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कहानी: उल्टा दांव

जितेंद्र गाड़ी में अपने सामने वाली बर्थ पर बैठे 2 युवकों को देख कर बहुतकुछ अनुमान लगा चुके थे. यहां तक कि कुछ ज्यादा ही सपने बुनने लगे थे. लेकिन.

पटना अहमदाबाद ऐक्सप्रैस ट्रेन अपनी पूरी गति से चली जा रही थी. पटना रेलवे स्टेशन पर इस ट्रेन पर सवार जितेंद्र अपनी बेटी मालती के साथ अहमदाबाद जा रहे थे. वहां उन्हें बेटी को मैडिकल ऐडमिशन के लिए टैस्ट दिलवाना था.


एक प्राइवेट फर्म के क्लर्क जितेंद्र के लिए यह एक अच्छा अवसर था. सो, वे खुशी से जा रहे थे. वहीं उन की 17 वर्षीया बेटी मालती की खुशी का ठिकाना नहीं था. स्टेशन पर उन की पत्नी और बाकी बच्चे उन्हें छोड़ने आए थे. वे गाड़ी पर चढ़ गए. उन के सामने की बर्थ पर


2 लड़के विराजमान थे, 24-25 वर्ष के रहे होंगे, जींसपैंट व शर्ट में कम के ही लग रहे थे.‘‘पापा, आजकल किसी ने कुछ उलटीसीधी हरकत की तो एक मैसेज रेलमंत्री को करने से अपराधी फौरन पकड़ा जाता है,’’ मालती शायद इन बातों से अपना डर कम कर रही थी या उन युवकों को सुना रही थी.


‘‘हां बेटा, आप ठीक कह रहे हो, हम अब पूरी तरह सुरक्षित हैं,’’ पिता बेटी की हां में हां मिला रहे थे.‘‘परंतु पापा, क्या वास्तव में कार्रवाई होती है या फिर नाम कमाने के लिए…’’ वह शायद बात को लंबा खींचना चाहती थी.


‘‘बेटा, कार्रवाई वास्तव में होती है और कई पकड़े भी जा चुके हैं,’’ यह पिता का स्वर था. इधर, ये दोनों युवक अपनी पुस्तक पढ़ने में लगे थे. एक बार भी उन की बातों की ओर ध्यान नहीं दिया था.


‘‘क्यों, आप दोनों का क्या मत है?’’ इन्होंने उन दोनों युवकों से प्रश्न किया. ‘‘जी, आप ने मु झ से कुछ कहा,’’ एक युवक बोला.‘‘हां, कार्य के संबंध में पूछा था,’’ जितेंद्र ने बात प्रारंभ करने की गरज से कहा. ‘‘सौरी, मैं सुन नहीं पाया था,’’ कहते वह इन की बात सुनने की मुद्रा में आ गया.


‘‘क्या रेलमंत्री को मैसेज करने पर कार्यवाही वास्तव में होती है?’’ यह मालती का स्वर था. ‘‘जी, अगर शिकायत सही हो तो, वरना गलत शिकायत करने पर उलटा पेनल्टी लगने की संभावना भी है,’’ इसी लड़के ने कहा और पढ़ने में खो गया.


इधर मालती को चैन नहीं आ रहा था. वह उभरे गले का टौप, नीचे टाइट जींस पहने हाथ में बैग हिलाती गाड़ी पर आई थी, जिस के पिता कुली के समान सामान ढोते आए थे. वह अपने पिता को मानो कुली सम झ रही थी, जबकि स्वयं को राजकुमारी. ऐसी दशा में पूरे 2 घंटे गाड़ी को दौड़ते हुए हो गए और इन दोनों लड़कों ने एक बार भी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. सो, उसे गवारा नहीं हुआ या यों कहें कि वह पचा नहीं पा रही थी.


‘‘सुनिए,’’ मालती से जब नहीं रहा गया तो बोल उठी. ‘‘जी,’’ एक ने उस की ओर देखते कहा.‘‘पीने का पानी होगा आप के पास?’’ वह बोली. इस पर बिना कुछ बोले एक युवक ने पानी उस की ओर बढ़ा दिया. पानी पी कर मालती ने थैंक्स कहा तो वह बिना बोले मुसकरा कर अभिवादन स्वीकार करते, बोतल वापस बैग में रख फिर पढ़ने में खो गया.


डाक्टर राकेश, डाक्टर मोहन मिश्रा, टीटीई ने नाम ले कर पुकारा तो दोनों ने मुसकरा कर सिर हिला दिया.‘‘डाक्टर साहब, आप अहमदाबाद में?’’ टीटीई न जाने क्यों पूछ बैठा.‘‘हम दोनों वहां एमजीएमसी में कार्यरत हैं,’’ एक युवक ने संक्षिप्त उत्तर दिया. ‘‘डाक्टर साहब? तो क्या आप दोनों डाक्टर हैं?’’ जितेंद्र टीटीई के बाद बोल पड़े.


‘‘जी सर, हम दोनों भाई हाउस सर्जन के रूप में कार्यरत हैं और एमएस भी कर रहे हैं,’’ इस बार दूसरा युवक यानी डा. मोहन बोल उठा. ‘‘हम वहीं अपनी बिटिया का ऐडमिशन टेस्ट दिलवाने ले जा रहे हैं,’’ जितेंद्र बिना पूछे बोल उठे. ‘‘जी, परंतु मैडिकल की पढ़ाई तो पटना में भी हो सकती है. फिर इतनी दूर?’’ इस बार डा. राकेश ने प्रश्न किया.


‘‘बात यह है कि बाहर पढ़ने का मजा कुछ और है और वहां किसी की ज्यादा टोकाटाकी नहीं होती,’’ यह उन की बेटी मालती थी जो बीच में टपक पड़ी थी.‘‘अच्छा,’’ एक शब्द बोल दोनों फिर चुप हो गए.‘‘आप लोग कहां के रहने वाले हैं?’’ जितेंद्र ने पूछा.‘‘पटना का ही हूं. मेरे पिताजी पटना में ही नौकरी में हैं और वहीं से एमबीबीएस किया. फिर यहां नौकरी करने चले आए.’’


अब इन की आंखों में दूसरा स्वप्न तैरने लगा. एक जवान होती बेटी के पिता की आंखों में बेटी के भावी वर की तसवीर तैरती रहती है.‘‘आप लोग पटना के हैं, लगते तो नहीं?’’ यह मालती का प्रश्न था.‘‘हम लोग 2 साल से अहमदाबाद में काम कर रहे हैं. हो सकता है बोली में बदलाव आ गया हो,’’ डा. मोहन ने बात को खत्म करने की गरज से कहा.


‘‘मेरी बेटी कुछ ज्यादा ही बोलती है,’’ जितेंद्र ने बेटी का बचाव करते हुए कहा.‘‘ऐसा कुछ नहीं है. बड़े होने पर संभल जाएगी,’’ यहां भी दोनों बात को समाप्त कर फिर पढ़ने में खोते हुए बोले.अब दोनों बापबेटी इन दोनों से परेशान हो गए थे. ये लोग कभी भी कुछ भी बोलना नहीं चाहते. मात्र पढ़ते रहते हैं. बीच में चाय मंगा कर दोनों ने पी. एक बार भी नहीं पूछा.


जितेंद्र को  झट मौका मिल गया. जैसे ही मुगलसराय से गाड़ी आगे चली, एक चाय वाला चाय ले कर आया.उन्होंने 3 चाय का और्डर दिया. एक खुद के लिए और 2 उन दोनों डाक्टरों के लिए.‘‘नो थैंक्स, हम दोनों चाय पी चुके हैं,’’ दोनों स्पष्ट मना करते बोले.


‘‘मगर हम ने खरीद ली है. मैं पीने लगा तो सोचा आप को भी पिला दूं. आखिर आप पटना के हैं न,’’ इन्होंने बातों की कड़ी जोड़नी चाही.‘‘जी धन्यवाद, परंतु हम अभी चाय पी चुके हैं,’’ संक्षिप्त उत्तर दे कर दोनों चुप हो गए.जितेंद्र ने चाय का कप अन्य 2 पास की सीटों पर विराजमान लोगों को पकड़ा दिया. उन्हें बोलने की आदत थी, वहीं वे दोनों मानो न बोलने की कसम खाए बैठे थे.


इधर टे्रन अपनी गति से दौड़ती जा रही थी. अनायास ही एक फोन डाक्टर मोहन के पास आया, ‘‘जी, हम परसों सुबह पहुंच जाएंगे. दोपहर 1 बजे तक औपरेशन कर सकते हैं. आप पेशेंट को तब तक एक दवा दे कर रखें.’’ इस जवाब ने बाकी पैसेंजर्स को चौंका दिया. वे उन की ओर देख रहे थे.


डाक्टर मोहन फोन सुनने के बाद राकेश से कह रहे थे, ‘‘कुल 5 औपरेशन परसों करने हैं. पांचों मेजर हैं. तुम सफर के बाद…’’‘‘आप चिंता न करें. रिजर्व कूपे में आराम से जा रहे हैं. रात भरपूर नींद ले लेंगे. सो, मन ताजा रहेगा. अलबत्ता डिस्कस करना जरूरी है,’’ राकेश ने भी भाई की हां में हां मिलाई.


अब सारे पैसेंजर्स की निगाहों में मानो दोनों हीरो बने जा रहे थे.‘‘डाक्टर साहब, ट्रेन में एक को अटैक आ गया. क्या आप…’’ यह भागते आते टीटीई का स्वर था.‘‘बिलकुल, चलिए,’’ कहते अपना बैग उठाए दोनों डाक्टर चल दिए.


करीब 1 घंटे बाद दोनों लौटे. पसीने से तरबतर थे. डाक्टर का यह रूप यात्रियों ने नहीं देखा था.‘‘थैंक्स डाक्टर, आप ने उन की जान बचा ली. रेलवे पर एहसान किया है.’’‘‘थैंक्स कैसा सर, हम ने बस अपना फर्ज निभाया है. उन्हें अंडरकंट्रोल कर नींद का इंजैक्शन दे दिया है. जबलपुर या इटारसी कहीं भी हौस्पिटल में शिफ्ट कर दीजिएगा,’’ अत्यंत सरल स्वर में ये दोनों युवक बोल रहे थे.


थोड़ी देर बाद उस आदमी के साथ का अटैंडैंट इन के पास आया और फीस लेने का आग्रह करने लगा.‘‘नो थैंक्स, हम सरकारी डाक्टर हैं. पैसेंजर का इलाज करना हमारा फर्ज बनता है,’’ इन्होंने मना करते कहा.


अब तो टीटीई से ले कर टे्रन के सारे पैंसेजर इन दोनों डाक्टरों को पहचान गए थे. इधर जितेंद्र के दिमाग में अलग खिचड़ी पकने लगी. अपनी बिरादरी के हैं. काबिल डाक्टर हैं. उम्र भी ज्यादा से ज्यादा 25 की होगी. बेटी भी 18 की है, कौन सी छोटी है. फिर 7-8 साल का अंतर तो हर जगह रहता है.


‘‘क्यों डाक्टर साहब, आप के पूरे परिवार के सदस्य पटना में ही रहते हैं?’’ जितेंद्र ने सवाल पूछा.‘‘पूरे कहां, हम दोनों भाई अहमदाबाद में, शेष बचे मांपापा पटना में हैं,’’ डाक्टर ने बात पूरी की, या यों कहें कि जवाब दिया.


‘‘फिर उन की देखरेख?’’इस प्रश्न पर दोनों भाई मानो चौंक गए, ‘‘मेरे पितामाता दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं. पिताजी नौकरी में हैं.’’‘‘परंतु आप कभीकभार ही देख पाते होंगे न?’’ जितेंद्र ने फिर से प्रश्न किया.‘‘हम दोनों में से कोई एक 2-4 माह में आ ही जाता है. फिर पास में चाचाका परिवार है,’’ डा. मोहन का जवाब था.


नौकरी में दांवपेंच ज्यादा चलाने वाले, काम से कोसों दूर रहने वाले जितेंद्र अपना निश्चय लगभग कर चुके थे. वे 2 बार बाथरूम जाने के बहाने वहां से हट कर अपनी पत्नी को इन के बारे में बता चुके थे. पत्नी की राय भी यही थी कि लड़के के परिवार का पता ले लिया जाए तो एक लड़का अवश्य अपनी लड़की के लिए मांग लेंगे. अगर देने से मना किया तो पैसे दे कर…


उन्होंने टीटीई के पास जा कर उन्हें चाय पिला कर यात्रियों की सूची से इन दोनों का पता मालूम कर लिया था. बस, ट्रेन अहमदाबाद तो पहुंचे. वहां बेटी के बहाने इनका होस्टल देख लेंगे. और पटना लौट कर शादी भी पक्की कर लेंगे इतने काबिल डाक्टर दोनों भाई हैं कहीं किसी दूसरे ने इन्हें लपक लिया तो… 15-20 लाख में भी सस्ता सौदा होगा. मकान 3-4 साल बाद ले लेंगे या किराए में जिंदगी काट लेंगे.


यह सब सोचतेसोचते पता नहीं इन के खयालों की उड़ान कहां तक पहुंच जाती. सब से खराबी यह थी कि दोनों भाई एक शब्द नहीं बोले थे. बस, सवाल का जवाब दे रहे थे. यदि लड़का मान जाए तो पटना मेंइस का कौल फिक्स कर ही लाखों कमाया जा सकता है. बड़ा काबिल डाक्टर है.


पता नहीं वे कहां तक और क्याक्या सोचते, मगर उन की सोच पर पत्थर पड़ गया जब मोहन ने फोन पर अपनी पत्नी से बात की. ‘‘सुनो, परसों सुबह अहमदाबाद में हम लोग होंगे, दोपहर औपरेशन का टाइम दे रखा है. सो, परेशान मत होना.’’‘अच्छा, तो मोहन विवाहित है. तो कोई बात नहीं. दूसरा भाई यदि कुंआरा हो तो…’ टूटती उम्मीद के बीच एक चिराग उन्हें दिखने लगा.


‘‘आप दोनों भाई परिवार से इतनी दूर रहते हैं?’’ जितेंद्र न जाने क्यों यह पूछ बैठे.‘‘अकेले कहां हम दोनों अपने परिवार के साथ रहते हैं.’’ डा. मोहन के इस जवाब को सुनते ही जितेंद्र धम्म से बर्थ पर गिर पड़े.उन के शरीर को इस प्रकार पसीने से गीला देख कर दोनों हड़बड़ा गए, ‘‘क्या हुआ जितेंद्रजी, आप की तबीयत तो ठीक है न?’’


‘‘बस, घबराहट हो रही है,’’ वे अपने हृदय को दबाते बोले.‘‘आप लेटिए,’’ कहते हुए डाक्टरों ने उन्हें बैड पर लिटा दिया और उन का बीपी चैक करने लगे. टीटीई फिर आ गया. बीपी की दवा के साथ नींद की गोलियां भी खिला दीं.‘‘अब 4 घंटे बाद इन्हें होश आ जाएगा. हम अहमदाबाद में होंगे,’’ डा. मोहन टीटीई को बता रहे थे.‘‘मगर हुआ क्या?’’ टीटीई ने हैरानी से पूछा.


‘‘पता नहीं, जैसे ही मैं ने कहा कि मैं परिवार के साथ रहता हूं, सुनते ही ये धम्म से बिस्तर पर गिर पड़े.’’‘‘क्या आप के परिवार के बारे में पूछा था?’’ टीटीई ने प्रश्न किया.‘‘जी, पूरे रास्ते हमारे बारे में पूछते रहे हैं,’’ यह बताते हुए डाक्टर का चेहरा अजीब हो रहा था. वहीं टीटीई गंभीर स्वर में बोला, ‘‘कोई बात नहीं, इन की आस की डोर टूट गई है. हर बेटी का बाप आस की डोर टूटने पर ऐसे ही बिखरता है. वही बिखरन है.’’


‘‘क्या मतलब?’’ ये मुंहबाए पूछ बैठे.इस पर टीटीई ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, उन्होंने आप में भावी दमाद देख लिया था. सो, आप की शादी की बात सुन कर झटका खा गए.’’

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