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कहानी: बेबस

शैलेश ने अपने से बड़ी उम्र की लड़की प्रोमिला से शादी की और जीवन में तरक्की भी खूब की. सभी सुखसुविधाओं के होने के बावजूद भी वह क्यों बेबस था?

शैलेश मेज पर दोनों हाथों को मोड़ कर उन पर सिर झुकाए बैठा था. दरवाजे पर आहट सुनते ही उस ने मुंह ऊपर उठाया और दरवाजे की तरफ देखने लगा. बालों को सहेजते हुए बोला, ‘‘कम इन प्लीज.’’


दरवाजा खोल कर मैं अंदर जाते हुए उस के चेहरे की ओर देखने लगा. ‘‘अरे तुम,’’ बोलते हुए अपनी कुरसी पर से उठ खड़ा हुआ और मुसकराते हुए मुझे कुरसी पर बैठने के लिए कहा.


मैं मेज के एक ओर रखी कुरसी पर बैठ गया. टेबल बैल बजाते हुए शैलेश ने चपरासी को बुलाते हुए मुझ से पूछा, ‘‘क्या लोगे दिनेश?’’ मैं ने मुसकराते हुए गरदन दोनों ओर हिला दी.


शैलेश ने आंखों ही आंखों में चपरासी को कुछ निर्देश दिया, फिर चपरासी वहां से लौट गया. ‘‘और कहो, शैलेश. अब तो तुम सहायक प्राध्यापक हो गए हो. सब से पहले तो तुम इस की बधाई लो,’’ मैं ने दोनों हाथों को उस की हथेलियों में रख कर हंसते हुए कहा.


वो मुझे देख कर मुसकराता रहा. ‘‘पर, मैं ये क्या सुन रहा हूं कि तुम ने शादी कर ली. भई, ये बात तो मेरे गले नहीं उतरी… ना बैंड, ना बारात, ना कोई शोरशराबा. बस एकदम से चुपचाप… ये सब कैसे हो गया.’’


चपरासी दरवाजे को ठकठक करता अंदर आ गया और चाय की प्यालियों से भरी ट्रे को मेज पर रख कर खड़ा हो गया. दिनेश के निर्देश पर वो दरवाजे को बंद करता हुआ चला गया.


दिनेश ने मेरी ओर ट्रे खिसकाते हुए चाय उठाने के लिए आग्रह किया. ‘‘यार, तुम ने मटुकनाथ की कहानी सुनी है ना, जिस ने जूली से प्रेमविवाह किया था,’’ वह मुसकरा कर मुझे देखता बोलता रहा.


‘‘हां… हां,’’ मैं ने चाय उठाते हुए गरदन हिलाई. ‘‘बस, कुछ इसी तरह का सीन बन गया,’’ चाय का घूंट भरते हुए वह बोला. ‘‘तुम खुश तो हो ना…?’’ मैं ने प्याली को थामे हुए पूछा.


‘‘अब क्या कहूं. चलो, घर चलते हैं,’’ प्याली का अंतिम घूंट मुंह में उड़ेलते हुए शैलेश बोला. ‘‘इस समय कोई दिक्कत तो नहीं?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा. ‘‘मैं आज की क्लासेज आदि ले चुका हूं और अब कोई ज्यादा जरूरी काम भी नहीं बचा,’’ कुछ सोचते हुए वह बोला, ‘‘हां… चल सकते हैं.’’


मैं ने भी चाय पी कर प्याली मेज की ओर सरका दी. चपरासी प्याली के लिए जैसे ही पहुंचा, शैलेश ने उस से कहा, ‘‘सोनू, मैं निकल रहा हूं. मेरे एक खास दोस्त आए हैं. थोड़ा काम भी है मुझे. कोई खास बात हो, तो मुझे फोन कर लेना.’’


शैलेश ने अपने दफ्तर के दरवाजे को बंद किया. हम दोनों निकल पड़े. बाहर का मौसम अच्छा था. धूप अब कम थी. बारिश का सा मौसम था. बादल कई छोटेबड़े खंडों में बंटा था. कहीं सफेद तो कहीं उमड़ा हुआ, पर आसमान को देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि देर रात तेज बारिश हो सकती है.


मुझे याद है, जब पिछली मर्तबा भी मैं शैलेश से मिला था तकरीबन 8 साल पहले कुछ ऐसा सा ही मौसम था. यूकेलिप्टस के लंबे वृक्ष तेज हवा में लहर रहे हैं. 2-3 स्टूडैंट हमें देख कर मुसकरा कर रुक गए. ऐसा लगता था कि जैसे वो कोई सवाल पूछना चाहते हों, पर वो एकदूसरे की पहल का इंतजार करते रहे थे और कुछ ना पूछ सके.


शैलेश काफी कन्फ्यूज्ड सा लगा मानो मन में कुछ हो, पर कर कुछ और ही रहा हो. जैसे शरीर कहीं, आत्मा कहीं और ही. पहले तो वह ऐसा न था. पर खैर, मैं उस से काफी सालों के बाद मिला हूं. फिर पहले वो गरीब आदमी था, जिस के पास साइकिल तक नहीं थी, पर ये शैलेश गाड़ी वाला है, जो नयानया सहायक प्राचार्य हो गया है. यद्यपि, हम दोनों ने बचपन एकसाथ जिया, पर आज हम दोनों का व्यक्तित्व बहुत भिन्न है.


शायद इसी से उस ने मुझे यकायक मिलने को यहां बुलाया, जैसे कि उसे अंतिम बार ही मिलना हो. वो जैसा फोन पर था, चिड़चिड़ा सा बिलकुल वैसा ही दिखा.


जहां एक ओर शैलेश गरीबी में भी स्वयं के व्यक्तित्व और रहनसहन पर इतराता था, वहीं आज इतनी अमीर आसामी हो कर भी कुत्सित था. पहले वो दोएक साथियों व अपनी किताबों से ही खुश था, पर आज गाड़ी, नौकरचाकर होने के बाबजूद व्यग्र था. वो अपने से ही दुखी था, जैसे कोई सजा काट रहा हो.


शैलेश चुपचाप था. उस ने गाड़ी स्टार्ट की. मैं भी दूसरी सीट पर बैठ गया. मुझे लगा था कि शैलेश घर जाएगा, पर वो कौफी होम के गेट पर जा कर रुक गया.


कौफी होम के अंदर कम रोशनी की हुई थी. धीमी पीली लाइट में कोई सूफी गाना चल रहा था, जिसे सुनते हुए हम दोनों उस खिड़की के किनारे मेज पर बैठ गए, जिस से बाहर झांका जा सकता था.


शैलेश को एकटक देखता रहा. शैलेश बिलकुल सफेद हो गया था, मानो जीवन के सारे राज आज मेरे सामने खुल गए हों. आदमी दो जीवन जीता है. एक वो जैसा होता है.

शैलेश ने अपने मोबाइल की गैलरी खोलते हुए एक महिला की फोटो दिखाई. नए जमाने की फैशनेबल अधेड़ औरत, जो शायद उसी कालेज में पढ़ाती है.


‘‘जानते हो ये कौन है?’’ शैलेश ने फोटो दिखाते हुए मुझ से पूछा. ‘‘तुम्हारे कालेज की ही कोई प्रोफेसर होगी,’’ मैं ने उस की आंखों में देखते हुए जवाब दिया.


‘‘हां, ये प्रोमिला है. प्रोफेसर प्रोमिला और तुम्हारी भाभी…’’ वो महिला, जिस की वो फोटो दिखा रहा था, शैलेश से बड़ी लग रही थी. फोटो को करीब ला कर मैं ने देखा. ये तो काफी प्रसिद्ध, किंतु विवादास्पद महिला प्रोफेसर हैं. मैं ने कहीं पढ़ा था कि इस प्रोफेसर महिला ने अपने किसी स्टूडैंट से प्रेमविवाह कर लिया है, पर ये क्या… वो तुम थे?


वह शैलेश को एकटक देखता रहा. शैलेश बिलकुल सफेद हो गया था, मानो जीवन के सारे राज आज मेरे सामने खुल गए हों. आदमी दो जीवन जीता है. एक वो जैसा होता है, पर दूसरा जिसे वो भोगता है. यथार्थ बहुत कष्टदायी होता है, जिस में आदमी अपनी चेतना भूल जाता है और फिर जो बचता है, वो असल से कोसों दूर होता है.


मंदमंद संगीत काफी मधुर था, किंतु शैलेश की इस बात को सुनने के पश्चात मानो हर तरफ शून्य ही नजर आ रहा था. खिड़की के बाहर की हवा दरवाजों पर आघात करती हुई बहुतकुछ कहना चाहती थी, पर दरवाजों से टकरा कर वापस लौट जाती थी. पलभर के सन्नाटे के पश्चात गीत से पूर्व वायलिन गूंजा. शैलेश रोआंसा सा दिखा, मानो वो अपनी जिंदगी से खुश नहीं है.


1-2 मैन्यू को बगल में थामे हुए वेटर 2 कौफी ला कर खड़ा हो गया और मैन्यू को टेबल पर रख के हलकी मुसकराहट के साथ हमें देखने लगा. बर्गर के और्डर मिलते ही वेटर चला गया. तुम नहीं जानते कि हम दोनों ही दोहरी जिंदगी जी रहे हैं. शैलेश ने गंभीर हो कर कहना शुरू किया.


‘‘कैसे…?’’ मैं ने शैलेश की हथेली को उंगली से दबाते हुए पूछा. ‘‘तुम जानते हो ना कि मैं एमए के दाखिले के लिए यहां पहुंचा था.ग्रेजुएशन के पश्चात.’’ ‘‘हां… हां, फिर…’’ मैं ने कहा.


‘‘मेरे एडमिशन के लिए प्रोमिला ने सिफारिश की थी. शायद तभी मुझे इतनी नामी यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला था. चूंकि यहां नंबरों से अधिक किसी नामी आदमी से जानपहचान की जरूरत कहीं अधिक है.‘‘मैं एमए में पढ़ने लगा. इन्हीं मोहतरमा ने मुझे होस्टल की सुविधा दिलवाई थी. तुम तो जानते ही हो कि हम लोग छोटे कसबों से ताल्लुक रखते हैं. यहीं पढ़नारहना हमजैसों के वश में कहां?’’ निराशा से भरा चेहरा बोलता रहा, ‘‘मैं उन दिनों पढ़ाई में अव्वल था ही. सो, सब मुझ में दिलचस्पी लेते थे. क्लास में मेरे माक्र्स अच्छे रहते थे और शायद इसलिए प्रोमिला भी…’’


आरंभ में प्रोमिला मैडम थीं, जो अपने पति के साथ छोटे से घर में रहती थीं. मेरा नोट्स आदि के सिलसिले में अकसर उन के यहां आनाजाना था. वो मुझे लाइब्रेरी आदि से भी अपने नाम से किताबें इश्यू करवा देती थीं. मुझे उन दिनों ये सब अच्छा लगता था, क्योंकि शिक्षक की इतनी तव्वजुह. किंतु मुझे नहीं पता था कि वो मुझे दिलोदिल चाहने लगी थी और कई मर्तबा वो मेरी पीठ थपथपाते हुए मुझ से लिपट तक जाती थी. कभीकभार ऐसा होना शायद गलती या भूल से हो सकता है, पर अब तो रोज बातबात पर मेरे हाथों को चूमना, मेरे हाथों को सहलाना और घंटों मुझे प्रेम से निहारना आम बात होने लगी थी.


मैं ने उन्हें बताना चाहा कि आप विवाहित हैं और शिक्षिका के पद पर हैं, ये सब आप के लिए उचित नहीं, पर उन के दिलोदिमाग पर मुहब्बत का भूत सवार था. वह हर पल किसी न किसी बहाने से मुझ से मिलने की कोशिश करती और उन की निगाहें मुझे ही ढूंढ़तीं.


2-3 सालों में वो अपने कौंटैक्ट से इतना अमीर हो गई. पहले प्रिंसिपल की और फिर कई मंत्रियों के साथ संबंध रख कर वह अमीर होती गई. मैं भी अंधे झूठे प्रेम में उन की ओर खिसकता गया.उन्होंने सब को एकएक कर के छोड़ दिया और सब से भरपूर फायदा उठाया.


मुझे लगा कि वह मुझ से सच्चा प्रेम करती है, पर उन्हें केवल साथ चाहिए था, जो उन्हें मुझ से मिलता रहा. कौफी के मग हमारे सामने थे. बगल वाली टेबल पर बैठे एक युवा कपल एकदूसरे के हाथों में हाथ दबाए बैठे थे. जैसे ही गाने का अंतरा बदलता, वे दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराते हुए गाने लगते.


टेबल पर बैठा आदमी यद्यपि आधा गंजा था, पर था बेहद रोमांटिक.लड़की के बाएं हाथ को चूमते हुए वह संजीदा होता जा रहा था. उस की आंखों में गहरी चमक थी. गाना बदलते ही वो इधरऊधर देखने लगे, जैसे गहरी नींद से अभीअभी जागे हों.


तुम जानते हो, प्रोमिला ने मुझे एक दिन औफर कर दिया. शैलेश ने एक सिगरेट सुलगाई और बाकी बची हुई डब्बी को मेरी ओर कर दिया. मैं ने गरदन दोनों ओर फेरते हुए उसे कंटीन्यू करने को कहा.


डायनिंग टेबल की कुरसी निकाल कर उन्होंने मेरी ओर बढ़ा दी और सामने वाली कुरसी पर वो स्वयं बैठ गई. पिंक गाउन में वे उस रोज ज्यादा ही खिल रही थीं.

जानते हो, एक रोज जब परीक्षा आरंभ होने वाली थी, मैं ने एक प्रश्न के डाउट्स के लिए मैडम को रात में फोन लगा दिया. उस समय 8 बजे थे. उन्होंने कहा कि तुम एक मर्तबा घर आ सकते हो.


मैं ने क्यों पूछा, तो उन का जवाब था कि इस टौपिक पर उन के पास कुछ किताबें व नोट्स हैं, जिन की सहायता से यह टौपिक अच्छे से क्लीयर हो सकता है. मैं ने बिना सोचे देर ना लगाई और प्रोमिला मैडम के यहां पहुंच गया. पर ये क्या…?


बोलतेबोलते वह रुक गया.


मैं उसे देखता रहा. उस की आंखें खुली थीं एक अजीब उत्साह से (चूंकि अब तक उसे भी ये सब अच्छा लगने लगा था) बताता रहा. ना जाने क्यों उस रोज उन का घर पर बुला लेना मुझे अच्छा लग रहा था. शायद एक ओर उन का मेरे प्रति, मेरी शिक्षा के प्रति इतनी परवाह. एक अनजाने शहर में मुझ जैसे मुफलिस स्टूडैंट को कोई इतनी तरजीह दे. घर बुला कर इज्जत दे, किताबें दे और कठिन टौपिक को समझाने में सहायता करे.


मेरे लिए एक अच्छा मौका था कि मैं परीक्षा से पूर्व इस टौपिक को गहराई से जान सकूं.


मैं ने देर न लगाते हुए उन के घर का रुख किया. उन का दरवाजा खुला. वे बालों को जूड़े में बांधते हुए सामने आईं. मुझे लगा कि उन के पति घर पर होंगे. मैं हलकी मुसकराहाट के साथ घर के अंदर घुसा, पर अंदर शायद कोई नहीं था, क्योंकि घर में कोई आहट नहीं थी.


डायनिंग टेबल की कुरसी निकाल कर उन्होंने मेरी ओर बढ़ा दी और सामने वाली कुरसी पर वो स्वयं बैठ गई. पिंक गाउन में वे उस रोज ज्यादा ही खिल रही थीं. उस से पहले मैं ने इस तरह उन्हें कभी नहीं देखा था. मैंने पूछा, ‘‘सर नहीं हैं क्या?’’


मेरी बात पर वे मुझे देखती रहीं. क्यों उन से भी मिलना है क्या? होंठों पर जबान फिराते वे पूछने लगीं. ‘‘नहीं… नहीं,’’ मैं ने तो ऐसे ही पूछा मैडम. ‘‘आप कुछ किताबे और नोट्स आदि बता रही थीं,’’ मैं ने नीचे देखते हुए पूछा.


‘‘हां… हां, अभी देती हूं. सबकुछ देती हूं,’’ वे बोलीं. उन का चेहरा खिला था. घर में हम 2 लोग ही थे. पता चला कि वे अपने पति से बिलकुल खुश नहीं हैं, बल्कि मुझ से ही वो सब चाहती हैं, जो उन के साथ कभी नहीं चाहती.


और उन के पति उस रोज वहां नहीं थे, किसी काम से किसी दूसरे राज्य में गए हुए थे.बात करतेकरते वो उठीं और किताब नोट्स मुझे थमाते हुए बोलीं, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ, डू यू लव मी?’’


मैं कुछ ना बोल सका. कमरा महक रहा था. मेरी धड़कनें तेज हो गई थीं. मैं उन्हें अपलक देखता रहा. उस रोज वो हो गया, जो शायद नहीं होना था. मुझे पहले तो यकीन नहीं आ रहा था कि ये सच है, पर धीरेधीरे मुझे भी सब अच्छा लगने लगा.


‘‘यस, आई लव यू मैडम,’’ मैं ने उन से चिपक कर कहा. मेरी एमए पूरी हुई. परिणाम मनमाफिक रहा. मैडम ने मुझे पीएचडी करने का औफर दिया, वो भी उन्हीं के अंडर.अब मेरे लिए पीएचडी करना जरूरी भी हो गया था, क्योंकि उस के उपरांत ही मैं उसी यूनिवर्सिटी में पढ़ा सकता था. मैं ने इस औफर को एक झटके में लपक लिया.


मैं शोध के दौरान अकसर ही उन के यहां जाया करता था. दोएक बार उन के पति को काफी उपेक्षित पाया और महसूस किया कि वो उन से छुटकारा चाहती थीं. बगल वाली टेबल की ओर देखा. वहां के लोग बदल चुके थे. हमें भी बैठे काफी समय हो चुका था. वेटर हमें देखता हुआ करीब आ कर बोला, ‘‘जी सर, और कुछ चलेगा?’’


‘‘हां, जोकुछ भी खास हो, यहां दो ले आओ,’’ मैं ने उस को मुसकरा कर कहा. एक रोमांटिक गाने की धुन पर पैर की थाप साथसाथ चल रही थी.दूर कोने में कपल्स एकदूसरे की आंखों में खोए हुए दिखाई दे रहे थे. पीली रोशनी में चेहरे उन्माद से भरे प्रतीत हो रहे थे मानो सारे जगत का प्यार यहां बैठे लोगों की आंखों में ठहर गया हो.


अब हम यानी मैं और प्रोमिला मैडम खुले में मिलने लगे थे. शैलेश गंभीर हो कर बोलने लगा. उन्होंने एक रोज मुझ से कहा कि क्या तुम मुझ से शादी करोगे? मेरे पैरों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई हो. जाने मुझ से कोई मेरे सारे पापों का हिसाब के बदले में मेरी जान मांग रहा हो.


मैं ने मना करना चाहा. पर उन्होंने तलाक के कागज मुझे दिखाते हुए कहा कि देख लो, मैं ने तो तुम्हें पाने के लिए सारे बंधंनों को तोड़ दिया है.


‘‘पर, ये सब आप क्यों कर रही है?’’ मैं ने सकपकाते हुए मैडम से पूछा, तो उन्होंने कहा कि वो मुझे पाने के लिए कुछ भी कर सकती हैं. मैं सचाई से मुंह मोड़ कर पलभर के लिए खुश हुआ.


एक नौकर दौड़ा हुआ शैलेश के पास पहुंचता है और उस के हाथों से बैग ले लेता है. शैलेश डाइनिंग टेबल पर बैग रख कर वाशबेशिन में हाथ धोते हुए दिनेश को देखता रहा.

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या ठीक है, क्या गलत. मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मैं झूठे आनंद की रौ में अपना जीवन दांव पर लगा रहा हूं. क्या ये सही था?


मुझे नहीं मालूम. शैलेश की आंखें नम थीं, जैसे वो कोई सजा काट रहा हो. ‘‘अब…?’’ मैं ने शैलेश के कंधे को ठेलते हुए पूछा. ‘‘अब क्या…?’’


‘‘बस जी रहा हूं. जैसेतैसे. आरंभ में सब ठीक लगता है, पर धीरेधीरे जैसे ही जिंदगी की सचाई से रूबरू होते जाते हैं सब अलग होता है. जैसा आदमी पहले दिखता है वैसा वो असल में तो नहीं होता. चूंकि इनसान के दो चेहरे होते हैं, एक जो हमें दिखाई देता है और दूसरा जो असली चेहरा होता है, जिसे हम साथ रह कर ही देख सकते हैं, समझ सकते हैं. उस ने अपने पति को छोड़ा मुझे पाने के लिए. और अब लगता है कि वो मुझे भी त्याग देगी. वह रोआंसा हो कर बोलता रहा.


‘‘तुम ऐसा क्यों सोचते हो?’’ दिनेश ने उस की आंखों में झांक कर पूछा. ‘‘मेरे और प्रोमिला से विवाह के पश्चात मैं ने अकसर कुछ लड़कों को पढ़ाई के बहाने आते देखा है. वह कुछ ज्यादा ही खुशमिजाज औरत है, जिसे हर वक्त कोई ना कोई मर्द चाहिए, जो उसे खुश रख सके.


‘‘मैं जब से यहां आया हूं, उसे हमेशा युवा मर्दों से घिरा देखा है. वह यूज एंड थ्रो में विश्वास रखती है. पहलेपहल जब मुझे भी लगा था कि मैं भी उस के प्रेम में गिरफ्त हूं, यकीन मानो अच्छा लगता था, पर शादी तो हर वक्त संग रखने का बहाना था.


‘‘आज वो जब चाहे मुझे भलाबुरा कह देती है. यदि मैं कुछ भी रोकटोक करूं, तो वो मेरी पीएचडी पूरी न करने की धमकी देती है. साथ ही, बोलती है कि वो जब चाहे मुझे नौकरी से निकलवा सकती है,’’ जेब से रूमाल निकाल कर नाक पोंछते हुए वह एक पल के लिए रुका और गला साफ करते हुए बोला, ‘‘तुम नहीं जानते कि उस के कितने लोगों से संबंध हैं, प्रिंसिपल से भी, तभी शायद उस की इतनी चलती है.


‘‘यद्यपि वो मेरे साथ खुश है, पर मुझे उस के मुताबिक ही जीना होगा. जैसा वो चाहे शायद उसी तरह सब करना होगा. आंखों पर पट्टी बांध कर जीना होगा या ऐसे जाहिर करना होगा कि कोई कुछ नहीं जानता और जो चल रहा है वही ठीक है.’’


सहसा शैलेश का फोन बजा. उस ने कानों पर फोन लगा कर बोला, ‘‘हैलो, कौन? ‘‘मैं… मैं…’’ ‘‘बोलो?’’ ‘‘आप… वो दिनेश मेरा दोस्त है ना? आज ही गांव से आया है. हां… हां… मैं उसी के साथ हूं.’’ ‘‘आप को बताया तो था. क्या भूल गए हो. कोई बात नहीं.’’


‘‘हां, बस थोड़ी देर में पहुंचता हूं,’’ कह कर शैलेश फोन कट करता हुआ इधरउधर देखता है. टेबल पर बैठे सभी एकदूसरे में व्यस्त हैं और इतने व्यस्त कि आसपास उन के क्या चल रहा है, किसी को कोई खबर तक नहीं.पीली रोशनी में खोए ऐसे अभ्यस्त चेहरे, जो रोज किसी न किसी रूप में किसी नए साथी को तलाश ही लेते हैं अपनी शारीरिक जरूरतों की पूर्ति के लिए.


‘‘अच्छा शैलेश, मैं आज रात को ही लौटूंगा,’’ दिनेश ने शैलेश के हाथों को छूते हुए कहा. ‘‘आज ही…’’ शैलेश आश्चर्य से देखते हुए पूछा.. ‘‘हां… हां,’’ दिनेश ने फिर दोहराया. ‘‘नहीं… नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है? आओ, एक बार तो घर चलो.प्रोमिला से तो मिल लो. बस एक मर्तबा.’’


‘‘नहीं…. नहीं दिनेश. एक मर्तबा तो मिल ही लो तुम भी. कम से कम तुम तो…’’ ‘‘ओके शैलेश. पर, मुझे रात को ही निकलना है. और वो भी 10 बजे की ट्रेन से,’’ दिनेश ने जोर देते हुए कहा.


‘‘ओके. मेरे बाप अब चलें,’’ शैलेश दिनेश का हाथ पकड़े हुए चलता है. बैरा बिल के साथ टिप ले कर मुसकराता हुआ लौट जाता है. घर पहुंच कर, ‘‘वाह… क्या घर है शैलेश,’’ दिनेश ने मुसकराते हुए कहा.


एक नौकर दौड़ा हुआ शैलेश के पास पहुंचता है और उस के हाथों से बैग ले लेता है. शैलेश डाइनिंग टेबल पर बैग रख कर वाशबेशिन में हाथ धोते हुए दिनेश को देखता रहा. एक छोटे कद का नौकर तौलिया लिए पास ही खड़ा है, जिसे वो शैलेश के हाथों में थमा देता है.


“नमस्कार! मैम कहूं या भाभी?’’ प्रोमिला सामने दिखती है. दिनेश हाथ जोड़ कर नमस्ते करता हुआ मुसकराने लगता है और हतप्रभ हो कर सारे घर को, नौकरचाकरों को देखता रहता है. ‘‘ओह… तो आप हैं दिनेश? आइए,’’ प्रोमिला ड्राइंगरूम की ओर चलने का निर्देश देती हुई आगे बढ़ती है.


चमकदार घर दूधिया रोशनी से नहाया हुआ दिख रहा है, इतना कि एक सूई भी गिर जाए तो साफ गिरी मिले. घर में लहराते कीमती परदे दीवारों पर नक्काशी देखते १बनी है. जमीं पर चमकदार कालीन किनारों पर सुंदर सजे सुगंधित गमले घर को १महल की सी शक्ल देते थे.


आधुनिक पढ़ीलिखी तेजतर्रार युवती गठा हुआ बदन कंधे पर लहराते बाल सफेद मोतियों से दांत उम्र करीब 40, पर चेहरे पर ताजगी.


‘‘अच्छा बताइए कि क्या लेंगे? जूस, चाय या कौफी?’’ मदभरी आंखों से देखते हुए वो पूछती है. ‘‘नहीं भाभी, कुछ नहीं. मुझे तो बस एकपल आप को देखने की तमन्ना थी. सो देख लिया. रियली, आप बहुत सुंदर हैं. शायद शैलेश ठीक ही कहता था.’’


‘‘अच्छा बोलिए तो क्या कहा है आप को शैलेशजी ने हमारे बारे में.कोई बुराई तो नहीं की ना?’’ एक भौंडी सी मुसकराहट के साथ आंख मारते हुए शैलेश को देखती हुई दिनेश से पूछती है. ‘‘अरे नहीं भाभी. ये तो बहुत तारीफ कर रहा था आप की रियली.’’


‘‘अच्छा…’’ ‘‘मुझे आज ही निकलना है और अब मैं निकलूंगा. फिर मेरी ट्रेन का समय भी तो है रात 10 बजे का,’’ दिनेश घड़ी की सूइयों को देखते हुए बोलता है.


‘‘क्या कहा 10 बजे,’’ प्रोमिला हंसती हुई कहती है, ‘‘शैलेश आप को छोड़ आएंगे. फिर अभी तो 7 ही बजे हैं,’’ साड़ी के पल्लू को उंगली में लपेटते हुए वो कुछ बोलती, तभी जूस का जार थामे एक बुजुर्ग सा नौकर प्रकट हुआ. गिलास में जूस भरते हुए एक पल दिनेश को तो दूसरे पल प्रोमिला की तरफ देखता है.


 ‘‘अरे नहीं बाबा, बस थोड़ा ही,’’ दिनेश बुजुर्ग को बीच में ही टोकता हुआ कहता है.‘‘तुम ने बताया क्यों नहीं कि इन को आज ही लौटना है?’’ प्रोमिला शैलेश को देखते हुए बोलती है.


‘‘मुझे स्वयं को नहीं पता था कि ये आज ही…’’ शैलेश टाई खोलता हुआ बताता है.


शैलेश दिनेश को घर दिखाने लगता है. आओ तो तुम्हें अपना कमरा दिखाऊं. 2-3 मिनट के बाद ही कमरे से बाहर निकलते हुए तेज हंसनेचहकने की आवाजें सुनते हुए बगल वाले कमरे में झांकते हुए देखते हैं कि कमरे में प्रोमिला 2-3 कालेज के लड़कों के साथ कमरे में बैठी हंसहंस कर बातें कर रही है.


शैलेश आंखें मूंदता दिनेश को वहां से आगे ले जा कर कोने में खड़ा हो जाता है. देख लो, मेरे भाई अब आंखों से. यहां मेरे ही सामने ये सब चलता है रोज ही. मुझे ये सब पसंद नहीं, पर इस से किसी को क्या… सोचता हूं, मैं भी गांव चलूं, पर ये मुझे इतना बदनाम कर देगी कि मैं कहीं का नहीं रहूंगा. पर, मैं इस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता… फिर आदमी के पास एक ही तो जिंदगी है, जैसे चाहे जीयो हंस कर या रो कर.


दिनेश मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. नौकरी, पीएचडी आदि से मेरा जो रुतबा है लोगों के बीच ही सही. एकदम से ये खत्म कर देगी. क्या करूं? जो है वह ठीक है या गलत. घर में रह कर ये सब सोचने की शक्ति तो चली गई.


एक पुरानी डायरी दिनेश को दिखाता हुआ पूछता है कि जानते हो इस डायरी को?‘‘हां… हां, कैसे भूल सकता हूं?’’ दिनेश ने जवाब दिया.‘‘अच्छा, रजनी कैसी है?’’ दिनेश की ओर दुखी मन से देखते हुए शैलेश पूछता है.


‘‘उस ने पिछले साल शादी कर ली…’’ शैलेश यह सुन कर ठिठक जाता है.‘‘रजनी शादी होने से पहले तक तुम्हें पूछती रही. कितनी ही बार तुम्हारा पता जानना चाहा, पर जब कुछ न हो सका तो उस के पिता ने पास ही शहर में उस की शादी कर दी. पर अब वो बहुत खुश दिखती है. सच्ची…’’ शैलेश चुप खड़ा सिसकता रहा.


‘‘अच्छा… अब मुझे चलना चाहिए?’’ दिनेश घड़ी देखते हुए बोला.दिनेश गले मिल कर चलने लगता है.‘‘रुक जाओ दोएक रोज,’’ शैलेश ने आग्रह किया.‘‘नहीं, बड़ी बहन आई हुई है. वह बीमार है. यकीन करो कि फिर आऊंगा. जल्दी ही. इस बार तो अचानक ही आना हुआ. पर, अगली बार पक्का,’’ कह कर वह चलने लगता है.


‘‘ठहरो, मैं छोड़ आता हूं,’’ शैलेश बोला.‘‘नहींनहीं, मैं आटोरिकशा से चला जाऊंगा.’’एक बड़े से बैग में कुछ सामान और पैसे, गिफ्ट वगैरह दिनेश को थमाते हुए शैलेश कहता है, ‘‘भइया, ये तुम रख लेना. मेरा तो अब गांव में कोई नहीं. तुम तो जानते ही हो कि वहां न मां है, न बाप, न भाईबहन. कोई है ही नहीं. मैं ही अकेला हूं, जो यहां आ कर यहीं का हो कर रह गया हूं. अब जैसा हूं यहीं रह कर जी सकता हूं. इसे मजबूरी समझो या मेरी नियति. अब इन के साथ ही मेरा जीवन है. यहां से निकलते ही मेरे सारे रास्ते खत्म.’’


पास ही रखे एक्वेरियम में छोटी मछलियां बड़ी मछलियों के भय से ऊपरनीचे, इधरऊधर दौड़ रही हैं. हलकी भीनी रंग की मछलियों के पंख यद्यपि लहरा रहे हैं, पर उन के खुले मुख से निकलती ध्वनि किसी भयानक चीख से कम नहीं लग रही थी. जैसे आजाद पंछी को सोने के पिंजरे में कैद कर लिया हो और उसे जीना है तो यहीं जीना होगा, वरना उस के पंख कतर दिए जाएंगे, जिस से ना उड़ सकेगा और ना शायद जी ही सकेगा.


दिनेश लौट गया. शैलेश दिनेश को छोड़ कर तकरीबन 11 बजे घर लौटा. शांत घर में हंसी की फुलझड़ी सुनाई पड़ रही थी. शैलेश ने प्रोमिला का दरवाजा खोला. वो कालेज के लड़को के साथ अभी तक हंसहंस कर बातें कर रही थी. शैलेश एक पल रुका और अपने कमरे की ओर बढ़ गया.

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