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कहानी: पांचवां मौसम

किशोरावस्था में पनपा प्यार परवान चढ़े यह खुशनसीबी सब को हासिल नहीं होती. मौसम, मीनू, नीरा सब की जिंदगी प्यार की खुशबू से महकी लेकिन क्या कोई भी अपने पहले प्यार का साथ जीवन भर पा सकी?

‘‘आज नीरा बेटी ने पूरे डिवीजन में फर्स्ट आ कर अपने स्कूल का ही नहीं, गांव का नाम भी रोशन किया है,’’ मुखिया सत्यम चौधरी चौरसिया, मिडिल स्कूल के ग्राउंड में भाषण दे रहे थे. स्टेज पर मुखियाजी के साथ स्कूल के सभी टीचर, गांव के कुछ खास लोग और कुछ स्टूडेंट भी थे.


आज पहली बार चौरसिया मिडिल स्कूल से कोई लड़की फर्स्ट आई थी जिस कारण यहां के लड़केलड़कियों में खास उत्साह था.


मुखियाजी आगे बोले, ‘‘आजतक हमारे गांव की कोई भी लड़की हाईस्कूल तक नहीं पहुंची है. लेकिन इस बार सूरज सिंह की बेटी नीरा, इस रिकार्ड को तोड़ कर आगे पढ़ाई करेगी.’’ इस बार भी तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट उभरी.


लेकिन यह खुशी हमारे स्कूल के एक लड़के को नहीं भा रही थी. वह था निर्मोही. निर्मोही मेरा चचेरा भाई था. वह स्वभाव से जिद्दी और पढ़ने में औसत था. उसे नीरा का टौप करना चुभ गया था. हालांकि वह उस का दीवाना था. निर्मोही के दिल में जलन थी कि कहीं नीरा हाईस्कूल की हीरोइन बन कर उसे भुला न दे.


आज गांव में हर जगह सूरज बाबू की बेटी नीरा की ही चर्चा चल रही थी. उस ने किसी फिल्म की हीरोइन की तरह किशोरों के दिल पर कब्जा कर लिया था. आज हरेक मां अपनी बेटी को नीरा जैसी बनने के लिए उत्साहित कर रही थी. अगर कहा जाए कि नीरा सब लड़कियों की आदर्श बन चुकी थी, तो शायद गलत न होगा.


वक्त धीरेधीरे मौसम को अपने रंगों में रंगने लगा. चारों तरफ का वातावरण इतना गरम था कि लोग पसीने से तरबतर हो रहे थे. तभी छुट्टी की घंटी बजी. सभी लड़के दौड़तेभागते बाहर आने लगे. कुछ देर बाद लड़कियों की टोली निकली, उस के ठीक बीचोंबीच स्कूल की हीरोइन नीरा बल खा कर चल रही थी. वह ऐसी लग रही थी, जैसे तारों में चांद. नीरा जैसे ही स्कूल से बाहर निकली, निराला चौधरी को देख कर खिल उठी.


नीरा, निराला के पास पहुंची और बोली, ‘‘बिकू भैया, आप यहां?’’


बिकू निराला का उपनाम था. निराला बोला, ‘‘मैं मोटर- साइकिल से घर जा रहा था. सोचा, तुझे भी लेता चलूं.’’


फिर दोनों बाइक पर एकदूसरे से चिपट कर बैठ गए. बाइक दौड़ने लगी. सभी लड़केलड़कियां नीरा के इस स्टाइल पर कमेंट करते हुए अपनेअपने रास्ते हो लिए. मैं और निर्मोही भाई वहीं खड़ेखड़े नीरा की इस बेहयाई को देखते रहे.


नीरा आंखों से ओझल हो गई तो मैं निर्मोही भाई के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘क्या देखते हो भैया, भाभी अपने भाई के साथ कूच कर गई.’’


इस पर निर्मोही भाई गुस्से में बोला, ‘‘बिकूवा उस का भैया नहीं, सैंया है.’’


मैं ने उन को पुचकारा, ‘‘रिलैक्स भैया, देर हो रही है. अब हम लोगों को भी चलना चाहिए.’’


फिर हम दोनों अपनीअपनी साइकिल पर सवार हो कर चल दिए. रास्ते में निर्मोही भाई ने बताया कि बिकूवा अपने ही गांव का रहने वाला है. शहर में उस का अपना घर है, जिस में वह स्टूडियो और टेलीफोन बूथ खोले हुए है. वह धनी बाप का बेटा है. उस के बाप के पास 1 टै्रक्टर और 2 मोटरसाइकिल हैं. बिकूवा अपने बाप का पैसा खूबसूरत लड़कियों को पटाने में पानी की तरह बहाता है.


वक्त के साथसाथ निराला और नीरा का प्यार भी रंग बदलने लगा. कुछ पता ही नहीं चला कि निराला और नीरा कब भाईबहन से दोस्त और दोस्त से प्रेमीप्रेमिका बन गए. इस के बाद दोनों एकदूसरे को पतिपत्नी के रूप में देखने का वादा करने लगे.


धीरेधीरे इन दोनों के प्यार की चर्चा गरम होने लगी. निर्मोही भाई भी इस बात को पूरी तरह फैला रहे थे. कब नीरा हाईस्कूल गई, कब उस पर निराला का जादू चला और कब उस की लवस्टोरी स्कूल से बाजार और बाजार से गांव के घरों तक पहुंची, कुछ पता ही नहीं चला. अब गांव की लड़कियां, जिन के दिल में कभी उस के लिए स्नेह हुआ करता था, अब वही उसे देख कर ताना कसने लगीं कि मिसेज निराला चौधरी आ रही हैं.


कोई कहता कि आज नीरा बिकूवा के स्टूडियो में फोटो खिंचवाने गई थी. कोई कहता, आज वह बिकूवा के साथ रेस्टोरेंट जा रही थी. आज वह बिकूवा के साथ यहां जा रही थी, आज वहां जा रही थी. ऐसी ही अनापशनाप बातें उस के बारे में सुनने को मिलतीं. लेकिन बात इतनी बढ़ जाने के बाद भी उस के घरवालों को जैसे कुछ पता ही नहीं था या फिर उन लोगों को नीरा पर विश्वास था कि नीरा जो कुछ भी करेगी उस से उस के परिवार का नाम रोशन ही होगा.


एक दिन जब निर्मोही भाई से बरदाश्त नहीं हुआ तो जा कर नीरा के मातापिता को उस की लवस्टोरी सुनाने लगे, वे लोग उस पर बरस पड़े. वहां का माहौल मरनेमारने वाला हो गया. लेकिन निर्मोही भाई भी तो हीरो थे. उन में हार मानने वाली कोई बात ही नहीं थी.


गांव में जातिवाद का बोलबाला होने से स्कूल का माहौल भी गरम होता जा रहा था. स्कूल के छात्र 2 गुटों में बंट चुके थे. एक गुट के मुखिया निर्मोही भाई थे तो दूसरे के ब्रजेश. लेकिन उस गुट का असली नेता निराला था. दोनों गुटों में रोजाना कुछ न कुछ झड़प होती ही रहती.


उन्हीं दिनों 2 और नई छात्राएं मीनू, मौसम और एक नए छात्र शशिभूषण ने भी क्लास में दाखिला लिया.


जब मैडम ने हम लोगों से उन का परिचय करवाया तो उन दोनों कमसिन बालाओं को देख कर मेरी नीयत में भी खोट आने लगा. मुझे भी एक गर्लफ्रैंड की कमी खलने लगी. खलती भी क्यों नहीं. वे दोनों लाजवाब और बेमिसाल थीं. लेकिन मुझे क्या पता था कि जिस ने मेरे दिल में आग लगाई है उस का दिल मुझ से भी ज्यादा जल रहा है. मैं मौसम की बात कर रहा हूं. वह अकसर कोई न कोई बहाना बना कर मुझ से कुछ न कुछ पूछ ही लेती. कुछ कह भी देती. उधर मीनू तो निर्मोही भाई की दीवानी बन चुकी थी. पर मीनू का दीवाना शशिभूषण था.


अब एक नजर फिर देखिए, शशिभूषण दीवाना था मीनू का. मीनू दीवानी थी, निर्मोही की. निर्मोही नीरा के पीछे दौड़ता था. नीरा निराला के संग बेहाल थी, इन पांचों की प्रेमलीला देख कर मुझे क्या, आप को भी ताज्जुब होगा. मगर मेरे और मौसम के प्यार में ठहराव था. हम दोनों की एकदूसरे के प्रति अटूट प्रेम की भावना थी. तब ही तो चंद दिनों में ही मैं मौसम का प्यार पा कर इतना बदल गया कि मेरे घरवालों को भी ताज्जुब होने लगा. मैं और मौसम अकसर टाइम से आधा घंटा पहले स्कूल पहुंच जाते और फिर क्लास में बैठ कर ढेर सारी बातें किया करते.


उधर नीरा को मीनू और मौसम से बेहद जलन होने लगी क्योंकि ये दोनों लड़कियां नीरा को हर क्षेत्र में मात दे सकती थीं और दे भी रही थीं. वैसे तो पहले से ही स्कूल में नीरा की छवि धुंधली होने लगी थी लेकिन मीनू और मौसम के आने से नीरा की हालत और भी खराब हो गई. पढ़ाई के क्षेत्र में जो नीरा कभी अपनी सब से अलग पहचान रखती थी, आज वही निराला के साथ पहचान बढ़ा कर अपनी पहचान पूरी तरह भुला चुकी थी. जिन टीचर्स व स्टूडेंट्स का दिल कभी नीरा के लिए प्रेम से लबालब हुआ करता था, आज वही उसे गिरी नजर से देखते.


उन्हीं दिनों मेरे पापा का तबादला हो गया. मैं अपने पूरे परिवार के साथ गांव से शहर में आ गया. उन दिनों हमारा स्कूल भी बंद था, जिस कारण मैं अपने सब से अजीज दोस्त मौसम को कुछ नहीं बता पाया. अब मेरी पढ़ाई यहीं होने लगी. पर मेरे दिलोदिमाग पर हमेशा मौसम की तसवीर छाई रहती. शहर की चमकदमक भी मुझे मौसम के बिना फीकीफीकी लगती.


शुरूशुरू में मेरा यह हाल था कि मुझे यहां चारों तरफ मौसम ही मौसम नजर आती थी. हर खूबसूरत लड़की में मुझे मौसम नजर आती थी.


एक दिन तो मौसम की याद ने मुझे इतना बेकल कर दिया कि मैं ने अपने स्कूल की सीनियर छात्रा सुप्रिया का हाथ पकड़ कर उसे ‘मौसम’ के नाम से पुकारा. बदले में मेरे गाल पर एक जोरदार चांटा लगा, तब कहीं जा कर मुझे होश आया.


इसी तरह चांटा खाता और आंसू बहाता मैं अपनी पढ़ाई करने लगा. वक्त के साथसाथ मौसम की याद भी कम होने लगी. लेकिन जब कभी मैं अकेला होता तो सबकुछ भुला कर अतीत की खाई में गोते लगाने लगता.


धीरेधीरे 2 साल गुजर गए.


आज मैं बहुत खुश हूं. आज पापा ने मुझ से वादा किया है कि परीक्षा खत्म होने के बाद हम लोग 1 महीने के लिए घर चलेंगे. लेकिन परीक्षा में तो अभी पूरे 25 दिन बाकी हैं. फिर कम से कम 10 दिन परीक्षा चलेगी. तब घर जाएंगे. अभी भी बहुत इंतजार करना पड़ेगा.


किसी तरह इंतजार खत्म हुआ और परीक्षा के बाद हम लोग घर के लिए रवाना हो गए. गांव पहुंचने पर मैं सब से पहले दौड़ता हुआ घर पहुंचा. मैं ने सब को प्रणाम किया. फिर निर्मोही भाई को ढूंढ़ने लगा. घर, छत, बगीचा, पान की दुकान, हर जगह खोजा, मगर निर्मोही भाई नहीं मिले. अंत में मैं मायूस हो कर अपने पुराने अड्डे की तरफ चल पड़ा. मेरे घर के सामने एक नदी बहती है, जिस के ठीक बीचोंबीच एक छोटा सा टापू है, यही हम दोनों का पुराना अड्डा रहा है.


हम दोनों रोजाना लगभग 2-3 घंटे यहां बैठ कर बातें किया करते थे. आज फिर इतने दिनों बाद मेरे कदम उसी तरफ बढ़ रहे थे. मैं ने मन ही मन फैसला किया कि भाई से सब से पहले मौसम के बारे में पूछना है. फिर कोई बात होगी. मौसम का खयाल मन में आते ही एक अजीब सी गुदगुदी होने लगी. तभी दोनाली की आवाज से मैं ठिठक गया.


कुछ ही दूरी पर भाई बैठेबैठे निशाना साध रहे थे. काली जींस, काली टीशर्ट, बड़ीबड़ी दाढ़ी, हाथ में दोनाली. भाई देखने में ऐसा लगते थे मानो कोई खूंखार आतंकवादी हों. भाई का यह रूप देख कर मैं सकपका गया. जो कभी बीड़ी का बंडल तक नहीं छूता था, आज वह गांजा पी रहा था. मुझे देख कर भाई की आंखों में एक चमक जगी. पर पलक झपकते ही उस की जगह वही पहले वाली उदासी छा गई. कुछ पल हम दोनों भाई एकदूसरे को देखते रहे, फिर गले लग कर रो पड़े.


जब हिचकियां थमीं तो पूछा, ‘‘भैया, यह क्या हाल बना रखा है?’’


जवाब में उन्होंने एक जोरदार कहकहा लगाया. मानो बहुत खुश हों. लेकिन उन की हंसी से दर्द का फव्वारा छूट रहा था. जुदाई की बू आ रही थी.


जब हंसी थमी तो वह बोले, ‘‘भाई, तू ने अच्छा किया जो शहर चला गया. तेरे जाने के बाद तो यहां सबकुछ बदलने लगा. नीरा और बिकूवा की प्रेमलीला ने तो समाज का हर बंधन तोड़ दिया. लेकिन अफसोस, बेचारों की लीला ज्यादा दिन तक नहीं चली. आज से कोई 6 महीना पहले उन दोनों का एक्सीडेंट हो गया. नीरा का चेहरा एक्सीडेंट में इस तरह झुलस गया कि अब कोई भी उस की तरफ देखता तक नहीं.’’


थोड़ा रुक कर भाई फिर बोले, ‘‘बिकूवा का तो सिर्फ एक ही हाथ रह गया है. अब वह सारा दिन अपने बूथ में बैठा फोन नंबर दबाता रहता है. शशिभूषण और मीनू की अगले महीने सगाई होने वाली है…’’


‘‘लेकिन मीनू तो आप को…’’ मेरे मुंह से अचानक निकला.


‘‘हां, मीनू मुझे बहुत चाहती थी. लेकिन मैं ने उस के प्यार का हमेशा अपमान किया. अब मैं सोचता हूं कि काश, मैं ने नीरा के बदले मीनू से प्यार किया होता. तब शायद ये दिन देखने को न मिलते.’’


फिर हम दोनों के बीच थोड़ी देर के लिए गहरी चुप्पी छा गई.


इस के बाद भाई को थोड़ा रिलैक्स मूड में देख कर मैं ने मौसम के बारे में पूछा. इस पर एक बार फिर उन की आंखें नम हो गईं. मेरा दिल अनजानी आशंका से कांप उठा.


मेरे दोबारा पूछने पर भाई बोले, ‘‘तुम तो जानते ही हो कि मौसम मारवाड़ी परिवार से थी. तुम्हारे जाने के कुछ ही दिनों बाद मौसम के पापा को बिजनेस में काफी घाटा हुआ. वह यहां की सारी प्रापर्टी बेच कर अपने गांव राजस्थान चले गए.’’


इतना सुनते ही मेरी आंखों के आगे दुनिया घूमने लगी. वर्षों से छिपाया हुआ प्यार, आंसुओं के रूप में बह निकला.


हम दोनों भाई छुट्टी के दिनों में साथसाथ रहे. पता नहीं कब 1 महीना गुजर गया और फिर हम लोग शहर आने के लिए तैयार हो गए. इस बार हमारे साथ निर्मोही भाई भी थे.


शहर आ कर निर्मोही भाई जीतोड़ पढ़ाई करने लगे. वह मैट्रिक की परीक्षा में अपने स्कूल में फर्स्ट आए.


आज 3 साल बाद पापा मुझे इंजीनियरिंग और भाई को मेडिकल की तैयारी के लिए कोटा भेज रहे थे. मैं बहुत खुश था, क्योंकि आज मुझे कोटा यानी राजस्थान जाने का मौका मिल रहा था. मौसम का घर भी राजस्थान में है. इसीलिए इतने दिनों बाद मन में एक नई आशा जगी थी.


मैं भाई के साथ राजस्थान आ गया. यहां मैं हरेक लड़की में अपनी मौसम को तलाशने लगा. लेकिन 1 साल गुजर जाने के बाद भी मुझे मेरी मौसम नहीं मिली. अब हम दोनों भाइयों के सिर पर पढ़ाई का बोझ बढ़ने लगा था. लेकिन जहां भाई पढ़ाई को अपनी महबूबा बना चुके थे, वहीं मैं अपनी महबूबा की तलाश में अपने लक्ष्य से दूर जा रहा था. फिर परीक्षा भी हो गई. रिजल्ट आया तो भाई का सिलेक्शन मेडिकल के लिए हो गया, लेकिन मैं लटक गया.


मुझे फिर से तैयारी करने के लिए 1 साल का मौका मिला है और इस बार मैं भी जीतोड़ मेहनत कर रहा हूं. लेकिन फिर भी कभी अकेले में बैठता हूं तो मौसम की याद तड़पाने लगती है. वर्ष के चारों मौसम आते हैं और चले जाते हैं. पर मेरी आंखों को तो इंतजार है, 5वें मौसम का. पता नहीं कब मेरा 5वां मौसम आएगा, जिस में मैं अपनी मौसम से मिलूंगा.

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