पत्नी की मौत ने बदल दी थी गाजीपुर के नौरंग राय 'स्वामी सहजानन्द सरस्वती' की जीवनधारा
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. गाजीपुर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर दुल्लहपुर थाने के देवा गांव में 22 फरवरी 1889 को गाजीपुर जिले में जन्म लेने वाले स्वामी सहजानन्द सरस्वती का बचपन का नाम नौरंग राय था। उनका निधन 26 जून वर्ष 1950 में बिहार के बिहटा में हुआ था। ज्यादातर समय उनका वहीं किसानों के बीच ही बीता। पिता बेनी राम किसान थे ऐसे में उन्हें गांव और किसान से बेहद लगाव था। किसान नेता के रूप में उन्हें यूं ही नहीं जाना जाता। इस जीवन को उन्होंने नजदीक से देखा और समझा है। आज भी उनके परिवार के लोग गांव में रहते हैं। नाती लगने वाले अरविंद राय गांव में रहकर आज भी खेती-बारी करते हैं।
कहते हैं पूत के पांव पालने में हीं दिखने लगते हैं। पढ़ाई के दौरान हीं उनका मन आध्यात्म में रमने लगा। वैराग्य भावना को देखकर बाल्यावस्था में ही इनकी शादी कर दी गई। संयोग ऐसा रहा कि गृहस्थ जीवन शुरू होने के पहले हीं इनकी पत्नी का देहांत हो गया। इसके बाद उन्होंने विधिवत संन्यास ग्रहण की और दशनामी दीक्षा लेकर स्वामी सहजानंद सरस्वती हो गए। बाद के दिनों में स्वामीजी ने बिहार में किसान आंदोलन शुरू किया।न्होंने नारा दिया- कैसे लोगे मालगुजारी, लट्ठ हमारा ज़िन्दाबाद। बाद में यहीं नारा किसान आंदोलन का सबसे प्रिय नारा बन गया। 5 दिसम्बर 1920 को पटना में कांग्रेस नेता मौलाना मजहरुल हक के आवास पर महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात हुई। उनके अनुरोध पर वे कांग्रेस में शामिल हुए थे।
शादी के एक साल बाद ही पत्नी की मौत ने स्वामी जी के जीवन को बदल कर रख दिया। काशी में मिले चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि संन्यास केवल जाति विशेष का अधिकार नहीं है। जलालाबाद मदरसा में शुरुआती शिक्षा ग्रहण की। पढ़ाई में बेहद मेधावी होने के चलते उन्हें छात्रवृत्ति मिलती थी। उन्होने 'हुंकार' नामक एक पत्र भी प्रकाशित किया। स्वामी सहजानन्द की याद में गाजीपुर में स्वामी सहजनन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय स्थापित है। भारत सरकार ने उनपर तीन रुपये का डाक टिकट जारी कर उनका सम्मान किया था। आज भी गाजीपुर जिले की धरती उनके संन्यास और किसानों के हित में खड़े होने की संतों की परंपरा को मान देती है।