कहानी: प्रतिक्रिया
मजदूरों को कम मजदूरी पाने की शिकायत सुन कर मंत्री महोदय के भीतर का ‘नेता’ जागृत हो उठा. वह तुरंत क्रियाशील हो उठे और संबंधित अधिकारी को लताड़ दिया. मंत्री महोदय अपने इस कदम पर मन ही मन बड़े खुश थे और श्रमिक बेचारे हैरान.
‘‘गाड़ी जरा इस गांव की तरफ मोड़ देना, सुमिरन सिंह,’’ कार में बैठेबैठे ही मंत्रीजी की आंख लग गई थी, पर सड़क पर गड्ढा आ जाने से उन की नींद खुली. दूर एक गांव के कुछ घर दिखे, अत: तुरंत मन में विचार आया कि क्यों न जा कर गांव वालों से मिल लिया जाए, आखिर वोट तो यही लोग देते हैं.
सुमिरन सिंह ने तुरंत कार गांव की ओर मोड़ दी. मंत्रीजी की कार घूमते ही उन के पीछे चल रहा कारों का पूरा काफिला भी घूम गया. गांव में इतनी बड़ी संख्या में कारें, जीपें आदि कभी नहीं आई थीं, अत: यह काफिला देखते ही गांव में हलचल सी मच गई. जिसे देखो मुखिया के बगीचे की ओर भागा चला जा रहा था, जहां मंत्रीजी का काफिला उतरा था. मुखिया व गांव के अन्य प्रभावशाली लोग मंत्रीजी की खुशामद में लगे थे.
‘‘कहिए, खेती- बाड़ी की दशा इस बार कैसी है. कोई समस्या हो तो मंत्रीजी से कह डालिए,’’ सुमिरन सिंह, जो मंत्री महोदय के सचिव व संबंधी दोनों थे, बोले.
थोड़ी देर उस भीड़ में हलचल सी हुई. फिर तो शिकायतों का ऐसा तांता लगा कि मंत्री स्तब्ध रह गए. गांववासी पीने का पानी, स्कूल, अस्पताल आदि सभी समस्याओं का समाधान चाहते थे. मंत्रीजी ने अपने सचिव से सब लिखने को कहा तथा अपने साथ आए अधिकारियों को कुछ निर्देश भी दे डाले.
‘‘गुजरबसर कैसी होती है? केवल खेती से काम चल जाता है?’’ चलते समय मंत्रीजी ने एक और प्रश्न पूछ डाला.
‘‘कभीकभी मजदूरी मिल जाती है या गायभैंस आदि पालते हैं. दूध व घी बेच कर काम चलाते हैं. अब आप से क्या छिपाना, आप तो माईबाप हैं,’’ मुखिया बोला.
‘‘मजदूरी के लिए तो शहर जाते होंगे, गांव में क्या मजदूरी मिलती होगी?’’ सुमिरन सिंह बोले.
‘‘सरकार की दया से कुछ न कुछ निर्माण कार्य चलता ही रहता है. आजकल 2-3 किलोमीटर दूर सड़क निर्माण कार्य चल रहा है. वहां आधे से अधिक लोग हमारे गांव के ही हैं. सूखा पीडि़तों के लिए ही यह कार्य आरंभ किया गया है,’’ मुखियाजी ने सूचित किया.
‘‘चलिए, क्यों न एक बार सड़क निर्माण कार्य का भी निरीक्षण कर लिया जाए. गांव वालों को भी लगेगा कि आप को उन की कितनी चिंता है,’’ जरा सा आगे बढ़ते ही सुमिरन सिंह ने मंत्री को सलाह दी.
‘‘आप कहते हैं तो वहां का भी चक्कर लगा लेते हैं. वैसे भी आज रूपगढ़ पहुंचना कठिन है. किसी विश्रामगृह में पड़ाव करना होगा,’’ मंत्रीजी ने सचिव की बात का समर्थन किया.
सड़क निर्माण स्थल पर मंत्रीजी को देखते ही भीड़ लग गई. सब एकदूसरे से आगे बढ़बढ़ कर अपनी बात कहना चाहते थे.
‘‘आप को मजदूरी कितनी मिलती है?’’ मंत्रीजी ने पास खड़े एक मजदूर से पूछा.
‘‘10 रुपए मिलते हैं, सरकार,’’ श्रमिक ने उत्तर दिया.
‘‘क्या कह रहे हो भाई? क्या तुम नहीं जानते कि सरकार ने न्यूनतम मजदूरी 16 रुपए निश्चित की हुई है? आप अपने मालिक पर दबाव डाल सकते हैं कि वह आप को न्यूनतम मजदूरी दे,’’ मंत्रीजी श्रमिक को समझाते हुए बोले.
‘‘सरकार, हम ठहरे अनपढ़ और गंवार, यह कायदाकानून क्या जानें. आप खुद ठेकेदार को बुला कर उसे आज्ञा दें तो वह आप की बात कभी नहीं टालेगा,’’ एक श्रमिक ने हाथ जोड़ कर कहा.
‘‘और महिलाओं को कितनी मजूदरी मिलती है?’’ सुमिरन सिंह ने महिलाओं से पूछा.
‘‘हमें तो पुरुषों से भी कम मिलती है. वह भी ठेकेदार की इच्छा पर है, कभी कम दे दिया कभी ज्यादा,’’ महिला श्रमिकों ने उत्तर दिया.
‘‘यह तो सरासर अन्याय है. सुमिरन सिंह, आप इस संबंध में पूरी जांच कीजिए…इन सब को न्याय मिलना चाहिए.’’ मंत्रीजी ने अपना निर्णय सुनाया.
‘‘कहां है ठेकेदार? उसे बुला कर लाओ. मंत्रीजी अभी फैसला कर देते हैं.’’
सुमिरन सिंह का आदेश पा कर श्रमिक इधरउधर भागे, पर कुछ क्षण पहले वहीं खड़ा ठेकेदार मौका मिलते ही न जाने कहां खिसक गया था. मंत्री महोदय के साथ आए लोगों ने भी उसे ढूंढ़ने का काफी प्रयत्न किया और उस के न मिलने पर सड़क निर्माण कार्य से संबंधित अधिकारी मधुसूदन को मंत्रीजी के सामने ला खड़ा किया.
‘‘आप के रहते यह कैसे संभव है कि इन बेचारों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती,’’ मधुसूदन को देखते ही मंत्रीजी गरजे.
‘‘मजदूरी आदि किसे, कब और कितनी दी जाएगी इस सब का निर्णय ठेकेदार ही करता है, हम इन सब बातों में दखल नहीं देते,’’ मधुसूदन ने निवेदन किया.
‘‘यों बहाने बना कर आप कर्तव्यमुक्त नहीं हो सकते. एक सरकारी कर्मचारी के समक्ष इतना बड़ा अन्याय होता रहे और वह कुछ न करे? बड़े शर्म की बात है. मैं तो ठेकेदार से अधिक अपराधी आप को समझता हूं,’’ मंत्रीजी ने उसे लताड़ा.
मधुसूदन चुप रह गया. वह जानता था कि मंत्री के सम्मुख कोई भी तर्क देना व्यर्थ होगा. उसे स्वयं पर ही क्रोध आ रहा था कि वह इस समय मंत्रीजी के सामने पड़ा ही क्यों.
‘‘यह देखना कि इन सब को न्यूनतम मजदूरी मिले, आज से आप का कार्य है. मुझ तक इन की कोई शिकायत नहीं पहुंचनी चाहिए,’’ मंत्रीजी ने मानो अंतिम निर्णय सुनाया.
‘‘नहीं पहुंचेगी, साहब. मैं इन की शिकायतों का पूरापूरा खयाल रखूंगा,’’ मधुसूदन का आश्वासन सुन कर मंत्रीजी कुछ शांत हुए.
यथोचित आदरसत्कार के पश्चात मंत्रीजी विदा हुए तो मधुसूदन ने चैन की सांस ली. फिर उस ने तुरंत अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को आज्ञा दी कि ठेकेदार को उन के समक्ष उपस्थित किया जाए.
ठेकेदार को देखते ही वह आगबबूला हो उठे. उसे खूब खरीखोटी सुनाई.
ठेकेदार चुपचाप सब सुनता रहा. मधुसूदन से झाड़ खा कर वह सीधे मजदूरों के बीच पहुंचा. मजदूरी बढ़ने की उम्मीद से उत्पन्न प्रसन्नता से उन के चेहरे दमक रहे थे.
‘‘मैं जो कुछ कहने जा रहा हूं ध्यान से सुनिए. मुझे सड़क निर्माण कार्य के लिए श्रमिकों की आवश्यकता नहीं है. निर्माण कार्य कुछ समय के लिए रोक दिया गया है,’’ कहते हुए ठेकेदार ने अपनी बात समाप्त की.
कुछ क्षण तक तो वहां ऐसी निस्तब्धता छाई रही मानो सब को सांप सूंघ गया हो. सब के मन में एक ही बात थी कि यह क्या हो गया? मंत्री महोदय तो मजदूरी बढ़ाने की बात कह गए थे पर यहां तो रोजीरोटी से भी गए.
कुछ बुजुर्ग मिल कर ठेकेदार से मिलने भी गए पर उस ने साफ कह दिया कि जब कार्य ही रोकना पड़ रहा है तो वह इतने श्रमिकों का क्या करेगा.
श्रमिकों की इन समस्याओं से बेखबर मंत्री महोदय ने विश्रामगृह में रात बिताई. मंत्रीजी व उन के दल के अन्य लोग अत्यधिक संतुष्ट थे कि किस प्रकार वे तीव्र गति से समस्याओं का समाधान कर रहे थे.
‘‘आगे का क्या कार्यक्रम है, साहब?’’ जलपान आदि कर लेने के बाद सुमिरन सिंह ने पूछा.
‘‘आज हमें रूपगढ़ पहुंचना है. वहां 2-3 उद्घाटन हैं और एक विवाह में सम्मिलित होना है.’’
‘‘रूपगढ़ तो हम जाएंगे ही, पर मार्ग में कुछ अन्य निर्माण कार्य भी चल रहे हैं. अगर वहां होते हुए चलें तो आप को कोई आपत्ति तो नहीं,’’ सुमिरन सिंह बोले, ‘‘देखिए, कल सड़क निर्माण वाले मजदूरों की समस्या आप ने चुटकियों में हल कर दी. बेचारे आप को दुआ दे रहे होंगे.’’
‘‘जो व्यक्ति तुरंत निर्णय न ले सके, जनता की समस्याओं का समाधान न कर सके उसे नेता कहलाने का कोई अधिकार नहीं.’’ मंत्री महोदय गद्गद होते हुए बोले.
‘‘ठीक है, फिर हमारा अगला पड़ाव उस निर्माण स्थल पर होगा जहां एक पुल का निर्माण कार्य चल रहा है,’’ सुमिरन सिंह बोले.
‘‘ठीक है, आखिर उन लोगों के प्रति भी हमारा कुछ कर्तव्य है,’’ मंत्रीजी ने स्वीकृति देते हुए कहा.
मंत्रीजी दलबल सहित पुल निर्माण स्थल पर पहुंचे तो हलचल सी मच गई. सब उसी स्थान की ओर दौड़ पड़े, जिस छोटी सी पहाड़ीनुमा जगह पर मंत्री महोदय खड़े थे.
इतने सारे उत्सुक श्रोताओं को देख कर मंत्रीजी ने एक भाषण दे डाला. उस भाषण में उन्होंने भविष्य का इतना सुंदर चित्रण किया कि श्रमिक अपनी वर्तमान समस्याओं को भूल ही गए.
इसी खुशी भरे माहौल में मंत्रीजी श्रमिकों से अनौपचारिक बातचीत करने लगे और तभी उन्होंने प्रश्न किया कि प्रतिदिन प्रति श्रमिक को कितनी मजदूरी मिलती है?
श्रमिकगण मानो इसी प्रश्न की प्रतीक्षा कर रहे थे. अब उन लोगों में मंत्रीजी को यह सूचना देने की होड़ लग गई कि उन्हें न्यूनतम मजदूरी से कहीं अधिक दर की मजदूरी मिलती है. यही नहीं, उन्हें अन्य भी बहुत सी सुविधाएं प्राप्त हैं. स्त्री व पुरुषों में मजदूरी के संबंध में भेदभाव नहीं होता. सभी को समान मजदूरी मिलती है आदि.
एक क्षण को मंत्रीजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. वह तो मन ही मन ठेकेदार को लताड़ने की तैयारी कर चुके थे. सुमिरन सिंह को पहले से हिदायत दे दी गई थी कि ठेकेदार व संबंधित अधिकारी उस समय वहीं उपस्थित रहने चाहिए. पर यहां पूरी बात ही उलटी हो गई थी.
अंतत: उन्होंने श्रमिकों को बधाई दी कि उन्हें इतना अच्छा मालिक मिला है. ठेकेदार को भी श्रमिकों के प्रति उस के सज्जन व्यवहार के लिए बधाई दी तथा दलबल सहित रवाना हो गए.
ठेकेदार आज बहुत प्रसन्न था. उस ने सभी श्रमिकों के लिए मिठाई की व्यवस्था की थी. श्रमिक भी अत्यंत प्रसन्न थे कि उन्होंने मंत्रीजी के सम्मुख सबकुछ ठीकठाक कहा था. केवल एक कोने में सड़क निर्माण कार्य के वे मजदूर खड़े थे, जिन्हें काम से निकाल दिया गया था और उन्होंने ही आ कर यहां सारी सूचना दी थी. उधर मंत्रीजी इन सब से बेखबर रूपगढ़ की ओर बढ़े जा रहे थे.