बनारस में बंगाली समाज की महिलाओं ने सिंदूर खेला की परंपरा का किया निर्वहन, देखे फोटो
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. नवरात्र का समापन विजय दशमी पर्व के साथ संपन्न हो गया। नवरात्र समापन के साथ ही दुर्गा पूजा का आयोजन भी खत्म हो गया और विसर्जन के लिए दुर्गा मूर्तियां अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गईं। आयोजन के पूर्व परंपरागत तरीके से महिलाओं ने सिंदूर खेला की रस्म का निर्वहन कर एक दूसरे को सिंदूर लगाने के बाद मां को विदायी दी।
सिंदूर खेला के दौरान राजा चेतसिंह किला परिसर स्थित काशी दुर्गोत्सव समिति के पूजा पंडाल के अलावा बंगीय समाज के मोहल्लों में स्थापित दुर्गा पंडालों में मां दुर्गा के विदाई से पहले सिंदूर खेला की रस्म को सुहागिन महिलाओं ने निभाया। आस्था का सागर सुबह से ही पंडालों की ओर उमड़ पड़ा था। परंपराओं को जीवंत रखते हुए बंगीय समाज की महिलाओं ने पंडालों में दुर्गा मूर्तियों के समक्ष एक दूसरे के माथे और गालों पर सिंदूर लगाकर खुशी के माहौल में मां दुर्गा को अगले वर्ष जल्दी आने की कामना के साथ विदायी दी।
दुर्गा पंडालों में सुबह से ही आस्था परवान चढ़ती रही। पंडालों में सुबह अंंतिम पूजन के साथ ही सिंदूर खेला की रस्म महिलाओं ने निभाई तो विदायी के समय माहौल काफी भावपूर्ण हो गया। एक एक कर देवी दुर्गा की प्रतिमाएं विसर्जन के लिए रवाना की गईं तो देवी को विदायी देने के लिए भी आस्था का मानो सागर उमड़ पड़ा हो। बंगीय समाज की ओर से इस दौरान देवी की विदायी की परंपरा विधिवत निर्वहन किया गया।
रंगारंग कार्यक्रम : विजय दशमी के दिन सिंदूर खेला वैसे तो पश्चिम बंगाल की परंपरा है लेकिन अब यह पूर्वांचल और खासकर बनारस में काफी प्रसिद्ध है।
बंगीय समाज की महिलाएं सिंदूर खेला के दौरान सिंदूर से होली देवी प्रतिमा के समक्ष खेलती हैं और मां का आशीष अखंड सौभाग्य के तौर पर प्राप्त करती हैं। इस दौरान नाच गाना और मिष्ठान्न के साथ पुष्प वर्षा कर मां को विदायी दी जाती है.