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कहानी: पसंद अपनी अपनी

आजकल लड़कियों की कदकाठी, रूपरंग, चेहरे की बनावट, आंखों का आकारप्रकार, बालों की लंबाई व चमक आदि को ले कर चर्चाएं होती हैं. लड़कियां सोचती हैं कि अधिक से अधिक सुंदर दिखना आज उन की जरूरत बन गई है.

इसलिए लड़कियां अधिक से अधिक खूबसूरत दिखने के लिए ऐसे विज्ञापनों और सौंदर्य प्रसाधनों की ओर भागती रहती हैं जो कुछ ही सप्ताह में सांवला रंग गोरा करने का दावा करते हैं.


खासकर, उत्तर भारत में गोरे रंग को काफी मान्यता मिल गईर् है. शादी के लिए लड़की का गोरा होना आज पहली शर्त है. वैवाहिक विज्ञापनों के अनुसार सभी लड़कों को गोरी लड़कियां ही चाहिए. मैं तो उन विज्ञापनों की हमेशा तलाश में रहती हूं जिन में गोरे, काले, सांवले, गेहुंए का सवाल न हो.


मेरी मां सांवली थीं और पापा गोरे थे. मैं मम्मी पर गई थी और सोमेश दादा पापा पर. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि सांवली मम्मी की शादी गोरे पापा से कैसे हो गई. मैं अकसर यह सवाल पापा से कर बैठती थी कि उन्होंने सांवली मम्मी के साथ शादी कैसे कर ली.


एक दिन मेरी बात सुन कर पापा खिलखिला कर हंस पडे़ थे.


‘‘उस समय लड़की देखने का रिवाज नहीं था, सब कुछ मांबाप ही तय करते थे. लड़के तो सुहागरात में ही पत्नी का दीदार कर पाते थे, वह भी दीपक के प्रकाश में. जिस लड़के की शादी तय हो जाती थी वह इतना खुश हो जाता था जैसे पहली बार थियेटर देखने जा रहा हो.’’


‘‘आप भी उसी तरह खुश हुए थे, पापा?’’


उत्तर में पापा की तेज हंसी से पूरा घर गूंज उठा था, जिस में मेरा सवाल डूब गया था. पापा ने बात बदल कर कहा, ‘‘देखना तेरी शादी गोरे लड़के से ही होगी…’’


पापा जब एक बार बोलना शुरू करते थे तो अपनी वाणी को विराम देना ही भूल जाते थे. अभी मैं ने विज्ञान विषय में इंटर ही किया था कि पापा ने मेरे लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी थी. पर मेरा गहरा सांवला रंग देख कर लड़के बिदक जाते थे.


अब तक पापा के खोजे 10 लड़के मुंह बिचका कर जा चुके थे. मैं अपनी पढ़ाई में लगी रही. मम्मी, पापा से कहतीं, ‘‘अगर क्षमा की शादी नहीं हो पा रही है तो आप सोमेश की शादी क्यों नहीं कर देते?’’


22 साल की होतेहोते मैं ने एम.बी.बी.एस. कर लिया था. सोमेश दादा एल.एल.एम. कर के एक डिगरी कालिज में लेक्चरर हो गए थे. पापा मेरे लिए लड़के की तलाश अब भी कर रहे थे.


एक दिन पापा जब कालिज से पढ़ा कर लौटे तो बहुत खुश थे. आते ही उन्होंने घर में घोषणा कर दी, ‘‘क्षमा के लिए लड़के की तलाश पूरी हो गई है. लड़का चार्टर्ड एकाउंटेंट है. कल ही वह अपने मातापिता के साथ क्षमा को देखने आ रहा है. किसी प्रकार के तकल्लुफ की जरूरत नहीं है.’’


दूसरे दिन लड़का अपने मम्मीपापा के साथ मुझे देखने आया. गोराचिट्टा, 6 फुट लंबा, 15 मिनट के साक्षात्कार में मुझे पसंद कर लिया गया. मैं अविश्वासों से घिर गई थी. सोचने लगी, जरूर कोई खास बात होगी, या तो उस में कोई कमी होगी या उस के दिमाग का कोई स्क्रू ढीला होगा.


खैर, मेरी शादी हो गई. पापा के लिए तो लड़का सर्वगुण संपन्न था ही. आशंकाएं तो सिर्फ मुझे थीं. नाना प्रकार की आशंकाओं में घिरी मैं अपनी ससुराल पहुंची. घर के  सभी लोगों ने मुझे पलकों पर बैठा लिया. उस से मेरी आशंकाएं और बढ़ गईं. सुहागसेज पर मैं ने रवि से पूछा, ‘‘आप ने मुझ जैसी लड़की को कैसे पसंद किया?’’


रवि ने मुसकरा कर मेरी ओर देखा. बड़ी देख तक वह मुझे निहारते रहे. फिर कहने लगे, ‘‘दरअसल, क्षमा, गोरी लड़कियां मुझे अच्छी नहीं लगतीं. ज्यादातर गोरी लड़कियों के चेहरों की बनावट अच्छी नहीं होती. दांत तो खासतौर पर अच्छे नहीं होते. इसीलिए मुझे तुम्हारी जैसी लड़की की तलाश थी. दूसरी बात यह कि पतिपत्नी के रूपरंग में भिन्नता होनी चाहिए. जानती हो, यह सारी प्रकृति भिन्नता के आधार पर निर्मित हुई है इसीलिए इस में इतना आकर्षण है. भिन्नता इसलिए भी जरूरी है ताकि पतिपत्नी का व्यक्तित्व अलग दिखे. एकरूपता में सौंदर्य उतना नहीं झलकता जितना भिन्नता में,’’ कह कर रवि ने बत्ती बुझा दी.


मैं ने पहली बार नारीपुरुष का भेद समझा था. सुबह काफी देर से आंख खुली. मैँ ने देखा कि रवि बेड पर नहीं हैं. मैं अलसाई आंखों से इधरउधर उन्हें ढूंढ़ने लगी थी. इतने में कमरे का परदा हिला. उसी के साथ रवि एक छोटी सी टे्र में चाय के 2 प्यालों के साथ कमरे में दाखिल हुए.


‘‘आप…’’ मैं अचकचा कर बोली.


‘‘मैं ने निश्चय किया था कि पहली चाय मैं ही बना कर तुम्हें पिलाऊंगा.’’


मुझे कोई उत्तर नहीं सूझा था. मैं रवि को निहारती रह गई थी.

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