कहानी: राज
‘निखिल को अपनी मुट्ठी में रखना’, ‘पति पर लगाम कस कर रखना’, सास की इन बातों पर रचना मुसकराभर देती थी. आखिर क्या था उस की मुसकराहट व निश्चिंतता का राज?
संयुक्त परिवार की छोटी बहू बने हुए रचना को एक महीना ही हुआ था कि उस ने घर के माहौल में अजीब सा तनाव महसूस किया. कुछ दिन तो विवाह की रस्मों व हनीमून में हंसीखुशी बीत गए पर अब नियमित दिनचर्या शुरू हो गई थी. निखिल औफिस जाने लगा था. सासूमां राधिका, ससुर उमेश, जेठ अनिल, जेठानी रेखा और उन की बेटी मानसी का पूरा रुटीन अब रचना को समझ आ गया था. अनिल घर पर ही रहते थे. रचना को बताया गया था कि वे क्रौनिक डिप्रैशन के मरीज हैं. इस के चलते वे कहीं कुछ काम कर ही नहीं पाते थे. उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जा सकता था. यह बीमारी उन्हें कहां, कब और कैसे लगी, किसी को नहीं पता था.वे घंटों चुपचाप अपने कमरे में अकेले लेटे रहते थे.
जेठानी रेखा के लिए रचना के दिल में बहुत सम्मान व स्नेह था. दोनों का आपसी प्यार बहनों की तरह हो गया था. सासूमां का व्यवहार रेखा के साथ बहुत रुखासूखा था. वे हर वक्त रेखा को कुछ न कुछ बुराभला कहती रहती थीं. रेखा चुपचाप सब सुनती रहती थी. रचना को यह बहुत नागवार गुजरता. बाकी कसर सासूमां की छोटी बहन सीता आ कर पूरा कर देती थी. रचना हैरान रह गई थी जब एक दिन सीता मौसी ने उस के कान में कहा, ‘‘निखिल को अपनी मुट्ठी में रखना. इस रेखा ने तो उसे हमेशा अपने जाल में ही फंसा कर रखा है. कोई काम उस का भाभी के बिना पूरा नहीं होता. तुम मुझे सीधी लग रही हो पर अब जरा अपने पति पर लगाम कस कर रखना. हम ने अपने पंडितजी से कई बार कहा कि रेखा के चक्कर से बचाने के लिए कुछ मंतर पढ़ दें पर निखिल माना ही नहीं. पूजा पर बैठने से साफ मना कर देता है.’’ रचना को हंसी आ गई थी, ‘‘मौसी, पति हैं मेरे, कोई घोड़ा नहीं जिस पर लगाम कसनी पड़े और इस मामले में पंडित की क्या जरूरत थी?’’
इस बात पर तो वहां बैठी सासूमां को भी हंसी आ गई थी, पर उन्होंने भी बहन की हां में हां मिलाई थी, ‘‘सीता ठीक कह रही है. बहुत नाच लिया निखिल अपनी भाभी के इशारों पर, अब तुम उस का ध्यान रेखा से हटाना.’’ रचना हैरान सी दोनों बहनों का मुंह देखती रही थी. एक मां ही अपनी बड़ी बहू और छोटे बेटे के रिश्ते के बारे में गलत बातें कर रही है, वह भी घर में आई नईनवेली बहू से. फिर वह अचानक हंस दी तो सासूमां ने हैरान होते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात पर हंसी आ रही है?’’
‘‘आप की बातों पर, मां.’’
सीता ने डपटा, ‘‘हम कोई मजाक कर रहे हैं क्या? हम तुम्हारे बड़े हैं. तुम्हारे हित की ही बात कर रहे हैं, रेखा से दूर ही रहना.’’ सीता बहुत देर तक उसे पता नहीं कबकब के किस्से सुनाने लगी. रेखा रसोई से निकल कर वहां आई तो सब की बातों पर बे्रक लगा. रचना ने भी अपना औफिस जौइन कर लिया था. उस की भी छुट्टियां खत्म हो गई थीं. निखिल और रचना साथ ही निकलते थे. लौटते कभी साथ थे, कभी अलग. सुबह तो रचना व्यस्त रहती थी. शाम को आ कर रेखा की मदद करने के लिए तैयार होती तो रेखा उसे स्नेह से दुलार देती, ‘‘रहने दो रचना, औफिस से आई हो, आराम कर लो.’’
‘‘नहीं भाभी, सारा काम आप ही करती रहती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता.’’
‘‘कोई बात नहीं रचना, मुझे आदत है. काम में लगी रहती हूं तो मन लगा रहता है वरना तो पता नहीं क्याक्या टैंशन होती रहेगी खाली बैठने पर.’’ रचना उन का दर्द समझती थी. पति की बीमारी के कारण उस का जीवन कितना एकाकी था. मानसी की भी चाची से बहुत बनती थी. रचना उस की पढ़ाई में भी उस की मदद कर देती थी. 6 महीने बीत गए थे. एक शनिवार को सुबहसुबह रेखा की भाभी का फोन आया. रेखा के मामा की तबीयत खराब थी. रेखा सुनते ही परेशान हो गई. इन्हीं मामा ने रेखा को पालपोस कर बड़ा किया था. रचना ने कहा, ‘‘भाभी, आप परेशान मत हों, जा कर देख आइए.’’
‘‘पर मानसी की परीक्षाएं हैं सोमवार से.’’
‘‘मैं देख लूंगी सब, आप आराम से जाइए.’’
सासूमां ने उखड़े स्वर में कहा, ‘‘आज चली जाओ बस से, कल शाम तक वापस आ जाना.’’
रेखा ने ‘जी’ कह कर सिर हिला दिया था. उस का मामामामी के सिवा कोई और था ही नहीं. मामामामी भी निसंतान थे. रचना ने कहा, ‘‘नहीं भाभी, मैं निखिल को जगाती हूं. उन के साथ कार में आराम से जाइए. यहां मेरठ से सहारनपुर तक बस के सफर में समय बहुत ज्यादा लग जाएगा. जबकि इन के साथ जाने से आप लोगों को भी सहारा रहेगा.’’ सासूमां का मुंह खुला रह गया. कुछ बोल ही नहीं पाईं. पैर पटकते हुए इधर से उधर घूमती रहीं, ‘‘क्या जमाना आ गया है, सब अपनी मरजी करने लगे हैं.’’ वहीं बैठे ससुर ने कहा, ‘‘रचना ठीक तो कह रही है. जाने दो उसे निखिल के साथ.’’ राधिका को और गुस्सा आ गया, ‘‘आप चुप ही रहें तो अच्छा होगा. पहले ही आप ने दोनों बहुओं को सिर पर चढ़ा रखा है.’’ निखिल पूरी बात जानने के बाद तुरंत तैयार हो कर आ गया था, ‘‘चलिए भाभी, मैं औफिस से छुट्टी ले लूंगा, जब तक मामाजी ठीक नहीं होते हम वहीं रहेंगे.’’ रचना ने दोनों को नाश्ता करवाया और फिर प्रेमपूर्वक विदा किया. अनिल बैठे तो वहीं थे पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी. दोनों चले गए तो वे भी अपने बैडरूम में चले गए. शनिवार था, रचना की छुट्टी थी. वह मेड अंजू के साथ मिल कर घर के काम निबटाने लगी.
शाम तक सीता मौसी फिर आ गई थीं. उन के पति की मृत्यु हो चुकी थी और अपने बेटेबहू से उन की बिलकुल नहीं बनती थी इसलिए घर में उन का आनाजाना लगा ही रहता था. उन का घर दो गली ही दूर था. दोनों बहनें एकजैसी थीं, एकजैसा व्यवहार, एकजैसी सोच. सीता ने आराम से बैठते हुए रचना से कहा, ‘‘तुम्हें समझाया था न अपने पति को जेठानी से दूर रखो?’’
राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.
रचना मुसकराई, ‘‘हां मौसी, आप ने समझाया तो था.’’
‘‘फिर निखिल को उस के साथ क्यों भेज दिया?’’
‘‘वहां अस्पताल में मामीजी और भाभी को कोई भी जरूरत पड़ सकती है न.’’
सीता ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, ‘‘दीदी, छोटी बहू को तो जरा भी अक्ल नहीं है.’’
राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘क्या करूं अब? कुछ भी समझा लो, जरा भी असर नहीं है इस पर. बस, मुसकरा कर चल देती है.’’ रचना घर का काम खत्म कर सुस्ताने के लिए लेटी तो सीता मौसी वहीं आ गईं. रचना उठ कर बैठ गई और बोली, ‘‘आओ, मौसी.’’ आराम से बैठते हुए सीता ने पूछा, ‘‘तुम कब सुना रही हो खुशखबरी?’’
‘‘पता नहीं, मौसी.’’
‘‘क्या मतलब, पता नहीं?’’
‘‘मतलब, अभी सोचा नहीं.’’
‘‘देर मत करो, औलाद पैदा हो जाएगी तो निखिल उस में व्यस्त रहेगा. कुछ तो भाभी का भूत उतरेगा सिर से और आज तुम्हें एक राज की बात बताऊं?’’
‘‘हां बताइए.’’
‘‘मैं ने सुना है मानसी निखिल की ही संतान है. अनिल के हाल तो पता ही हैं सब को.’’ रचना भौचक्की सी सीता का मुंह देखती रह गई, ‘‘क्या कह रही हो, मौसी?’’
‘‘हां, बहू, सब रिश्तेदार, पड़ोसी यही कहते हैं.’’ रचना पलभर कुछ सोचती रही, फिर सहजता से बोली, ‘‘छोडि़ए मौसी, कोई और बात करते हैं. अच्छा, चाय पीने का मूड बन गया है. चाय बना कर लाती हूं.’’ सीता हैरानी से रचना को जाते देखती रही. इतने में राधिका भी वहीं आ गई. सीता को हैरान देख बोली, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘अरे, यह तुम्हारी छोटी बहू कैसी है? इसे कुछ भी कह लो, अपनी धुन में ही रहती है.’’ राधिका ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘हां, धोखा खाएगी किसी दिन, अपनी आंखों से देख लेगी तो आंखें खुलेंगी. हम बड़े अनुभवी लोगों की कौन सुनता है आजकल.’’ रचना ने टीवी देख रहे ससुरजी को एक कप चाय दी, फिर जा कर रेखा के बैडरूम में देखा, अनिल गहरी नींद में था. फिर राधिका और सीता के साथ चाय पीनी शुरू ही की थी कि रचना का मोबाइल बज उठा. निखिल का फोन था. बात करने के बाद रचना ने कहा, ‘‘मां, भाभी के मामाजी को 3-4 दिन अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. ये छुट्टी ले लेंगे, भाभी को साथ ले कर ही आएंगे.
‘‘मैं ने भी यही कहा है वहां आप दोनों देख लो, यहां तो हम सब हैं ही.’’ राधिका ने डपटा, ‘‘तुम्हें समझ क्यों नहीं आ रहा. जो रेखा चाहती है निखिल वही करता है. तुम से कहा था न निखिल को उस से दूर रखो.’’
‘‘आप चिंता न करें, मां. मैं देख लूंगी. अच्छा, मानसी आने वाली है, मैं उस के लिए कुछ नाश्ता बना लेती हूं और मैं भाभी के आने तक छुट्टी ले लूंगी जिस से घर में किसी को परेशानी न हो.’’ दोनों को हैरान छोड़ रचना काम में व्यस्त हो गई.
सीता ने कहा, ‘‘इस की निश्चिंतता का आखिर राज क्या है, दीदी? क्यों इस पर किसी बात का असर नहीं होता?’’
‘‘कुछ समझ नहीं आ रहा है, सीता.’’ निखिल और रेखा लौट आए थे. रेखा और रचना स्नेहपूर्वक लिपट गईं. उमेश वहां के हालचाल पूछते रहे. अनिल ने सब चुपचाप सुना, कहा कुछ नहीं. उन का अधिकतर समय दवाइयों के असर में सोते हुए ही बीतता था. उन्हें अजीब से डिप्रैशन के दौरे पड़ते थे जिस में वे कभी चीखतेचिल्लाते थे तो कभी घर से बाहर भागने की कोशिश करते थे. सासूमां को रेखा फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि वे खुद ही उसे बहू बना कर लाई थीं. बेटे की अस्वस्थता का सारा आक्रोश रेखा पर ही निकाल देती थीं. घर का सारा खर्च निखिल और रचना ही उठाते थे. उमेश रिटायर्ड थे और अनिल तो कभी कोई काम कर ही नहीं पाए थे. उन की पढ़ाई भी बहुत कम ही हुई थी. 3 साल बीत गए, रचना ने एक स्वस्थ व सुंदर पुत्र को जन्म दिया तो पूरे घर में उत्सव का माहौल बन गया. नन्हे यश को सब जीभर कर गोद में खिलाते. रेखा ने ही यश की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी. रचना के औफिस जाने पर रेखा ही यश को संभालती थी. कई पड़ोसरिश्तेदार यश को देखने आते रहते और रचना के कानों में मक्कारी से घुमाफिरा कर निखिल और रेखा के अवैध संबंधों की जानकारी का जहर उड़ेलते चले जाते. कुछ औरतें तो यहां तक मजाक में कह देतीं, ‘‘चलो, अब निखिल 2 बच्चों का बाप बन गया.’’
रचना के कानों पर जूं न रेंगती देख सब हैरान हो, चुप हो जाते. रेखा और रचना के बीच स्नेह दिन पर दिन बढ़ता ही गया था. रचना जब भी बाहर घूमने, डिनर पर जाती, रेखा और मानसी को भी जरूर ले जाती. रचना के कानों में सीता मौसी का कथापुराण चलता रहता था, ‘‘देख, तू पछताएगी. अभी भी संभल जा, सब लोग तुम्हारा ही मजाक बना रहे हैं.’’ पर रचना की सपाट प्रतिक्रिया पर राधिका और सीता हैरान हुए बिना भी न रहतीं. वे दोनों कई बार सोचतीं, यह क्या राज है, यह कैसी
औरत है, कौन सी औरत इन बातों पर मुसकरा कर रह जाती है, समझदार है, पढ़ीलिखी है. आखिर राज क्या है उस की इस निश्ंिचतता का? एक साल और बीत रहा था कि एक अनहोनी घट गई. मानसी के स्कूल से फोन आया. मानसी बेहोश हो गई थी. निखिल और रचना तो अपने आौफिस में थे. यश को राधिका के पास छोड़ रेखा तुरंत स्कूल भागी. निखिल और रचना को उस ने रास्ते में ही फोन कर दिया था. मानसी को डाक्टर देख चुके थे. उन्होंने उसे ऐडमिट कर कुछ टैस्ट करवाने की सलाह दी. रेखा निखिल के कहने पर मानसी को सीधा अस्पताल ही ले गई. स्कूल में फर्स्ट ऐड मिलने के बाद वह होश में तो थी पर बहुत सुस्त और कमजोर लग रही थी. निखिल और रचना भी अस्पताल पहुंच गए थे. निखिल ने घर पर फोन कर के सारी स्थिति बता दी थी.
मानसी ने बताया था, सुबह से ही वह असुविधा महसूस कर रही थी. अचानक उसे चक्कर आने लगे थे और वह शायद फिर बेहोश हो गई थी. हैरान तो सब तब और हुए जब उस ने कहा, ‘‘कई बार ऐसा लगता है सिर घूम रहा है, कभी अचानक अजीब सा डिप्रैशन लगने लगता है.’’ रेखा इस बात पर बुरी तरह चौंक गई, रोते हुए बोली, ‘‘रचना, यह क्या हो रहा है मानसी को. अनिल की भी तो ऐसे ही तबीयत खराब होनी शुरू हुई थी. क्या मानसी भी…’’
‘‘अरे नहीं, भाभी, पढ़ाई का दबाव होगा. कितना तनाव रहता है आजकल बच्चों को. आप परेशान न हों. हम सब हैं न,’’ रचना ने रेखा को तसल्ली दी. मानसी के सब टैस्ट हुए. राधिका और उमेश भी यश को ले कर अस्पताल पहुंच गए थे. सीता मौसी अनिल की देखरेख के लिए घर पर ही रुक गई थीं. रात को निखिल ने सब को घर भेज दिया था. अगले दिन रचना अनिल को अपने साथ ही सुबह अस्पताल ले गई. वहां वे थोड़ी देर मानसी के पास बैठे रहे. फिर असहज से, बेचैनी से उठनेबैठने लगे तो रचना उन्हें वहां से वापस घर ले आई. रेखा मानसी के पास ही थी.
निखिल हमेशा शर्मिंदा और दुखी रहे. भाभी का जीवन आप ने बरबाद किया है. निखिल अपनी देखरेख और स्नेह से आप की इस गलती की भरपाई ही करने की कोशिश करते रहते हैं.
राधिका ने रचना को डपटा, ‘‘अनिल को क्यों ले गई थी?’’
‘‘मां, मानसी की बीमारी का पता लगाने के लिए भैया का डीएनए टैस्ट होना था,’’ कह कर रचना किचन में चली गई. रचना ने थोड़ी देर बाद देखा राधिका और सीता की आवाजें मानसी के कमरे से आ रही थीं. सीता जब भी आती थीं, मानसी के कमरे में ही सोती थीं. रचना दरवाजे तक जा कर रुक गई. सीता कह रही थीं, ‘‘अब पोल खुलने वाली है. रिपोर्ट में सच सामने आ जाएगा. बड़े आए हर समय भाभीभाभी की रट लगाने वाले, आंखें खुलेंगी अब, कब से सब कह रहे हैं पति को संभाल कर रखे. निखिल पिता की तरह ही तो डटा है अस्पताल में.’’ राधिका ने भी हां में हां मिलाई, ‘‘मुझे भी देखना है अब रेखा का क्या होगा. निखिल मेरी भी इतनी नहीं सुनता है जितनी रेखा की सुनता है. इसी बात पर गुस्सा आता रहता है मुझे तो. जब से रेखा आई है, निखिल ने मेरी सुनना ही बंद कर दिया है.’’ बाहर खड़ी रचना का खून खौल उठा. घर की बच्ची की तबीयत खराब है और ये दोनों इस समय भी इतनी घटिया बातें कर रही हैं. अगले दिन मानसी की सब रिपोर्ट्स आ गई थीं. सब सामान्य था. बस, उस का बीपी लो हो गया था.
डाक्टर ने मानसी की अस्वस्थता का कारण पढ़ाई का दबाव ही बताया था. शाम तक डिस्चार्ज होना था, निखिल और रेखा अस्पताल में ही रुके. रचना घर पहुंची तो सीता ने झूठी चिंता दिखाते हुए कहा, ‘‘सब ठीक है न? वह जो डीएनए टैस्ट होता है उस में क्या निकला?’’ यह पूछतेपूछते भी सीता की आंखों में मक्कारी दिखाई दे रही थी. रचना ने आसपास देखा. उमेश कुछ सामान लेने बाजार गए हुए थे. अनिल अपने रूम में थे. रचना ने बहुत ही गंभीर स्वर में बात शुरू की, ‘‘मां, मौसी, मैं थक गई हूं आप दोनों की झूठी बातों से, तानों से. मां, आप कैसे निखिल और भाभी के बारे में गलत बातें कर सकती हैं? आप दोनों हैरान होती हैं न कि मुझ पर आप की किसी बात का असर क्यों नहीं होता? वह इसलिए कि विवाह की पहली रात को ही निखिल ने मुझे बता दिया था कि वे हर हालत में भाभी और मानसी की देखभाल करते हैं और हमेशा करेंगे. उन्होंने मुझे सब बताया था कि आप ने जानबूझ कर अपने मानसिक रूप से अस्वस्थ बेटे का विवाह एक अनाथ, गरीब लड़की से करवाया जिस से वह आजीवन आप के रौब में दबी रहे. निखिल ने आप को किसी लड़की का जीवन बरबाद न करने की सलाह भी दी थी, पर आप तो पंडितों की सलाहों के चक्कर में पड़ी थीं कि यह ग्रहों का प्रकोप है जो विवाह बाद दूर हो जाएगा.
‘‘आप की इस हरकत पर निखिल हमेशा शर्मिंदा और दुखी रहे. भाभी का जीवन आप ने बरबाद किया है. निखिल अपनी देखरेख और स्नेह से आप की इस गलती की भरपाई ही करने की कोशिश करते रहते हैं. वे ही नहीं, मैं भी भाभी की हर परेशानी में उन का साथ दूंगी और रिपोर्ट से पता चल गया है कि अनिल ही मानसी के पिता हैं. मौसी, आप की बस इसी रिपोर्ट में रुचि थी न? आगे से कभी आप मुझ से ऐसी बातें मत करना वरना मैं और निखिल भाभी को ले कर अलग हो जाएंगे. और इस अच्छेभले घर को तोड़ने की जिम्मेदार आप दोनों ही होगी.
हमें शांति से स्नेह और सम्मान के साथ एकदूसरे के साथ रहने दें तो अच्छा रहेगा,’’ कह कर रचना अपने बैडरूम में चली गई. यश उस की गोद में ही सो चुका था. उसे बिस्तर पर लिटा कर वह खुद भी लेट गई. आज उसे राहत महसूस हो रही थी. उस ने अपने मन में ठान लिया था कि वह दोनों को सीधा कर के ही रहेगी. उन के रोजरोज के व्यंग्यों से वह थक गई थी और डीएनए टैस्ट तो हुआ भी नहीं था. उसे इन दोनों का मुंह बंद करना था, इसलिए वह अनिल को यों ही अस्पताल ले गई थी. उसे इस बात को हमेशा के लिए खत्म करना था. वह कान की कच्ची बन कर निखिल पर अविश्वास नहीं कर सकती थी. हर परिस्थिति में अपना धैर्य, संयम रख कर हर मुश्किल से निबटना आता था उसे. लेटेलेटे उसे राधिका की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, तुम कहां चली, सीता?’’
‘‘कहीं नहीं, दीदी, जरा घर का एक चक्कर काट लूं. फिर आऊंगी और आज तो तुम्हारी बहू की निश्ंिचतता का राज भी पता चल गया. एक बेटा तुम्हारा बीमार है, दूसरा कुछ ज्यादा ही समझदार है, पहले दिन से ही सबकुछ बता रखा है बीवी को.’’ कहती हुई सीता के पैर पटकने की आवाज रचना को अपने कमरे में भी सुनाई दी तो उसे हंसी आ गई. पूरे प्रकरण की जानकारी देने के लिए उस ने मुसकराते हुए निखिल को फोन मिला दिया था.