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कहानी: पगली

समाज कितना कठोर है, यह बात रूपा जानती थी. स्वार्थी समाज से प्रताडि़त सुमन की दुखद खबर सुन कर पहले ही उस का मन उदास था और अब ससुराल लौटते समय सड़क पर पगली को देख उसे खुद पर ग्लानि होने लगी. लेकिन क्यों?

उस दिन रेलवे स्टेशन पर अपनी ट्रेन एक घंटा लेट होने की सूचना पा कर रूपा को बहुत क्रोध आया. इंटरनैट पर आधा घंटा लेट देख कर भी, यह सोच कर स्टेशन आ गई कि आधा घंटा तो स्टेशन रोड का जाम ही खा जाता है. मगर अब क्या करे? बुकस्टौल से एक किताब खरीद कर वेटिंगरूम में जा कर बैठने का प्लान किया, मगर वहां तिल रखने की जगह न थी.


लगातार 3 से 4 ट्रेनें अब तक लेट हो चुकी थीं. सब तरफ सिर्फ यात्री ही यात्री नजर आ रहे थे. ऐसे में एक ट्रेन के आते ही प्लेटफौर्म की एक बैंच से एक परिवार उठ खड़ा हुआ और रूपा ने तुरंत सीट के कोने पर कब्जा कर लिया. एक मिनट की भी देरी की होती तो इस पर भी बैठने को न मिलता. चारों तरफ शोरशराबा, चिल्लपों के बीच नौवेल को पढ़ पाना मुश्किल था. रूपा ने किताब संभाल कर बैग में रख दी और अपने आसपास के यात्रियों पर नजर दौड़ाने लगी.


कुछ अखबार बिछा कर जमीन पर ही जमे थे तो कुछ चादर ताने कोनों में लेटे हुए थे. कुछ भिखारी कटोरा हाथ में लिए भीख मांग रहे थे. बचपन से ही ये एलमूनियम के कटोरे इन लोगों के हाथों में देखदेख कर उसे एलमूनियम के बरतनों से अजीब सी घृणा हो गई है. वह भूल कर भी कोई बरतन एलमूनियम का अपने घर नहीं ला सकती. इस लंगड़े भिखारी को तो वह पिछले 3 वर्षों से इसी स्टेशन पर देख रही है. यहां से बाहर उसे कभी भीख मांगते नहीं देखा. लगता है यहीं से पर्याप्त भीख पा जाता है वह.


पिछले 6 महीने से इन 3 बच्चों के साथ भीख मांगती एक औरत को भी देख रही है वह. एक बच्चा गोद में, दूसरा 2 से 3 साल का और तीसरी 7 से 9 साल के बीच की ये लड़की. ऐसे बच्चों को देख हमेशा यही खयाल आता है कि ये बच्चे इन के पैदा किए हैं या फिर अपहरण कर लाए गए हैं. कहीं खबरों में पढ़ा था कि भीख मंगवाते बच्चों और उन के अभिभावकों का डीएनए टैस्ट होगा, यदि टैस्ट मैच नहीं हुआ तो उस के कथित अभिभावकों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होगी और बच्चों को अनाथालय भेज दिया जाएगा. पता नहीं कब टैस्ट होंगे, कब मासूम बच्चे इन भीख माफियाओं से आजाद होंगे. अभी रूपा सोच ही रही थी कि वह एक कन्या कटोरा ले कर सम्मुख आ गई. अपने पर्स से पैसे टटोलने के बहाने वह उस कन्या और उस के साथ खड़ी महिला के रंगरूप को आपस में मिलाने लगी, मानो अपनी नजरों से ही उस का डीएनए परिणाम निकाल लेगी.


‘‘दे ना… बच्चे को कल से कुछ नहीं खिलाया.’’ भिखारिन अपनी कन्या से लग कर खड़ी हो गई.भिखारिन भी कम उम्र की थी, ‘इतनी कम उम्र में 3 बच्चे,’ रूपा सोच में पड़ गई. ‘‘दे ना माई…’’ रूपा की तंद्रा टूटी. उस ने 10 रुपए का नोट कटोरे में डाल दिया, वह भिखारिन आगे बढ़ गई.


24-25 से ज्यादा उम्र नहीं होगी इस की. पहला बच्चा 14-15 साल में ही पैदा कर दिया शायद. यह छोटी लड़की नाकनक्श में तो इसी की तरह दिखती है. उसे तसल्ली हो गई कि वह खुद के बच्चे ले कर घूम रही है. लगता है घुमंतू या इसी तरह के खानाबदोश जाति की होगी. ऐसे परिवार सिलबट्टा आदि पत्थर का सामान बेचते हैं, कुछ भीख मांगते हैं तो कुछ चोरीचकारी में लगे रहते हैं. कभीकभी इन के कुछ बच्चे बहुत सुंदर भी दिखाई देते हैं. जब इस विषय में उस ने अपने पति से बात की तो उन्होंने तो यही कहा था, ‘ये लोग धंधा भी करती हैं, उस का फल होगा.’


इसी बीच उस की रेलगाड़ी आ गई और वह उस पर सवार हो गई. अपने पिता की गंभीर बीमारी की सूचना मिलने के कारण पिछले कुछ दिनों से वह बहुत बेचैन थी. सो कानपुर से लखनऊ की ट्रेन पकड़ ली. उस का मायका लखनऊ रेलवे स्टेशन से आधे किलोमीटर के दायरे में ही है, इसलिए वह रेलगाड़ी से आना पसंद करती है. स्टेशन के बाहर छोटा भाई स्कूटर ले कर आ जाता है. दोनों की बातें शुरू हो भी नहीं पातीं कि वे घर पहुंच जाते हैं.


पिताजी आज कुछ स्वस्थ लग रहे थे. नवंबर के महीने की कुनकुनी धूप सेंकते हुए वे उसे लौन में ही बैठे मिले. रूपा को देखते ही वे खिल उठे. ‘‘अरे इतना भागदौड़ करने की क्या जरूरत थी. मैं अब ठीक हो गया हूं. जरूर मुकेश ने तु झे उलटासीधा फोन पर कहा होगा,’’ पिताजी ने अपने पास बैठी रूपा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.


‘‘मैं ने ऐसा कुछ नहीं कहा पापा. ये खुद लखनऊ आने के बहाने ढूंढ़ती रहती है ताकि काम न करना पड़े, कामचोर,’’ मुकेश ने रूपा की चोटी खींची. रूपा ने पलट कर मुक्का जड़ते हुए कहा, ‘‘अपनी बात कर रहा है न कामचोर. स्टेशन पर लेने जो आना पड़ता है.’’


‘‘यही सब करने आई है क्या रूपा?’’ मां अंदर से हाथ में चाय और नाश्ता ले कर आते हुए बोली. ‘‘तो ठीक है, मैं वापस जा रही हूं, अभी औटो को बुलाती हूं,’’ रूपा तुनक उठी. ‘‘अरे कैसी बातें करती है तू? शादी हो गई, पर बचपना नहीं गया तेरा,’’ मां हंस रही थी, ‘‘जा हाथमुंह धो ले जल्दी से. ये गरम समोसे और कचौड़ी तेरे पसंद के हलवाई से मंगाई है.’’


रूपा चुप हो गई. अब क्या कहे, जहां रक्षक ही भक्षक बन जाए वहां क्या गुंजाइश रह जाती है कुछ कहनेसुनने की.‘‘दीदी, आप ने बुलाया क्या?’’

रात सोते समय फिर वही मासूम भीख मांगता चेहरा आंखों के आगे घूम गया, ‘‘कैसे रहते होंगे ये लोग? क्या खाते हैं? सामाजिक जीवन कैसा होता है इन परिवारों का?’’ यही सब सोचते हुए उस की आंख लग गई.सुबह देर से उठी, किसी ने उसे उठाया भी नहीं. आंगन में महरी बरतन धो रही थी. उस के उठने से पहले ही घर की सफाई भी हो चुकी थी. वह उबासी लेते हुए आंगन के कोने में रखे पीढ़े पर बैठ गई.


‘‘रूपा, तेरी चाय. सुबह से 3 बार की चाय बन गई है और तू अब उठी है. तेरी तबीयत तो ठीक है न?’’ मां के स्वर में चिंता भी थी और उत्सुकता भी. उस के विवाह को 3 साल हो चुके हैं और अब जा कर उस के दिन चढ़े थे, जिसे उस की मां की अनुभवी आंखें ताड़ चुकी थीं.


रूपा के चेहरे पर लाली दौड़ गई. वह चुपचाप चाय पीती रही.‘‘कल आई क्या बिटिया?’’ महरी ने पूछा.‘‘हां, सुमन की अम्मा, तुम सुनाओ क्या हाल है? सुना तुम ने सुमन की शादी तय कर दी है. अभी 13-14 साल की बच्ची ही तो है, क्यों शादी की गठरी गले में बांध रही हो? थोड़ा बड़ी हो जाने दो. कम से कम 18 साल की तो होने देती,’’ रूपा चाय सुड़कते हुए बोली.


‘‘अब क्या बताएं बिटिया, उस के बाबा की बुरी नजर है उस पर, कब तक बचा कर रख पाएंगे. इस से अच्छा है कि इस का कहीं ब्याह हो जाए, तो हम भी बाकी जिंदगी चैन से रहें.’’‘‘बाबा कौन?  तुम्हारा आदमी, सुमन का बाप?’’‘‘हां, वह सुमन का बाप नहीं है. सुमन का बाप तो मेरा पहला मरद था. यह दूसरा मरद है. नहीं, तीसरा… पहला छोड़ गवा रहे, दूसरा मर गवा, यों यह तीसर है रिक्शा चलात है. अब साथे में रहने लगा है. पहले 3-4 साल ठीक रहा, अब बहुत शराब पियत है और सुमन पे भी बुरी नियत रखत है. का करें बताओ बिटिया? सुमन को साथ में ले कर घूमत है. स्कूल छुड़ा कर, अपने साथ काम पर लगा लिया है. अभी बाहर  झाड़ू लगा रही है. अगले महीने ब्याह देंगे.’’


रूपा चुप हो गई. अब क्या कहे, जहां रक्षक ही भक्षक बन जाए वहां क्या गुंजाइश रह जाती है कुछ कहनेसुनने की.‘‘दीदी, आप ने बुलाया क्या?’’ सुमन उस के सामने थी. गोरीचिट्टी, दुबली, तीखे नैननक्श, भूरे बालों की बंधी चोटी और अपने से बड़े साइज के काले छींटदार सलवारकुरते में भी गजब ढा रही थी. उस की अम्मा तो एकदम काली, मोटे नैननक्श और छोटे कद की है. इन दोनों को मांबेटी कोई भी देख कर तो नहीं ही कहेगा. उसे हमेशा से शक था कि यह पहले गणेश गंज के जिस अस्पताल में सफाई का काम करती थी, जरूर वहीं से चुरा कर लाई है. तभी से पुराना महल्ला छोड़ कर यहां बस गई है. हर साल कितने ही बच्चे अपहरण कर लिए जाते हैं. अस्पतालों से भी चोरी हो जाते हैं. कुछ रिकौर्ड ही नहीं रहता कि कितने बच्चे अपने अभिभावकों के पास वापस लौट पाए हैं.


‘‘अब नाच नहीं दिखाती क्या सुमन? बचपन में तो एक रुपए के लिए 10 गानों में नाचने को तैयार रहती थी,’’ रूपा ने छेड़ा.‘‘नाच के दिखाएं दीदी, लेकिन 10 रुपया लेंगे,’’ सुमन अपने दुपट्टे का फेंटा बांध कर खड़ी हो गई.‘‘चल पगली, वह तो मैं ने यों ही कहा. आज दिनभर यहीं रुक जा. शाम को बाजार से तेरे लिए कपड़े दिला दूंगी. तेरी शादी है न अगले महीने? कुछ मतलब भी पता है शादी का?’’


‘‘हां, नया गहना, कपड़ा मिलेगा,’’ सुमन अपनी आंखों को फैला कर बोली. एक मासूम मुसकराहट उस के होंठों पर खिल गई.‘‘वहां ससुराल में काम भी तो करना पड़ेगा,’’ रूपा ने डराना चाहा.‘‘यहां 10 घर में करते हैं वहां तो एक घर का ही काम होगा,’’ सुमन निश्ंिचत हो कर बोली.


‘‘तेरा आदमी क्या काम करता है?’’‘‘ट्रक ड्राइवर है. 2 बच्चे भी हैं उस के. पहली बीवी मर गई है, घर में बुढि़या भी है,’’ एक सांस में सब हाल बता दिया ससुराल का.‘‘कितने साल का है वह, कुछ पता है तु झ को?’’‘‘40 साल का है शायद. अम्मा कह रही थी कि शादी का पूरा खर्चा वही भरेगा.’’


‘‘तू शादी को मना क्यों नहीं कर देती? दोचार साल बाद कर लेना,’’ रूपा जो कहना चाह रही थी वह उसे स्पष्ट नहीं कर पा रही थी.‘‘बाबा परेशान करता है. अम्मा घर में न हो, तो कपड़े फाड़ने लगता है,’’ सुमन की आंखों में आंसू भर गए.


यही सब शादी के नाम पर हो, तो क्या उचित है? न जाने क्या है समाज की नैतिकता और अनैतिकता? बाबा 50 साल का है और पति 40 साल का, दोनों उस से एक ही अपेक्षा रखते हैं मगर वह तो अभी मासूम किशोरी ही है. क्या वह जानती है कि विवाह करने के बाद उस का जीवन और दुरूह होने वाला है? रूपा सोचने लगी कि यह आज दिन में यहीं रुक जाए तो वह उसे विवाह की ऊंचनीच सम झाने की कोशिश करेगी.


‘‘दीदी, मैं शाम को आऊंगी, अभी बगल की कोठी में बहुत काम है. उन के घर शादी है. बोली है कि पूरे महीने मन लगा कर काम करोगी, तो चांदी की पायल दूंगी इनाम में,’’ यह कह कर सुमन चली गई.रूपा सवालों में उल झ कर रह गई, ‘क्या महीनाभर दिनरात काम ले कर पायल पकड़ा देना शोषण नहीं है? 8 घंटे के हिसाब से 150 रुपए लगाओ तो 30 दिन के 4,500 रुपए हुए. 1,000-1,500 की पायल पकड़ा कर उस पर एहसान करेगी.’


महीने गुजर गए. मगर वह न आई. रूपा भी अपने मायके चली गई. उस का बेटा भी अब 3 महीने का हो गया था. रूपा कानपुर वापस लौटने की तैयारी में लग गई.

‘‘रूपा, बेटा फ्रैश हो जाओ. दामादजी भी आते होंगे. शाम को तु झे वापस भी जाना है न,’’ मां एक बार फिर से उस के पास आ कर खड़ी हो गई. उस ने घड़ी देखी, सुबह के 10 बजे थे. वह चुपचाप स्नानघर को बढ़ गई. रूपा कानपुर चली गई और उस का इस बीच लखनऊ आना संभव न हो पाया. उस का स्वास्थ्य भी कुछ ढीला चल रहा था. आजकल उस की दिलचस्पी एक भिखारिन लड़की में बढ़ गई थी जो हर शनिवार को तेल की बालटी ले उस के दरवाजे पर खड़ी हो जाती थी. उस की उम्र 11-12 वर्ष की होगी. रूपा उसे बिठा लेती, अपने सामने खाना खिलाती, कभी कपड़ेचप्पल भी पकड़ाती. जिस दिन वह न आती, रूपा को उलटेसीधे खयाल आते.


अब वह भिखारिन भी आ कर उस के बरामदे में निश्ंिचत हो सो भी जाती, फिर नींद खुलने पर आगे बढ़ जाती. रूपा ने एक दिन उस के मन की चाह लेने को पूछा.‘‘स्कूल में पढ़ना चाहती हो?’’‘‘अम्मा से पूछ कर बताऊंगी?’’ ‘‘कहां रहती हो?’’


‘‘गंदे नाले के बगल की बस्ती में.’’ ‘‘और कौन हैं घर में?’’ ‘‘अम्मा हैं और 2 भाई भी हैं.’’ दोतीन महीना नदारद रही. फिर एक दिन प्रकट हो गई बारबार अपना दुपट्टा पेट पर डालते हुए. उस की हरकतों पर रूपा को शक हो गया. ‘‘कुछ गलत काम की हो क्या?’’


वह फफक पड़ी. ‘‘किस ने किया? पुलिस में चलोगी? अनाथालय में रहोगी?’’ रूपा घबरा उठी. ‘‘अम्मा से पूछूंगी.’’ ‘‘ठीक है, कल तुम अपनी अम्मा को ले कर ही आना. तब तक मैं दोचार जगह बात कर के रखती हूं. तुम्हें घबराने और डरने की कोई जरूरत नहीं है.’’


दिन, हफ्ते, महीने गुजर गए. मगर वह न आई. रूपा भी अपने मायके चली गई. उस का बेटा भी अब 3 महीने का हो गया था. रूपा कानपुर वापस लौटने की तैयारी में लग गई. इधर हफ्तेभर से सुमन की अम्मा भी काम पर नहीं आई थी. 2 दिन की काम से मोहलत ले कर सुमन से मिलने उस के ससुराल गई थी मगर हफ्तेभर से ऊपर हो गया था, अब तक नहीं लौटी.


‘‘अच्छा मां, यह सुमन का ससुराल कैसा है? मेरा मतलब है कि पैसाटका कुछ पास में है उन लोगों के या यहां से भी गएबीते हाल हैं?’’ ‘‘यहां से तो ज्यादा ही संपन्न हैं उस का ससुराल. लड़की के लिए गहने तो सभी लाते हैं मगर वे तो सोने की अंगूठी और चैन सुमन की अम्मा को भी दे गए.’’


‘‘मु झे तो पहले से ही शक था. अब पक्का विश्वास हो गया है कि इस ने अपनी कम उम्र लड़की, उस ट्रक ड्राइवर को बेची है. बदले में यही सोनाचांदी पा गई है ये,’’ रूपा क्रोधित हो बोल पड़ी. ‘‘अब इन लोगों में ऐसा ही चलता होगा. इस में हम क्या कर सकते हैं?’’


‘‘नहीं मां, ऐसा नहीं होता. यह सुमन मु झे इस की कोखजाई औलाद नहीं लगती. यह इसे कहीं से चुरा कर लाई थी और अब इस ने इसे बेच दिया है. वरना शादी तो यह उस की उम्र के लड़के से भी कर सकती थी. बाबा का तो बहाना था ताकि और लोग भी अपना मुंह सी लें और विवाह के लिए कोई टिप्पणी न करें. वैसे भी मां, आजकल दूसरों के बारे में कौन सोचता है. सब अपने खोलों में सिमटे रहते हैं.’’


तभी रोती हुई सुमन की अम्मा वहीं आ गई. रूपा और उस की मां हैरानी से उसे देखते ही रह गईं. ‘‘सुमन अब इस दुनिया में नहीं रही. हाय मेरी फूल सी बच्ची, इतनी जल्दी चली गई,’’ सुमन की अम्मा अपने बहते आसुंओं को धोती के पल्लू से पोंछते हुए बोली.


‘‘क्या हुआ उसे?’’ रूपा ने घबरा कर पूछा. ‘‘पहलौटी बच्चा था उस का. सोचा था मायके लिवा लाऊंगी मगर 4 दिन पहले उस का गर्भ गिर गया. ज्यादा खून गिरने से वह बच न सकी, मर गई. हाय मोर बिटिया, अब इस दुनिया में नहीं रही,’’ उस का विलाप फिर शुरू हो गया.


‘‘कम उम्र में जचगी? उस को तो मरना ही था. पहलौटी में नहीं, तो दूसरे बच्चे में मरती. यही सब करने को तो ब्याह ले गया था वह ड्राइवर,’’ रूपा गुस्से में बोली. ‘‘जा, तू मुन्ने को देख. उस के दूध पीने का समय हो गया है,’’ मां ने मौके की नाजुकता को सम झ रूपा को कमरे में ठेला.‘‘अच्छा हुआ मर गई. मुक्ति पा गई नर्क से, वरना यही नर्क न जाने कब तक  झेलती रहती,’’ रूपा जातेजाते कह गई. जिसे सुन कर भी अनसुना कर गईं दोनों मांएं.


कानपुर वापसी में मन बो िझल हो उठा रूपा का. पति आलोक ने कार में सारा सामान अच्छी तरह जमाने के बाद ही रूपा को पुकारा.‘‘यहां आओ रूपा. देखो, सब सामान अच्छे तरीके से रखा है कि नहीं, वरना रास्ते में किसी सामान की जरूरत पड़े तो फिर गुस्सा हो जाओगी कि यह सामान ऊपर क्यों है, यह आगे क्यों हैं, यह पीछे क्यों है,’’ आलोक उस की नकल लगाते हुए अपने हाथों को हिला कर बोला.


सब हंसने लगे. रूपा मुसकरा कर सामान का निरीक्षण करने लगी और संतुष्ट हो कर हंस दी. कानपुर में रेलवे स्टेशन के पास हमेशा की तरह जाम लगा हुआ था. उन की गाड़ी रेंग कर चल रही थी. तभी उस की नजर एक पगली पर पड़ी. जिस के सिर में रूखे बालों का छत्ता बना हुआ था. रंग शायद गेहुंआ था जिसे मैल की परत ने काला बना दिया था. जिस ने एक लंबा फटा कुरता पहन रखा था. वह पगली कूड़े के ढेर में न जाने क्या बीनने में लगी हुई थी. कूड़ा खदबदाती, सामान देखती, फिर फेंक देती. फिर कुछ निकालती, मुंह बनाती, फिर फेंक देती. कितने लोग उस की बगल से गुजर कर जा रहे थे.


पुलिस, संभ्रांत नागरिक, समाजसेवी भी जरूर होंगे इस भीड़ में, फर्जी एनजीओ चलाने वाले भी. मगर उस पगली की मदद करना तो दूर की बात है, उस की तरफ कोई देखना भी गवारा नहीं सम झ रहा था. गाड़ी एक  झटके से आगे बढ़ गई. जाम खुल गया था. घर पहुंचने तक वह पगली दिमाग में घूमती रही, लगा जैसे पहले भी कहीं देखा है उसे. मगर कहां, कुछ याद ही नहीं आ रहा. रूपा ने सोचा आलोक से पूछ कर देख ले.


‘‘वह पगली को देख कर लग रहा था कि पहले भी कहीं देखा है, मगर याद नहीं आ रहा?’’ ‘‘तुम भी न? पता नहीं क्याक्या चलता है तुम्हारे दिमाग में, पहले वह शनिचरी लड़की पाल ली थी उस से पीछा छूटा, तो अब इसे पालने का इरादा है क्या?’’ आलोक ने गाड़ी से सामान घर के भीतर करते हुए पूछा.


‘‘तुम ने सही पहचाना आलोक,’’ रूपा बच्चे को पलंग में लिटा कर सिर थाम कर बैठ गई. ‘‘तुम मेरी बात का बुरा मत मानो.  मैं ने यों ही कहा तुम्हें छेड़ने  को,’’ आलोक ने पानी का गिलास रूपा को पकड़ा कर कहा. ‘‘वह बात नहीं हैं. तुम ने सही याद दिलाई यह पगली तो वही शनिचरी लड़की है,’’ रूपा ने कहा. आलोक तो हमेशा उसे देख यही कहता था, ‘लो, आ गई तुम्हारी शनिचरी.’


‘‘वह लड़की तो अच्छीखासी सुंदर, साफसुथरी और सम झदार थी. 5-6 महीनों के अंदर ही पागल कैसे हो सकती है? तुम्हें गलतफहमी हुई है, वह पगली कोई और है,’’ आलोक पूरे विश्वास से बोला.


‘‘नहीं, वह मेरे पास एक साल तक लगातार आती रही है. मैं भी उसे मामूली सा दान दे कर संतुष्ट होती रही. जबकि उसे उचित मार्गदर्शन, शिक्षा और सुरक्षा की जरूरत थी. वह पुरुषों के व्यभिचार का शिकार हुई है. वह गर्भ से थी. लगता है उस का गर्भ गिर गया है. यह सब शारीरिक व मानसिक कष्ट वह  झेल नहीं पाई, तभी पागल हो गई है.’’


रूपा की आंखें डबडबा आईं. ‘‘तुम्हें कैसे पता यह सब?’’ ‘‘जब वह आखिरी बार यहां आई थी तब मैं ने उस से बात की थी और उस ने अपने साथ हुए अत्याचार की बात भी कुबूली थी. मैं ने उसे मदद करने का वचन भी दिया था. लगता है उस की मां ने उसे यहां आने से रोक दिया था. मु झे दुख है कि मैं ने उस का पताठिकाना खोज कर मदद नहीं की,’’ रूपा रो रही थी और आलोक तेजी से कमरे में चहलकदमी कर रहा था. कुछ देर बाद उस ने इधरउधर फोन लगाने शुरू कर दिए.


‘‘रूपा, मैं ने अपने मित्र की संस्था में सारा विवरण लिखवा दिया है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि वे उस किशोरी को ढूंढ़ कर इलाज भी करवाएंगे और संरक्षण भी देंगे. चलो, अब तो अपना मूड ठीक कर लो.’’


रूपा मुसकरा कर आलोक के गले से लिपट गई.

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