फर्जी नहीं था विकास दुबे का एनकाउंटर जांच आयोग ने उप्र पुलिस को दी क्लीनचिट
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के बहुचर्चित बिकरू कांड के मुख्य अभियुक्त विकास दुबे की पुलिस से हुई मुठभेड़ को न्यायिक जांच आयोग ने सही ठहराते हुए पुलिस को क्लीनचिट दे दी है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विकास और उसके गैंग में शामिल सभी अपराधियों को स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। इसलिए विकास को अपने घर पर पुलिस की दबिश की जानकारी चौबेपुर पुलिस से पहले ही मिल गई थी। इस वजह से पुलिस बल के 8 सदस्यों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। सरकार ने जांच आयोग की रिपोर्ट बृहस्पतिवार को विधानसभा में पेश की है।
बता दें कि पिछले साल 2 व 3 जुलाई की रात को विकास दुबे और उसके गिरोह के अपराधियों द्वारा दबिश देने गई 8 पुलिस जवानों की हत्या कर दी गई थी। इसके जवाबी कार्रवाई में हत्या करने वाले अपराधियों और पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में कई अपराधी भी मारे गए थे। इस घटना का जांच के लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज न्यायमूर्ति डॉ. बीएस चौहान की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया गया था। इसमें हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति शशिकांत अग्रवाल और पूर्व पुलिस महानिदेशक के एल गुप्ता को सदस्य बनाया गया था। जांच आयोग ने 797 पेज की रिपोर्ट सरकार को सौंपी है। जिसमें से 132 पेज की जांच रिपोर्ट है और 665 पेज की तथ्यात्मक सामग्री है।
जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पूरे घटनाक्रम में स्थानीय पुलिस कर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों के रवैये के साथ ही पुलिस और न्यायिक सुधारों के संबंध में भी कई सिफारिशें की हैं। विकास दुबे मुठभेड़ के सभी पहलुओं की जांच के आधार पर आयोग ने कहा है कि घटना के संबंध में मुठभेड़ में शामिल पुलिस टीम ने जो भी तथ्य सामने रखे थे उसका खंडन न तो जनता ने किया और न ही मीडिया ने। यही नहीं पुलिस मुठभेड़ को फर्जी बताने वाली विकास दुबे की पत्नी रिचा दुबे ने हलफनामा दिया था. लेकिन वह भी अपना पक्ष बताने के लिए आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुईं। इस प्रकार मुठभेड़ को लेकर पुलिस पर संदेह नहीं किया जा सकता है। आयोग ने कहा है कि घटना की मजिस्ट्रेटी जांच रिपोर्ट में भी इसी तरह के निष्कर्ष सामने आए थे।
रिकॉर्ड गायब होने के मामले में दोषियों पर कार्रवाई की संस्तुति
जांच आयोग ने दुर्दांत अपराधी विकास दुबे से संबधित प्रकरणों से संबंधित रिकॉर्ड के गायब होने के मामले में जिम्मेदार लोगों को दंडित करने की भी सिफारिश की है। साथ ही उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की भी संस्तुति की गई है। आयोग का कहना है कि रिकार्ड गायब होने के मामले की विधिवत जांच कराते हुए दोषियों को चिह्नित किया जाए और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। आयोग ने पनकी की घटना के मामले में पुलिस की तरफ से आयोग को दी गई मेडिकल रिपोर्ट की फोटो प्रतियों में गलत तथ्य अंकित करते हुए डॉक्टर का फर्जी हस्ताक्षर किए जाने की अलग से जांच कराए जाने की संस्तुति की है।
जांच आयोग की रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- विकास दुबे से स्थानीय पुलिस इस प्रकार से प्रभावित थी कि वह उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों की कभी निष्पक्ष जांच नहीं करती थी। चार्जशीट दाखिल करने से पहले ही गंभीर धाराएं हटा दी गईं। इस वजह से कोर्ट में उसे आसानी से जमानत मिल जाती थी। ट्रायल के दौरान गवाह मुकर जाते रहे। जमानत निरस्त कराने के लिए राज्य सरकार ने कभी भी उच्च अदालतों में अपील भी नहीं की।
- विकास दुबे गैंग को स्थानीय पुलिस एवं अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। स्थानीय थाने और राजस्व के अधिकारी विकास गैंग के संपर्क में थे और उनसे कई तरह की सुविधाएं ले रहे थे। विकास उनके संरक्षण में ही फल-फूल रहा था। उसका वर्चस्व लगातार पुलिस प्रशासन की अनदेखी के चलते बढ़ता गया।
- संरक्षण के ही कारण विकास दुबे का नाम सर्किल के टॉप-10 अपराधियों की सूची में तो शामिल था लेकिन जिले के टॉप-10 अपराधियों की सूची में नहीं था जबकि उस पर 64 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। गैंग के सदस्यों को पुलिस ने सांप्रदायिक मामले निपटाने के लिए बनाई गई शांति समितियों में भी शामिल कर रखा था।