गाजीपुर की रामलीला में मुस्लिम कलाकार पात्रों में डालते हैं जान, गूंजती है मानस की चौपायी
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. गाजीपुर जिले के खानपुर में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की गजब मिशाल देखने को मिलती है। जब रामलीला के किरदारों को मुस्लिम भाई निभाते हैं तो दर्शक भाव विभोर हो जाते हैं। किरदार निभाने वाले भी राम के आदर्शों से प्रेरित हैं। आदर्श रामलीला समिति के सौजन्य से आयोजित रामलीला के मंचन में कई मुस्लिम कलाकार किरदार निभाते हैं। रामायण व्यास राजकुमार सिंह कहते हैं कि डा. कलाम अंसारी बाणासुर के साथ केवट और अन्य राजाओं का जीवंत अभिनय करते हैं। निजाम अंसारी शारीरिक कमजोर होने से पूर्व राजा दशरथ का रोल निभाते रहे। आजकल अन्य कलाकारों को अभिनय सिखाते हैं।
कलाकारों के चयनकर्ता संजीव सिंह बताते हैं कि अफजाल अहमद, अरमान और डिगरी अंसारी हमारे रामलीला के बहुमुखी कलाकार हैं जो द्वारपाल से लेकर साधु, सेवक, राक्षस, नल नील आदि का रोल करते हैं। इसके अतिरिक्त कई मुस्लिम सहयोगी रामलीला के मंचन में मेकअप साज सज्जा मंच संचालन आदि में सहयोग करते हैं। गुलाम गौस कहते हैं कि खानपुर हमेशा से धार्मिक और सामाजिक सौहार्द का केंद्र रहा है। यहां जन्माष्टमी पर मटका फोड़ प्रतियोगिता में कन्हैया, मधुसूदन, मुरलीधर, मदनमोहन, कृष्णा आदि टीमों के साथ अब्दुल और कलाम की टीमें भी भाग लेती हैं।
सादात क्षेत्र के मजुई चौराहे की रामलीला की शुरुआत व इसका संचालन पिछले 35 वर्षों से गांव का एक मुस्लिम परिवार करता चला आ रहा है। गांव के नेसार अहमद जिन्होंने 1985 में इसकी शुरुआत की थी पांच साल पहले उनके इंतकाल होने पर लोगों ने उनके पुत्र कमर अहमद सिद्दीकी को यह जिम्मेदारी सौंप दी। तब से लेकर अभी तक मजुई रामलीला कमेटी के अध्यक्ष पद पर रहकर रामलीला को मंचन कराने में पूरा सहयोग करते हैं।
इस संबंध में कमर अहमद सिद्दीकी ने बताया कि गांव में जब 1984 में रामलीला की शुरुआत हुई थी तो पुलिस प्रशासन ने बिना अनुमति पर एतराज जताया था। तब हमारे वालिद नेसार अहमद गांव के प्रधान थे। उन्होंने वर्ष 1985 में गाजीपुर जाकर जिलाधिकारी से मिलकर मजुई चौराहे पर रामलीला करने की अनुमति ली थी। तब से लेकर मेरे वालिद जीवन के आखिरी समय तक रामलीला समिति के कभी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष रहे।
उनके इंतकाल के बाद अब मुझे अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी रामलीला समिति व गांव के प्रबुद्ध लोगों ने सौप दी है। कहा कि जब से यहां रामलीला की शुरुआत हुई है यहां पर मुस्लिम वर्ग के कई लोगों द्वारा वाद्य यंत्र बजाने से लेकर अन्य भूमिका मे हिस्सा लेते रहते हैं। उधर, सादात नगर में पिछले सात-आठ वर्ष से किन्हीं कारणों से रामलीला नहीं हो पा रही है, लेकिन यहां पर भी रामलीला मंचन मे कई मुस्लिम समुदाय के युवक रामलीला के विभिन्न पात्र को रोल बढ़िया ढंग से निभाते रहते थे।