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कहानी: प्रतिदान

पल्लवी की शादी एक सादे समारोह में घरपरिवार वालों की मरजी से हुई थी. पल्लवी के पिता रेलवे में साधारण कर्मचारी थे.

सुबहसुबह दरवाजे की घंटी बजी. वे सोच रहे थे कि इतनी सुबह कौन हो सकता है कि तभी उन के नौकर जेम्स ने आ कर बताया कि एक नौजवान लड़का उन से मिलना चाहता है. अपने गाउन की डोर बांधते हुए वे मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़े. सामने एक सुदर्शन सा युवक खड़ा था. उस के कपड़े और चेहरे का हाल बता रहा था कि वह रातभर सफर कर के आया है. माथे पर बिखरे हुए बालों को हाथ से पीछे हटाते हुए उस ने प्रणाम करने की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए. चेहरे पर असमंजस के भाव लिए उन्होंने उस के नमस्कार का जवाब दिया. युवक ने कहा कि वह अपनी व्यक्तिगत जिंदगी में एक बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है और वही उस की मदद कर सकते हैं. इसलिए वह उन्हें ढूंढ़ते हुए नोएडा से पूरी रात का सफर कर के मध्य प्रदेश के इस छोटे से शहर रतलाम में उन से मिलने आया है और क्योंकि वह इस शहर में किसी को जानता नहीं है इसलिए ट्रेन से उतरने के बाद सीधा उन्हीं के पास चला आया है.


उन्होंने उसे अंदर आने को कहा और जेम्स से चाय लाने के लिए कहा. युवक को सोफे पर आराम से बैठने का इशारा करते हुए वे भी सामने वाले सोफे पर बैठ गए. उन्होंने युवक से अपना परिचय कुछ और विस्तार से देने को कहा. युवक ने अपना नाम कबीर बताते हुए कहा कि वह उन का दामाद है, वह उन की बेटी श्रेया का पति है. दामाद शब्द सुनते ही वे चौंक कर सोफे से उठ कर खड़े हो गए. उन्होंने जेब से रूमाल निकाल कर माथे पर आई पसीने की बूंदें पोंछीं और किसी सोच में खो गए. कबीर के टोकने पर वे अपनी सोच के दायरे से बाहर आए. चाय खत्म कर कबीर से उन्होंने कहा कि वे उस के नहाने का इंतजाम कर के आते हैं और वे जेम्स को जरूरी निर्देश देने के लिए भीतर चले गए. कबीर के नहाने के लिए जाने के बाद वे अपनी अतीत की यादों के भंवर में डूब गए…


उन की और पल्लवी की शादी एक सादे समारोह में घरपरिवार वालों की मरजी से हुई थी. पल्लवी के पिता रेलवे में साधारण कर्मचारी थे एवं परिवार बड़ा होने की वजह से उस की सारी जिंदगी अभावों में गुजरी थी. उन के अपने परिवार में पैसे की तो कोई कमी नहीं थी पर घर में एक विधवा मां और 2 अविवाहित बहनों की जिम्मेदारी थी. पिताजी ठीकठाक पैसा छोड़ कर गए थे और मां व दोनों बहनें नौकरी करती थीं. पिताजी के छोड़े 2 मकान थे जिन में से एक में वे रहते थे और एक किराए पर दे रखा था. अभावों में पली पल्लवी और उस के परिवार की माली हालत को देख कर उन्होंने सोचा कि उन के घर में आने के बाद पल्लवी को जब अपने घर से बेहतर सुखसाधन मिलेंगे तो वह अपने पुराने अभाव भूल जाएगी और उन के परिवार के साथ तालमेल बना कर सुखशांति से चलेगी. बस, यहीं उन से गलती हो गई. पल्लवी के परिवार ने तो कुछ और ही प्लान कर रखा था. इस की एक झलक उन्हें अपने हनीमून के दौरान मिल भी गई थी जब किसी बात पर पल्लवी ने उन से कहा था, ‘अभी शादी के 7 साल तक तो मैं आप की जवाबदारी हूं और अगर मुझे कुछ हो गया तो आप को और आप के परिवार को जेल हो जाएगी.’उन्हें यह बात कुछ अजीब तो लगी पर अपने सरल स्वभाव की वजह से उन्होंने ज्यादा गौर नहीं किया और बात आईगई हो गई.


पल्लवी का तालमेल उन के परिवार में किसी से नहीं बैठा और अपनी हीनभावना की वजह से वह घर में सब से कटीकटी रहने लगी. उन के घर वालों की सामान्य सी छोटीछोटी बातों पर भी वह तूफान खड़ा कर देती. घर में सब से अलग अपने कमरे में ही बंद रहती. प्रकृति ने उसे जिंदगी बदलने का जो सुअवसर प्रदान किया था उस ने तो जैसे उस का लाभ न उठाने की कसम सी खा रखी थी. वह सारा समय अपने परिवार और ससुराल की मन ही मन तुलना करती रहती और अपनी ही कुंठाओं में घिरी रहती. अपने पति की तरक्की की भी तुलना जब वह अपने भाइयों से करती तो भी उसे जलन होती. ऐसे समय में वह यह भी भूल जाती कि उस के पति ने यह नौकरी और तरक्की अपनी मेहनत और बुद्धिमानी से पाई है जबकि उस के दोनों भाई आवारा हैं जो सारा दिन इधरउधर घूमफिर कर समय बरबाद करते हैं.


उन्होंने एकदो बार पल्लवी के भाइयों की कुछ आर्थिक मदद भी की ताकि वे किसी रोजगार में लग जाएं और पल्लवी की कुंठाओं व असुरक्षा की भावना को कुछ विराम लग जाए. पर बिना मेहनत के मिला हुआ पैसा उन की जिंदगी नहीं बदल पाया और थोड़े ही दिनों में उन की आवारागर्दी में उड़ गया. फिर एकदो जगह उन्होंने सिफारिश कर के उन की नौकरी लगवा दी. बड़े को तो शीघ्र ही चोरी के इल्जाम में नौकरी से निकाल दिया गया और छोटा 2 ही महीनों में मेहनत की नौकरी न कर पाने की वजह से खुद ही नौकरी छोड़ कर चला आया.


जिंदगी किसी तरह चल रही थी. पल्लवी का अपने पिता के यहां आनाजाना चलता रहा. उन्होंने नोट किया कि पल्लवी जब भी अपने घर जाती, कोई न कोई जेवर या पर्स खो कर ही लौटती थी. वे यह समझ तो गए कि वे जेवर या पर्स खोए नहीं थे बल्कि पल्लवी जानबूझ कर उन्हें अपने पिता व भाइयों को दे आती थी. घर में आएदिन के क्लेश से परेशान उन्होंने इस बात को भी नजरअंदाज कर देना ही उचित समझा. इसी बीच, उन की जौब बदल जाने की वजह से वे गुड़गांव जा कर जौब करने लगे एवं उन की मां और दोनों बहनें वहीं रतलाम में नौकरी करती रहीं. गुड़गांव में मकानों के बढ़ते किराए को देखते हुए उन्होंने शीघ्र ही रतलाम वाला अपना एक मकान बेच कर गुड़गांव में एक फ्लैट खरीद लिया. पल्लवी की असुरक्षा की भावना को देखते हुए उस मकान की रजिस्ट्री पल्लवी के नाम ही कराई गई. गुड़गांव में रहते हुए इसी फ्लैट में ही उन की बेटी श्रेया का जन्म हुआ. पल्लवी के स्वभाव में श्रेया के जन्म के बाद भी कोई परिवर्तन नहीं आया.


पड़ोसी की पत्नी से पता चला कि पल्लवी तो सुबह 10 बजे ही श्रेया को ले कर कहीं चली गई थी. इस बात पर उन का माथा ठनका और विचारों के इसी भंवर में डूबतेउतराते हुए उन्होंने अपने घर का ताला खोला.

श्रेया के 3 साल की हो जाने के बाद वे किसी अच्छे स्कूल में उस के दाखिले की तैयारी कर रहे थे. कई अलगअलग स्कूलों के बारे में जानकारी लेने के बाद उन्होंने 3 स्कूलों में उस के ऐडमिशन का फौर्म भर दिया. शुरुआती औपचारिकताओं व इंटरव्यू के दौर के बाद रिजल्ट की बारी आई और उन की तमाम मेहनत के फलस्वरूप श्रेया को 2 अच्छे स्कूलों में ऐडमिशन के लिए चुन लिया गया. प्राइवेट स्कूलों की फीस के स्तर को देखते हुए वे उस के ऐडमिशन के लिए पैसों व अन्य इंतजाम में लग गए.


अभी यह जद्दोजहद चल ही रही थी कि एक दिन बाथरूम में फिसल जाने से उन की मां को स्लिप डिस्क की तकलीफ हो गई. उन्हें उन के इलाज की खातिर रतलाम जाना पड़ा और जो पैसा उन्होंने श्रेया के ऐडमिशन के लिए इकट्ठा किया था, उस में से कुछ उन की मां के इलाज पर खर्च हो गया. पल्लवी को यह बात बहुत ही नागवार गुजरी. पल्लवी ने एक दिन उन से कहा कि उस का भाई वाटर फिल्टर प्लांट की एजेंसी लेने के लिए प्लान कर रहा है और जो पैसा उन के पास है, उसे वे उस के भाई को दे दें जिस से कि वह अपना बिजनैस शुरू कर सके. उन के इस तर्क पर कि वह पैसा श्रेया के ऐडमिशन के लिए है, पल्लवी ने कहा कि श्रेया को वे किसी चैरिटी या मिशनरीज स्कूल में डाल दें. पल्लवी के इस सुझाव पर वे अफसोस जताने के अलावा कुछ नहीं कर सके, यहां तक कि गुस्सा भी नहीं कि एक मां हो कर भी उसे अपनी बच्ची के भविष्य के बजाय अपने आवारा भाइयों की चिंता ज्यादा सता रही थी. उन्होंने ऐसा करने के लिए पल्लवी को स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया.


जिस दिन उन्हें श्रेया के ऐडमिशन के लिए उस के स्कूल में फीस जमा कराने के लिए जाना था, उस के एक दिन पहले उन्होंने श्रेया की फीस के पैसे पल्लवी को दे कर उस से बैंक से ड्राफ्ट बनवाने के लिए कहा जिस से कि अगले दिन वे दोनों श्रेया के साथ जा कर उस के ऐडमिशन की औपचारिकताएं पूरी कर सकें. पल्लवी ने कहा कि उस की तबीयत ठीक नहीं पर फिर भी वह कोशिश करेगी. उन्होंने उस से डाक्टर को दिखाने के लिए कहा और आने वाले तूफान से बेखबर रोजाना की तरह औफिस चले गए. दिन में एक बार उन्होंने कोशिश की कि वे फोन कर के पल्लवी के हालचाल पूछ लें पर फोन किसी ने नहीं उठाया. तब भी उन्होंने यही सोचा कि तबीयत ठीक न होने की वजह से पल्लवी शायद सो रही होगी. शाम को नियत समय पर घर आने पर उन्होंने पाया कि घर पर ताला लगा है और ताले के साथ ही एक पर्ची लगी है. पल्लवी की लिखावट में उस पर्ची पर लिखा था कि वह बिजली का बिल जमा कराने के लिए बिजली बोर्ड के कार्यालय जा रही है और चाबी उन के पड़ोसी के पास है. पर्ची पर लिखा संदेश पढ़ कर उन के चेहरे पर परेशानी और आशंका के भाव उभर आए. आशंका का कारण पर्ची पर लिखा संदेश ही था क्योंकि बिजली का बिल तो पिछले महीने ही जमा किया गया था और वह एक महीना छोड़ कर अगले महीने जमा होना था. दूसरे, बिल जमा करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि वह तो सोसायटी एसोसिएशन के कार्यालय में ही जमा होता था. इसी कशमकश में डूबे वे पड़ोसी के घर चाबी लेने के लिए चले गए.


पड़ोसी की पत्नी से पता चला कि पल्लवी तो सुबह 10 बजे ही श्रेया को ले कर कहीं चली गई थी. इस बात पर उन का माथा ठनका और विचारों के इसी भंवर में डूबतेउतराते हुए उन्होंने अपने घर का ताला खोला. घर की अस्तव्यस्त हालत और पल्लवी की खुली हुई अलमारी देख कर एक बार तो ऐसा लगा कि घर में चोरी की कोई वारदात हो गई है. पर फिर भी ध्यान देने पर पता चला कि सिर्फ पल्लवी और श्रेया का सामान ही गायब हुआ है और साथ ही, गायब थीं वे 2 बड़ी अटैचियां जो वे अकसर अपनी विदेश यात्रा के दौरों के समय इस्तेमाल करते थे. खैर, फिर भी मन समझाने की खातिर वे बिजली बोर्ड के कार्यालय पल्लवी के बारे में जानकारी लेने के लिए गए.


रात के उस समय, जैसा कि स्वाभाविक था, वहां कोई नहीं था, कोई चौकीदार भी नहीं. निराशा में भरे वे खालीहाथ वहां से वापस लौट आए. मन में कई तरह के खयाल आजा रहे थे पर कोई छोर नहीं मिल रहा था. इस बीच, उन्होंने कई बार पल्लवी के घर फोन भी लगाया पर वहां से कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला. दिल्ली एनसीआर में रहने वाली पल्लवी की सभी सहेलियों एवं रिश्तेदारों को फोन लगाने पर वहां से भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला. पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने के बाद उन की पूरी रात बड़ी मुश्किल से कटी. अगले दिन उन्हें पता चला कि पल्लवी ने उन के और उन के परिवार वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का एक झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया है. यहां तक कि पल्लवी ने उन के मृत पिता को भी नहीं छोड़ा था, उन का नाम भी पुलिस रिपोर्ट में लिखवा दिया था. उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ. पुलिस आई और उन्हें पकड़ कर ले गई. उन्होंने लाख अपनी सफाई देनी चाही पर इस पूर्वाग्रही समाज में जहां कि लड़की सिर्फ लड़की होने की वजह से निर्दोष है और पुरुष सिर्फ पुरुष होने से ही दोषी मान लिया जाता है, उन की बात जाहिर है किसी ने नहीं सुनी. फिर शुरू हुआ पुलिस स्टेशन और कोर्टकचहरी का एक लंबा सिलसिला. उन की मां तो इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाईं और दुनिया छोड़ गईं. उन की सारी जमापूंजी वकीलों और कोर्ट केसों की भेंट चढ़ गई.


यह देख कर तो वे जैसे आसमान से ही गिर पड़े कि पल्लवी ने कोर्ट में अपनी शिकायत के समर्थन में कुछ पत्र दाखिल किए हैं. इन पत्रों को देखने से प्रतीत होता था कि वे सभी पत्र पल्लवी द्वारा अपने पिता को उन दिनों लिखे गए जब वह उन के साथ रहती थी और उन के द्वारा दहेज के लिए मारपीट किए जाने की बात वह उन पत्रों के माध्यम से अपने मातापिता तक पहुंचा रही थी. सभीकुछ बहुत ही नाटकीय तरीके से एक सोचेसमझे प्लान के अनुसार किया गया लग रहा था पर उन के पास अपने तुरंत बचाव का कोईर् उपाय नहीं था. इस सब के बीच उन की सरकारी नौकरी भी चली गई. इसी बीच उन्होंने पल्लवी से भी कई बार बात करने की कोशिश की पर उस के पिताजी और भाइयों ने उन की बातचीत कभी होने ही नहीं दी. वे आखिर यह जानना चाहते थे कि पल्लवी ये सब क्यों कर रही है. उन से किस बात का बदला ले रही है. बाद में कोर्ट में मौका मिलने पर उन्होंने पल्लवी को समझाने की कोशिश भी की पर उस पर तो महिला कानूनों का नशा चढ़ा हुआ था.


एक बार कोर्ट केसों से मुक्त होने के बाद वे अपने पैतृक शहर रतलाम चले आए और अपनी जिंदगी के बिखरे हुए धागों को समेटने में लग गए..


आखिर उन्होंने हार मान ली और उसे अपनी नियति मान कर वे कोर्ट केसों में लग गए. पल्लवी और उस के परिवार ने उन पर झूठे सबूतों के सहारे चोरी, मारपीट और अपहरण के 6 मुकदमे दर्ज करा दिए. पल्लवी और उस के परिवार वालों ने उन्हें अपनी बेटी श्रेया से मिलने और बात करने से भी मना कर दिया. उन्हें उम्मीद थी कि बेटी के मोह में वे जरूर टूट जाएंगे और उन की शर्तें मान लेंगे. खैर, शुरू में अंतहीन से लगने वाले इस सिलसिले से उन्हें अपनी सचाई के बल पर जल्दी ही मुक्ति मिल गई पर इस में उन की जिंदगी के बेहतरीन 8 साल गुजर गए. पल्लवी ने अपने परिवार के कहने पर महिला कानूनों की आड़ में उन का मकान एवं रुपयापैसा आदि सब ले लिया.


एक बार कोर्ट केसों से मुक्त होने के बाद वे अपने पैतृक शहर रतलाम चले आए और अपनी जिंदगी के बिखरे हुए धागों को समेटने में लग गए. यहीं एक छोटा सा व्यवसाय शुरू कर लिया और अपनी बहनों के साथ जिंदगी के दिन गुजारने लगे. इस बीच, कभीकभी वे अपनी बेटी श्रेया को जरूर मिस करते पर फिर उन्होंने आदत डाल ली. कभीकभी उन्हें पल्लवी पर काफी गुस्सा भी आता कि उस ने अपने स्वार्थ के चक्कर में उन की और श्रेया की जिंदगी खराब कर दी. फिर भी उन्हें लगता था कि श्रेया की भलाई के लिए उसे तब तक पल्लवी की सचाई के बारे में कुछ न बताया जाए जब तक कि वह इन सब बातों को समझने लायक न हो जाए. सो, उन्होंने इस बारे में चुप्पी ही साधे रखी और श्रेया के बड़ी होने के बाद कभी इस बारे में बात करने का मौका ही नहीं मिला.


अचानक जेम्स की पुकार से उन की तंद्रा भंग हुई. वह नाश्ता करने के लिए आवाज लगा रहा था. कबीर भी इस बीच नहा कर आ चुका था और चेहरे पर आई ताजगी से उस का रूप और भी अच्छा लग रहा था. नाश्ते के बाद दोपहर के खाने के लिए जेम्स को आवश्यक निर्देश देने के बाद वे कबीर को साथ ले कर स्टडीरूम में चले गए. जेम्स अपने काम में लग गया. उसे पता था कि उन के स्टडी में जाने का मतलब है कि उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए. स्टडीरूम में अपनी कुरसी पर बैठते हुए उन्होंने कबीर को सामने वाले सोफे पर बैठने का इशारा किया और अपनी समस्या बताने को कहा. कबीर ने जो बताया उस का सार यह था कि वह और श्रेया एक ही कंपनी में सर्विस करते थे और उसी वजह से नजदीकियां बढ़ने पर दोनों ने श्रेया की मां की अनुमति से शादी कर ली. उसे श्रेया और पल्लवी ने यही बताया कि ज्यादा दहेज के लालच में उन्होंने पल्लवी और श्रेया को बेसहारा छोड़ कर दूसरी शादी कर ली थी. वह भी हमेशा यही सोचता रहा कि वे कैसे निर्दयी और लालची प्रवृत्ति के इंसान होंगे जिन्होंने अपनी पत्नी और मासूम बच्ची को सिर्फ पैसों के लिए छोड़ दिया.


श्रेया की मां भी शादी के बाद से उन के साथ ही रहने लगीं. कबीर के स्वयं के मातापिता चंडीगढ़ में रहते हैं, पैतृक मकान है और स्वयं का निजी व्यवसाय करते हैं. उन्होंने ये सब सुन कर कहा कि सभी बातें तो ठीक लग रही हैं, फिर समस्या क्या है?


कबीर ने कहना आरंभ किया कि श्रेया और उस की मां पल्लवी पिछले काफी समय से उस पर दबाव डाल रही थीं कि वह अपने पिता से उन की जायदाद और व्यवसाय में अपना हिस्सा मांगे और वहीं नोएडा में ही कोईर् फ्लैट खरीदे. लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था क्योंकि उसी व्यवसाय के बल पर उस के पिता उस के दोनों छोटे भाईबहनों और परिवार को पाल रहे हैं. उस ने कईर् बार श्रेया को समझाने की कोशिश की कि हम दोनों लोग अच्छा कमाते हैं और अभी तो हमारी उम्र भी ज्यादा नहीं हुई है और जल्दी ही हम अपने ही पैसों से कोई अच्छा सा मकान खरीद लेंगे. श्रेया की समस्या यह है कि उस की मां यानी पल्लवी ने उस को अपने ऊपर हुए अत्याचार और श्रेया के लिए उस के संघर्ष व त्याग की कहानी सुना कर उसे इस कदर अपने प्रभाव में ले रखा है कि वह पल्लवी की बात के आगे फिर कोई बात नहीं सुनती है.


पिछले दिनों बात ज्यादा बढ़ने पर श्रेया घर छोड़ कर अपनी मां के साथ उन के गुड़गांव वाले फ्लैट में रहने लगी है. औफिस में भी उस से बात नहीं करती है. श्रेया के इस समय गर्भवती होने से इस तनाव का असर आने वाले बच्चे पर भी पड़ेगा, इस बात को समझाने पर भी उस पर कोई असर नहीं हुआ है, बल्कि इस परिस्थिति का फायदा उठा कर वह और ज्यादा जिद करने लगी है और उसे भावनात्मक दबाव में लेने लगी है. लिहाजा, होने वाले बच्चे की खातिर श्रेया की जिद के आगे उसे झुकना ही पड़ता है. इस सब काम में श्रेया की मां पूरी तरह उस का साथ ही नहीं देतीं, बल्कि उसे उकसाती भी रहती हैं. पिछले हफ्ते श्रेया ने उस को और अधिक दबाव में लेने की खातिर एक वकील के द्वारा तलाक का नोटिस भी भिजवा दिया. इतना ही नहीं, श्रेया ने उस के  और उस के परिवार के खिलाफ भी दहेज प्रताड़ना का झूठा मुकदमा लिखवा दिया है जिस में उसे और उस के परिवार को जमानत करानी पड़ी है. ये सभी परिस्थितियां उस की बर्दाश्त से बाहर हो गई हैं और तंग आ कर उस ने भी तलाक लेने का मन बना लिया है. इसी सिलसिले में बातचीत करने के लिए जब वह उन के गुड़गांव वाले फ्लैट पर गया तभी उस की मुलाकात वहीं रहने वाले अतुल माथुर से हुई.


माथुर साहब से उसे उन के बारे में पूरी सचाई पता चली और उन का पता भी मिला. कबीर ने माथुर साहब से सचाई जानने के बाद उन के बारे में उस के मस्तिष्क में जो उन की बुरे आदमी की पुरानी छवि थी उस के लिए माफी भी मांगी. उन्होंने ही उसे समझाया कि इस में उस की कोईर् गलती नहीं है और उस ने जो भी कुछ विचारधारा उन के बारे में बनाई, वह सुनीसुनाई बातों के आधार पर बनाई. उन्होंने आखिर में कबीर से पूछा कि वह क्या चाहता है और उन से क्या अपेक्षा है? इस के जवाब में कबीर ने कहा कि वह श्रेया और अपने होने वाले बच्चे के साथ ही रहना चाहता है. वह अपनी शादीशुदा गृहस्थी नहीं बिगाड़ना चाहता है और इस समस्या से निकलने के लिए उसे उन की मदद चाहिए. यह सब सुन कर वे एक गहरी सोच में डूब गए. एक पल को तो ऐसा लगा कि उन की अपनी जिंदगी का ही फ्लैशबैक चल रहा है. उन्होंने कबीर से कहा कि वह खाना खा कर आराम करे, उन्हें सोचने के लिए वक्त चाहिए. इतना कह कर वे जेम्स से खाना लगाने के लिए कहने चले गए.


खाना खा कर कबीर तो गेस्टरूम में सोने चला गया और वे फिर अपने स्टडीरूम में आ बैठे. यादों की परतें खुलती चली गईं और वे उन में खोते चले गए. जब चेतना लौटी तो मन में एक निश्चय था कि पल्लवी और उस के झूठे मुकदमों ने उन का जीवन तो खराब कर ही दिया है पर अब वे इस कहानी की पुनरावृत्ति नहीं होने देंगे. उन्हें लगा कि पल्लवी की जो सचाई उन्होंने आज तक श्रेया को सिर्फ इसलिए नहीं बताई क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उन की बेटी की नजर में अपनी मां की जो महान छवि बनी है, उसे कहीं ठेस पहुंचे या श्रेया का अपना मन आहत हो. उन्हें हमेशा लगता था कि ऐसा करने से उन की बेटी के दिल को चोट पहुंचेगी पर अब और नहीं. अपनी बेटी की जिंदगी खराब होते देख कर तो वे बिलकुल शांत नहीं रहेंगे. अगर अब भी वे पल्लवी की ज्यादतियों को चुपचाप सहन करते रहे और अब भी कुछ नहीं बोले तो वे स्वयं को कभी माफ नहीं कर पाएंगे. अब तो उन्हें अपनी बेटी श्रेया की भलाई के लिए पल्लवी को यह प्रतिदान देना ही होगा. यह निर्णय करने के बाद वे कबीर के साथ गुड़गांव जाने की तैयारी करने लगे.

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