कहानी: नया अध्याय
अपने विषय में रिसर्च करने के लिए विहा ने अपने पिता उदित और मां निमिषा के डीएनए टैस्ट किए तो उदित उस के जैविक पिता न निकले.
आज बाहर काफी तेज़ बरसात हो रही है. उमड़घुमड़ कर आते मेघों को देख कर निमिषा का मन घबरा रहा है. बारिश का मौसम उसे पसंद नहीं. सब तरफ छाई घटा, दिन में भी उजाले की जगह अंधियारा और शोर मचाती बरखा बूंदें. पता नहीं लोगों को इस मौसम में क्या पसंद आता है. उसे तो लगता है कि परिवार के सभी सदस्य घर पर सुरक्षित लौट आएं. मुदित तो आ गए हैं, चाय भी पी ली. अब विहा भी आ जाए तो उस की जान में जान आए.
विहा के घर में क़दम रखते ही निमिषा ने पुकारा, “विहा, आज का खराब मौसम देख कर मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी. ऐसे में थोड़ी जल्दी निकल आया कर क्लास से.”
“आप भी कमाल करती हो, मां. जिस मौसम को दुनिया बेहतरीन कहती है, उसे आप खराब कह रही हो,” विहा कंधे उचका कर बोली.
“अच्छा चल, अब चायनाश्ता कर ले. मैं ने कब से तैयारी कर रखी है,” निमिषा रसोई में चली गई. वहीं से आवाज़ दे कर बोली, “आज तेरे मामा जी का फोन आया था. फिर वही बात कि विहा किस चीज़ में इंजीनियरिंग कर रही है.”
“पता नहीं उन्हें कब समझ आएगी मेरी स्ट्रीम,” विहा हंसने लगी.
“उन्हें क्या दोष दूं, वे तो मुझ से 10 साल बड़े हैं, तेरी स्ट्रीम तो मुझे भी समझ नहीं आती,” जीभ काटते हुए निमिशा ने कहा.
“अच्छा सुनो, जेनेटिक इंजीनियरिंग वह ब्रांच है जिस के द्वारा हम किसी भी प्राणी के शरीर में उपस्थित अरबोंखरबों कोशिकाओं के आनुवंशिक मेकअप को बदल सकते हैं. उन में मौजूद डीएनए को अलगथलग कर के क्लोनिंग भी की जा सकती है,” विहा सरोष कहती गई. उस के उत्साह से इस विषय में उस की रुचि साफ झलक रही थी, “डीएनए तो समझती हो न?” लेकिन निमिषा के चेहरे पर संशय रेखाएं देख कर वह आगे समझाने लगी, “सरल भाषा में कहूं तो डीएनए हमारे अंदर का कैमिकल डाटाबेस होता है. डीएनए का क्रम हर व्यक्ति में भिन्न होता है. जेनेटिक फिंगरप्रिंटिंग या डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक का उपयोग आपराधिक मामलों की गुत्थियां सुलझाने के लिए किया जाता है. इस के साथ ही मातृत्व, पितृत्व या व्यक्तिगत पहचान को निर्धारित करने के लिए इस का प्रयोग होता है. इस पद्धति में किसी व्यक्ति के जैविक अंशों, जैसे रक्त, बाल, लार, वीर्य या दूसरे कोशिका-स्नोतों द्वारा उस के डीएनए की पहचान की जाती है. कुछ समझी मेरी मां,” कहते हुए विहा ने निमिषा के गले में बांहें डाल दीं.
“थोड़ाबहुत”, कहते हुए निमिषा हंस दी. “पर इस सब का फायदा? इंजीनियरिंग के बाद क्या करेगी?”
“मुझे फोरैंसिक फील्ड में जाना है. आपराधिक घटनाओं की जांच और अपराधियों की छानबीन के अलावा क्रौस डीएनए परीक्षण से मृत या लापता व्यक्ति का पता चल सकता है. इस के अलावा बड़ी प्राकृतिक विपदाओं या दुर्घटनाओं के मृतकों की सही पहचान हो सकती है. है न कितना रोचक विषय!”
“आज मांबेटी बातें ही करती रहेंगी या फिर भोजन भी मिलेगा,” पूछते हुए मुदित कमरे में प्रविष्ट हुए.
“पापा, आज मम्मी के ज्ञानचक्षु खोलने की कोशिश कर रही हूं,” विहा बोली, “ताकि अगली बार मामाजी को समझा सकें कि मैं क्या पढ़ती हूं.”
मुदित, निमिषा और विहा का छोटा सा परिवार हर दृष्टि से सुखी था. इकलौती बेटी विहा को हर सुखसुविधा देने के साथ मातापिता ने अच्छी सीख और संस्कार भी दिए थे. अब बेटी के आत्मनिर्भर होने के दिन करीब थे. फिर उस का विवाह करने के स्वप्न दोनों अकसर देखा करते थे.
“दीदी, मेरी नजर में एक अच्छा रिश्ता है अपनी विहा के लिए. आप कहो तो बात चलाऊं,” निमिषा की छोटी बहन, मनीषा ने फोन पर कहा.
“बात तो चलानी है पर सब से पहले मैं विहा का मन टटोलना चाहूंगी. क्या उस लड़के की एक तसवीर मिल सकती है?” निमिषा ने इधर से कहा.
“हां दीदी, मैं उस की एक पिक तुम्हें व्हाट्सऐप कर दूंगी. अच्छा सा मौका देख कर विहा को दिखा देना. वैसे, मैं ने विहा की पिक उन्हें दिखाई है. उन्हें सुंदर लड़की चाहिए और विहा तो हूबहू तुम पर गई है. जब मां इतनी खूबसूरत है तो बेटी का आकर्षक होना लाजिमी है. मैं तो कई बार हंस भी देती हूं कि शुक्र है विहा तुम पर गई, जीजाजी पर नहीं. मुझे आज भी याद है जब जीजाजी का परिवार तुम्हें देखने आया था तो तुम्हारी सुंदरता पर लट्टू हो गया था. बस, ऐसे ही हमारी विहा भी जहां जाएगी वहां चारचांद लगाएगी. उस का तो रूपलावण्य है भी चांदनी की छटा जैसा. तुम हो गेहुएं रंग की और जीजाजी ठहरे सांवले, जबकि विहा इतनी गोरीचिट्टी कि दूर से चमकती है. उस पर हलकी भूरी कंचे-सी आंखें. बस चश्मा इन आंखों को छिपा देता है. मगर पढ़ने वाली बच्ची है. और फिर चश्मा आजकल आम बात हो गई है,” मनीषा रिश्ते को ले कर काफी सकारात्मक थी.
“वह सब तो ठीक है पर तुम विहा की बीमारी से परिचित हो. लड़के वालों को इस बारे में बताना भी आवश्यक है,” निमिषा ने अपनी चिंता व्यक्त की.
“बता देंगे दीदी, पहले वे लड़की को पसंद तो कर लें, फिर बता देंगे. वैसे भी, विहा को कौन सी परेशानी होती है अपनी बीमारी से. आप उस का इतना अच्छा खयाल रखती हो, उस के पोषण पर पूरा ध्यान देती हो. इसीलिए तो उसे न एनीमिया है, न कोई और दिक्कत,” मनीषा बोली.
निमिषा को वह घड़ी याद हो आई जब उस ने विहा को जन्म दिया था. कुछ सामान्य लेकिन आवश्यक टैस्ट्स करने पर डाक्टर ने बताया था कि विहा को सिकल सेल बीमारी है. यह एक आनुवंशिक बीमारी होती है, इसलिए निमिषा और मुदित, दोनों के रक्त परीक्षण किए गए. लेकिन आश्चर्य की बात यह रही कि दोनों में से किसी को भी यह बीमारी नहीं निकली. तब डाक्टर ने बताया था कि कई बार हमारे जीन कुछ बीमारियों को पुनरावर्ती जीन के तौर पर सहेजे रहते हैं, और संतान में ये बीमारियां आ सकती हैं.
“आप को इस के पोषण का, खानपान का, दवाइयों का पूरा खयाल रखना होगा. सिकल सेल बीमारी में एनीमिया, थकान, आंखों का कमजोर पड़ना, त्वचा का पीला पड़ना या जल्दी संक्रमित होना जैसे लक्षण होते हैं.” डाक्टर की हिदायत को निमिषा ने अपने पल्ले में गांठ की तरह बांध लिया. विहा की ओर से उस ने कभी कोई लापरवाही नहीं दर्शाई. संभवतया यही कारण था कि विहा की दृष्टि अवश्य कमजोर पड़ी परंतु कोई और लक्षण उस में नहीं पनपे.
शाम को जब विहा अपनी इंजीनियरिंग क्लास खत्म कर के घर लौटी तब निमिषा ने उसे चाय का कप थमाते हुए कहा, “आज मनीषा मासी का फोन आया था. एक अच्छा रिश्ता बता रही है. फोटो भी भेजी है.”
“मां, प्लीज, अभी मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई और आप लोग मेरी शादी के बारे में सोचने लगे. इतनी जल्दी नहीं मां, पहले मैं अपना कैरियर बनाना चाहती हूं. शादी तो हो ही जाएगी. जहां आप कहोगे, वहां कर लूंगी. लेकिन अभी नहीं. मासी, मामा सब को कह दो, इतनी जल्दी नहीं,” विहा अपनी बात दृढ़ता से रखती हुई बोली.
निमिषा का मुंह उतर गया. किंतु मुदित ने वातावरण संभालते हुए कहा, “ठीक तो कह रही है हमारी बिटिया. अभी केवल 21 वर्ष की तो हुई है. इतनी जल्दी क्या है. एक न एक दिन तो अपने घर हर बेटी को जाना है.”
“तो क्या, यह मेरा घर नहीं, पापा? ऐसी बातें मेरे सामने मत करना. मैं इरिटेट हो जाती हूं,” विहा ने मुदित की बात बीच में ही काट दी.
“ओके, बेटे जी. सौरी, मैं भूल गया था कि मैं एक फेमिनिस्ट से बात कर रहा हूं. वैसे भी इस घर में मैं माइनौरिटी में हूं और महिलाएं मेजौरिटी में,” मुदित की इस बात ने लिविंगरूम में फिर हंसीखुशी का माहौल लौटा दिया.
“ये सब बेकार की बातें छोड़िए और मेरी काम की बात सुनिए. मुझे एक बेहद इंटरैस्टिंग प्रोजैक्ट मिला है. मुझे जेनेटिक फिंगरप्रिंटिंग पर काम करना है और इस के लिए मैं अपनी फैमिली की डीएनए प्रोफाइलिंग करूंगी,” अपने विषय से संबंधित बात पर आते ही विहा अपने चिरपरिचित उत्साह से भर गई.
“फिर अपनी तकनीकी भाषा बोलने लगी यह लड़की. अब क्या करोगी हमारे साथ, यह तो बता दो,” निमिषा ने अपने माथे पर हलकी सी चपत लगाते हुए पूछा.
“कितनी ड्रमेटिक हैं मेरी मां. चिंता मत कीजिए, छोटा सा टैस्ट है. वैसे तो डीएनए सैंपल अधिकतर खून टैस्ट से लिया जाता है परंतु मैं आप के सूई के डर से बखूबी वाकिफ हूं, इसलिए केवल चीक स्वैब टैस्ट करूंगी,” कह कर विहा ने अपने माता और पिता के गालों के अंदर से एक स्वैब घुमाया. “यह बन गया मेरा रैफरेंस सैंपल. अब अपनी लैब में इस के ऊपर परीक्षण करूंगी.” अपने कमरे में आ कर विहा ने अपने गाल के अंदर से भी सैंपल लिया और अपनी किट में संभाल कर रख लिया.
अपने कालेज की लैब में विहा ने रासायनिक श्रंखला अभिक्रिया द्वारा विशिष्ट जैली समान माध्यम से तीनों रैफरेंस सैंपलों का अध्ययन आरंभ कर दिया. फिर एक्सरे की पद्धति से तीनों सैंपलों की जांच शुरू कर दी. वह रीडिंग लेती जा रही थी. लेकिन जैसेजैसे उस का परीक्षण बढ़ता जा रहा था वैसेवैसे ही उस की विभ्रांती भी. उस का डीएनए केवल उस की मां से मेल खा रहा था, पिता से नहीं.
“ऐसा कैसे हो सकता है,” सोचती हुई उस ने कई बार जांच की. लेकिन जब हर बार यही निष्कर्ष सामने आया तो विहा का माथा ठनका. “क्या मेरे पिता मेरे जैविक पिता नहीं हैं,” सोच कर उस का सिर घूमने लगा. यह कौन सा गड्ढे पर पड़ी मिट्टी कुरेद दी उस ने जिस में से कीड़े बाहर निकलने लगे. संभवतया यही उस के सिकल सेल बीमारी का आनुवंशिक कारण हो, वह बीमारी जो उस के माता या पिता को है ही नहीं. इस के पीछे छिपे रहस्य का परदाफाश करने के लिए विहा तड़प उठी. उस ने ठान लिया कि वह अपनी मां से सचाई उगलवा कर रहेगी.
जब विहा घर लौटी तो उस के सिर में दर्द था. उतरा हुआ चेहरा देख कर निमिषा ने पूछा, “क्या हुआ विहा, तबीयत ठीक नहीं है?”
विहा अपनी मां से साफ शब्दों में बात करना चाहती थी किंतु इतनी बड़ी बात कैसे कहे. हिचकिचाहट ने उस की जीभ पर ताला डाल दिया. “हां, सिरदर्द है,” बस, इतना ही कह पाई, फिर पूछा, “पापा कहां हैं?”
“उन्हें अचानक नागपुर जाना पड़ा तुम्हारी बूआ के पास. तुम्हारे फूफा जी को दिल का दौरा पड़ा है. उन्हीं की मदद के लिए गए हैं,” कह कर निमिषा रसोई की ओर चल दी, “एक कप गरमागरम चाय बना कर देती हूं. तेल मालिश करूंगी, अभी तेरा सिरदर्द ठीक हो जाएगा.”
पापा नागपुर गए हुए हैं, यह बात सुन कर विहा ने यह स्वर्णिम अवसर गंवाना न चाहा. पापा घर पर नहीं है, ऐसे में मान से साफ बात करने पर हो सकता है वे असली बात पर कुछ रोशनी डाल सकें, सोचते हुए विहा बोली, “याद है, मां, उस दिन मैं ने हम तीनों के चीक स्वैब से रैफरेंस सैंपल लिए थे. उन का पूरा निष्कर्ष अब सामने आ गया है और मेरा जेनेटिक प्रोफाइल तैयार हो गया है. आप का और मेरा सैंपल पौजिटिव आया. परंतु पापा के साथ मेरा सैंपल नैगेटिव आया. यह कैसे हो सकता है, कुछ बता सकती हो आप?” विहा बेसाख्ता कहती चली गई. उस की आवाज में कोई आक्रोश नहीं था किंतु उस की नजर अवश्य दोषारोपण कर रही थी.
निमिषा चाय का कप हाथ में लिए बुत सी खड़ी रह गई. उस का चेहरा राख़ हो गया. कोई उत्तर देते न बना. कुछ अस्फुट शब्द उस के मुंह से निकले परंतु उन का मर्म विहा को समझ नहीं आया.
“क्या कह रही हो, साफसाफ कहो,” विहा ने एक बार फिर भावनाहीन शब्द अपने मुंह से निकाले.
निमिषा के चेहरे पर बेचारगी का भाव उभर आया. वह विहा की ओर देखते हुए कुछ अनर्गल कहने लगी, “पता नहीं यह लड़की क्याक्या करती रहती है. अब एक नए काम में लग गई. यह नहीं कि मां की मदद करवा दे. सब काम अकेले मेरे ही सिर पर आ पड़ा है. तेरे पापा भी नागपुर चले गए हैं,” न जाने क्याक्या अतिवाद करती निमिषा चाय का कप जल्दी से मेज़ पर रख फिर रसोई में चली गई.
मगर आज जो ह्रदयग्राही जानकारी विहा को मिली थी, उस के बाद चुप रह कर उसे नजरअंदाज कर देना उस के लिए संभव न था. निमिषा से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद उस ने की थी, इसलिए वह भी उस के पीछेपीछे रसोई में चली गई.
“इस उपक्रम से कोई लाभ नहीं. मेरे पास पुख्ता सुबूत हैं. मुझे नहीं पता कि आप मुझे क्या बताओगी लेकिन मैं सबकुछ ब्योरेवार वर्णन के साथ सुनने को तैयार हूं.”
“विहा, गढ़े मुर्दे नहीं उखाड़ने चाहिए. जो जैसा चल रहा है उसे वैसा ही रहने दे. शांत झील में इतना बड़ा पत्थर न फेंक कि उस के पानी में सुनामी आ जाए,” कहते हुए निमिषा का गला अवरुद्ध हो गया.
शाम झुक आई थी. घर में छिटपुट अंधेरा होने लगा. निमिषा ने उठ कर बत्ती जलाई. “चल, हाथमुंह धो आ. फिर खाना खाते हैं,” निमिषा के ये कायर शब्द जो बात टालने की प्रबल चेष्टा कर रहे थे, विहा को और अधिक खिन्न करने लगे. उस के मन में फांस सी करक उठी, ‘इस का तात्पर्य यह है कि मां को जो सचाई पता है वह पापा को ज्ञात नहीं.’
“कितना कन्वीनियंट है यह सब आप के लिए, है न मां?” अपनी आंखों में निराशाजनक और घृणास्पद भावों का मेल लिए जब विहा ने निमिषा की ओर देखा तो वह घबरा कर अपनी जगह से खड़ी हो गई.
“जानती है, विहा, आज अतीत के जिस दरवाज़े पर तूने दस्तक दी है, उस पर ताला लगा कर मैं चाबी कब की फेंक चुकी थी. अगर आज तू यह बात नहीं छेड़ती तो शायद मुझे याद भी नहीं आता.” हमारे जीवन की जो बहुत कष्टदायक और दुखदायक संस्मरण होते हैं, उन्हें हमारा दिमाग होशियारी से अपने अंदर ही छिपा लेता है. मानो वह घटना कभी घटी ही नहीं.” तभी तो विहा द्वारा पूछी गई बातों का तात्पर्य समझने में निमिषा को कुछ पल लग गए. लेकिन फिर निमिषा ने विहा को सचाई से अवगत करवाने की बात मान ली.
निमिषा की नईनई शादी हुई थी और वह मुदित के साथ बहुत खुश थी. प्रेमालिप्त सुखी जीवन व्यतीत करते हुए दोनों अपनी नईनवेली गृहस्थी की गाड़ी को हौलेहौले धक्का लगाने लगे. दिनरात एकदूसरे के संगसाथ के मद में जिंदगी की अच्छी शुरुआत हुई थी.
“कई दिनों से मां बुला रही है. क्या मैं अपने मायके हो आऊं?” निमिषा ने पूछा तो मुदित ने उस की कमर में अपनी बांहें डालते हुए कहा, “र इस बेचारे का क्या होगा? मुझे अकेला छोड़ कर जा सकोगी?”
“केवल 2 हफ्तों के लिए जाना चाहती हूं. अब तक भी तो मेरे बिना रहते आए हो, तो अब क्यों नहीं रह सकते?”
“अब शेर के मुंह खून लग गया है,” हंसते हुए मुदित ने कहा तो निमिषा लजा गई.
मायके में भैयाभाभी, छोटी बहन मनीषा और मातापिता से मिल कर निमिषा खुश हुई. उसे सुखी देख कर वे सभी बेहद प्रसन्न थे. 2 हफ्तों की छुट्टी आनंद में बीतने लगी. मांबाप ने पूरा लाड किया. हालांकि भाभी की शादी को अभी केवल 2 ही वर्ष बीते थे परंतु वह भी निमिषा को वे सारी खुशियां देने के लिए आतुर रही जो एक शादीशुदा स्त्री को अपने मायके में मिलनी चाहिए.
“तेरी सहेली रागिनी कई बार तेरे बारे में पूछ चुकी है. अब आई है तो उस से मिल क्यों नहीं आती,” एक दिन मां ने कहा.
“अच्छा याद दिलाया, मां, वरना मैं मायके के स्नेह में सब भूल बैठी हूं. अब आई हूं तो मिल लेती हूं.”
“उस की भी शादी तय हो गई है. वह बताएगी तुझे,” मां ने आगे कहा तो निमिषा दोगुनी खुशी के साथ रागिनी से मिलने के लिए तैयार होने लगी.
निमिषा अपने भैया के स्कूटर के पीछे बैठ कर रागिनी के घर पहुंच गई. दोनों सहेलियां काफी दिनों बाद मिली थीं. ढेर सारी बातें थीं करने को – निमिषा की शादीशुदा जिंदगी के बारे में, और रागिनी के आने वाली जिंदगी के बारे में. दोनों घंटों बतियाती रहीं.
“अब चलती हूं. बहुत देर हो गई. हमारी बातें तो कभी खत्म ही नहीं होंगी,” हंसते हुए निमिषा बोली.
“सच कह रही है, इन बातों को कभी विराम नहीं मिलेगा. लेकिन शाम होने वाली है और लगता है कि बारिश आएगी. अब तुझे घर जाना चाहिए,” रागिनी ने कहा.
“मैं अपने भैया को बुला लेती हूं,” निमिषा बोली.
“इसकी जरूरत नहीं. आज मेरा भाई घर पर ही है. वह तुझे छोड़ आएगा,” रागिनी ने अपने भाई को आवाज लगाई, “सोनू, इधर आ. जा, निमिषा दीदी को उन के घर छोड़ आ.”
“कितना बड़ा हो गया है सोनू. पिछली बार देखा था तो मूंछ भी नहीं आई थी इस की, और अब देखो, हलकीहलकी दाढ़ी भी आने लगी है,” कह निमिषा हंसी तो सोनू झेंप गया.
सोनू ने अपना स्कूटर निकाला और निमिषा उस के पीछे बैठ गई. सोनू स्कूटर ले कर चल दिया. घर से कुछ दूर पहुंचे थे कि सोनू ने अपना स्कूटर एक गली में मोड़ दिया.
“यहां नहीं. मेरा घर आगे है,” निमिषा ने उसे टोका.
“जानता हूं. यहां मुझे जरा सा काम है 5 मिनट का,” सोनू ने कहा तो निमिषा चुप हो गई.
एक घर के सामने स्कूटर रोक कर सोनू ने दरवाजा खटखटाया. अंदर से उसी की उम्र का एक लड़का बाहर आया. दोनों ने कुछ बातचीत की.
“दीदी, अंदर आ जाओ,” सोनू ने निमिषा से कहा, “मुझे 10 मिनट लग जाएंगे.” निमिषा स्कूटर के पास से हट कर मकान के अंदर चली गई. बस, यही उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी. मकान के अंदर एक नहीं बल्कि 2 लड़के पहले से उपस्थित थे और अब सोनू भी उन के साथ खड़ा था. जब तक निमिषा कुछ समझती या संभल पाती, तीनों ने मिल कर उस की इज्जत को तारतार कर दिया. निमिषा ने उन्हें अपने शादीशुदा होने का वास्ता दिया, बड़ी बहन की सहेली होने का वास्ता दिया और कुछ देर पहले सोनू द्वारा उसे ‘दीदी’ संबोधित करने की याद भी दिलाई. परंतु उन पर हवस का दानव सवार था. किसी ने उस की एक न सुनी. वे तीनों निर्बाध गति से उस के आंचल की धज्जियां उड़ाते रहे.
कुछ पीड़ाएं इतनी विषम, इतनी गहरी होती हैं कि समय की परत भी उन पर मलहम लगा कर उन को भर नहीं पाती. बलात्कार भी ऐसा ही घाव है जो वृहत विषाद दे जाता है. अपनी जरा भी गलती नहीं होते हुए स्वयं विपत्तिग्रस्त शिकार ही अपराधी सा मालूम होने लगता है. इसी के साथ ऐसा क्यों हुआ? अवश्य इसी ने कोई गलती की होगी; सावधानी में कुताही बरती होगी… संकुचित सोच में डूबी सामाजिक मान्यताएं उस स्त्री को ही दोषी ठहराने लगती हैं जिस ने अपने ऊपर यह कुठाराघात सहा होता है.
निमिषा के क्रंदन का साथ निभाने उस दिन आकाश भी बरसने लगा. ज़िंदगी के साथ मौसम भी बिगड़ने लगा. जब अनर्थ हो चुका तब निमिषा ने स्वयं को समेटा. अपने भारी कदमों को घसीटती हुई वह अपने घर की ओर निकल गई. अब वह एक क्षण भी उस जगह रुकना नहीं चाहती थी. देहरी लांघते समय उस ने अनायास ही सोनू की तरफ दृष्टि घुमाई जो बेशर्मी से वहीं बैठा अपने दोस्तों के साथ सिगरेट फूंक रहा था.
कुछ ही देर में निमिषा सड़क पर तीव्र गति से अपने पगों को बढ़ाती जा रही थी. वर्षा की कठोर बूंदें उस के पैरों को जकड़ रही थीं परंतु उन में इतना साहस नहीं था कि उस के कदमों को शिथिल कर सकतीं. ऊपर से अनवरत गिरते पानी ने उस के चेहरे पर बहती अश्रुधारा को छिपा लिया. जब निमिषा उस दुर्भाग्यपूर्ण घर से चली थी तो उस के मन में केवल एक ही विचार था कि उसे सीधा पुलिस चौकी जा कर इन दरिंदों की रिपोर्ट लिखवानी है. परंतु रास्ते में चलते हुए निमिषा का मन परस्पर विरोधी विचारों में उलझने लगा. उस का एक मन कहता कि इस कुकर्म की सज़ा असली दोषियों को मिलनी चाहिए, उन तीनों को इस का दंड भुगतना होगा लेकिन वहीं दूसरा मन विवाद करता कि इस बात के बाहर आते ही उस के मातापिता, भाईबहन की इज्जत का क्या होगा? क्या उस की कुंआरी बहन का रिश्ता किसी अच्छे घर में हो पाएगा? क्या उस की कुंआरी ननद को उस के लायक परिवार मिल सकेगा? मन के द्वंद्वप्रतिद्वंद के बीच फंसी निमिषा शरीर से तो टूट ही चुकी थी, अब मानसिक रूप से भी चूरचूर हो रही थी. अपने घायल हृदय को अपमानभरे धोखे की सुलगती आंच से बचाने के लिए वह प्रतिशोध की ठंडक चाहती थी. मगर कहीं ऐसा न हो कि बदले की यह अग्नि समाज में उस के अपनों की इज्जत को जला कर भस्म कर दे. इसी संघर्ष में दोनों पक्षों को तोलते हुए उस ने प्रतिशोध की भावना को पीछे धकेल देना उचित समझा. निमिषा का साहस पराजित हुआ, समाज का हौआ जीत गया. उस ने पुलिस चौकी जाने का खयाल मन से बाहर निकाल फेंका.
मायके लौट कर उस ने किसी को इस विषय में कुछ नहीं बताया. 15 दिनों की छुट्टियां बीत गईं और निमिषा अपने घर वापस लौट आई. अपने घर लौटने के पश्चात भी निमिषा का मन नहीं बदला. वह मुदित के पास लौट तो आई थी लेकिन केवल शारीरिक रूप से. मानसिक रूप से वह अब भी घायल अवस्था में अपने मायके की गलियों में ही छूट गई थी. मुदित को भी उस ने कुछ नहीं बताया. किस मुंह से बताती, कैसे कहती कि अब वह उस के लायक नहीं रही. उस के मन में स्वार्थ पसरने लगा – यदि मुदित ने उस से मुंह मोड़ लिया, तो? अगर मुदित के घरवालों ने इस बात को ले कर बखेड़ा खड़ा कर दिया और उस का रिश्ता तुड़वा दिया तो? स्वयं को एक विवाहिता तिरस्कृत स्त्री की अवस्था में देखना – ऐसी कल्पना मात्र से ही निमिषा सहम उठती. अब वह और अधिक मानसिक संताप झेलने की स्थिति में नहीं थी.
उसे चुपचुप देख मुदित सोचता कि मायके की याद सता रही है. उस की उदास भावभंगिमा को दूसरा ही रूप दे दिया था मुदित ने. और निमिषा ने भी इस गलतफहमी से परदा नहीं उठाया. मुदित ने अपनी ओर से कोई कमी नहीं रख छोड़ी उस को प्रसन्नचित्त रखने में. लेकिन निमिषा का दिल किसी स्थिति में हरित होने को अभी तैयार न था.
कुछ समय पश्चात निमिषा के बंजर हृदय की मरुभूमि पर प्रेम का छोटा सा बीज अंकुरित होने लगा. जल्द ही इस में नन्हीनन्ही कोंपलें निकलने लगीं. बरसात की काली घटाएं छट चुकी थीं. उज्ज्वल, नीले आकाश में अरुणोदय की लालिमा फिर छिटकने लगी. टेसू के फूलों से प्रकृति सिंदूरी हो गई. निमिषा और मुदित अपने आंगन में खिलती इस नन्ही कली के आगमन से अतुलनीय उल्लसित थे. समय के साथ परिस्थिति में परिवर्तन आया. और निमिषा की मानसिक स्थिति में अपेक्षित सुधार हुआ. धीरेधीरे वह अपने स्याह अतीत को भूल कर स्वर्णिम वर्तमान में जीने लगी और उजले भविष्य के स्वप्न संजोने लगी.
“मुझे कायर कहो या स्वार्थी, यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ती हूं,” अपनी आपबीती सुना कर निमिषा वर्तमान परिवेश में लौट आई. “मेरा विश्वास करो, मैं नहीं जानती थी कि तुम उस राक्षस का बीज हो. मुझे नहीं पता था कि तुम मेरे जीवन की उस सब से कड़वी सचाई का प्रतीक हो. मैं ने और मुदित ने तुम्हें हमारे प्रेम की परछाईं के रूप में स्वीकारा तथा अपनाया.” निमिषा के नेत्रों से अविरल बहती बूंदें उस घाव के हरा होने पर हस्ताक्षर कर रही थीं.
विहा को अपनी मां को इस अवस्था में देख कर बेहद पीड़ा पहुंचने लगी. जो कुछ उन के साथ घटा, उस में उन की क्या त्रुटि थी. ऐसे में एक स्त्री करे भी तो क्या. केवल 2 ही विकल्प हैं – या तो दोषी को सज़ा देने के लिए लड़ने की हिम्मत दिखाए या फिर मौन रह कर जीवन में आगे बढ़ जाए. जिस समय व अवस्था में उस की मां उन दिनों थीं, उन्होंने खामोशी से इस अध्याय को जीवन की किताब से फाड़ देना उचित समझा. इस के लिए न तो उन्हें दोष देना सही है और न ही इस घाव को कुरेदना.
“जो हुआ सो खत्म हुआ, मां. आप स्वयं उस बाधा को लांघ कर आगे बढ़ आई हैं. अब पीछे मुड़ कर देखने से कोई लाभ नहीं. मुझे क्षमा कर दो, मां. मेरे कारण आप को अपने जीवन के उस घिनौने प्रकरण को दोहराना पड़ा,” कहते हुए विहा ने निमिषा को आलिंगनबद्ध कर लिया. दोनों मांबेटी एकदूसरे का संबल बनने लगीं. जब तक मुदित वापस लौटे, घर में सबकुछ पहले जैसा हो चुका था.
घर के अंदर शांति आ चुकी थी. लेकिन विहा के भीतर अब वही अशांतिभरी आग प्रज्ज्वलित होने लगी जो उस शाम निमिषा के अंदर सुलगी थी. निमिषा ने सोनू को क्षमा किया हो या नहीं, परंतु उस के नीच कृत्य का दंड नहीं दिया था. निमिषा के अंदर सुलगती मशाल अब विहा ने थाम ली. मन ही मन उस ने सोनू को कुसूरवार ठहराया और सज़ा देने का निश्चय कर डाला. उस के लिए उस के मातापिता निमिषा और मुदित थे. वह जैविक आधार पर सोनू को अपना पिता नहीं, अपितु अपनी मां का गुनाहगार मान चुकी थी. उस ने जो किया वह केवल कुकर्म नहीं, पाप था, एक स्त्री का सर्वोच्च अपमान था. अपनी मां के अपराधी को सज़ा दे कर उन्हें न्याय दिलाना अब विहा ने अपना ध्येय बना लिया. मगर कैसे? कैसे ढूंढेगी वह सोनू को? कैसे दंडित करेगी उस राक्षस को? इसी ऊहापोह में सारी रात्रि गुज़र गई.
अगली सुबह विहा के लिए युक्ति-श्रंखला ले कर आई. सारी रात सोचविचार करने के पश्चात वह अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने को तैयार थी. जो कुछ हुआ, इसी शहर में हुआ. सिकल सेल बीमारी बहुत आम नहीं, इसलिए हो सकता है कि अस्पताल के डाटाबेस में उसे अपराधियों के नामपते मिल जाएं. इस आशा से विहा अपने अस्पताल पहुंची जहां वह अपनी बीमारी का इलाज करवाने जाया करती थी. आज उस ने डाक्टर से मिलने के पश्चात वापस घर लौटने की जगह अस्पताल के रिकौर्डरूम में सेंध लगाई. सब की नज़र बचा कर वह अंदर प्रवेश करने में सफल हो गई. रिसैप्शन डैस्क पर एक नवयुवक को बैठा देख विहा थोड़ी आश्वस्त हुई. उस ने अपनी अदाओं और मुसकराहट के जादू का भरपूर प्रयोग करते हुए उस युवक को अपना कालेज आईडी दिखाया और बताया कि एक प्रोजैक्ट के तहत उसे सिकल सेल बीमारी के मरीजों से एक प्रश्नावली भरवानी है. उसे स्वयं भी यही बीमारी है. इस के कागजात दिखाने पर उस की बात के वज़न में वृद्धि हुई.
अब सिकल सेल बीमारों की सूची उस के हाथ में थी. क्रमानुसार उस ने नाम खोजने आरंभ किए. जैसे ही उस ने नाम पढ़े, उसे ज्ञात हुआ कि संभवतया ‘सोनू’ उस अपराधी के घर का नाम था, पेट नेम. उस का असली नाम उस की मां भी नहीं जानती थी. विहा को अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा. सूची ले कर वह अपने कालेज चली गई जहां अकेले में बैठ कर उस ने एकएक मरीज़ को फोन करना शुरू कर दिया, “मैं एक इंजीनियरिंग स्टूडैंट हूं और सिकल सेल बीमारी पर एक प्रोजैक्ट कर रही हूं. इस अध्ययन के निष्कर्षों के बल पर हम इस बीमारी का जेनेटिक इलाज खोजने में प्रयासरत हैं,” कहते हुए वह प्रश्नावली में लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखने लगी.
पूरा नाम, घर का नाम (पेट नेम), घर का पता, जन्मतिथि, ब्लड ग्रुप, बीमारी के मौजूद लक्षण… लंबी प्रश्नावली भरते हुए काफी डाटा इकठ्ठा हो गया. विहा को मायूस नहीं होना पड़ा. प्रश्नावलियों में सोनू का नाम था. उस का असली नाम रोहित है और वह इसी शहर में रहता है. विहा ने अपनी अगली रणनीति तय कर ली.
मात्र 2 दिनों में वह रोहित उर्फ सोनू के घर के दरवाजे पर थी. दरवाजा उस की पत्नी ने खोला. विहा ने कहा, “नमस्कार मैडम, क्या मैं मिस्टर रोहित से मिल सकती हूं?”
रोहित का भक्क सफ़ेद रंग और बिल्ली जैसी कंजी आंखें देख कर विहा को विश्वास हो गया कि यही उस का जैविक पिता है. परंतु फिर भी वह ठोस प्रमाण चाहती थी. “सर, मैं एक संस्था से जुड़ी हूं जो आनुवंशिक बीमारियों के ऊपर कार्य करती है,” अपना परिचय देते हुए विहा ने नकली आईडी दिखाई जो उस ने कंप्यूटर से प्रिंटआउट निकाल कर बनाई थी. “हम अस्पतालों से जुड़ कर उन के डाटाबेस से मरीजों को संपर्क करते हैं और उन का डीएनए परीक्षण करते हैं ताकि उस क्षेत्र में जो काम हो रहा है उस में वृद्धि हो सके. इस में कोई खतरा नहीं है, किसी प्रकार का कोई जोखिम नहीं है. आप निश्चिंत हो कर मुझे अपना चीक स्वैब लेने दें ताकि मैं आप का डीएनए टैस्ट कर सकूं.”
“ठीक है,” विहा के आत्मविश्वास से लबरेज़ व्यक्तित्व ने रोहित को उस की बात स्वीकारने पर विवश कर दिया. जिस प्रकार विहा ने उस की आंखों में आंखें डाल कर अपनी बात उस के समक्ष रखी, रोहित को उस की प्रामाणिकता पर विश्वास हो गया. उस पर विहा के पास रोहित को दिखाने के लिए सारे कागजात भी मौजूद थे. विहा योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रही थी, सो, उस ने सभी ज़रूरी दस्तावेज़ अपनी फाइल में जमा कर रखे थे.
बाहर से मुसकराती, विनम्रता से बातें करती विहा को रोहित की सूरत देख कर कितनी तकलीफ पहुंच रही थी और उस द्वेषभाव को छिपाने में कितना कष्ट हो रहा था, यह बात उस कमरे में केवल वही जानती थी.
अगले दिन विहा ने रोहित के डीएनए सैंपल से अपना सैंपल मिलाया. निष्कर्ष आशारूप आया – रोहित ही विहा का जैविक पिता निकला. तो यही वह दरिंदा है जिस ने निमिषा के जीवन में सर्वोच्च कटु अनुभव जोड़ा. अपनी हवस मिटाने के लिए इस ने एक स्त्री की अस्मत को लूट कर न केवल उस की इज्ज़त को तारतार किया अपितु उस के आत्मसम्मान, उस के आत्मविश्वास और भरोसे को भी चकनाचूर कर दिया. एक स्त्री को मनुष्य न समझ कर भोग की वस्तु मानना, कब अंत होगा ऐसी घिनौनी मानसिकता का. जो ज्वाला कभी निमिषा के दिल में धधकी होगी, उस की तपिश आज विहा अनुभव कर रही थी. क्या इतने घृणित कार्य की भरपाई संभव है? शायद नहीं.
घर लौट कर विहा ने निमिषा को देखा तो उस के अंदर प्रतिशोध लेने की इच्छा और भी प्रबल हो उठी. अपने अंदर की जलन को शांत करने का अब यही एकमात्र मार्ग सूझ रहा था. आज पूरी रात विहा के नयनों में नींद की जगह आनेवाले कल की योजना तैरती रही.
विहा ने घंटी बजाई, तो इस बार रोहित ने दरवाजा खोला, “आप?”
“आज आप के लिए एक खुशखबरी है, वही देने आई हूं. क्या मैं अंदर आ सकती हूं?” विहा की मासूम मुसकान देख कर रोहित ने उसे सहज अंदर बुला लिया. “सर, जैसा कि मैं ने आप को बताया था, हमारी संस्था आप जैसे मरीजों के लिए एक बेहद सकारात्मक कदम पर पहुंच रही है. उस दिन आप के द्वारा दिए डीएनए सैंपल से हम काफी अच्छी जानकारी प्राप्त कर सके. अब हमें आप का ब्लड सैंपल चाहिए होगा. यदि आप अपना एक यूनिट खून देने को तैयार हों तो…”
“खून… पर… क्या नाम बताया आप ने अपना?” रोहित रक्तदान की बात सुन कर कुछ विचलित हुआ.
“मेरा नाम मानुषी है,” विहा ने अपने नकली आईडी में वर्णित नकली नाम बता दिया.
“दरअसल, मुझे सूई से घबराहट होती है.”
“आप चिंता मत कीजिए, मेरा हाथ बहुत हलका है, आप को पता भी नहीं चलेगा. यदि मैं ने ब्लड सैंपल नहीं लिया तो अब तक की सारी मेहनत व्यर्थ हो जाएगी. मुझे विश्वास है कि आप ऐसा नहीं चाहेंगे,” विहा ने रोहित को शांत करने का प्रयास किया, “आप दूसरी तरफ मुंह घुमा लीजिए, आप को पता भी नहीं चलेगा.”
विहा की बात मान कर रोहित ने वैसा ही किया. जैसे ही रोहित ने दूसरी दिशा में मुंह घुमाया, विहा ने अपने बैग से सूई निकाली, एक दवा की शीशी निकाली, सूई में वह दवा भरी और देखते ही देखते रोहित के अंदर सूई के जरिए वह दवा डाल दी. रोहित सोचता रहा कि मानुषी उर्फ विहा उस का खून निकाल रही है. परंतु असलियत में विहा ने उस के शरीर के अंदर एक दवा डाल दी थी.
“हो गया मिस्टर रोहित. देखा, आप को पता भी नहीं चला,” विहा हंसते हुए बोली.
“सही कह रही हो तुम. मुझे वाकई पता नहीं चला,” रोहित ने भी मुसकरा कर हामी भरी.
रोहित की मुसकराहट ने जैसे विहा को डंक की तरह डसा. “इतनी जल्दी क्या है, आखिर 21 साल पुराने मर्ज का इलाज किया है. थोड़ी देर रुक जाइए, तब पता चलेगा,” यह कहने से वह स्वयं को रोक नहीं पाई, “आप के शरीर से थोड़ा खून कम नहीं हुआ है, बल्कि इस समय आप के शरीर में ऐसा जहर तेज़ी से दौड़ रहा है जो थोड़ी देर में आप को पंगु बना देगा. इस से पहले कि आप एक ज़िंदा लाश बन जाएं, मेरी बात ध्यान से सुनिए. याद है, आज से 21 साल पहले आप ने अपनी बहन की सहेली का विश्वास तोड़ा था, अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस की इज्ज़त लूटी थी. उसी घटिया हरकत का नतीजा आप के सामने खड़ा है.”
रोहित, विहा की बात का मर्म समझने लगा. उस ने छटपटा कर खड़े होने का प्रयास किया लेकिन वह लड़खड़ा कर वहीं कुरसी पर ढेर हो गया. उस की आंखों में बेचारगी का भाव उतरने लगा. जहर का असर धीरेधीरे होने लगा. पर जहर के अलावा विहा की बात का असर रोहित पर तेज़ी से हो रहा था. शारीरिक रूप के बजाय मानसिक हालात इंसान को अतिशीघ्र प्रभावित करते हैं.
“आज मेरी मां का प्रतिशोध पूर्ण हुआ. अब मुझे अपने जीवन पर गर्व है,” कहते हुए विहा अपना सामान समेट कर दरवाजे तक पहुंच गई. रोहित उसी हालत में बैठा हुआ उसे घूरता रहा. “आज से मेरे और आप के, दोनों के जीवन का नया अध्याय आरंभ होता है. आप को अपनी नई ज़िंदगी मुबारक हो,” कह विहा उस घर और रोहित की ज़िंदगी से हेमशा के लिए गायब हो गई.