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देश को चंद्रशेखर ने दिखाई थी सियासी संघर्ष की राह

गाजीपुर न्यूज़ टीम, बलिया. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर का जन्म 1 जुलाई 1927 को उत्तर प्रदेश के जिला बलिया के इब्राहिमपट्टी गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। बलिया जिले में आज भी उनके आवास पर समाजवादी नेता जय प्रकाश नारायण के दस्‍तावेजों के साथ ही लाइब्रेरी और संग्रहालय में इतिहास के दस्‍तावेज समाजवादी युग, आपातकाल के दस्‍तावेज भी सुरक्षित रखे गए हैं। 

आज भी सियायत के शोधार्थी और देश के दिग्‍गज नेताओं का आना जाना इस भवन में आम है। अतीत के सियासी संघर्षों की पूरी जीती जागती कहानियां यहां चंद्रशेखर के पत्रों के साथ ही उनके राजनीतिक गुरु रहे जेपी नारायण के यादों के साथ दर्ज हैं। बागी बलिया इसे यूं ही नहीं कहा जाता है। यहां से देश की सियासत का बड़ा आंदोलन उपजा था और उसके बाद देश में कांग्रेस सरकार को चुनौती भी देश में यहीं से मिलनी शुरू हुई थी। 


भारत सरकार की ओर से उनकी जीवनी भी प्रकाशिक हुई है जिसके अनुसार चंद्रशेखर 1977 से 1988 तक जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे और सियास में लंबे संघर्षों का वह गवाह भी बने। चंद्र शेखर अपने छात्र जीवन से ही राजनीति की ओर आकर्षित थे और क्रांतिकारी उत्साह के साथ फायर ब्रांड आदर्शवादी के रूप में जाने जाते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय (1950-51) से राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद वह समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए। उन्हें आचार्य नरेंद्र देव के साथ बहुत निकटता से भी जुड़े होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान उन्हें बलिया की जिला प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का सचिव चुना गया। एक साल के भीतर ही उन्हें उप्र राज्य प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का संयुक्त सचिव चुना गया। 1955-56 में उन्होंने उप्र के महासचिव राज्य प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का पदभार तक संभाला।


1962 में वह उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए। वह जनवरी 1965 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए थे। 1967 में वह कांग्रेस संसदीय दल के महासचिव चुने गए। संसद सदस्य के रूप में उन्होंने दलितों के हितों का समर्थन करने और तेजी से सामाजिक परिवर्तन के लिए नीतियों की वकालत करने में गहरी रुचि लेकर अपनी छाप छोड़ी । इस संदर्भ में जब उन्होंने राज्य संरक्षण के साथ एकाधिकार वाले घरानों के आय से अधिक विकास पर हमला किया तो वह सत्ता के केंद्रों के साथ संघर्ष में आ गए ।


वह निहित रुचि के खिलाफ लड़ाई में अपनी सजा, साहस और अखंडता के लिए ' युवा तुर्क ' नेता के रूप में आया था । उन्होंने 1969 में दिल्ली से प्रकाशित एक साप्ताहिक युवा भारतीय की स्थापना और संपादन किया। इसके संपादकीय में उस समय के सबसे उद्धृत लोगों में से एक होने का गौरव प्राप्त था। आपातकाल के दौरान (जून 1975 से मार्च 1977) युवा भारतीय को बंद करना पड़ा। फरवरी 1989 में इसका नियमित प्रकाशन फिर से शुरू हुआ । वह इसके संपादकीय सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे हैं।


चंद्रशेखर हमेशा से ही व्यक्तित्व की राजनीति के खिलाफ खड़े रहे हैं और विचारधारा और सामाजिक परिवर्तन की राजनीति के पक्षधर रहे हैं। जयप्रकाश नारायण और 1973-75 के अशांत दिनों के दौरान जीवन के उनके आदर्शवादी दृष्टिकोण की ओर अधिक प्रेरित हुए। वह जल्द ही कांगे्रस पार्टी के भीतर असहमति का केंद्र बिंदु बन गए ।


जब 25 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा की गई थी, तो उन्हें आंतरिक सुरक्षा अधिनियम के रखरखाव के तहत इस तथ्य के बावजूद गिरफ्तार किया गया था कि वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शीर्ष निकायों, केंद्रीय चुनाव समिति और कार्यसमिति के सदस्य थे। चंद्र शेखर तत्कालीन सत्तारूढ़ दल के उन कुछ व्यक्तियों में शामिल थे जिन्हें आपातकाल के दौरान कैद किया गया था। उन्होंने हमेशा सत्ता की राजनीति को नकार दिया और लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक बदलाव के प्रति प्रतिबद्धता की राजनीति का विकल्प चुना।


आपातकालीन अवधि के दौरान कारावास की सजा काटते हुए हिंदी में लिखी गई उनकी डायरी बाद में ' मेरी जेल डायरी ' शीर्षक के तहत प्रकाशित हुई थी। उनके लेखन का एक प्रसिद्ध संकलन 'सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता' है। चंद्र शेखर ने 6 जनवरी, 1983 से 25 जून, 1983 तक लगभग 4260 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए नई दिल्ली में गहरी दक्षिण में कन्याकुमारी से राजघाट (महात्मा गांधी की समाधि) तक देश भर में मैराथन वॉक (पदयात्रा) की। आम जनता के साथ तालमेल रिन्यू करने और उनकी अहम समस्याओं को समझने के लिए पदयात्रा निकाली।


उन्होंने केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित देश के विभिन्न हिस्सों में लगभग पंद्रह भारत यात्रा केंद्र स्थापित किए हैं ताकि सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जन शिक्षा और देश के पिछड़े इलाकों में जमीनी स्तर पर काम करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके । वह 1984 से 1989 तक की संक्षिप्त अवधि को छोड़कर 1962 से संसद सदस्य रहे हैं। 1989 में उन्होंने अपने गृह क्षेत्र बलिया और बिहार से सटे महाराजगंज निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा। चंद्र शेखर की शादी श्रीमती दुजा देवी से हुई है और उनके दो बेटे पंकज और नीरज वर्तमान में राजनीति में सक्रिय हैं। 

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