काशी के अस्सी स्थित जगन्नाथ मंदिर परिसर में ही निभाई गई डोली यात्रा की परंपरा
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ पखवारे भर से ज्यादा समय तक स्वास्थ्य लाभ लेने के बाद मन फेर करने के लिए अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ डोली में सवार होकर अपने मौसी के घर निकले।
इस धार्मिक व लोक परम्परा का पालन हर वर्ष से अलग हटकर मंदिर परिसर में ही अनौपचारिक रूप से सम्पन्न किया गया। इस क्रम में रविवार को शाम चार बजे भक्तों ने प्रभु जगन्नाथ की डोली का श्रृंगार कर उसे गाजे-बाजे के साथ मंदिर के गर्भ गृह की परिक्रमा कर प्रतीकात्मक डोली- यात्रा की अक्षुण्ण परंपरा का निर्वाह किया। प्रतीक डोली- यात्रा का उद्देश्य जिलाधिकारी के आदेशानुसार कोविद 19 की गाइडलाइन का पालन करना और कराना था।
गौरतलब है कि कोविद 19 संक्रमण के पूर्व के पिछले कई वर्षों में आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा के दिन भगवान जगन्नाथ की डोली यात्रा असि स्थित जगन्नाथ मंदिर से गाजे - बाजे के साथ विभिन्न मार्गों से होती हुई रथयात्रा स्थित बेनीराम के बागीचे में जाती है और अगले दिन की भोर अर्थात आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया से चतुर्थी तक काशी की लक्खी मेले में शुमार रथयात्रा का मेला सम्पन्न होता है। ट्रस्ट श्री जगन्नाथ मंदिर के सचिव आलोक शापुरी के अनुसार इस वर्ष तीन दिवसीय रथयात्रा मेला प्रतीकात्मक रूप से मंदिर परिसर में ही होगा। इस दौरान मंदिर के बाहर से ही भक्त दर्शन कर सकेंगे।
डोली- यात्रा के क्रम में अपराह्न तीन बजे मंदिर का पट खुलने के बाद डोली का श्रृंगार किया गया। इसके बाद भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के विग्रह को डोली में सवार कराकर मंदिर के गर्भ गृह की परिक्रमा कराकर यात्रा की औपचारिकता निभाई गई। इस दौरान गाजे- बाजे की धुन से मंदिर परिसर गुंजायमान हो उठा। डोली यात्रा के बाद मंदिर आरती की गई और पट बंद कर दिया गया। मंदिर के पुजारी राधेश्याम पांडेय के अनुसार सोमवार को प्रातः काल सवा पांच बजे से दर्शन आरम्भ हो जाएगा।