कहानी: प्यार को प्यार से जीत लो
मरमिटने को तैयार शालिनी और अतुल ने अपनीअपनी मां से शादी की बात की तो वे बिफर पड़ीं. तब शालिनी ने शालीनता का ऐसा परिचय दिया कि दोनों की मां उन दोनों की शादी के लिए बेकरार हो गईं.
सुबह की हलकी धूप में बैठी मित्रा नई आई पत्रिका के पन्ने पलट रही थीं कि तभी शालिनी की तेज आवाज ने उन्हें चौंका दिया.
‘‘ममा…ममा…आप कहां हो?’’
‘‘ऊपर छत पर हूं. यहीं आ जाओ.’’
सुमित्रा की तेज आवाज सुनते ही शालिनी 2-2 सीढि़यां फांदती उन के पास जा पहुंची. सामने पड़ी कुरसी खींच कर बैठते हुए बोली, ‘‘ममा, मैं आप को कब से ढूंढ़ रही हूं और आप यहां बैठी हैं.’’
शालिनी की अधीरता देख सुमित्रा को हंसी आ गई. इस लड़की को देख कर कौन कहेगा कि यह पतलीदुबली लड़की एक डाक्टर है और एक दिन में कईकई लेबर केस निबटा लेती है.
‘‘बोलो, तुम्हें कहना क्या है?’’
पता नहीं क्या हुआ कि शालिनी एकदम चुप हो गई. उस के स्वभाव के विपरीत उस का आचरण देख सुमित्रा अचंभित थीं. वे समझ नहीं पा रही थीं कि कौन सी ऐसी बात है जिसे बोलने के लिए इस वाचाल लड़की को हिम्मत जुटानी पड़ रही है. थोड़ी देर की चुप्पी के बाद शालिनी ने खुद ही बातें शुरू कीं.
‘‘ममा, मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी, लेकिन क्या करूं… आप को धोखे में भी नहीं रख सकती. इसलिए आप को बता रही हूं कि मैं ने और अतुल ने इसी महीने शादी करने का फैसला कर लिया है.’’
बेटी की बातें सुन कर सुमित्रा बुरी तरह चौंक गईं, मानो अचानक ही कोई दहकता अंगारा उन के पांव तले आ गया हो.
‘‘क्या…क्या कह रही हो तुम. यह कैसा मजाक है?’’
‘‘नहीं ममा…आई एम नौट जोकिंग. आई एम सीरियस.’’
‘‘शादीब्याह को क्या तुम ने गुड्डेगुडि़यों का खेल समझ रखा है जिस से चाहोगी जब चाहोगी झट से जयमाला डलवा दूंगी. सच पूछो तो इस में तुम्हारी भी क्या गलती है. समीर ने मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हर गलतसही मांगों को पूरा कर के तुम्हें इतना स्वार्थी और उद्दंड बना दिया है कि आज तुम्हेें मातापिता की भावनाओं का भी खयाल नहीं रहा.’’
‘‘ममा, हर बात के लिए आप पापा को दोष मत दीजिए. यह मेरा और अतुल का फैसला है. कंपनी अतुल को अगले महीने अमेरिका की अपनी एक शाखा में नियुक्त कर रही है. उस ने मेरे पासपोर्ट और दूसरे कागजात की भी व्यवस्था कर रखी है, इसीलिए हम दोनों इस महीने में शादी करना चाहते हैं.’’
‘‘जब तुम ने सारे फैसले खुद ही कर रखे हैं तो अब पूछना कैसा?’’ गुस्से से तिलमिला कर सुमित्रा बोलीं, ‘‘सूचना देने के लिए धन्यवाद. जाओ, जो दिल चाहे वही करो.’’
सुमित्रा एकटक अपनी जाती हुई बेटी को देखती रहीं. उस की परवरिश में कहां कमी रह गई कि उस की इकलौती संतान, उस की अपनी ही बेटी ने अपने जीवन के इतने अहम फैसले में अपने मातापिता से सलाह तक लेने की जरूरत नहीं समझी. शालिनी की शादी उन के जीवन का सब से बड़ा सपना था. पर आज जब शादी होने का समय आया तो वे एक मूकदर्शक मात्र बन कर रह गई थीं.
बेटी से मिली अवहेलना की दारुण पीड़ा को झेलना उन के लिए दुष्कर था.
ऐसा नहीं था कि सुमित्रा को अतुल पसंद नहीं था. वह कई बार शालिनी के साथ घर आया था. एक मल्टीनैशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम कर रहा था. संस्कारी और सौम्य स्वभाव का लड़का था. विजातीय होते हुए भी अतुल, सुमित्रा को दिल से स्वीकार होता, अगर मातापिता की उपेक्षा न कर के शालिनी अपनी शादी का फैसला उन्हें अपने विश्वास में ले कर करती.
शाम को आफिस से लौटने के बाद समीर को जब सारी बातें मालूम हुईं तो बेटी के इस अप्रत्याशित फैसले ने उन्हें भी थोड़ी देर के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया. पर हमेशा की तरह थोड़ी देर बाद ही बेटी की गलती सुधारने में जुट गए.
समीर ने शालिनी को बुला कर उस से पूछताछ शुरू कर दी.
‘‘इस शादी के लिए क्या अतुल के मातापिता तैयार हैं?’’
‘‘नहीं, पापा, वे दोनों पूरी तरह हमारी शादी के खिलाफ हैं. हफ्ते भर से अतुल उन्हें मनाने में जुटा है फिर भी उस के मातापिता तैयार नहीं हो रहे हैं. उन का कहना है कि उन्हें अपने बेटे के लिए एक विजातीय डाक्टर बहू नहीं, एक सजातीय सीधीसादी घरेलू लड़की चाहिए.’’
‘‘तुम चिंता मत करो, मैं शीघ्र ही अतुल के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाबुझा कर तुम दोनों की शादी करवाने की पूरी कोशिश करता हूं.’’
‘‘नहीं, पापा, आप बात नहीं करेंगे. मेरे कारण वे आप के सम्मान को ठेस पहुंचाएं, यह मुझे मंजूर नहीं होगा.’’
‘‘वे अतुल के मातापिता हैं, उन का इस शादी के लिए तैयार होना बहुत जरूरी है, वरना तुम दोनों सारी जिंदगी सुकून से नहीं जी पाओगे.’’
‘‘माई फुट, वे मानें या न मानें… शादी तो हर हाल में अतुल मुझ से ही करेगा. वे मानेंगे तो ठीक, वरना हम दोनों कोर्ट में शादी कर लेंगे.’’
‘‘बेटा, थोड़ा सब्र से काम लो. अतुल उन की इकलौती संतान है, वह उन्हें मना ही लेगा.’’
‘‘नहीं…पापा…मैं अब और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. मैं तो आज ही अतुल से शादी पक्की करने के लिए बात करूंगी.’’
‘‘जिंदगी के फैसले इस तरह जल्दबाजी में नहीं लिए जाते. इस शादी से सिर्फ तुम्हारा और अतुल का रिश्ता ही नहीं जुड़ेगा, तुम्हारे न चाहने पर भी, ढेर सारे रिश्ते खुद ब खुद तुम से आ जुड़ेंगे… जिन से तुम इनकार नहीं कर सकतीं.’’
‘‘पापा, कौन मुझे इंडिया में रहना है जो इन रिश्तेनातों को निभाने के लिए परेशान रहूं.’’
‘‘अभी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा है, जब दूर जाओगी तो अपनों की और रिश्तेनातों की अहमियत समझ में आएगी. एक बात और समझ लो कि तुम्हारे इस तीखे तेवर से उन के इस विश्वास को और भी बल मिलेगा कि ज्यादा पढ़ीलिखी लड़की उन लोगों का सम्मान नहीं करेगी. उन के इस भ्रम को तोड़ने के लिए तुम्हें झुकना होगा. बड़ों के सामने झुकने में तुम्हारी तौहीन नहीं होगी, बल्कि खुद झुक कर ही तुम उन्हें झुका सकती हो. उन का प्यार और सम्मान पा सकती हो.’’
बिना कोई जवाब दिए चुपचाप शालिनी वहां से उठ कर बाहर आ गई और अपनी कार ले डा. सुधा वर्मा के घर की तरफ चल दी. डा. सुधा वर्मा उस की सीनियर और गाइड ही नहीं, अंतरंग सहेली जैसी थीं. जब वह सुधा वर्मा के पास पहुंची तब और दिनों की अपेक्षा ज्यादा आपरेशन होने के कारण वे काफी व्यस्त थीं. शालिनी पर नजर पड़ते ही काफी खुश हो गईं.
‘‘अच्छा हुआ जो तुम आ गईं. तुम जरा वार्ड नं. 13 में 113 नंबर बैड पर ऐडमिट डिप्रैशन के एक मरीज की जांच कर लो. सुबह जब मैं राउंड पर गई थी तब तो ठीक थी, अभी थोड़ी देर पहले से उस की परेशानी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है.’’
शालिनी वार्ड नं. 13 की तरफ चल पड़ी. उस वार्ड में एक प्रौढ़ महिला ऐडमिट थी. भरेभरे शरीर और बड़ीबड़ी आंखों वाली उस आकर्षक महिला के चेहरे पर गहरी विषाद की लकीरें छाई हुई थीं, जैसे कोई गहरी वेदना उसे साल रही थी. उस संभ्रांत महिला के साथ आई महिला ने बताया कि 2 दिन से उन की यही स्थिति है. इन 2 दिनों में इन्होंने अन्न का एक दाना भी नहीं खाया है.’’
‘‘इस तरह की स्थिति क्या इन की पहले भी कभी हुई है?’’ शालिनी ने पूछा.
‘‘नहीं…नहीं…डाक्टरनी साहिबा. पहले इन की इस तरह की स्थिति कभी नहीं हुई. वह तो 4 दिन पहले इन की अपने इकलौते बेटे से किसी बात पर जम कर बहस हुई और वह इन्हें छोड़ कर मुंबई चला गया. 2 दिन तक तो इन्होंने किसी तरह अपने को संभाला, लेकिन जब बेटे का कोई फोन नहीं आया तो इन की स्थिति बिगड़ने लगी और हमें यहां लाना पड़ा.’’
शालिनी ने पहले नर्स को जरूरी इंजेक्शन तैयार करने की हिदायत दी फिर खुद भी उस महिला की नब्ज देखने लगी. महिला बेहोशी जैसी स्थिति में भी कुछ बड़बड़ाए जा रही थी, ‘मैं ने पालपोस कर बड़ा किया, इतना प्यार दिया और तू है कि मुझे ही जलाए दे रहा है. क्या तेरा सारा फर्ज उस कल आई लड़की के लिए ही है. बूढ़े मातापिता के प्रति तेरा कोई फर्ज नहीं है…और ऊपर से जलीकटी सुनाता है. जा, चला जा मेरी नजरों के सामने से. इस बीमार मां को जितना दुख दिया है उस से दोगुना दुख तू पाएगा. मैं यह सोचूंगी कि मैं ने अपना दूध अपने बेटे को नहीं एक संपोले को पिलाया है.’
शालिनी को यह समझने में देर नहीं लगी कि बेटे के किसी आचरण ने मां को गहरा सदमा दिया था. जब उस औरत की स्थिति थोड़ी सामान्य हुई और वह सो गई, तो शालिनी ने सुधा दीदी के पास जा कर उन्हें अब तक की स्थिति की रिपोर्ट थमा दी और सीधे आ कर कार में बैठ गई. कार में बैठने के साथ ही उस औरत का अशांत और पीडि़त चेहरा शालिनी की आंखों के सामने बारबार घूम रहा था. बेटे के कठोर आघात ने मां के दिल में कैसी कटुता भर दी थी कि बेहोशी की हालत में भी उसे कोस रही थी. शालिनी को एक ही बात बारबार दंश दे रही थी कि क्या वह खुद भी अतुल के साथ मिल कर कुछकुछ वैसा ही अपराध नहीं कर बैठी थी.
पहली बार शालिनी को अपने पापा की बातों की गहराई समझ में आई थी. अपने सुनहरे भविष्य की अटारी पर बैठी अपने जिस सपने को वह मुग्धभाव से निहार रही थी अचानक ही वह जमीन पर गिर कर चकनाचूर हो गया. अपनी स्वार्थी सोच पर लगाम देने के लिए शालिनी ने अतुल के घर की तरफ अपनी कार मोड़ ली.
वहां पहुंच कर बड़े ही आत्मविश्वास के साथ वह अंदर आ गई. सामने ही अतुल की मम्मी गायत्री देवी पाइप से पौधों को पानी दे रही थीं. उसे गेट खोल कर अंदर आते देख हाथ का पाइप एक तरफ रखते हुए बोलीं, ‘‘तुम…तुम यहां क्या करने आई हो? तुम्हें मालूम नहीं कि अतुल घर पर नहीं है. वह एक हफ्ते के लिए बाहर गया हुआ है.’’
‘‘मुझे मालूम है आंटी, पर मैं अतुल से नहीं आप से बात करने आई हूं.’’
‘‘आई हो तो मुझ से उम्मीद मत रखना. मैं आसानी से अपने फैसले नहीं बदलती. मेरा एक ही जवाब है, अगर अतुल तुम से शादी करेगा तो अपने मातापिता को खो देगा.’’
‘‘आप निश्ंिचत रहिए आंटी, मैं आप को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर करने नहीं आई हूं. अगर आप सोचती हैं कि मेरे साथ अतुल की शादी होने से आप का नाम खराब होगा तो कहीं न कहीं आप की सोच सही ही होगी. आप हमारी बड़ी हैं, अतुल की मां हैं, सच मानिए आंटी, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप का अतुल पर पहला हक है. मैं उसे आप से कभी अलग करने की बात सोच भी नहीं सकती. जब तक आप नहीं चाहेंगी, आप आशीर्वाद नहीं देंगी, तब तक हम दोनों कभी शादी नहीं करेंगे, यह आप से मेरा वादा है.’’
‘‘और मेरा आशीर्वाद तुम्हें कभी मिलेगा नहीं.’’
‘‘तो ठीक है, आंटी. आज और अभी से मैं अपने सारे संबंध अतुल के साथ तोड़ती हूं.’’
इतना बोल वह तेजी से मुड़ कर अपनी कार में आ बैठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी के साथ इतनी झुक कर बातें की थीं, फिर भी उसे अपना मन काफी हलका लग रहा था, जैसे किसी अपराधबोध का बोझ उतर गया हो.
यह सत्य है कि अतुल के बिना जीना शालिनी के लिए आसान नहीं था, फिर भी अपने भौतिक सुखों के लिए किसी से उस की प्रिय वस्तु छीन लेने के बदले बिना किसी अपेक्षा के अपनी सब से प्रिय वस्तु किसी को समर्पित कर देने में उसे बेहद सुख और संतोष का अनुभव हो रहा था. घर आ कर जैसे ही उस ने अपना फैसला मां को बताया, शालिनी का उदास और क्लांत चेहरा देख उन का सारा गुस्सा फौरन तिरोहित हो गया.
‘‘अरे, वे लोग मेरी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं? तू चिंता मत कर, मैं गायत्री से बात करूंगी.’’
‘‘नहीं, ममा…आप कोई बात नहीं करेंगी.’’
‘‘अरे, कैसे नहीं करूंगी, मां हूं. लोग अपने बच्चों के लिए क्या नहीं करते…’’
‘‘ममा, प्लीज,’’ वह मां की बात बीच में ही काट कर अपने कमरे में चली गई.
अपने वादे के अनुसार उस दिन से शालिनी ने न अतुल से कोई बात की और न ही उस का कोई फोन रिसीव किया.
करीब एक हफ्ते बाद…एक दिन जब शालिनी अस्पताल से लौटी तो मां ने झट से उस के सामने एक गुलाबी रंग की जरी की बार्डर वाली साड़ी ला कर रख दी और बोलीं, ‘‘जल्दी से तैयार हो जा. एक जगह सगाई में जाना है.’’
‘‘नहीं, ममा, मेरा मन नहीं है.’’
‘‘कभी तो अपनी ममा का दिल रख लिया कर.’’
अपनी मां के प्यार भरे अनुरोध को शालिनी टाल न सकी. मन न होते हुए भी साड़ी ले कर तैयार होने लगी. जल्दी ही तैयार हो कर ड्राइंगरूम में आ बैठी. उस की ममा अभी तैयार नहीं हुई थीं. वह यों ही बैठेबैठे टीवी के चैनल बदलने लगी. तभी दरवाजे पर घंटी बजी शालिनी ने बढ़ कर दरवाजा खोला तो भौचक रह गई. दरवाजे पर कई अजनबी चेहरों के साथ अतुल की मां गायत्री देवी खड़ी थीं. उसे भौचक और घबराई हुई देख कर वे बोलीं, ‘‘अंदर आने के लिए भी नहीं कहोगी.’’
‘‘हां, आइए न,’’ कह कर वह दरवाजे से हट कर खड़ी हो गई.
‘‘तुम्हारी ममा कहां हैं, उन्हें बुलाओ.’’
‘‘प्लीज आंटी, आप मेरी ममा से कुछ मत कहिए. वे पहले से ही मेरे कारण बहुत परेशान हैं.’’
‘‘नहीं…नहीं…मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी. बुलाओ अपनी ममा को.’’
तभी शालिनी को अपने पीछे से अपनी मां की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, गायत्री बहन, आप आ गईं पर अतुल को कहां छोड़ आईं.’’
‘‘भला अपनी ही सगाई में वह खुद कैसे नहीं आएगा. अपनी पसंद की अंगूठी लेने गया है.’’
फिर शालिनी की तरफ मुखातिब हो कर गायत्रीजी बोलीं, ‘‘ऐसे क्या देख रही हो बेटा, तुम्हें अपने बड़ों की खुशियों का खयाल है तो क्या बड़े अपने बच्चों की खुशियों का खयाल नहीं रखेंगे. उस दिन तुम्हारी सौम्यता, मेरे प्रति तुम्हारा निस्वार्थ प्रेम और उस से भी बढ़ कर तुम्हारे द्वारा झुक कर सम्मान का भाव प्रकट करने से मुझे लगा, तुम से अच्छी बहू मुझे नहीं मिल सकती. जब तुम्हारी मां ने पहल की तो मैं ने भी देर नहीं की. पहले चाहे मैं ने तुम्हें कितना भी भलाबुरा कहा हो पर आज सच्चे और साफ दिल से कहती हूं, तुम मुझे दिल से पसंद हो. मेरे बेटे की पसंद खराब हो ही नहीं सकती.’’
शालिनी शरमा कर उन के पैरों पर झुक आई तो उसे बीच में ही थाम कर गायत्रीजी ने उसे गले से लगा लिया.