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कहानी: साठ पार का प्यार

‘खुद से प्यार करो, दूसरे खुदबखुद आप से प्यार करेंगे.’ यह जुमला यदि पत्नी अपना ले तो पति की हालत देखते ही बनती है. पत्नी के बदलते रंगढंग देख उस की नजरें टेढ़ी होते देर नहीं लगती. तभी तो सुहानी ने यह पैतरा अपनाया था.

सुबहसुबह रजाई से मुंह ढांपे समीर  काफी देर तक जब पत्नी के उठाने का और गरमागरम चाय के कप का इंतजार करतेकरते थक गए तो रजाई से धीरे से मुंह निकाल कर बाहर झांका, ‘अभी तक कहां है सुहानी’ तो जो कुछ नजर आया, उस पर यकीन करना मुश्किल हो गया.


उलटेसीधे गाउन पर 2-3 स्वेटर पहने, मुंह और सिर भी शौल से लपेटे रहने वाली सुहानी आज गुलाबी रंग का चुस्त ट्रैक सूट पहने, ड्रैसिंग मिरर के सामने खुद को कई एंगल से निहारनिहार कर खुश हो रही थी.


‘‘यह क्या कर रही हो सुहानी,’’ समीर हैरानी से पलकें झपकाते हुए बोले.


‘‘ओह, उठ गए तुम. मैं जौगिंग पर जा रही हूं.’’ वह ‘जौगिंग’ शब्द पर जोर डालती हुई मीठी मुसकराहट के साथ आगे बोली, ‘‘मैं ने चाय पी ली, तुम्हारी रखी है, गरम कर के पी लेना.’’


‘‘लेकिन तुम इतने कम कपड़े पहन कर कहां जा रही हो, सर्दी लग जाएगी. वाक पर तो रोज ही जाती हो, आज यह जौगिंग की क्या सूझी,’’ समीर उठ कर बैठते हुए बोले. उन्हें सामने खड़ी सुहानी पर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था.


‘‘डार्लिंग,’’ सुहानी प्यार से उन के गालों पर हलकी सी चिकौटी काटती, दिलकश मुसकराहट बिखेरती हुई बोली, ‘‘पहले सारे किस्सेकहानियों में फोर्टीज की बात होती थी, अब सिक्सटीज की बात होती है. सुना नहीं, ‘लव इन सिक्सटीज?’ ’’


वह थोड़ा सा उन से सट कर बैठती हुई आगे बोली, ‘‘मैं ने सोचा, लव दूसरे से करना जरूरी है क्या, क्यों न खुद से ही शुरुआत की जाए. पहले खुद से, फिर तुम से,’’ उस ने रोमांटिक अंदाज में समीर के होंठों पर उंगली फेरने के साथ उन की आंखों में झांका.


समीर को गले से थूक निगलना पड़ा. 64 साल की उम्र में भी बांछें खिल गईं. मन ही मन सोचने लगे, ‘वैसे तो हाथ ही नहीं आती है…अब उम्र हो गई है, ये है, वो है. बिगड़ी घोड़ी सी बिदक जाती है. आज क्या हो गया.’


‘‘लेकिन इतने कम कपड़ों में तुम्हें ठंड नहीं लगेगी,’’ बुढ़ापे में चिंता स्वाभाविक थी.


‘‘अंदर से सारा इंतजाम किया हुआ है,’’ वह अंदर पहने कपड़े दिखाती हुई बोली, ‘‘ठंड नहीं लगेगी. अब तुम भी रजाई फेंक कर उठ जाओ और चाय गरम कर के पीलो,’’ उस ने फिर एक बार समीर के होंठों को हौले से छूने के साथ मस्तीभरी नजरों से देखा.


समीर को लगा कि शायद सुहानी कहीं मस्ती में उन के होंठों को चूम ही न ले. पर सुहानी का इतना नेक इरादा न था. वह उठ खड़ी हुई.


उस ने एकदो बार अपनी ही जगह पर खड़े हो कर जूते फटकारे. थोड़ी उछलीकूदी.


‘‘यह क्या कर रही हो?’’ समीर की हैरानी अभी भी कम नहीं हो रही थी.


‘‘बौडी को वार्मअप कर रही हूं डियर,’’ कह कर, तीरे नजर उन पर डाल कर, उन्हें खुश करती, 2 उंगलियों से बाय करती, बलखाती हुई सुहानी बाहर निकल गई.


समीर बेवकूफों की तरह थोड़ी देर वैसे ही बैठ कर उस भिड़े दरवाजे को देखते रहे जो अचानक लगे धक्के से अभी भी हिल रहा था. फिर हकीकत में वे रजाई फेंक कर उठ खड़े हो गए.


सड़क पर सुहानी हलकी चाल से दौड़ रही थी. उस का पहला दिन था. एक तय चाल से वाक करना और हलकी चाल से दौड़ना, दोनों बातें अलग थीं. अधिक थकान न हो, इसलिए वह बहुत एहतियात बरत रही थी. समीर को रिटायर हुए 4 साल हो गए थे. रिटायर होने के बाद भी 2 साल तक वे छिटपुट इधरउधर जौब करते रहे, पर 2 साल से पूरी तरह घर पर ही थे. समीर को सेहत का पाठ पढ़ातेपढ़ाते सुहानी थक चुकी थी. समीर सेहत के मामले में लापरवाह थे.


सुहानी अपनी सेहत का पूरा खयाल


रखती थी, रोज वाक पर जाती


थी, खाने में परहेज करती थी. पर समीर के पास हर बात के लिए कारण ही कारण थे. कभी नौकरी की व्यस्तता का बहाना, फिर कभी रिटायरमैंट के


बाद कुछ समय आराम करने का बहाना. 2 साल से हर तरह से खाली होने के बावजूद समीर को सुबह की सैर पर ले जाना टेढ़ी खीर था. वे आलसी इंसान थे. आराम से उठो, सब तरह का खाना खाओपियो, ऐश करो.


समीर का बढ़ता वजन, बढ़ता पेट देख कर सुहानी को चिंता होती. उन का बढ़ता ब्लडप्रैशर, कभीकभी शुगर का बढ़ना उस की पेशानी में बल डाल देता. वह सोच में पड़ जाती कि कैसे समीर को अपनी सेहत पर ध्यान देने की आदत डाले, कैसे समझाए समीर को, कैसे उन का आलसीपन दूर करे.


इसी कशमकश में डूबतीउतराती सुहानी की नजर एक दिन पत्रिका में छपे एक लेख ‘लव इन सिक्सटीज’ पर पड़ी. वाह, कितना रोमांचक और रोमैंटिक टाइटल है. उस लेख को पढ़ कर पलभर के लिए उसे भी रोमांच हो आया. उस का दिल किया कि थोड़ा रोमांस वह भी कर ले समीर से. पर समीर के थुलथुलेपन को देख कर उस का सारा रोमांस काफूर हो गया.


बात सिर्फ सेहत के प्रति लापरवाही की होती, तो भी एक बात थी, पर घर में दिनभर खाली रहने के चलते समीर को हर छोटीछोटी बात पर टोकने की आदत पड़ गई थी. घर में काम वाली, धोबी, प्रैसवाला, माली सभी समीर के इस रवैए से परेशान रहने लगे थे.


‘ठीक से काम नहीं करती हो तुम, पोंछा ऐसे लगाते हैं क्या, बरतन भी कितने गंदे धोती हो. प्रैस कितनी गंदी कर के लाता है यह प्रैसवाला, लगता है बिना प्रैस किए ही तह कर दिए कपड़े.’’ कभी माली के पीछे पड़ जाते, ‘‘कुछ काम नहीं करता यह माली, बस आता है और फेरी लगा कर चला जाता है. तुम भी इसे देखती नहीं हो…’’


जब सुहानी माली से जब वे अपने हिसाब से काम कराने लगते तो उसे कुछ समझ नहीं आता और वह भाग खड़ा होता.

कभी सुहानी के ही पीछे पड़ जाते, ‘‘तुम कामवाली को गरम पानी क्यों देती हो काम करने के लिए? गीजर चला कर बरतन धोती है, गरम पानी से पोंछा लगाती है. उस से बिजली का बिल बढ़ता है. कामवाली को सर्दी की वजह से आने में देर हो जाती तो समीर की भुनभुनाहट शुरू हो जाती. रोज देर से आने लगी है, तुम इसे कुछ कहती क्यों नहीं, लगता है इस ने सुबह कहीं काम पकड़ लिया है?’’


पोंछा लगा कर कामवाली कमरे का पंखा चला देती तो वे हर कमरे का पंखा बंद कर के बड़बड़ाते रहते, ‘मैं तो नौकर हूं न, पंखे बंद करना मेरा काम है. सर्दी हो या गरमी, इसे पंखे जरूर चलाने हैं.’


माली से जब वे अपने हिसाब से काम कराने लगते तो उसे कुछ समझ नहीं आता और वह भाग खड़ा होता. जब सुहानी कई बार फोन कर के मिन्नतें करती तब जा कर वह आता. कामवाली डांट खा कर जबतब छुट्टी कर लेती. प्रैसवाला कईकई दिनों के लिए गायब हो जाता. सुहानी को काम करने वालों को रोकना मुश्किल हो रहा था. पर समीर थे कि अपने निठल्लेपन से बाज नहीं आ रहे थे.


काम वाले जबतब सुहानी से साहब की शिकायत करते रहते. सुहानी समीर को कई बार समझाती, ‘इन के पीछे क्यों पड़े रहते हो समीर. तुम अपने काम से काम रखा करो. इन सब को जैसे मैं इतने सालों से हैंडिल कर रही थी, अब भी कर लूंगी. तुम्हारे ऐसे रवैए से ये सब किसी दिन भाग खड़े होंगे.’


पर समीर को तो लगता कि सब सुहानी को बेवकूफ बनाते हैं. उन के कानों पर जूं न रेंगती. उन के पास तो वक्त ही वक्त था इन सब बातों पर ध्यान देने के लिए. सुहानी कई कामों में लगी रहती. कई सामाजिक कामों से भी उस ने खुद को जोड़ रखा था. वह एक लेडीज क्लब की मैंबर भी थी. उसे समीर की इन बेकार की बातों से उलझन होती. वह चाहती, समीर भी अपनी नियमित दिनचर्या बनाएं, ताकि उन की सेहत भी ठीक रहे और वे किसी सामाजिक संस्था से भी जुड़ें जिस से व्यस्त रहें और से उन की मानसिक सेहत भी ठीक रहे.


सोचतेसोचते सुहानी पार्क में पहुंच गई. रोज वह पास की ही सड़क पर वाक कर लेती थी, पर उस दिन वह घर से थोड़ी दूर पार्क में चली गई थी. वहां हर तरह, हर उम्र के स्त्रीपुरुष थे. कोई दौड़ रहा था, कोई चल रहा था, कोई कसरत कर रहा था.


सुहानी थोड़ी देर बैंच पर बैठ गई.


बस, उसी दिन से सुहानी के दिमाग में एक तरकीब आई समीर को बदलने की. बोलने से तो समीर कभी नहीं मानेंगे, उसे पता था. देखते हैं आगेआगे होता है क्या. सुहानी होंठों ही होंठों में मुसकराई और फिर उठ कर चलने लगी. इस तरह से पूरा घंटा पार्क में बिता कर वह घर वापस आ गई.


‘‘आज तो बहुत देर कर दी, रोज तो आधे घंटे में वापस आ जाती थी,’’ समीर उस के चेहरे को देख कर घूरते हुए बोले.


‘‘आज से पार्क जाना शुरू कर दिया है,’’ सुहानी एक मस्त अंगड़ाई सी ले कर कुरसी पर बैठ कर जूते के फीते खोलती हुई बोली, ‘‘मजा आ गया आज तो, वहां तो बहुत लोग आते हैं हर उम्र के.’’ वह मजे से एक आंख दबा कर आगे बोली, ‘‘फोर्टीज से ले कर सिक्सटीज तक के. इस से ऊपर के भी आते हैं. जल्दी ही नए दोस्त बन जाएंगे, फिर जौगिंग का अपना ही मजा आएगा.’’


वह जूते उठा कर कमरे में चली गई. ‘क्या कह गई थी सुहानी’ समीर उस की कही बात पर मन ही मन अटकलें लगाने लगे. सुहानी यों भी हंसमुख थी. सेहत ठीक थी. बिजी रहने से उस की मानसिक सेहत भी अच्छी रहती थी. पर उस दिन से तो वह और भी खुश व मस्त रहने लगी थी. हर समय गुनगुनाती, हंसतीखिलखिलाती सुहानी को देख कर समीर का ध्यान दूसरी बातों से हट कर सुहानी पर ही केंद्रित हुआ जा रहा था.


वे समझ नहीं पा रहे थे कि सुहानी में इतना बदलाव कैसे आया. सुहानी को दोपहर में खाना खाने के बाद सोने की आदत थी. पर एक दिन सोने के बजाय वह साड़ी प्रैस करने लगी.


‘‘सुहानी, तुम कहीं जा रही हो?’’


‘‘हां,’’ सुहानी साड़ी उठा कर कमरे में तैयार होने चली गई. तैयार हो कर वह जब बाहर निकली तो समीर उसे देख कर चौंक गए.


सुहानी ने यों तो अपनी उम्र को बांध ही रखा था. पर आज तो आलम कुछ अलग ही था. आज तो सुहानी को देख कर उन का दिल भी कुछ खास अंदाज में धड़क गया. स्टाइलिश साड़ी और स्टाइलिश ब्लाउज.


‘‘यह साड़ी कब खरीदी,’’ समीर साड़ी को घूरते हुए बोले, ‘‘मेरे साथ तो कभी नहीं ली?’’


‘‘खरीदी कहां डियर, तुम मुझे इतना चटख रंग कहां लेने देते. वह तो जब पिछली बार पुणे गई थी तो भाभी ने जबरदस्ती दिला दी थी.’’


‘‘तो तुम ने दिखाई क्यों नहीं अभी तक?’’


‘‘मैं ने सोचा कहीं तुम्हें पसंद नहीं आई तो तुम मुझे इस का ब्लाउज भी नहीं सिलवाने दोगे. आज मेरी एक सहेली के घर पर सारी सहेलियां इकट्ठी हो रही हैं.’’


‘‘क्यों?’’


‘‘बस, ऐसे ही. हंगामा पार्टी है.’’


‘‘हंगामा पार्टी? क्या मतलब? बर्थडे पार्टी, रिसैप्शन पार्टी, मैरिज पार्टी, रिटायरमैंट पार्टी तो सुनी हैं. आजकल के युवाओं की तथाकथित ब्रेकअप पार्टी के बारे में भी पढ़ा है, लेकिन यह हंगामा पार्टी क्या होती है?’’


‘‘मतलब,’’ सुहानी किसी नवयौवना की तरह पलकें झपकाती हुई बोली, ‘‘लव इन सिक्सटीज डियर. तेज म्यूजिक पर डांस करेंगे, मस्ती करेंगे, गाना गाएंगे और…’’


‘‘और?’’


‘‘और उस के बाद केक काटेंगे खाएंगेपिएंगे, बस,’’ कहती हुई सुहानी ने हथेलियां एकदूसरे पर झाड़ दीं.


‘‘मैं यहां अकेला बैठा रहूं और तुम अपनी सहेलियों के साथ हंगामा पार्टी करो,’’ समीर झुंझला कर बोले.


‘‘लव इन सिक्सटीज डियर. मजबूरी है, खुद से प्यार करना सीख रही हूं. यह कोई आसान बात नहीं. जब खुद से प्यार करूंगी तभी तो तुम से…’’ सुहानी ने बात अधूरी छोड़ दी और


समीर सुहानी का हाथ खींचकर डांस करना शुरू कर दिया.

अपना सिर समीर के कंधों पर टिका कर, मदभरी नजरों से समीर की आंखों में देखने लगी. फिर जानलेवा मुसकराहट समीर पर डाल कर सुहानी बाहर निकल गई.


‘बहकने का पूरा सामान है आजकल सुहानी के पास. यह क्या हो गया सुहानी को,’ समीर सोच रहे थे, आखिर इस के पीछे रहस्य क्या है.


सुहानी के मिशन को लगभग एक हफ्ता हो गया था. एक दिन समीर सुबह नहाधो कर अखबार पढ़ने बैठे ही थे कि अचानक बैडरूम से तेज म्यूजिक की आवाज सुन कर चौंक गए. वे उठ कर बैडरूम की तरफ भागे. उन्होंने बैडरूम का भिड़ा दरवाजा थोड़ा सा खोल कर अंदर झांका. सुहानी अंदर नहाने के लिए घुसी थी पर अंदर का दृश्य देख कर उन का दिल किया कि सिर पर हाथ रख कर वहीं बैठ जाएं.


सुहानी तेज म्यूजिक पर जोरजोर से नृत्य कर रही थी. जैसे भी उस से हो पा रहा था, वह हाथपैर मार रही थी. उन्होंने अंदर जा कर म्यूजिक औफ कर दिया.


‘‘यह क्या कर रही हो सुहानी, हाथपैर तोड़ने का इरादा है क्या? तुम तो नहाने जा रही थी?’’


‘‘हां, पर मेरा दिल किया कि थोड़ी देर नाच लूं. उस दिन हंगामा पार्टी में खूब नाचे थे. थोड़ा पसीना निकलेगा, फिर सुस्ता कर नहा लूंगी,’’ सुहानी म्यूजिक औन करती हुई आगे बोली, ‘‘आओ न, तुम भी नाचो.’’ वह समीर को खींचने लगी.


‘‘अरेरेरे, यह क्या कर रही हो, ये सब वाहियात बातें मुझ से नहीं होतीं? तुम्हीं करो. मुझे वैसे भी डांस करना कहां आता है.’’


‘‘डांस न सही, थिरक तो सकते ही हो समीर. थिरकना तो सब को आता है. आओ न, कोशिश तो करो. देखो, कितना मजा आता है…’’


वह आंखों में सारे रहस्यभर कर, चुहलभरे अंदाज में भौंहों को नचा कर आगे बोली, ‘‘तुम्हारी सुरा और सुंदरी से भी ज्यादा मजा है थिरकने में. कर के तो देखो. जिस्म के अंग खुल जाएंगे, दिमाग की तनी नसें ढीली पड़ जाएंगी…’’


उस ने समीर का हाथ खींचा और जबरदस्ती साथ में डांस करने लगी. अपने हाथों से पकड़पकड़ कर उन के हाथपैर इधरउधर फेंकने लगी. कभी गोल चक्कर घुमा देती, कभी कमर और हाथ पकड़ कर दो कदम आगे, दो कदम पीछे डांस करने लगती.


करतेकरते समीर को भी लगा, कुछ मजा आ रहा है. बदन भी थोड़ाबहुत संगीतमय हो रहा था, सुरताल पर सही थिरकने लगा था. वे भी कोशिश करने लगे. थोड़ी देर तो सुहानी जबरदस्ती करती रही, पर थोड़ी देर बाद वे हलकीफुलकी कोशिश खुद भी करने लगे. सुहानी को इतना मस्त देख कर उन का दिल भी कर रहा था कि वे खुद भी उस की मस्ती में डूब जाएं. थोड़ी देर बाद वे थक कर बैठ गए. सुहानी ने म्यूजिक औफ कर दिया.


‘‘क्यों, मजा आया न…’’


समीर को भी लग रहा था. बदन के सारे सैल्स जैसे खुल कर ढीले पड़ गए हों और वे खुद को बहुत खुश व जिस्म में आराम महसूस कर रहे थे.


सुहानी थोड़ी देर सुस्ता कर नहाने चली गई और समीर बैठ कर अखबार पढ़ने लगे.


‘बकवास, कितना बोर अखबार है, रोज एकजैसी खबरें. चाहे आधे घंटे में खत्म कर लो, चाहे 2 घंटे तक चाटते रहो. मैटर नहीं बदलने वाला, वही रहेगा,’ यह बड़बड़ाते समीर ने अखबार एक तरफ पटका और सुहानी के विषय में सोचने लगे.


‘मजे तो सुहानी ले रही है जिंदगी के. उसे देख कर लगता ही नहीं कि वह जीवन के 59 वसंत देख चुकी है.’


फिट है, तो जो पहनती है उस पर फबता भी है. सुंदर लगती है, तो उस का आत्मविश्वास भी बना रहता है खुद पर. सेहत अच्छी है, तो हर तरह के मनोरंजन में हिस्सा भी लेती है. घर के सारे काम भी कर लेती है. सामाजिक कामों में सक्रिय रहती है और अपनी सखीसहेलियों के साथ मस्ती भी कर लेती है.


आजकल समीर का ध्यान घर के नौकरचाकरों से हट कर सुहानी पर केंद्रित हो गया था. इसलिए घर में काम करने वाले राहत महसूस कर रहे थे.


बच्चों के साथ भी सुहानी का जुड़ाव अच्छा था बिलकुल दोस्तों जैसा. फोन पर बच्चों से बात करती तो कोई पता नहीं लगा सकता कि बच्चों से बात कर रही है या हमउम्र से. जबकि समीर बच्चों के साथ फोन पर बातचीत में गंभीरता ओढ़े रहते. बच्चे भी उन से सिर्फ मतलब की बात करते, फिर गप मम्मी से ही मारते.


अगले दिन सुहानी ने ऐलान किया कि उस की मित्रमंडली पिकनिक जा रही है. शाम को लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. समीर चाहे तो पूरे दिन का अपना कोई प्रोग्राम बना सकते हैं.


‘‘तुम पूरे दिन के लिए चली जाओगी, तो मैं क्या करूंगा पूरे दिन अकेले?’’ समीर आश्चर्य से बोले.


‘‘अब क्या करूं डियर, खुद से प्यार करना है तो मेहनत तो करनी ही पड़ेगी न. यों घर में रह कर मैं खुद को सजा


नहीं दे सकती. तुम्हें तो घर में बैठना पसंद है, पिकनिक जाना, पिक्चर देखना, घूमनाफिरना तुम्हें अच्छा नहीं लगता. इसलिए मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती. पर मैं खुद से प्यार करने लगी हूं, इसलिए खुद की खुशी के लिए जो मुझे पसंद है वह तो मैं करूंगी. अभी तो हमारा शहर से बाहर जाने का प्रोग्राम भी बन रहा है कुछ दिनों का. यह सब तो अब चलता ही रहेगा. तुम अकेले रहने की आदत अब डाल ही लो.


‘‘और फिर, मैं जब खुद खुश रहूंगी तभी तो तुम से…’’ सुहानी ने बात फिर से अधूरी छोड़ दी. समीर के दिल की धड़कन तेज हो गई. सुहानी आजकल तीर सीधे उन के दिल पर छोड़ने लगी थी. अब अकसर यही होने लगा. सुहानी का प्रोग्राम कभी कहीं और कभी कहीं का बन जाता. वह दिनोंदिन और भी खुश होती दिखाई दे रही थी.


कभीकभी समीर को लगता, कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं. कहीं सुहानी इस उम्र में हाथ से तो नहीं निकली जा रही. आम कुरतासलवार और साड़ी पहनने वाली सुहानी इन दिनों अपने कपड़ों में भी तरहतरह के प्रयोग करने लगी थी. कभी कुरती के साथ लहंगा, कभी पैंट्स, कभी प्लाजो, कभी फ्लेयर्स, जो भी शालीन फैशन था अपनाने लगी थी. उस की दोस्ती कालोनी की अपने से कम उम्र की महिलाओं से होने लगी थी. बहू से उस की बातें मेकअप, फैशन, नई फिल्मों, हीरोहीरोइनों व क्रिकेटरों को ले कर होतीं. यह नहीं कि ‘हमारे जमाने में ये होता था…हमारे जमाने में वो होता था.’


खुद से प्यार करना इतना अच्छा होता है क्या? समीर बारबार सोचने के लिए मजबूर हो जाते. सुहानी खुद से प्यार कर के इतनी बदल सकती है तो वे खुद क्यों नहीं.


सुबह नाश्ते में सुहानी समीर के टोस्ट पर मक्खन की मोटी परत लगा रही थी, ‘‘अरे, यह क्या कर रही हो सुहानी. खुद तो सूखा टोस्ट खाती हो और मेरे टोस्ट पर इतना मक्खन लगा रही हो. कितना वजन बढ़ गया है मेरा. तुम नहीं चाहतीं कि मेरा वजन कम हो. कल से फल, दूध, दही, दलिया वगैरह दिया करो, ये घीमक्खन आदि सब बंद.’’


‘‘क्यों?’’ सुहानी हैरानी से बोली हालांकि अंदर से वह खुश हुई जा रही थी, ‘‘तुम्हें तो टोस्ट पर जब तक ज्यादा मक्खन न लगे, मजा नहीं आता, बिना घी की छौंक लगे दाल हजम नहीं होती. परांठा भी एक दिन छोड़ कर देशी घी या मक्खन में बनना चाहिए. पूरीकचौड़ी, पकौड़े भी तुम्हें बहुत पसंद हैं अभी भी.’’


‘‘मैं ने कह दिया न कि अब सब बंद. जो मैं कह रहा हूं वही करो,’’ समीर दिखावटी गुस्से में बोले.


खाने के बाद सुहानी स्वीटडिश ले आई. समीर को खाने के बाद मीठा जरूर चाहिए था. इस के अलावा भी उन्हें मीठा बहुत पसंद था.


‘‘अरे, तुम यह मीठा बनाना जरा कम करो सुहानी. क्यों बनाती हो इतना मीठा, बना देती हो, फिर खाना पड़ता है,’’ समीर सारा दोष उस के सिर पर मढ़ते हुए बोले.


‘‘हां, पर तुम्हें पसंद है, तभी बनाती हूं. नहीं बनाती हूं तो तुम गुड़ या चीनी ही खा जाते हो. पर मीठा तुम्हें जरूर चाहिए खाने के बाद,’’ सुहानी अपनी मुसकान छिपाते हुए बोली, ‘‘तुम्हारे लिए ही बनाती हूं, मैं तो खाती भी नहीं हूं.’’


‘‘वही तो, तुम तो चाहती हो कि तुम दुबलीपतली रहो और मैं फैल कर एक क्ंिवटल का हो जाऊं.’’


सुहानी हतप्रभ हो समीर को देखती रह गई. समीर आगे बोले, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो, कल से रोज का मीठा बंद. देखा नहीं था पिछली बार शुगर नौर्मल लिमिट को क्रौस कर गई थी. पर तुम्हें मेरी सेहत का जरा भी खयाल नहीं. और होगा भी कैसे, तुम्हें अपने सैरसपाटे, पिकनिक, सहेलियों से फुरसत मिले तब तो. हां, कभीकभार की बात अलग है.’’


सुहानी अपलक समीर को देखती  रह गई. चित भी मेरी पट भी मेरी. ‘‘ठीक है,’’ वह स्वीटडिश उठाती हुई बोली, ‘‘जैसा तुम कहो. मुझे तो खुद के बाद तुम से ही प्यार करना है.’’ सुहानी तिरछी नजर से समीर को देख रही थी, समीर घायल होतेहोते बचे.


‘खानपान और दिनचर्या पर कंट्रोल रखना पति या पत्नी पर एकदूसरे की बस की बात नहीं होती. जबरदस्ती करने या टोकाटाकी करने से झगड़ा होने का पूरापूरा अंदेशा रहता है. यह तभी हो सकता है जब खुद अंदर से ही सोच आ जाए,’ सुहानी ने यह सोचा.


एक दिन समीर से मिलने 2 आदमी आए. समीर अंदर आए, सुहानी से चाय बनाने के लिए कहा. थोड़ी देर बाद दोनों आदमी चले गए.


‘‘कौन थे ये, पहले तो कभी नहीं देखा इन्हें?’’ सुहानी बोली.


‘‘यहां एक संस्था है गोकुल,’’ समीर बोले, ‘‘जो विकलांग लोगों के लिए काम करती है. ये दोनों उसी संस्था के लिए काम करते हैं. मैं सोचता हूं सुहानी, गोकुल संस्था मैं भी जौइन कर लूं. समय भी अच्छा बीतेगा, बिजी भी रहूंगा और एक नेक काम भी होगा. क्यों, तुम क्या कहती हो?’’ समीर ने सुहानी की तरफ देखा.


‘‘मैं क्या कहूंगी, जो तुम ने सोचा, ठीक ही सोचा होगा,’’ सुहानी बोली और मन ही मन सोचा, ‘घर में भी सुखशांति रहेगी, काम वाले भी आराम से काम करेंगे.’


दूसरे दिन जब सुहानी जौगिंग के  लिए तैयार हो कर कमरे से बाहर  आई तो लौबी में समीर को ट्रैक सूट व जूतों से लैस पाया. वह खुशी से भीगी आंखों से समीर को देखती रह गई. वह तो यही सोच रही थी कि समीर अभी भी बिस्तर पर गुड़मुड़ सो रहे होंगे. उस ने ध्यान भी नहीं दिया कि कब समीर उठ कर दूसरे बाथरूम में जा कर तैयार हो कर आ गए.


‘‘समीर तुम? आज इतनी जल्दी कैसे उठ गए?’’ सुहानी करीब आ कर खड़ी हो गई, ‘‘कहां जा रहे हो?’’


‘‘लव इन सिक्सटीज डियर,’’ समीर उसी के अंदाज में उस के गालों पर चिकौटी काट कर होंठों को उंगली से सहलाते हुए बोले, ‘‘मैं ने सोचा कि तुम ही क्यों, मैं क्यों नहीं प्यार कर सकता सिक्सटी में खुद से. खुद से प्यार करूंगा, तभी तो तुम से…’’ कह कर समीर बहकने का नाटक करते हुए उस की तरफ झुक गए.


‘‘ऊं हूं,’’ सुहानी पीछे हटती हुई बोली, ‘‘मुझ से अभी नहीं. पहले खुद से तो ठीक से प्यार करना सीख लो. लेकिन सोच लो, प्यार की डगर बहुत कठिन होती है, फिसलनभरी होती है. बहुत हिम्मत, सब्र व लगन के साथ आगे बढ़ना पड़ता है. फिर चाहे प्यार खुद से करना हो या दूसरे से. कर पाओगे? बीच राह में हिम्मत तो नहीं हार जाओगे?’’


‘‘अब प्यार किया तो डरना क्या, ओखली में सिर दे दिया तो मूसल से क्या डरना. औरऔर…’’


‘‘बस, बस. बहुत हो गए मुहावरे,’’ सुहानी हंसती हुई बोली.


‘‘ओके डार्लिंग, मैं चला,’’ कह कर समीर 2 उंगलियों से स्टाइल से बाय कहते हुए बाहर निकल गए.


अपनी जीत पर मन ही मन मुसकराती सुहानी ने मेन दरवाजे की चाबी घुमाई और दौड़ती हुई समीर की बगल में जा कर कदमताल करती हुई दौड़ने लगी. सुबह का खूबसूरत समां था. पक्षियों का दिलकश कलरव था और सिक्सटीज की उम्र में खुद से प्यार करने का कुछ अलग ही मजा था.

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