काशी में ही चंद्रशेखर तिवारी हो गए 'आजाद', बनारस में ही पहली और अंतिम बार हुए थे गिरफ्तार
गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. मैं आजाद हूं, दुश्मन की गोलियों का सामना हम करेंगे। आजाद हैं, आजाद ही रहेंगे। अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने अपने नाम के साथ आजाद इसलिए जोड़ लिया था क्योंकि वह आजाद रहते हुए जीना चाहते थे। वह भले ही दुश्मन की गोलियों के सामने हों किंतु वह आजाद ही रहना चाहते थे। बनारस ही वह जगह है जिसने चंद्रशेखर तिवारी को चंद्रशेखर आजाद बना दिया।
चंद्रशेखर आजाद के साथी विश्वनाथ वैश्म्पायन द्वारा लिखित आजाद की जीवनी अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के अनुसार असहयोग आंदोलन के दौरान काशी ने चंद्रशेखर को आजादी का दीवाना बना दिया। राष्ट्रभक्ति की ऐसी भावना जगाई कि वह स्वतंत्रता संग्राम में उतरने को कटिबद्ध हो उठे।
जन्म- 23 जुलाई 1906, भावरा, झाबुआ, मध्यप्रदेश
निधन- 27 फरवरी, 1931, अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद,
माता - जगरानी देवी, पिता - पंडित सीताराम तिवारी
यह वह दौर था जब सर्वविद्या की राजधानी काशी 1921 में क्रांतिकारियों का केंद्र बन चुकी थी। गलियों से लेकर घाट तक लोग राष्ट्रप्रेम के कारण प्राण न्यौछावर करने को तैयार थे। मात्र 15 साल के चंद्रशेखर तिवारी संस्कृत पाठशाला में धरना देते हुए पहली और अंतिम बार अंग्रेजों के हाथ गिरफ्तार हुए थे।
कोर्ट में ज्वॉइंट मजिस्ट्रेट ने जब उनका नाम पूछा, तो उन्होंने जवाब दिया, आजाद, पिता का नाम स्वाधीनता और घर का पता जेल। यह सुनकर मजिस्ट्रेट तिलमिला गया। बेंत से मारने की सजा सुना दी। बेंत की सजा पूरी होने के बाद सेंट्रल जेल से लहूलुहान करने के बाद जेलर ने आजाद को तीन आने पैसे दिए, चंद्रशेखर तिवारी ने जेलर के मुंह पर ही फेंक दिया।
पं. गौरीशंकर शास्त्री आजाद को अपने घर लाए और घाव पर औषधियां लगाई। इसके बाद ज्ञानवापी पर काशीवासियों ने फूल-माला से चंद्रशेखर का भव्य स्वागत किया। भीड़ जब उन्हें नहीं देख पा रही थी तो अभिवादन के लिए उन्हें मेज पर खड़ा होना पड़ा। उसी समय चरखे के साथ उनकी एक तस्वीर भी ली गई। इसके बाद से ही चंद्रशेखर तिवारी आजाद उपनाम से विख्यात हो गए।
बनारस में उन्हें सबसे पहला साथ क्रांतिकारी मन्मथनाथ गुप्ता का मिला, इसके बाद आजाद ने सशस्त्र क्रांति के माध्यम से देश को आजाद कराने वाले युवकों का एक दल बना लिया, जिसमें शचींद्रनाथ सान्याल, बटुकेश्वर दत्त, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु, बिस्मिल, अशफाक, जयदेव, शिव प्रसाद गुप्त, दामोदर स्वरूप, आचार्य धरमवीर आदि उनके सहयोगी थे।- मीडिया इनपुट्स के साथ