कहानी: विश्वास का मोल
किसी के प्रति अगाध विश्वास भी कभीकभी इंसान को गहरी चोट पहुंचा देता है. दिल्लीवाली ने चिन्मयानंद को अपना समझकर अपने ही खुशहाल परिवार में बरबादी की आग लगा दी थी और फिर.
जैसे ही बड़े भैया का फोन आया कि फौरन दिल्ली जाना है, आशीष, मेरे भांजे, को किसी ने जहर खिला दिया है और उस की हालत गंभीर है, मेरे तो हाथपैर ठंडे हो गए. बारबार बस यही खयाल आया कि हो न हो चिन्मयानंद ने ही यह कांड किया होगा, नहीं तो सीधेसादे आशीष के पीछे कोई क्यों पड़ेगा? क्यों कोई उसे जहर खिलाएगा?
जब से चिन्मयानंद ने मेरी भांजी झरना से शादी कर मेरी बहन के घर अपना अड्डा जमाया तभी से मेरा मन किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त था और आखिरकार मेरी आशंका सच साबित हुई.
हम सभी झरना की शादी इस पाखंडी चिन्मयानंद से होने के खिलाफ थे. झरना की मां यानी मेरी बड़ी बहन हमारे परिवार तथा परिचितों में ‘दिल्ली वाली’ के नाम से जानी जाती हैं. यह सब उन्हीं की करनी थी. उन्हें शुरू से साधुसंतों पर अटूट विश्वास था. आएदिन उन के घर न जाने कहांकहां के साधुसंतों का जमावड़ा रहता. जब से उन के यहां बद्रीनाथ के बाबा के आशीर्वाद से आशीष और झरना का जन्म हुआ तब से वे साधुसंन्यासियों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थीं. जब भी उन के घर जाओ, उन के मुंह से किसी न किसी आदर्श साधुसंत के गुणगान सुनने को मिलते.
मु झे उन की इस आदत से बहुत दुख होता और मैं उन्हें इस के लिए खरीखोटी सुनाती. लेकिन मेरा सारा कहनासुनना वे एक तरल मुसकराहट से पी जातीं और बहुत ही धैर्य व तसल्ली से सम झातीं, ‘देख लल्ली, तू ठहरी आजकल की पढ़ीलिखी छोरी. तु झे इन साधुसंतों के चमत्कारों का क्या ज्ञान. तू तो सदा खुशहाल रही है. मेरे जैसे दुखों की तो तु झ पर परछाईं भी नहीं पड़ी है. सो, तु झे इन साधुसंतों की शरण में जाने की क्या जरूरत? देख लल्ली, मैं कभी न चाहूंगी कि जिंदगी में कभी किसी दुख या निराशा की बदली तेरे आंगन में छाए, लेकिन फिर भी मैं तु झ से कहे देती हूं कि कभी किसी तरह के दुख या विपरीत परिस्थितियों से तेरा सामना हो तो सीधे मेरे पास चली आना. इतने गुणी और चमत्कारी साधुमहात्माओं से मेरी पहचान है कि सारे कष्टों की बदली को वे अपने एक इशारे से हटा सकते हैं.
‘दिल्ली वाली कभी बड़े बोल नहीं बोलती लेकिन तू ही बता, साधुसंतों की बदौलत आज मु झे किस बात की कमी है? धनदौलत और औलद, सब से तो मेरा घरआंगन लबालब है.’
दीदी की यह गर्वोक्ति सुन कर मैं ने मन ही मन प्रकृति से यही मांगा कि मेरी बहन की खुशहाली को कभी किसी की नजर न लगे. हमेशा उन के घरचौबारे में खुशहाली रहे.
औलाद के अलावा उन को किसी चीज की कमी नहीं रही थी जिंदगी में. शादी से पहले से दीदी डीलडौल में कुछ ज्यादा ही इक्कीस थीं लेकिन भीमकाय काया के बावजूद अपने अच्छे कर्मों की बदौलत उन की शादी अच्छे मालदार घराने में बहुत ही छरहरे, सुदर्शन युवक से हुई.
जीजाजी दिल के इतने अच्छे कि दीदी के मुंह से कोईर् बात निकलती नहीं कि जीजाजी झट उसे पूरा कर देते. जिंदगी में उन्हें बस एक कमी थी कि शादी के 15 वर्षों बाद तक उन के आंगन में कोई किलकारी नहीं गूंजी थी. जीजाजी को बच्चे न होने का कोई गम न था.
वे तो हमेशा दीदी से कहते, ‘अरे, अपना कोई बच्चा नहीं है तो अच्छा है न, तू मु झे कितना लाड़ लड़ाती है. अपने बीच बच्चे होते तो वह लाड़ बंट न जाता भला.’ लेकिन दीदी बच्चे के बिना जिंदगी कलपकलप कर गुजारतीं. वे तमाम मंदिरों, गुरुद्वारों, मजारों आदि पर बच्चा होने की मनौतियां मांग आई थीं. दिनभर साधुमहात्माओं के ठिकानों पर पड़ी रहतीं और उन के बताए व्रत, उपवास आदि पूरी निष्ठा से करतीं.
उसी दौरान दिल्ली में बद्रीबाबा नाम के एक साधु की बहुत धूम मची थी. दीदी उन के भक्तिभाव तथा चुंबकीय व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थीं. उन्होंने दीदी को एक अनुष्ठान करने के लिए कहा था. उन के कहे अनुसार लगातार 51 सोमवारों को यज्ञ करते ही दीदी गर्भवती हो गई थीं और नियत वक्त पर उन के यहां चांद सा सुंदर बेटा हुआ. बेटे के जन्म के बाद एक बेटी पाने को दीदी ने स्वामीजी द्वारा बताया अनुष्ठान दोबारा किया और फिर गर्भधारण करने पर नियत वक्त पर उन्होंने बहुत सुंदर कन्या को जन्म दिया. जैसेजैसे समय बीतता गया, साधुमहात्माओं में ‘दिल्ली वाली’ की निष्ठा बढ़ती ही गई.
अब तो पिछले कुछ सालों से उन के घर में बाकायदा चिन्मयानंद नाम के एक स्वामी ने घुसपैठ कर ली थी. वह स्वामी खुद को दिल्ली वाली का पिछले जन्म का बेटा बताता था. दीदी के घर में उसे दीदी और जीजाजी का अत्यधिक लाड़ मिलता. घर में उसे वे सारे अधिकार मिले थे जो उन के बेटे आशीष को थे. आशीष तो यहां तक कहने लगा था कि मां, उस से ज्यादा स्वामी चिन्मयानंद को चाहने लगी हैं. कभीकभी तो चिन्मयानंद को ले कर वह मां से झगड़ बैठता और मां से चिन्मयानंद का पक्ष लेने की बाबत उन से हफ्तों रूठा रहता.
सरल स्वभाव के जीजाजी वही करते जो दीदी कहतीं. उन्होंने जिंदगी में कभी दीदी का सही या गलत किसी बात का विरोध नहीं किया. दीदी की खुशी में ही उन की खुशी थी. सो, उन्होंने चिन्मयानंद को बेटे की तरह रखा.
चिन्मयानंद भी पूरे अधिकारभाव से परिवार में रहता. उस ने सारे परिवार को अपने सम्मोहक व्यक्तित्व के वश में कर रखा था.
चिन्मयानंद ने घर वालों को बताया था कि उस के असली मांबाप तो काशी में रहते हैं. उस के कई भाईबहन हुए, लेकिन सब बचपन में ही चल बसे. एक वही कुछ ज्यादा दिनों तक जिंदा रहा. सो
10-11 वर्ष का होते ही मातापिता ने उसे उसी साधु के सुपुर्द कर दिया जिस के आशीर्वाद से उस का जन्म हुआ था. वह साधु उसे अपने अन्य शागिर्दों की टोली के साथ हिमालय की तराइयों में ले गया था.
उस का बचपन स्वामीजी के साथ हिमालय की तराइयों में ही बीता. थोड़ा बड़ा होने पर उस ने स्वामीजी से दीक्षा ली थी.
चिन्मयानंद का स्वर बहुत ही मधुर था. स्वामीजी के ठिकाने पर कीर्तन का दायित्व उसी के कंधों पर था. जब भी वह अपने मधुर स्वरों में कोई भजन छेड़ता, कीर्तन में श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती.
एक दिन किसी प्रसिद्ध संगीत कंपनी के मालिक ने जब चिन्मयानंद का एक भजन सुना तो उस ने उस की गायन क्षमता से प्रभावित हो कर उस के भजनों के 2-3 कैसेट निकलवा दिए.
इधर यहां आने के कुछ ही दिनों बाद चिन्मयानंद ने इस घर से रिश्ता जोड़ने का पुख्ता इंतजाम कर लिया था. दीदी की एकलौती बेटी झरना उस पर री झ कर उस के प्रेमपाश में जकड़ गई थी और उस की मंशा उस से विवाह करने की थी.
दीदी अपनी बेटी के इस फैसले से बहुत खुश थीं. वे हम से यही कहतीं कि इतनी पढ़ीलिखी मेरी बेटी आदमी की सही कद्र जानती है. किताबी पढ़ाई से कुछ नहीं होता, बस, आदमी अच्छा होना चाहिए.
रूपलावण्य में अति सुंदर झरना हिंदी साहित्य से एमए पास, खासी मेधावी लड़की थी. लेकिन जहां चिन्मयानंद की बात आती, हमें लगता कि उस के दिमाग के सारे कपाट बंद हो गए हों. मैं जब भी उस से मिलती, उसे सम झाती कि वह क्यों एक अनपढ़जाहिल युवक से शादी कर जिंदगी बरबाद करने पर तुली है. भजनों के 2-3 कैसेटों के अलावा जिंदगी में उस की कोई उपलब्धि नहीं थी. शिक्षा के नाम पर वह कोरा था. उस के कहे अनुसार स्वाध्याय से कुछ धार्मिक पुस्तकों का ज्ञान उस ने जरूर प्राप्त किया था पर उच्चशिक्षा प्राप्त झरना कैसे एक अनपढ़ के साथ जिंदगी बिताएगी, यह मेरी सम झ के बाहर था.
मैं ने और मेरे भाइयों ने झरना को हर संभव दलीलें दे कर सम झाने की कोशिशें की थीं कि चिन्मयानंद के साथ शादी कर वह सारी जिंदगी पछताएगी. लेकिन हमारी दलीलों का उस पर कोई असर नहीं होता. वह यही कहती कि चिन्मयानंद मृदुभाषी, सम झदार, सरल स्वभाव का कलाकार युवक है और अगर उस ने उस से शादी नहीं की तो वह किसी और युवक से शादी कर कभी खुश नहीं रह पाएगी.
दीदी अपनी बेटी के इस फैसले से बहुत खुश थीं. वे हम से यही कहतीं कि इतनी पढ़ीलिखी मेरी बेटी आदमी की सही कद्र जानती है. किताबी पढ़ाई से कुछ नहीं होता, बस, आदमी अच्छा होना चाहिए. मेरी झरना ने न जाने कौन से ऐसे अच्छे कर्म किए होंगे जो उसे इतना गुणी, धर्म में आस्था रखने वाला पति मिला है.
जब हम उन से पूछते कि झरना से शादी कर चिन्मयानंद बिना किसी नियमित आय के अपनी गृहस्थी कैसे चलाएगा तो उन का जवाब होता कि, ‘उसे कमाने की जरूरत ही क्या है? हमारी इतनी जमीनजायदाद और संपत्ति आशीष और झरना की ही तो है. हमारा किराया ही इतना आता है कि बच्चों को कमाने की जरूरत ही नहीं. चिन्मयानंद और झरना तो बस भजन में लगे रहें, उन का घर तो हम चलाते रहेंगे.’
जब मैं ने दीदी से चिन्मयानंद के उन के घर में आ कर रहने की कैफियत जाननी चाही तो उन्होंने बताया था, ‘देख, लल्ली, मैं कितनी खुशहाल हूं कि इस जन्म में तो एक बेटाबेटी पा कर मैं धन्य हुई ही हूं. न जाने किन अच्छे कर्मों से मु झे मेरे पिछले जन्म का बेटा भी मिल गया है.
‘कोई विश्वास नहीं करेगा लल्ली, लेकिन चिन्मयानंद जब पहली बार मेरे दरवाजे पर आया तो उसे देख कर मेरी आंखों से आंसुओं की झड़ी इस कदर लगी कि क्या बताऊं. खुद उस की आंखों से भी खूब आंसू बहे. न जाने किन अच्छे कर्मों के प्रताप से वर्षों से बिछड़े हम मांबेटे दोबारा मिले. अब तू ही बता, अगर हम दोनों के बीच कोईर् रिश्ता नहीं होता तो क्यों हम दोनों की आंखें यों झर झर बरसतीं?
‘मु झे देखते ही चिन्मयानंद के मुंह से शब्द निकले थे, ‘मां, तू मेरी पिछले जन्म की मां है. कितने दरवाजों पर ठोकरें खाने के बाद मु झे तुम से मिलने का मौका मिला है. अब इस जन्म में मु झे खुद से कभी दूर मत करना.’ इस लड़के को देखते ही मेरे मन में अथाह लाड़ का सागर हिलोरें मारने लगता है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि इस लड़के से मेरा जन्मजन्मांतर का रिश्ता है और इस जन्म में तो कोई मेरा व उस का रिश्ता नहीं तोड़ सकता.’
हम तीनों भाईबहन व हमारे मातापिता दीदी के घर चिन्मयानंद के अड्डा जमाने से बहुत ज्यादा परेशान हो गए थे और हमें डर लगता कि कहीं यह युवक कोई अपराधी न हो जो कभी भी घर के सदस्यों को कोई नुकसान पहुंचा कर फरार हो जाए. हम ने दीदी और जीजाजी को लाख सम झाने की कोशिशें की थीं कि यों किसी अनजान व्यक्ति को घर में आश्रय देना मुनासिब नहीं और वह कभी भी उन्हें किसी तरह का भारी नुकसान पहुंचा सकता है. हो सकता है चिन्मयानंद ने सम्मोहन विद्या का प्रयोग दीदी पर किया हो जिस से वे उस के मोहपाश में जकड़ गईं.
1-2 बार हम अपनी जानपहचान के एक बड़े पुलिस अधिकारी को भी दीदी के घर ले गए जिन्होंने चिन्मयानंद से बातें कीं. लेकिन वे भी उस से पीछा छुड़ाने में हमारी कोई मदद न कर सके. एक दिन हमारे सब से बड़े भाईर्साहब दादा किस्म के कुछ युवकों को ले कर दीदी के घर पहुंचे और उन्होंने चिन्मयानंद को घर से धक्के दे कर बाहर निकाल दिया था. लेकिन यह सब देख कर दीदी ने अपना सिर दीवार से मारमार कर बुरी तरह रोना शुरू कर दिया था, जिसे देख कर मजबूरन बड़े भाईसाहब को उन युवकों के साथ वापस लौटना पड़ा था.
दीदी के इस रवैए की वजह से चिन्मयानंद को उन के घर से किसी भी तरह निकाला नहीं जा सकता था और हम भाईबहन चिंतित होने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते थे. तभी चिन्मयानंद ने एक और गुल खिलाया. हमें सूचना मिली थी कि चिन्मयानंद और झरना की शादी हो गई है.
दीदी के लगभग सभी रिश्तेदार चिन्मयानंद के खिलाफ थे. इसलिए इस शादी में दीदी ने अपने या जीजाजी के किसी भी संबंधी को यह दलील देते हुए नहीं बुलाया कि चिन्मयानंद को भीड़भाड़ बिलकुल पसंद नहीं है और वह सीधीसादी शादी चाहता है.
हमें तो विवाह की सूचना ही शादी के 2 दिनों बाद मिली. शादी की खबर मिलने पर हम भाईबहन सिर पीट कर रह गए थे. इस युवक का जो मुख्य उद्देश्य था, इस धर्मभीरु परिवार में पुख्ता घुसपैठ करना, सो वह पूरा कर चुका था. अब हम भी चुप बैठ गए थे. पर हम भाईबहन निरंतर इस आशंका से जू झते रहते कि न जाने कब वह घर उस अजनबी युवक के किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाए और आखिरकार हमारी आशंका निर्मूल नहीं निकली. उस की वजह से ही आज आशीष की जान खतरे में थी.
हम दिल्ली के लिए घर से निकलने ही वाले थे कि वहां से खबर आई कि आशीष अब नहीं रहा.
आशीष के मरने के बाद अब झरना अपनी मां की अपार संपत्ति की अकेली वारिस होगी, जरूर चिन्मयानंद ने यही सोच कर आशीष की हत्या का मंसूबा बनाया होगा. हम घर वालों की इच्छा तो यही थी कि दिल्ली पहुंचते ही चिन्मयानंद को आशीष की हत्या के इलजाम में पुलिस के सुपुर्द कर दिया जाए लेकिन हम सोच रहे थे कि क्या झरना और दिल्ली वाली इस के लिए राजी भी होंगी?
लेकिन दिल्ली पहुंचने पर हमें कुछ दूसरा ही नजारा देखने को मिला. हमारे पहुंचने से पहले ही झरना ने चिन्मयानंद को आशीष की हत्या के इलजाम में पुलिस के सुपुर्द कर दिया था और वह खुद आगे बढ़ कर पुलिस को बयान दे रही थी. हमें देखते ही वह कहने लगी, ‘‘मौसी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मैं चिन्मयानंद के प्रेमाकर्षण में अंधी हो गई थी.
‘‘मु झे इस बात का तनिक भी एहसास नहीं था कि पिताजी की दौलत के लालच में चिन्मयानंद इतना अंधा हो जाएगा कि आशीष को रास्ते से हटा देगा. मैं तो उसे बहुत ही धार्मिक, सरल हृदय युवक सम झती थी. अब पाखंडी को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाइए जिस से मेरे भाई की मौत का बदला लिया जा सके.’’
दूसरी ओर एकलौते बेटे की मौत के
गम में दीदी तो रोरो कर बेहाल हो गई थीं.
झरना और आशीष उसी बद्रीबाबा की संतानें हैं. मैं ने इतने बुरे कर्म किए हैं जिन की सजा विधाता ने मेरे आशीष को मु झ से छीन कर दी है. सच लल्ली, तेरे जीजाजी तो महान पुरुष हैं, सबकुछ जानसम झ कर भी उन्होंने कभी मु झ से एक शब्द तक नहीं कहा.
एक दिन मैं दीदी के साथ सो रही थी कि आधी रात को अचानक वे उठ कर बैठ गईं. उन्होंने मु झे झक झोर कर जगाया और अपना सीना बेचैनी से मलते हुए कहने लगीं, ‘‘लल्ली… लल्ली, मेरे दिल पर बहुत बड़े पाप का बो झ है जिस के चलते मैं कलपकलप कर दिन बिता रही हूं. मेरे दिल का चैन छिन गया है. तेरी दिल्ली वाली वह नहीं जो बाहर से दिखती है. वह गिरी हुई एक औरत है. मैं ने एक गैरमर्द के साथ संबंध बनाए हैं. तेरे जीजाजी नामर्द हैं, सो, मैं बद्रीबाबा की मर्दानगी पर री झ गई थी. जिंदगी में पहली बार मैं किसी पूरे मर्द के संपर्क में आई थी और न जाने क्या हुआ, मैं उस पर अपना सबकुछ लुटा बैठी.
‘‘तेरे जीजाजी की नामर्दी के चलते मैं ने बहुत दिन अपनी देह की आंच में सुलग कर बिताए हैं. बद्रीबाबा की मर्दानगी पर मैं अपना तनमन, सबकुछ लुटा बैठी थी. झरना और आशीष उसी बद्रीबाबा की संतानें हैं. मैं ने इतने बुरे कर्म किए हैं जिन की सजा विधाता ने मेरे आशीष को मु झ से छीन कर दी है. सच लल्ली, तेरे जीजाजी तो महान पुरुष हैं, सबकुछ जानसम झ कर भी उन्होंने कभी मु झ से एक शब्द तक नहीं कहा. उन्होंने आशीष और झरना को सगे बाप सा प्यार दिया.
‘‘उसी बद्रीबाबा ने ही चिन्मयानंद की घुसपैठ मेरे घर में कराई और उस ने तेरे जीजाजी को नशे की लत लगा दी है जिस में डूब कर वे व्यापार से अपना ध्यान हटा बैठे हैं. तेरे जीजाजी का सारा व्यापार चिन्मयानंद ने अपने कब्जे में कर लिया था और मैं चिन्मयानंद को अपना मानती रही. उफ, यह मैं ने अपने ही घर में कैसी बरबादी कर डाली,’’ कह कर दीदी फूटफूट कर रो पड़ी थीं.
‘‘दिल्ली वाली, जो होना था सो तो हो चुका. तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारे साथ हैं. चिंता मत करो. अब बद्रीबाबा और चिन्मयानंद का खेल खत्म हो चुका. वे अब तुम्हारा और अनिष्ट नहीं कर पाएंगे,’’ मैं ने दीदी को सांत्वना दे कर नींद की 2 गोलियां दी थीं जिस से वे नींद की आगोश में समा गई थीं.
इधर, पुलिस ने बद्रीबाबा के ठिकाने पर छापा मारा था जहां से उस ने नशीले पदार्थों का अपार भंडार जब्त किया था. बद्रीबाबा नशीले पदार्थों का व्यापार करता था. उस के ठिकाने पर करीब 25 साधुओं का गिरोह था. सारे साधु भ्रष्ट थे और उन्हें नशीले पदार्थों की लत थी. निसंतान और अन्य समस्याओं से जकड़ी औरतों व उन के परिवारजनों को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से अपने चंगुल में फंसाना उन का पेशा था. वे अकसर बेऔलाद औरतों को अपनी वासना का शिकार बनाते थे. पुलिस ने बद्रीबाबा समेत सभी 25 साधुओं को गिरफ्तार कर लिया था.
आशीष के क्रियाकर्म के बाद एक दिन झरना ने मु झे से कहा था, ‘मौसी, मु झे अपने अस्तित्व से घृणा हो गई है. अभी थोड़े दिनों पहले जब से मां ने मु झे बताया था कि मैं ब्रदीबाबा की संतान हूं, मैं इन साधुओं के प्रति अजीब सा अपनापन महसूस करने लगी थी.
‘‘मैं खुद को उन में से एक मानने लगी थी और जब चिन्मयानंद मेरे संपर्क में आया तो मैं उस की ओर बुरी तरह आकर्षित हो गई थी. लेकिन अब मेरा भ्रमजाल पूरी तरह टूट चुका है. ये साधुसंत निरे अपराधी होते हैं. अब तो मु झे मम्मीपापा को संभालना है. पापा को ठीक करना है. उन की नशे की लत छुड़ानी है जिस से वे एक बार फिर से सामान्य, खुशहाल जिंदगी जी सकें.’’
दीदी के घर पर सुरक्षा के लिए पुलिसकर्मी लगवा कर और उन्हें भलीभांति यह सम झा कर कि वे दोबारा बद्रीबाबा या चिन्मयानंद के किसी चेले या संगीसाथी से बात तक न करें, हम वापस लौट आए थे. लौटते वक्त बस एक ही विचार मन में बारबार आ रहा था कि धर्मभीरुता और सरल स्वभाव का कितना बड़ा खमियाजा चुकाना पड़ा था दिल्ली वाली को.