कहानी: चार मार्च
अपनीअपनी शादीशुदा जिंदगी से संतुष्ट हर्ष और आभा जब कई सालों बाद एकदूसरे से मिले तो एक बार फिर उन के बीच प्यार का अंकुर फूट गया. पर क्या यह परवान चढ़ा.
‘‘हर्ष,अब क्या होगा?’’ आभा ने कराहते हुए पूछा. उस की आंखों में भय साफ देखा जा सकता था. उसे अपनी चोट से ज्यादा आने वाली स्थिति को ले कर घबराहट हो रही थी.
‘‘कुछ नहीं होगा… मैं हूं न. तुम फिक्र मत करो,’’ हर्ष ने उस का गाल थपथपाते हुए कहा.
मगर आभा चाह कर भी मुसकरा नहीं सकी. हर्ष ने उसे दवा खिला कर आराम करने को कहा और फिर खुद भी उसी के बैड के एक किनारे अधलेटा सा हो गया.
आभा दवा के असर से नींद के आगोश में चली गई. मगर हर्ष के दिमाग में कई उलझनें एकसाथ चहलकदमी कर रही थीं…
कितने खुश थे दोनों जब सुबह रेलवे स्टेशन पर मिले थे. हर्ष की ट्रेन सुबह 8 बजे ही स्टेशन पर लग चुकी थी. आभा की ट्रेन आने में अभी 1 घंटा बाकी था. यह समय हर्ष ने उस से व्हाट्सऐप पर चैटिंग करते हुए ही बिताया था. जैसे ही आभा की ट्रेन के प्लेटफौर्म पर आने की घोषणा हुई, वह आभा के कोच की तरह बढ़ा. आभा ने भी उसे देखते ही जोरजोर से हाथ हिलाया.
स्टेशन की भीड़ से बेपरवाह दोनों वहीं कस कर गले मिले और फिर अपनाअपना बैग ले कर स्टेशन से बाहर निकल आए. एक होटल में कमरा ले कर दोनों ने चैक इन किया. अटैंडैंट के सामान रख कर जाते ही दोनों फिर एकदूसरे से लिपट गए.
थोड़ी देर तक एकदूसरे को महसूस करने के बाद वे नहाधो कर नाश्ता करने बाहर निकले. आभा का बाहर जाने का मन नहीं था. वह तो हर्ष के साथ पूरा दिन कमरे में ही बंद रहना चाहती थी. मगर हर्ष ने ही मनुहार की बाहर जा कर उसे जयपुर की प्याज की स्पैशल कचौरी खिलाने की जिसे वह टाल नहीं सकी थी. हर्ष को अब अपने उस फैसले पर अफसोस हो रहा था कि न वह बाहर जाने की जिद करता और न यह हादसा होता.
होटल से निकल कर जैसे ही वे मुख्य सड़क पर आए, पीछे से आती एक अनियंत्रित कार ने आभा को टक्कर मार दी. वह लहूलुहान सी वहीं सड़क पर गिर पड़ी. हर्ष ऐंबुलैंस की मदद से उसे हौस्पिटल ले गया. ऐक्सरे जांच में आभा के पांव की हड्डी टूटी पाई गई. डाक्टर ने 6 सप्ताह के लिए पलस्तर बांध हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया.
तभी मोबाइल की आवाज से आभा की नींद टूटी. उस के मोबाइल में रिमाइंडर मैसेज बजा. लिखा था, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टु हर्ष.’ आभा दर्द में भी मुसकरा दी. पिछले साल उस ने हर्ष को विश करने के लिए यह रिमाइंडर अपने मोबाइल में डाला था. दोपहर
12 बजे जैसे ही रिमाइंडर मैसेज ने उसे विश करना याद दिलाया उस ने हर्ष को किस कर के अपने पुनर्मिलन की सालगिरह विश की और उसी वक्त इस में आज की तारीख सैट कर दी थी.
मगर आज वह चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाई थी, क्योंकि वह जख्मी हालत में बैड पर थी. उस ने एक नजर हर्र्ष पर डाली और रिमाइंडर में अगले साल की डेट सैट कर दी. हर्ष अभी भी आंखें मूंदे लेटा था. पता नहीं सो रहा था या कुछ सोच रहा था. आभा ने दर्द को सहन करते हुए एक बार फिर से अपनी आंखें बंद कर लीं. अब आभा का दिमाग भी यादों की बीती गलियों में घूमने लगा…
लगभग सालभर पहले की बात है. उसे अच्छी तरह याद है वह 4 मार्च की शाम. वह अपने कालेज की तरफ से 2 दिन का एक सेमीनार अटैंड करने जयपुर आई थी. शाम के समय टाइम पास करने के लिए जीटी पर घूमतेघूमते अचानक उसे हर्ष जैसा एक व्यक्ति दिखाई दिया.
वह चौंक गई, ‘हर्ष यहां कैसे हो सकता है?’ सोचतेसोचते वह उस व्यक्ति के पीछे हो ली. एक शौप पर आखिर वह उस के सामने आ ही गई. उस व्यक्ति की आंखों में भी पहचान की परछाईं सी उभरी. दोनों सकपकाए और फिर मुसकरा दिए.
हां, यह हर्ष ही था उस का कालेज का साथी, उस का खास दोस्त, जो न जाने उसे किस अपराध की सजा दे कर अचानक उस से दूर चला गया था. कालेज के आखिरी दिनों में ही हर्ष उस से कुछ खिंचाखिंचा सा रहने लगा था और फिर फाइनल परीक्षा खत्म होतेहोते बिना कुछ कहेसुने हर्ष उस की जिंदगी से चला गया था. कितना ढूंढ़ा था उस ने हर्ष को, मगर किसी से भी उसे हर्ष की कोई खबर नहीं मिली. आभा आज तक हर्ष के उस बदले हुए व्यवहार का कारण नहीं समझ पाई थी.
धीरेधीरे वक्त अपने रंग दिखाता रहा. डाक्टरेट करने के बाद आभा स्थानीय गर्ल्स कालेज में लैक्चरर लग गई और अपने विगत से लड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश करने लगी. इस बीच आभा ने अपने पापा की पसंद के लड़के राहुल से शादी भी कर ली.
2 बच्चों की मां बनने के बाद भी आभा को राहुल के लिए अपने दिल में कभी प्यार वाली तड़प महसूस नहीं हुई. शायद अब भी दिल हर्ष के लिए ही धड़कना चाहता था.
शादी कर के जैसे एक समझौता किया था उस ने अपनी जिंदगी से. हालांकि समय के साथसाथ हर्ष की स्मृतियों पर जमती धूल की परत भी मोटी होती चली गई थी, मगर कहीं न कहीं उस के अवचेतन मन में हर्ष आज भी मौजूद था. शायद इसीलिए वह राहुल को कभी दिल से प्यार नहीं कर पाईर् थी. राहुल सिर्फ उस के तन को ही छू पाया था, मन का दरवाजा आभा उस के लिए नहीं खोल पाई थी.
जीटी में हर्ष को यों अचानक अपने सामने पा कर आभा को यकीन ही नहीं हुआ. हर्ष का भी लगभग यही हाल था.
‘‘कैसी हो आभा?’’ आखिर हर्ष ने ही चुप्पी तोड़ी.
‘तुम कौन होते हो यह पूछने वाले?’ आभा मन ही मन गुस्साई, मगर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘अच्छी हूं… आप सुनाइए… अकेले हैं या आप की मैडम भी साथ हैं?’’
‘‘अभी तो अकेला ही हूं,’’ हर्ष ने अपने चिरपरिचित अंदाज में मुसकराते हुए कहा और फिर आभा को कौफी पीने का औफर दिया. उस की मुसकान देख कर आभा का दिल जैसे उछल कर बाहर आ गया. दिल ने कहा कि कमबख्त यह मुसकान… आज भी वैसी ही कातिल है? लेकिन दिमाग ने सहज हो कर हर्ष का प्रस्ताव स्वीकार लिया. शाम दोनों ने साथ बिताई.
थोड़ी देर तो दोनों में औपचारिक बातें हुईं और फिर 1-1 कर के संकोच की दीवारें टूटने लगीं. देर रात तक गिलेशिकवे होते रहे. कभी हर्ष ने अपनी पलकें नम कीं तो कभी आभा ने अपनी आंखें छलकाईं. हर्ष ने खुद को आभा का गुनहगार मानते हुए अपनी मजबूरियां बताईं. अपनी कायरता भी स्वीकार की और यों बिना कहेसुने चले जाने के लिए उस से माफी भी मांगी.
आभा ने भी जो हुआ सो हुआ कहते हुए उसे माफ कर दिया. फिर डिनर के बाद बिदा लेते हुए दोनों ने एकदूसरे को गले लगाया और अगले दिन शाम को फिर यहीं मिलने का वादा कर के दोनों अपनेअपने होटल की तरफ चल दिए.
अगले दिन बातचीत के दौरान हर्ष ने उसे बताया कि वह एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में साइट इंजीनियर है और इसी सिलसिले में उसे महीने में लगभग 15-20 दिन घर से बाहर रहना पड़ता है और यह भी बताया कि उस के 2 बच्चे हैं और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से काफी संतुष्ट है.
‘‘तुम अपनी लाइफ से संतुष्ट हो या खुश भी हो?’’ एकाएक आभा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
‘‘दोनों स्थितियां अलग होती हैं क्या?’’ हर्ष ने भी प्रति प्रश्न किया.
‘‘वक्त आने पर बताऊंगी,’’ आभा ने टाल दिया.
आभा की ट्रेन रात 11 बजे की थी और हर्ष तब तक उस के साथ ही था. दोनों ने आगे भी टच में रहने का वादा करते हुए बिदा ली.
अगले दिन कालेज पहुंचते ही आभा ने हर्ष को फोन किया. हर्ष ने जिस तत्परता से फोन उठाया उसे महसूस कर के आभा को हंसी आ गई. बोली, ‘‘फोन का ही इंतजार कर रहे थे क्या?’’
अब हर्ष को भी अपने उतावलेपन पर आश्चर्य हुआ. बातें करतेकरते कब 1 घंटा बीत गया, दोनों को पता ही नहीं चला. आभा की क्लास का टाइम हो गया. वह पीरियड लेने चली गईर्. वापस आते ही उस ने फिर हर्ष को फोन लगाया. फिर वही लंबी बातें. दिन कब गुजर गया पता ही नहीं चला. देर रात तक दोनों व्हाट्सऐप पर औनलाइन रहे और सुबह उठते ही फिर वही सिलसिला.
अब तो यह रोज का नियम ही बन गया. न जाने कितनी बातें थीं उन के पास जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती थीं. कईर् बार तो यह होता था कि दोनों के ही पास कहने के लिए शब्द नहीं होते थे. मगर बस वे एकदूसरे से जुड़े हुए हैं यही सोच कर फोन थामे रहते. इसी चक्कर में दोनों के कई जरूरी काम भी छूटने लगे. मगर न जाने कैसा नशा सवार था दोनों ही पर कि यदि 1 घंटा भी फोन पर बात न हो तो दोनों को ही बेचैनी होने लगती.
ऐसी दीवानगी तो शायद उस कच्ची उम्र में भी नहीं थी जब उन के प्यार की शुरुआत हुई थी. आभा को लग रहा था जैसे खोया हुआ प्यार फिर से उस के जीवन में दस्तक दे रहा है. मगर हर्ष अब भी इस सचाई को जानते हुए भी यह स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कि उसे आभा से प्यार है.
‘‘हर्ष, तुम इस बात को स्वीकार क्यों नहीं कर लेते कि तुम्हें आज भी मुझ से प्यार है?’’ एक दिन आभा ने पूछा.
‘‘अगर मैं यह प्यार स्वीकार कर भी लूं तो क्या समाज इसे स्वीकार करने देगा? कौन इस बात का समर्थन करेगा कि मैं ने शादी किसी और से की है और प्यार तुम से करता हूं,’’ हर्ष ने तड़पते हुए जवाब दिया.
‘‘शादी करना और प्यार करना दोनों अलगअलग बातें हैं हर्ष… जिसे चाहें शादी भी उसी से हो जब यह जरूरी नहीं, तो फिर यह जरूरी क्यों है कि जिस से शादी हो उसी को चाहा भी जाए?’’ आभा ने अपना तर्क दिया. उस का दिल रो रहा था.
‘‘चलो, माना कि यह जरूरी नहीं, मगर इस में हमारे जीवनसाथियों की क्या गलती है? उन्हें हमारी अधूरी चाहत की सजा क्यों मिले?’’ हर्ष ने फिर तर्क किया.
‘‘हर्ष, मैं किसी को सजा देने की बात नहीं कर रही… हम ने अपनी सारी जिंदगी उन की खुशी के लिए जी है… क्या हमारा अपनेआप के प्रति कोई कर्तव्य नहीं? क्या हमें अपनी खुशी के लिए जीने का अधिकार नहीं? वैसे भी अब हम उम्र की मध्यवय में आ चुके हैं. जीने लायक जिंदगी बची ही कितनी है हमारे पास… मैं कुछ लमहे अपने लिए जीना चाहती हूं. मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं… मैं महसूस करना चाहती हूं कि खुशी क्या होती है,’’ कहतेकहते आभा का स्वर भीग गया.
‘‘क्यों? क्या तुम अपनी लाइफ से अब तक खुश नहीं थीं? क्या कमी है तुम्हें? सबकुछ तो है तुम्हारे पास,’’ हर्ष ने उसे टटोला.
‘‘खुश दिखना और खुश होना दोनों में बहुत फर्क होता है हर्ष. तुम नहीं समझोगे.’’
आभा ने जब यह कहा तो उस की आवाज की तरलता हर्ष ने भी महसूस की. शायद वह भी उस में भीग गया था. मगर सच का सामना करने की हिम्मत फिर भी नहीं जुटा पाया.
लगभग 10 महीने दोनों इसी तरह सोशल मीडिया पर जुड़े रहे. रोज घंटों बातें करने पर भी उन की बातें खत्म नहीं होती थीं. आभा की तड़प इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि अब वह हर्ष से प्रत्यक्ष मिलने के लिए बेचैन होने लगी. लेकिन हर्ष का व्यवहार अभी भी उस के लिए एक पहेली बना हुआ था.
कभी तो उसे लगता जैसे हर्ष आज भी सिर्फ उसी का है और कभी वह एकदम बेगानों सा लगने लगता. वह 2 कदम आगे बढ़ता और अगले ही पल 4 कदम पीछे हो जाता. वह आभा का साथ तो चाहता था, मगर समाज में दोनों की ही प्रतिष्ठा को भी दांव पर नहीं लगाना चाहता था. उसे डर था कि कहीं ऐसा न हो वह एक बार मिलने के बाद आभा से दूर ही न रह पाए… फिर क्या करेगा वह? मगर आभा अब मन ही मन एक ठोस निर्णय ले चुकी थी.
‘4 मार्च’ आने वाला था. आभा ने हर्ष को याद दिलाया कि पिछले साल इसी दिन वे 2 बिछड़े प्रेमी फिर से मिले थे. उस ने आखिर हर्ष को मना ही लिया था यह दिन एकसाथ मनाने के लिए और बहुत सोचविचार कर के दोनों ने उस दिन जयपुर में मिलना तय किया.
हर्ष दिल्ली से और आभा जोधपुर से सुबह ही जयपुर आई. होटल में पतिपत्नी की तरह रुके. पूरा दिन साथ बिताया… जीभर कर प्यार किया और दोपहर ठीक 12 बजे आभा ने हर्ष को ‘हैप्पी ऐनिवर्सरी’ विश किया और फिर उसी समय अपने मोबाइल में अगले साल के लिए यह रिमाइंडर डाल लिया.
रात को जब बिदा लेने लगे तो आभा ने हर्ष को एक बार फिर चूमते हुए कहा, ‘‘हर्ष, खुशी क्या होती है, यह आज तुम ने मुझे महसूस करवाया है… थैंक्स… अब अगर मैं मर भी जाऊं तो कोई गम नहीं.’’
‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन… अभी तो हमारी जिंदगी से फिर से मुलाकात हुई है… सच आभा मैं तो मशीन ही बन चुका था. मेरे दिल को फिर से धड़काने के लिए शुक्रिया. और हां, खुशी और संतुष्टि में फर्क महसूस करवाने के लिए भी,’’ हर्ष ने उस के चेहरे पर से बाल हटाते हुए कहा और फिर से उस की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच लिया.
‘‘अब आशिकी छोड़ो… मेरी टे्रन का टाइम हो रहा है,’’ आभा ने मुसकराते हुए हर्ष को अपने से अलग किया.
उसी शाम दोनों ने वादा किया था कि हर साल 4 मार्च को वे दोनों इसी तरह इसी जगह मिला करेंगे. इसी वादे के तहत आज भी दोनों यहां जयपुर आए थे और यह हादसा हो गया.
‘‘आभा, डाक्टर ने तुम्हारे डिस्चार्ज पेपर बना दिए. मैं टैक्सी ले कर आता हूं,’’ हर्ष ने धीरे से उसे जगाते हुए कहा तो आभा फिर से भयभीत हो गई कि कैसे वापस जाएगी अब वह जोधपुर? कैसे राहुल का सामना कर पाएगी? मगर फेस तो करना ही पड़ेगा. जो होगा, देखा जाएगा. सोचते हुए आभा जोधपुर जाने के लिए अपनेआप को मानसिक रूप से तैयार करने लगी.
आभा ने राहुल को फोन कर के अपने ऐक्सीडैंट के बारे में बता दिया. राहुल ने सिर्फ इतना ही पूछा, ‘‘ज्यादा चोट तो नहीं आई?’’
आभा के नहीं कहते ही राहुल ने अगला प्रश्न दागा, ‘‘सरकारी हौस्पिटल में ही दिखाया था न… ये प्राइवेट वाले तो बस लूटने के मौके ढूंढ़ते हैं.’’
सुन कर आभा को कोई आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि उसे राहुल से ऐसी ही उम्मीद थी.
आभा ने बहुत कहा कि वह अकेली जोधपुर चली जाएगी, मगर हर्ष ने उस की एक न सुनी और टैक्सी में उस के साथ जोधपुर चल पड़ा.
आभा को हर्ष का सहारा ले कर उतरते देख राहुल का माथा ठनका. आभा ने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘ये मेरे पुराने दोस्त हैं… जयपुर में मेरे साथ ही थे.’’
राहुल ने हर्ष में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘टैक्सी से आने की क्या जरूरत थी? ट्रेन से भी आ सकती थी.’’
आभा को जोधुपर छोड़ उसी टैक्सी से हर्ष लौट गया.
आभा 6 सप्ताह की बैड रैस्ट पर थी. दिनभर बिस्तर पर पड़ेपड़े उसे हर्ष से बातें करने के अलावा और कोई काम ही नहीं सूझता था. कभी जब हर्ष अपने प्रोजैक्ट में बिजी होता तो उस से बात नहीं कर पाता था. यह बात आभा को अखर जाती थी. वह फोन या व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के अपनी नाराजगी जताती. फिर हर्ष उसे मनुहार कर के मनाता. आभा को उस का यों मनाना बहुत सुहाता. वह मन ही मन अपने प्यार पर इतराती.
ऐसे ही एक दिन वह अपने बैड पर लेटीलेटी हर्ष से बातें कर रही थी और उस ने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं. उसे पता ही नहीं चला कि राहुल कब से वहां खड़ा उस की बातें सुन रहा है.
‘‘बाय… लव यू…’’ कहते हुए फोन रखने के साथ ही जब राहुल
पर उस की नजर पड़ी तो वह सकपका गई. राहुल की आंखों का गुस्सा उसे अंदर तक हिला गया. उसे लगा मानो आज उस की जिंदगी से खुशियों की बिदाई हो गई.
राहुल ने आंखें तरेर कर पूछा, ‘‘कौन है यह? कब से चल रहा है ये सब?’’
‘‘यह हर्ष है… वही, जो मुझे छोड़ने आया था,’’ आभा अब राहुल के सवालों के जवाब देने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी थी.
‘‘तो तुम इसलिए बारबार जयपुर जाती थी?’’ राहुल ने फिर पूछा पर आभा ने कोई जवाब नहीं दिया.
‘‘अपनी नहीं तो कम से कम मेरी इज्जत का ही खयाल कर लेती… समाज में बात खुलेगी तो क्या होगा, कभी सोचा है तुम ने?’’ राहुल ने उस के चरित्र को निशाना बनाते हुए चोट की.
‘‘तुम्हारी इज्जत का खयाल था इसीलिए तो बाहर मिली उस से वरना यहां इस शहर में भी मिल सकती थी और समाज? किस समाज की बात करते हो तुम? किसे इतनी फुरसत है कि इतनी आपाधापी में मेरे बारे में कोई सोचे? मैं कितना सोचती हूं किसी और के बारे में और यदि कोई सोचता भी है तो 2 दिन सोच कर भूल जाएगा. वैसे भी लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है,’’ आशा ने बहुत ही संयत स्वर में कहा.
‘‘बच्चे क्या सोचेंगे तुम्हारे बारे में? उन का तो कुछ खयाल करो,’’ राहुल ने इस बार इमोशनल वार किया.
‘‘2-4 सालों में बच्चे भी अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाएंगे…? राहुल मैं ने सारी उम्र अपनी जिम्मेदारियां निभाई हैं. बिना तुम से कोई सवाल किए अपना हर फर्ज निभाया है, फिर चाहे वह पत्नी का हो या मां का. अब मैं कुछ समय अपने लिए जीना चाहती हूं. क्या मुझे इतना भी अधिकार नहीं?’’ आभा की आवाज लगभग भर्रा गई थी.
‘‘तुम पत्नी हो मेरी… मैं कैसे तुम्हें किसी और की बांहों में देख सकता हूं?’’ राहुल ने उसे झकझोरते हुए कहा.
‘‘हां, पत्नी हूं तुम्हारी… मेरे शरीर पर तुम्हारा अधिकार है… मगर कभी सोचा है तुम ने कि मेरा मन आज तक तुम्हारा क्यों नहीं हुआ? तुम्हारे प्यार के छींटों से मेरे मन का आंगन क्यों नहीं भीगा? तुम चाहो तो अपने अधिकार का प्रयोग कर के मेरे शरीर को बंदी बना सकते हो… एक जिंदा लाश पर अपने स्वामित्व का हक जता कर अपने अहम को संतुष्ट कर सकते हो, मगर मेरे मन को तुम सीमाओं में नहीं बांध सकते… उसे हर्ष के बारे में सोचने से तुम रोक नहीं सकते,’’ आभा ने शून्य में ताकते हुए कहा.
‘‘अच्छा, क्या वह हर्ष भी तुम्हारे लिए इतना ही दीवाना है? क्या वह भी तुम्हारे लिए अपना सबकुछ छोड़ने को तैयार है?’’ राहुल ने व्यंग्य से कहा.
‘‘दीवानगी का कोई पैमाना नहीं होता. वह मेरे लिए किस हद तक जा सकता है, यह मैं नहीं जानती, मगर मैं उस के लिए किसी भी हद तक जा सकती हूं,’’ आभा ने दृढ़ता से कहा.
‘‘अगर तुम ने इस व्यक्ति से अपना रिश्ता खत्म नहीं किया तो मैं उस
के घर जा कर उस की सारी हकीकत बता दूंगा,’’ कहते हुए राहुल ने गुस्से में आ कर आभा के हाथ से मोबाइल छीन कर उसे जमीन पर पटक दिया. मोबाइल बिखर कर आभा के दिल की तरह टुकड़ेटुकड़े हो गया.
राहुल की आखिरी धमकी ने आभा को सचमुच डरा दिया. वह नहीं चाहती थी कि उस के कारण हर्ष की जिंदगी में कोई तूफान आए. वह अपनी खुशियों की इतनी बड़ी कीमत नहीं चुका सकती थी. उस ने मोबाइल के सारे पार्ट्स फिर से जोड़े तो पाया कि वह अभी भी चालू स्थिति में है. एक आखिरी मैसेज उस ने हर्ष को लिखा, ‘‘शायद नियति ने मेरे हिस्से खुशी लिखी ही नहीं… तुम ने जो खूबसूरत यादें मुझे दी हैं उन के लिए तुम्हारा शुक्रिया…’’ और फिर मोबाइल से सिम निकाल कर टुकड़ेटुकड़े कर दी.
हर्ष कुछ भी समझ नहीं पाया कि यह अचानक क्या हो गया. उस ने आभा को फोन लगाया, मगर फोन बंद था. फिर उस ने व्हाट्सऐप पर मैसेज छोड़ा, मगर वह भी अनसीन ही रह गया.
अगले कई दिनों तक हर्ष उसे फोन ट्राई करता रहा, मगर हर बार फोन बंद है का मैसेज पा कर निराश हो उठता. उस के किसी भी मेल का जवाब भी आभा की तरफ से नहीं आया.
एक बार तो हर्ष ने जोधपुर जा कर उस से मिलने का मन भी बनाया, मगर फिर यह सोच कर कि कहीं उस की वजह से स्थिति ज्यादा खराब न हो जाए उस ने दिल पर पत्थर रख लिया. आखिर हर्ष ने सबकुछ वक्त पर छोड़ कर आभा को तलाश करना बंद कर दिया.
इस वाकेआ के बाद आभा ने अब मोबाइल रखना ही बंद कर दिया. राहुल के बहुत जिद करने पर भी उस ने नई सिम नहीं ली. बस कालेज से घर और घर से कालेज तक ही उस ने खुद को सीमित कर लिया. कालेज से भी जब मन उचटने लगा तो उस ने छुट्टियां लेनी शुरू कर दीं. मगर छुट्टियों की भी एक सीमा थी.
धीरेधीरे वह गहरे अवसाद में चली गई. राहुल ने बहुत इलाज करवाया, मगर कोई फायदा नहीं हुआ. अब राहुल भी चिड़चिड़ा सा होने लगा था.
एक तो आभा की बीमारी ऊपर से उस की सैलरी भी कट कर आ रही थी, क्योंकि उस की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. राहुल को अपने खर्चों में कटौती करनी पड़ रही थी जिसे वह सहन नहीं कर पा रहा था.
पतिपत्नी जैसा भी कोईर् रिश्ता अब उन के बीच नहीं रहा था, यहां तक कि आजकल तो खाना भी अकसर या तो राहुल को खुद बनाना पड़ता या फिर बाहर से ही आता.
सारे उपाय करने के बाद अंत में डाक्टर ने भी हाथ खड़े कर लिए. उन्होंने राहुल से कहा, ‘‘मरीज ने शायद खुद को खत्म करने की ठान ली है. जब तक ये खुद जीना नहीं चाहेंगी, कोई भी इलाज इन पर कारगर नहीं हो सकता.’’
आज शाम राहुल ने आभा से तलखी से कहा, ‘‘देखो, अब बहुत हो चुका… मैं अब तुम्हारे नाटक और नहीं सहन कर सकता… आज तुम्हारे प्रिंसिपल का फोन आया था. कह रहे थे कि तुम्हारे कालेज की तरफ से जयपुर में 5 दिनों का एक ट्रेनिंग कैंप लग रहा है. अगर तुम ने उस में भाग नहीं लिया तो तुम्हारा इंक्रीमैंट रुक सकता है. हो सकता है कि नौकरी भी हाथ से चली जाए. मेरी समझ में नहीं आता कि तुम क्यों अच्छीभली नौकरी को लात मारने पर तुली हो… मैं ने तुम्हारे प्रिंसिपल से कह कर कैंप के लिए तुम्हारा नाम जुड़वा दिया है. 2 दिन बाद तुम्हें जयपुर जाना है.’’
आभा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. आभा के न चाहते हुए भी राहुल ने उसे ट्रेनिंग कैंप में भेज दिया. ट्रेन में बैठाते समय राहुल ने कहा, ‘‘यह लो अपना मोबाइल… इस में नई सिम डाल दी है. अपने प्रिंसिपल को फोन कर के कैंप जौइन करने की सूचना दे देना ताकि उन्हें तसल्ली हो जाए.’’
आभा ने एक नजर अपने पुराने टूटे मोबाइल पर डाली और उसे पर्स में धकेलते हुए टे्रन की तरफ बढ़ गई. सुबह जैसे ही आभा की ट्रेन जयपुर स्टेशन पहुंची वह यंत्रचालित सी नीचे उतरी और धीरेधीरे उसी बैंच की तरफ बढ़ चली जहां हर्ष उसे बैठा मिला करता था. फिर अचानक कुछ याद कर के आभा के आंसुओं का बांध टूट गया. वह उस बैंच पर बैठ कर फफक पड़ी. फिर अपनेआप को संभालते हुए उसी होटल की तरफ चल दी जहां वह हर्ष के साथ रुका करती थी. उसे दोपहर बाद 3 बजे कैंप में पहुंचना था.
संयोग से आभा उस दिन भी उसी कमरे में ठहरी जहां उस ने पिछली दोनों बार के साथ यादगार लमहे बिताए थे. वह कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी. उस ने रूम का दरवाजा तक बंद नहीं किया था.
तभी अचानक पर्स में रखे मोबाइल में रिमाइंडर मैसेज बज उठा, ‘से हैप्पी ऐनिवर्सरी टु हर्ष’ देख कर आभा एक बार फिर सिसक उठी, ‘‘उफ्फ, आज 4 मार्च है.’’
तभी अचानक 2 मजबूत हाथ पीछे से आ कर उस के गले के इर्दगिर्द लिपट गए. आभा ने अपना भीगा चेहर ऊपर उठाया तो सामने हर्ष को देख कर उसे यकीन ही नहीं हुआ. वह उस से कस कर लिपट गई.
हर्ष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘हैप्पी ऐनिवर्सरी.’’
आभा का सारा अवसाद आंखों के रास्ते बहता हुआ हर्ष की शर्ट को भिगोने लगा.
वह सबकुछ भूल कर उस के चौड़े सीने में सिमट गई.