरल एक महत्वपूर्ण मामला है। 

इसमें किसी खाद्य पेय पदार्थ में मिथाइल अल्कोहल मिलाकर उसका विक्रय किए जाने को इस धारा के अंतर्गत दंडनीय अपराध माना गया है क्योंकि इससे नेत्रों की ज्योति जाना शुरू हो जाने की संभावना प्रबल हो जाती है। यहां पर यह ध्यान देना चाहिए कि इस प्रकार का विष देखकर या फिर कोई विषय वस्तु खिलाकर कोई अपराध करने का आशय रखने के परिणामस्वरूप चोट साधारण होना चाहिए यदि ऐसे कार्य से चोट गंभीर है धारा 328 के अंतर्गत नहीं बनेगा उसके लिए गंभीर धाराओं के अंतर्गत बनेगा। उन धाराओं के अंतर्गत दंड की अवधि भी अधिक है। श्रीमती शकीला अब्दुल गफ्फार खान बनाम वसंत रघुनाथ ढोबले के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया है कि भारत में कस्टोडियल क्राइम के मामलों में सजा बहुत कम होती है और दोषी व्यक्ति बिना सजा के बच निकलते हैं अतः इसे मामलों में साबित करने का भार पुलिस अधिकारी पर होना चाहिए। किसी व्यक्ति को परपीड़न देकर उसकी स्वीकृति लेना भी धारा 330 के अंतर्गत अपराध है। 

यदि किसी व्यक्ति को ऐसा परपीड़न दे कर कोई स्वीकृति ली जा रही है और इस वजह से किसी व्यक्ति को कोई क्षति होती है कोई चोट पहुंचती है तो धारा 330 के अंतर्गत अभियुक्त दंडित किया जाएगा। लोक सेवक को उसके कर्तव्य करने से रोकने पर कोई चोट कारित करना जब कोई लोक सेवक कोई कार्य कर रहा है जिस कार्य को करने के लिए वह विधि द्वारा आबद्ध है ऐसे कार्य को करने से किसी लोकसेवक को रोका जाता है उसे निवारित किया जाता है और ऐसे में कारित करने के परिणामस्वरूप उस लोक सेवक को कोई चोट पहुंचती है तो धारा 332 के अंतर्गत इस प्रकार का अपराध करने वाला 3 वर्षों तक के कारावास से दंडित किया जाएगा। गुस्से में की गई चोट भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत गुस्से में किए गए अपराधों को कम गंभीर अपराध माना गया है क्योंकि ऐसा अपराध व्यक्ति द्वारा बगैर किसी चिंतन के किया जाता है। धारा 334 के अंतर्गत इस प्रकार प्रकोपन दिए जाने के परिणामस्वरूप यदि किसी व्यक्ति को कोई क्षति पहुंचाई जाती है तो दंडित किए जाने का प्रावधान दिया गया है। 

धारा 334 के अंतर्गत कम दंड का प्रावधान है यदि गुस्से में किसी व्यक्ति द्वारा कोई चोट पहुंचाई जाती है तो 1 महीने के दंड के कारावास का निर्धारण किया गया है तथा लगभग यह माफी योग्य अपराध है, यदि गुस्से में किसी व्यक्ति को कोई साधारण चोट पहुंचा दी जाती है। इस धारा का उद्देश्य स्वेच्छा उपहति कारित करने पर दंड का उपबंध करना है। अहमद अली खान बनाम त्रिपुरा राज्य 2009 उच्चतम न्यायालय 704 के प्रकरण में प्रकोपन पर स्वेच्छा से गंभीर चोट की गई थी और उच्च न्यायालय द्वारा अभियुक्त को 2 वर्ष के कठोर कारावास का दंड दिया गया था साथ में ₹1000 का जुर्माना भी आरोपित किया गया था। 

यह बताया गया था कि घटना के समय अभियुक्त सुकुमार आयु का था धारा 335 के अंतर्गत अधिकतम दंड 4 वर्ष का निर्देशित किया गया कि दंडादेश को घटाकर 3 महीने का कर दिया जाता है क्योंकि मामले की परिस्थितियों से चोट का गंभीर होना सिद्ध नहीं हो पा रहा था। धारा 335 के अंतर्गत गुस्से में गंभीर चोट देने के संबंध में उल्लेख किया गया है जिसका उल्लेख हम अगले आलेख में करेंगे. इनपुट : लाइव लॉ

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