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कहानी: एक और बेटे की मां

कोरोना से हुई मांबाप की मौत की खबर क्या एकलौते बेटे किशोर को पता चल पाई? आखिर किशोर का क्या हुआ?

मुन्ने के मासूम सवाल पर जैसे वह जड़ हो गई. क्या जवाब दे वह…? सामने वाले फ्लैट में ही राजेशजी  अपनी पत्नी रूपा और मुन्ना के साथ रहते हैं. इस समय दोनों ही पतिपत्नी कोरोना पौजिटिव हो अस्पताल में भरती हैं. उन का एकलौता बेटा किशोर अपनी आया के साथ था.


आज वह आया भी वहां से काम छोड़ कर अपने घर भाग गई कि यहां जरूर कोई साया है, जो इस घर को बीमार कर जाता है. उस ने उसे कितना समझाया कि ऐसी कोई बात नहीं. और उसे उस छोटे बच्चे का वास्ता भी दिया कि वह अकेले कैसे रहेगा? मगर, वह नहीं मानी और चली गई. दोपहर में वही उसे खाना पहुंचा गई और तमाम सावधानियां बरतने की सलाह दे डाली. मगर 6 साल का बच्चा आखिर क्या समझा होगा. आखिर वह मुन्ना से सालभर का छोटा ही है.


“मगर, मुन्ने का सवाल अपनी जगह था. कुछ सोचते हुए वह बोली, “अरे, ऐसा कुछ नहीं है. उस के मम्मीपापा दोनों ही बाहर नौकरी करने वाले ठहरे. शुरू से उस की अकेले रहने की आदत है. तुम्हारी तरह डरपोक थोड़े ही है.”“जब किसी के मम्मीपापा नहीं होंगे, तो कोई भी डरेगा मम्मी,” वह बोल रहा था, “आया भी चली गई. अब वह क्या करेगा?”


“अब ज्यादा सवालजवाब मत करो. मैं उसे खानानाश्ता दे दूंगी. और क्या कर सकती हूं. बहुत हुआ तो उस से फोन पर बात कर लेना.”“उसे उस की मम्मी हौर्लिक्स देती थीं. और उसे कौर्न फ्लैक्स बहुत पसंद है.”


“ठीक है, वह भी उसे दे दूंगी. मगर अभी सवाल पूछपूछ कर मुझे तंग मत करो. और श्वेता को देखो कि वह क्या कर रही है.” “वह अपने खिलौनों की बास्केट खोले पापा के पास बैठी खेल रही है.”


“ठीक है, तो तुम भी वहीं जाओ और उस के साथ खेलो. मुझे किचन में बहुत काम है. कामवाली भी नहीं आ रही है.” “मगर, मुझे खेलने का मन नहीं करता. और पापा टीवी खोलने नहीं देते.”


“ठीक ही तो करते हैं. टीवी में केवल कोरोना के डरावने समाचार आते हैं. फिर वह कंप्यूटर पर बैठे अपने औफिस का काम कर रहे होंगे,” उस ने उसे टालने की गरज से कहा, “ तब मैं ने जो पत्रिकाएं और किताबें ला कर दी हैं, उन्हें पढ़ो.”


किचन का सारा काम समेट वह कमरे में जा कर लेट गई, तो उस के सामने किशोर का चेहरा उभर कर आ गया. ओह, इतना छोटा बच्चा… कैसे अकेले रहता होगा…? उस के सामने राजेशजी और उन की पत्नी रूपा का अक्स आने लगा था.


पहले राजेशजी ही एक सप्ताह पहले अस्पताल में भरती हुए थे. और 3 दिन पहले उन की पत्नी रूपा भी अस्पताल में भरती हो गई. अब सुनने में आया है कि वह आईसीयू में है और उसे औक्सीजन दिया जा रहा है. अगर उस के साथ ऐसा होता, तो मुन्ना और श्वेता का क्या होता. भगवान करे कि वह जल्दी घर लौट आए और अपने बच्चे को देखे. ये राजेशजी अपने किसी रिश्तेदार को बुला लेते या किसी के यहां किशोर को भेज देते, तो कितना ठीक रहता. मगर अभी के दौर में रखेगा भी कौन? सभी तो इस छूत की बीमारी कोरोना के नाम से ही दूर भागते हैं.


वैसे, राजेशजी भी कम नहीं हैं. उन्हें इस बात का अहंकार है कि वह एक संस्थान में उपनिदेशक हैं. पैसे और रसूख वाले हैं. रूपा भी बैंककर्मी  है, तो पैसों की क्या कमी. मगर, इन के पीछे बच्चे का क्या हाल होगा, शायद ये भी उन्हें सोचना चाहिए था. उन के रूखे व्यवहार के कारण ही नीरज भी उन के प्रति तटस्थ ही रहते हैं. किसी एक का अहंकार दूसरे को सहज भी तो नहीं रहने देता. रूपा भी एक तो अपनी व्यस्तता के चलते, दूसरे अपने पति की सोच की वजह से भी किसी से कोई खास मतलब नहीं रखती. वह तो उन का बेटा, उसी विद्यालय में पढ़ता है, जिस में मुन्ना पढ़ता है. फिर एक ही अपार्टमेंट में आमनेसामने रहने की वजह से वह मिलतेजुलते भी रहते हैं. इसलिए मुन्ना जरूरत से ज्यादा संवेदनशील हो सोच रहा है. सोच तो वह भी रही है. मगर इस कोरोना की वजह से वह उस घर में चाह कर भी नहीं जा पाती. और न ही उसे बुला पाती है.


शाम को उस के घर की घंटी बजी, तो उस ने घर का दरवाजा खोला. उस के सामने हाथ में मोबाइल फोन लिए बदहवास सा किशोर खड़ा था. वह बोला, “आंटी, अस्पताल से फोन आया था,” घबराए स्वर में किशोर बोलने लगा, “उधर से कोई कुछ कह रहा था. मैं कुछ समझा नहीं. बाद में कोई पूछ रहा था कि घर में कोई बड़ा नहीं है क्या?”


वह असमंजस में पड़ गई. बच्चे को घर के अंदर बुलाए कि नहीं. जिस के मांबाप दोनों ही संक्रमित हों, उस के साथ क्या व्यवहार करना चाहिए. फिर भी ममता ने जोर मारा. उस में उसे अपने मुन्ने का अक्स दिखाई दिया, तो उसे घर के अंदर कर बिठाया. और उस से मोबाइल फोन ले काल बैक किया. मगर वह रिंग हो कर रह जा रहा था. तब तक मुन्ना और नीरज ड्राइंगरूम में आ गए थे. मुन्ना उछल कर उस के पास चला गया. वह अभी कुछ कहती कि नीरज बोले, “बच्चा है, उसे कुछ हुआ नहीं  है. उस का भी आरटीपीसीआर हुआ था. कुछ नहीं निकला है.”


वह थोड़ी आश्वस्त हुई. उधर मुन्ना बातें करते हुए किशोर के साथ दूसरी ओर चला गया था कि मोबाइल फोन की घंटी बजी.  फोन अस्पताल से ही था. उस ने फोन उठा कर ‘हलो’ किया, तो उधर से आवाज आई, “आप राकेशजी के घर से बोल रही हैं?”


“नहीं, मैं उन के पड़ोस से बोल रही हूं,” वह बोली, “सब ठीक है न?” “सौरी मैम, हम मिसेज रूपा को बचा नहीं सके. एक घंटा पहले ही उन की डेथ हो गई. आप उन की डैड बौडी लेने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने यहां आ जाएं,” यह सुन कर उस का पैर थरथरा सा गया. यह वह क्या सुन रही है…


नीरज ने आ कर उसे संभाला और उस के हाथ से फोन ले कर बातें करने लगा था, “कहिए, क्या बात है?” “अब कहना क्या है?” उधर से पुनः वही आवाज आई, “अब डेड बौडी लेने की औपचारिकता रह गई है. आप आ कर उसे पूरा कर दीजिए.”


“सौरी, हम इस संबंध में कुछ नहीं जानते,” नीरज बोल रहे थे, “मिसेज रूपा के पति राकेशजी आप ही के अस्पताल में कोरोना वार्ड में एडमिट हैं. उन से संपर्क कीजिए.”


इतना कह कर उन्होंने फोन काट कर प्रश्नवाचक दृष्टि से शोभा को देखा. शोभा को जैसे काठ मार गया था. बड़ी मुश्किल से उस ने खुद को संभाला, तो नीरज बोले, “एक नंबर का अहंकारी है राकेश. ऐसे आदमी की मदद क्या करना. कल को कहीं यह न कह दे कि आप को क्या जरूरत थी कुछ करने की. वैसे भी इस कोरोना महामारी के बीच बाहर कौन निकलता है. वह भी उस अस्पताल में जाना, जहां वैसे पेशेंट भरे पड़े हों.”


तब तक किशोर उन के पास चला आया और पूछने लगा, “मम्मीपापा लौट के आ रहे हैं न अंकल?” इस नन्हे, अबोध बच्चे को कोई जवाब दे? यह विकट संकट की घड़ी थी. उसे टालने के लिए वह बोली, “अभी मैं तुम लोगों को कुछ खाने के लिए निकालती हूं. पहले कुछ खा लो.”


“मुझे भूख नहीं है आंटी. मुझे कुछ नहीं खाना.” “कैसे नहीं खाना,” नीरज द्रवित से होते हुए बोले, “मुन्ना और श्वेता के साथ तुम भी कुछ खा लो.” फिर वह शोभा से बोले, “तुम किचन में जाओ. तब तक मैं कुछ सोचता हूं.”


वह जल्दी में दूध में कौर्न फ्लैक्स डाल कर ले आई और तीनों बच्चों को खाने को दिया. फिर वह किशोर से मुखातिब होते हुए बोली, “तुम्हारे नानानानी या मामामौसी होंगे न. उन का फोन नंबर दो. मैं उन से बात करती हूं.”


“मेरी मम्मी का कोई नहीं है. वे एकलौती थीं. मैं ने तो नानानानी को देखा भी नहीं.” “कोई बात नहीं… तो फिर दादादादी, चाचाचाची तो होंगे,” नीरज उसे पुचकारते हुए बोले, “उन का ही फोन नंबर बताओ.”


“दादादादी का भी देहांत हो गया है. एक चाचा  हैं. लेकिन, वे अमेरिका में रहते हैं. कभीकभी पापा उन से बात करते थे.” “तो उन का नंबर निकालो,” वह शीघ्रता से बोली, “हम उन से बात करते हैं.” किशोर ने मोबाइल फोन में वह नंबर ढूंढ़ कर निकाला. नीरज ने पहले उसी फोन से उन्हें डायल किया, तो फोन रिंग ही नहीं हुआ.


“यह आईएसडी नंबर है. फोन कहां से  होगा,” कह कर वह झुंझलाए, फिर उस नंबर को अपने मोबाइल में नोट कर फोन लगाया. कई प्रयासों के बाद वह फोन लगा, तो उस ने अपना परिचय दिया, “आप राजेशजी हैं न, राकेशजी के भाई. मैं उन का पड़ोसी नीरज बोल रहा हूं. आप के भाई और भाभी दोनों ही कोरोना पौजिटिव हैं और अस्पताल में भरती हैं.”


“तो मैं क्या करूं?” उधर से आवाज आई. “अरे, आप को जानकारी दे रहा हूं. आप उन के रिश्तेदार हैं. उन का बच्चा एक सप्ताह से फ्लैट में अकेला ही रह रहा है.”


“कहा न कि फिर मैं क्या करूं,” उधर से झल्लाहट भरी आवाज आई, “उन लोगों ने अपने मन की करी, तो खुद भुगतें. अस्पताल में ही भरती  हैं ना. ठीक हो कर वापस लौट आएंगे.”


नीरज ने शोभा को इशारा किया, तो वह उन का इशारा समझ बच्चों को अपने कमरे में ले गई. तो वह फोन पर उन से धीरे से बोले, “आप की भाभी की डेथ हो गई है.” “तो मैं क्या कर सकता हूं? मैं अमेरिका में हूं. यहां भी हजार परेशानी हैं. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता.”


“अरे, कुछ कर नहीं सकते, ना सही. मगर बच्चे को फोन पर तसल्ली तो दे लो,” मगर तब तक उधर से कनेक्शन कट चुका था.“यह तो अपने भाई से भी बढ़ कर खड़ूस निकला,” नीरज बड़बड़ाए और उस की ओर देखते हुए फोन रख दिया. तब तक किशोर आ गया था, “आंटी, मैं अपने घर नहीं जाऊंगा. मुझे मेरी मम्मी के पास पहुंचा दो. वहीं मुझे जाना है.”


“तुम्हारी मम्मी अस्पताल में भरती हैं और वहां कोई नहीं जा सकता.” “तो मैं आप ही के पास रहूंगा.” “ठीक है, रह लेना,” वह उसे पुचकारती हुई बोली, “मैं तुम्हें कहां भेज रही हूं. तुम खाना खा कर मुन्ने के कमरे में सो जाना.”


बच्चों के कमरे में उस ने एक फोल्डिंग बिछा उस पर बिस्तर लगा कर उसे सुला कर वह किचन में आ गई. ढेर सारे काम पड़े थे. उन्हें निबटाते रात 11 बज गए थे. अचानक उस बेसुध सो रहे बच्चे किशोर के पास का मोबाइल घनघनाया, तो उस ने दौड़ कर फोन उठाया. उधर अस्पताल से ही फोन था. कोई रुचिका नामक नर्स उस से पूछ रही थी, “मिस्टर राकेश ने किन्हीं मिस्टर नीरज का नाम बताया है. वह घर पर हैं?”


“वह मेरे पति हैं. मगर मेरे पति क्या कर लेंगे?” “मिस्टर राकेश बोले हैं कि वे कल उन के कार्यालय में जा कर उन से मिल लें और रुपए ले आएं.”“मैं कहीं नहीं जाने वाला,” नीरज भड़क कर बोले, “जानपहचान है नहीं और मैं कहांकहां भटकता फिरूंगा. बच्चे का मुंह क्या देख लिया, सभी हमारे पीछे पड़ गए. इस समय हाल ये है कि लौकडाउन है और बाहर पुलिस डंडे बरसा रही है. और इस समय कोई स्वस्थ आदमी भी अस्पताल जाएगा, तो वह कोरोनाग्रस्त हो जाए.”


वह एकदम उलझन में पड़ गई. ऐसी विषम स्थिति थी. और उन की बात भी सही थी. “अब जो होगा, कल ही सोचेंगे,” कहते हुए उस ने बत्ती बुझा दी.


सुबह किशोर जल्द ही जग गया था. उस ने किशोर से पूछा, “तुम अपने पापा के औफिस में उन के किन्हीं दोस्त को जानते हो?”“हां, वो विनोद अंकल हैं ना… उन का फोन नंबर भी है. एकदो बार उन का फोन भी आया था. मगर अभी किसलिए पूछ रही हैं?”


“ऐसा है किशोर बेटे कि तुम्हारी मम्मी के इलाज और औपरेशन के लिए अस्पताल में ज्यादा पैसों की जरूरत आ पड़ी है. और तुम्हारे पापा ने इस के लिए उन के औफिस में बात करने को कहा है.”


“हां… हां, वो डायरैक्टर हैं ना, वो जरूर पैसा दे देंगे,” इतना कह कर वह मोबाइल में उन का नंबर ढूंढ़ने लगा. फिर खोज कर बोला, “ये रहा उन का मोबाइल नंबर.” उस ने उन्हें फोन कर धीमे स्वर में सारी जानकारी दे दी.


“ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. वैसे, मैं एक आदमी के द्वारा आप के पास रुपए भिजवाता हूं.”


“मगर, हम रुपयों का क्या करेंगे?” वह बोली, “अब तो बस मिट्टी को राख में बदलना है. आप ही उस का इंतजाम कर दें. मिस्टर राकेश अस्पताल में भरती हैं. और उन का बेटा अभी बहुत छोटा  है, मासूम है. उसे तो भेजना तो दूर, यह खबर बता भी नहीं सकती. अभी तो बात यह है कि डेड बौडी को श्मसान पर कैसे ले जाया जाएगा. संक्रामक रोग होने के कारण मेरे पति ने कहीं जाने से साफ मना कर दिया है.”


“बिलकुल ठीक किया. मैं भी नहीं जाने वाला. कौन बैठेबिठाए मुसीबत मोल लेगा. मैं देखता हूं, शायद कोई स्वयंसेवी संस्था ये काम संपन्न कर दे.”


लगभग 12 बजे दिन में एक आदमी शोभा के घर आया और उन्हें 10,000 रुपए देते हुए बोला, “विनोद साहब ने भिजवाया है. शायद बच्चे की परवरिश में इस की आप को जरूरत पड़ सकती है. राकेश साहब कब घर लौटें, पता नहीं. उन्होंने एक एजेंसी के माध्यम से डेड बौडी की अंत्येष्टि करा दी है.”


“लेकिन, हम पैसे ले कर क्या करेंगे? हमारे पास इतना पैसा है कि एक बच्चे को खिलापिला सकें.”


“रख लीजिए मैडम. समयसंयोग कोई नहीं जानता,” वह बोला, “कब पैसे की जरूरत आ पड़े, कौन जानता है. फिर उन के पास है, तभी तो दे रहे हैं.”


“ओह, बेचारा बच्चा अपनी मां का अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया. ये प्रकृति का कैसा खेल  है.”


“अच्छा है मैडम, कोरोना संक्रमित से जितनी दूर रहा जाए, उतना ही अच्छा. जाने वाला तो चला गया, मगर, जो हैं, वे तो बचे रहें.”


किशोर दोनों बच्चों के साथ हिलमिल गया था. मुन्ना उस के साथ कभी मोबाइल देखता, तो कभी लूडो या कैरम खेलता. 3 साल की श्वेता उस के पीछेपीछे डोलती फिरती थी. और किशोर भी उस का खयाल रखता था. उसे कभीकभी किशोर पर तरस भी आता कि देखतेदेखते उस की दुनिया उजड़ गई. बिन मां के बच्चे की हालत क्या होती है, यह वह अनेक जगह देख चुकी है.


रात 10 बजे जब वह सभी को खिलापिला कर निश्चिंत हो सोने की तैयारी कर रही थी कि अस्पताल से पुनः फोन आया, तो पूरे उत्साह के साथ मोबाइल उठा कर किशोर बोला, “हां भाई, बोलो. मेरी मम्मी कैसी हैं? कब आ रही हैं वे?”


“घर में कोई बड़ा है, तो उस को फोन दो,” उधर से आवाज आई, “उन से जरूरी बात करनी है.”


किशोर अनमने भाव से फोन ले कर नीरज के पास गया और बोला, “अंकल, आप का फोन है.”


“कहिए, क्या बात है?” वह बोले, “राकेशजी कैसे हैं?”


“ही इज नो मोर. उन की आधेक घंटे पहले डेथ हो चुकी है. मुझे आप को इन्फोर्मेशन देने को कहा गया, सो फोन कर रही हूं.”


आगे की बात नीरज से सुनी नहीं गई और फोन रख दिया. फोन रख कर वह किचन की ओर बढ़ गए. वह किचन से हाथ पोंछते हुए बाहर निकल ही रही थी कि उस ने मुंह लटकाए नीरजजी को देखा, तो घबरा गई.


“क्या हुआ, जो घबराए हुए हो?” हाथ पोंछते हुए उस ने पूछा, “फिर कोई बात…”


“बेडरूम में चलो, वहीं बताता हूं,” कहते हुए वह बेडरूम में चले गए. वह उन के पीछे बेडरूम में आई, तो वह बोले, “बहुत बुरी खबर है. मिस्टर राकेश की भी डेथ हो गई.”


“क्या…?” वह अवाक हो कर बोली, “उस नन्हे बच्चे पर ये कैसी विपदा आ पड़ी है. अब हम क्या करें…?”


“करना क्या है…? ऐसी घड़ी में कोई कुछ चाह कर भी नहीं कर सकता,” इतना कह कर वह विनोदजी को फोन लगाने लगे.


“हां, कहिए, क्या हाल है,” विनोदजी बोले, “बच्चा परेशान तो नहीं कर रहा?”


“बच्चे को तो हम बाद में देखेंगे ही, बल्कि देख ही रहे हैं,” वह उदास स्वर में बोले, “अभीअभी अस्पताल से खबर आई है कि मिस्टर राकेश भी चल बसे.”


“ओ माय गौड… यह क्या हो रहा है?”


“अब जो हो रहा है, वो हम भुगत ही रहे हैं. उन की डेड बौडी को आप एजेंसी के माध्यम से अंत्येष्टि करा ही देंगे. सवाल यह है कि इस बच्चे का क्या होगा?”


“ये बहुत बड़ा सवाल है सर. फिलहाल तो वह बच्चा आप के घर में सुरक्षित माहौल में रह रहा है, यह बहुत बड़ी बात है.”


“सवाल यह है कि कब तक ऐसा चलेगा? सवाल ये है कि बच्चा जब जानेगा कि उस के मांबाप इस दुनिया में नहीं हैं, तो उस की कैसी प्रतिक्रिया होगी.


“अभी तो हमारे पास वह बच्चों के साथ है, तो अपना दुख भूले बैठा है. मैं उसे रख भी लूं, तो वह रहने को तैयार होगा? मेरी पत्नी को  भी उसे अपने साथ रखने में परेशानी नहीं होगी, बल्कि मैं उस के मनोभावों को समझते हुए ही यह निर्णय ले पा रहा हूं.


“मान लीजिए कि मेरे साथ ही कुछ ऐसी घटना घटी होती, तो मैं क्या करता. मेरे बच्चे कहां जाते. ऊपर वाले ने मुझे इस लायक समझा कि मैं एक बच्चे की परवरिश करूं, तो यही सही. यह मेरे लिए चुनौती समान है. और यह चुनौती मुझ को स्वीकार है.”


“धन्यवाद मिस्टर नीरजजी, आप ने मेरे मन का बोझ हलका कर दिया. लौकडाउन खत्म होने दीजिए, तो मैं आप के पास आऊंगा और बच्चे को राजी करना मेरी जिम्मेदारी होगी.


“मैं उसे बताऊंगा कि अब उस के मातापिता नहीं रहे. और आप लोग उस के अभिभावक हैं. उस की परवरिश और पढ़ाईलिखाई के खर्चों की चिंता नहीं करेंगे. यह हम सभी की जिम्मेदारी होगी, ताकि किसी पर बोझ न पड़े और वह बच्चा एक  जिम्मेदार नागरिक बने.”


नीरज की बातों से शोभा को परम शांति मिल रही थी. उसे लग रहा था कि उस का तनाव घटता जा रहा है. और वह एक और बेटे की मां बन गई है.


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