भगवान भास्कर की लालिमा दिखते ही शुरू हो गया अर्घ्यदान, घाटों पर नहीं बची थी तिल रखने की जगह - Ghazipur News
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. भगवान भास्कर के इंतजार में बैठीं व्रतियों की तपस्या गुरुवार की भोर में उस समय पूरी होने लगी जब आसमान से भगवान ने झांकना शुरू किया। लालिमा दिखते ही घाटों पर जयकारा लगने लगा और शुरू हो गया अर्घ्यदान। भोर होने के साथ पूजा घाटों पर तिल रखने की जगह नहीं बची थी। अर्घ्यदान के बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिदूर लगा उनके अमर सुहाग की कामना की।परिवार के साथ ही घाट पर पहुंचे अपने आसपास के लोगों को टीका लगाकर प्रसाद दिया। उम्र और पद का ध्यान रखते हुए श्रद्धालुओं ने व्रतियों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
इससे पहले शहर से लेकर गांव तक की सड़कें आधी रात के बाद से ही गुलजार हो गई थीं। सबके मन में एक ही इच्छा थी कि छठ मइया की पूजा में शामिल होकर आशीर्वाद प्रात कर लें। भोर से पहले ही छठ मइया के गीत गूंजने लगे थे, तो वहीं मन्नत के अनुसार कई लोग ढोल-नगाड़े के साथ पहुंचे। कुछ लोगों ने समय से उठने के लिए मोबाइल में अलार्म सेट कर दिया गया था। आधी नींद भी पूरी नहीं हुई थी अलार्म बजने लगा और आंखें खुल गई। रात में ठंड तो रही, लेकिन उसके बाद भी लोगों ने स्नान किया और साफ वस्त्रों को धारण कर कदम बढ़ाने लगे नदी व सरोवरों की ओर। घाटों पर पहुंचे लोगों में सूर्य के उगने को लेकर बेताबी थी। व्रतियों द्वारा गए गाए जाने वाले गीत 'जल्दी-जल्दी उगा हे सुरुज देव भइलें अरघ के बेर..' इस बेताबी को बयां कर रही थी।
व्रती महिलाओं के साथ चलने वाले वयस्क व बच्चों के सिर पर पूजा के सामान थे तो साथ जा रही महिलाएं छठ मइया के भजन गा रही थीं। हाथों में कलश और उस पर जलते दीपक के साथ घरों से निकलीं व्रती महिलाओं को देखने के बाद लग रहा था मानों रात के अंधेरे में देवियां सड़क पर निकल पड़ी हों। नदी व सरोवरों में दीपदान ने अद्भुत छटा बिखेरी। लग रहा था मानों आसमान के तारे जल में उतर आए हों। सूर्योदय का समय नजदीक आने के साथ लगा कि समूचा जनमानस घाटों पर ही जमा हो गया हो।
अर्घ्य के लिए समय से पहले लोग दूध की व्यवस्था में जुट गए थे, तो वहीं कुछ स्थानों पर पूजा कमेटियों ने मुफ्त दूध की व्यवस्था की थी। इससे पहले घाटों पर पहुंचकर व्रती महिलाओं ने अपनी बेदी के पास रंगोली बनाया, सूप में एक दिन पहले चढ़ाए गए ठोकवा, पुआ आदि को बदलकर ताजा रखा। उसके बाद सूप को पूरब दिशा की ओर रखा गया। फिर जल में खड़ी होकर व्रती महिलाओं ने सूर्य की लालिमा दिखने तक तपस्या की। इस दौरान घाटों पर छठ मइया से जुड़े गीतों से वातावरण गूंजता रहा।
खास बात, यह रही कि जिनके घर यह पूजा नहीं होती है उनकी भी नींद खुल गई थी। कारण कि एक तरफ जहां घर से निकलकर रास्ते भर छठ मइया के गीत गाए जा रहे थे, वहीं बाजे-गाजे के के शोर ने नींद तोड़ दी। सूर्योदय के साथ पहले व्रती महिला तथा उसके बाद परिवार के सदस्य तथा अन्य श्रद्धालुओं ने अर्घ्य दिया। घर पहुंचकर महिलाओं ने चौखट की पूजा की और उसके बाद वेदी पर चढ़ाए गए चने को निगलकर पारण किया।