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कहानी: मैं जलती हूं तुम से

छोटीछोटी बात पर परेशान रहने वाली नीरा पति विपिन की कौन सा राज जानना चाहती थी, जिसे वह 25 सालों तक नहीं जान पाई थी.

विपिन और मैं डाइनिंगटेबल पर नाश्ता कर रहे थे. अचानक मेरा मोबाइल बजा. हमारी बाई लता का फोन था.


‘‘मैडम, आज नहीं आऊंगी. कुछ काम है.’’


मैं ने कहा, ‘‘ठीक है,’’ पर मेरा मूड खराब हो गया.


विपिन ने अंदाजा लगा लिया.


‘‘क्या हुआ? आज छुट्टी पर है?’’


मैं ने कहा, ‘‘हां.’’


‘‘कोई बात नहीं नीरा, टेक इट ईजी.’’


मैं ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘बड़ी परेशानी होती है… हर हफ्ते 1-2 छुट्टियां कर लेती है. 8 साल पुरानी मेड है… कुछ कहने का मन भी नहीं करता.’’


‘‘हां, तो ठीक है न परेशान मत हो. कुछ मत करना तुम.’’


‘‘अच्छा? तो कैसे काम चलेगा? बिना सफाई किए, बिना बरतन धोए काम चलेगा क्या?’’


‘‘क्यों नहीं चलेगा? तुम सचमुच कुछ मत करना नहीं तो तुम्हारा बैकपेन बढ़ जाएगा… जरूरत ही नहीं है कुछ करने की… लता कल आएगी तो सब साफ कर लेगी.’’


‘‘कैसे हो तुम? इतना आसान होता है क्या सब काम कल के लिए छोड़ कर बैठ जाना?’’


‘‘अरे, बहुत आसान होता है. देखो खाना बन चुका है. शैली कालेज जा चुकी है, मैं भी औफिस जा रहा हूं. शैली और मैं अब शाम को ही आएंगे. तुम अकेली ही हो पूरा दिन. घर साफ ही है. कोई छोटा बच्चा तो है नहीं घर में जो घर गंदा करेगा. बरतन की जरूरत हो तो और निकाल लेना. बस, आराम करो, खुश रहो, यह तो बहुत छोटी सी बात है. इस के लिए क्या सुबहसुबह मूड खराब करना.’’


मैं विपिन का शांत, सौम्य चेहरा देखती रह गई. 25 सालों का साथ है हमारा. आज भी मुझे उन पर, उन की सोच पर प्यार पहले दिन की ही तरह आ जाता है.


मैं उन्हें जिस तरह से देख रही थी, यह देख वे हंस पड़े. बोले, ‘‘क्या सोचने लगी?’’


मेरे मुंह से न जाने क्यों यही निकला, ‘‘तुम्हें पता है, मैं जलती हूं तुम से?’’


जोर का ठहाका लगा कर हंस पड़े विपिन, ‘‘सच? पर क्यों?’’


मैं भी हंस दी. वे बोले, ‘‘बताओ तो?’’


मैं ने न में सिर हिला दिया.


फिर उन्होंने घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘अब चलता हूं, आज औफिस में भी इस बात पर हंसी आएगी कि मेरी पत्नी ही जलती है मुझ से. भई, वाह क्या बात कही. शाम को आऊंगा तो बताना.’’


विपिन औफिस चले गए. मैं ने घर में इधर, उधर घूम कर देखा. हां, ठीक ही तो कह रहे थे विपिन. घर साफ ही है पर मैं भी आदत से मजबूर हूं. किचन में सारा दिन जूठे बरतन तो नहीं देख सकती न. सोचा बरतन धो लेती हूं. बस फिर झाड़ू लगा लूंगी, पोंछा छोड़ दूंगी. काम करतेकरते अपनी ही कही बात मेरे जेहन में बारबार गूंज रही थी.


हां, यह सच है कभीकभी विपिन के सौम्य, केयरफ्री, मस्तमौला स्वभाव से जलन सी होने लगती है. वे हैं ही ऐसे. कई बार उन्हें कह चुकी हूं कि विपिन, तुम्हारे अंदर किसी संत का दिल है क्या, वरना तो क्या यह संभव है कि इंसान किसी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित न हो? ऐसा भी नहीं कि कभी उन्होंने कोईर् परेशानी या दुख नहीं देखा. बहुत कुछ सहा है पर हर विपरीत परिस्थिति से यों निकल आते हैं जैसे बस कोई धूल भरा कपड़ा धो कर झटक कर तार पर डाल कर हाथ धो लिए हों. जब भी कभी मूड खराब होता है बस कुछ पल चुपचाप बैठते हैं और फिर स्वयं को सामान्य कर वही हलकीफुलकी बातें. कई बार उन्हें छेड़ चुकी हूं कि कोई गुरुमंत्र पढ़ लेते हो क्या मन में?


रात में सोने के समय अगर हम दोनों को कोई बात परेशान कर रही हो तो जहां मैं रात भर करवटें बदलती रहती हूं, वहीं वे लेटते ही चैन की नींद सो जाते हैं.


विपिन की सोने की आदत से कभीकभी मन में आता है कि काश, मैं भी विपिन की तरह होती तो कितनी आसान सी जिंदगी जी लेती पर नहीं, मुझे तो अगर एक बार परेशान कर रही है तो सुखचैन खत्म हो जाता है मेरा, जब तक कि उस का हल न निकल आए पर विपिन फिर सुबह चुस्तदुरुस्त सुबह की सैर पर जाने के लिए तैयार.


विदेश में पढ़ रहा हमारा बेटा पर्व. अगर सुबह से रात तक फोन न कर पाए तो मेरा तो मुंह लटक जाता है पर विपिन कहेंगे ‘‘अरे, बिजी होगा. वहां सब उसे अपनेआप मैनेज करना पड़ता है. जैसे ही फुरसत होगी कर लेगा फोन वरना तुम ही कर लेना. परेशान होने की क्या बात है? इतना मत सोचा करो.’’


मैं घूरती हूं तो हंस पड़ते हैं, ‘‘हां, अब यही कहोगी न कि तुम मां हो, मां का दिल वगैरहवगैरह. पर डियर, मैं भी तो उस का पिता हूं, पर परेशान होने से बात बनती नहीं, बिगड़ जाती है.’’


मैं चिढ़ कर कहती हूं, ‘‘अच्छा, गुरुदेव.’’


जब खाने की बात हो, मेरी हर दोस्त, मेरी मां, बच्चे सब हैरान रह जाते हैं कि खाने के मामले में विपिन जैसा सादा इंसान शायद ही कोई दूसरा हो.


कई सहेलियां तो अकसर कहती हैं, ‘‘नीरा, जलन होती है तुम से… कितना अच्छा पति मिला है तुम्हें… कोई नखरा नहीं.’’


हां, तो आज मैं यही तो सोच रही हूं कि जलन होती है विपिन से, जो खाना प्लेट में हो, इतने शौक से खाएंगे कि क्या कहा जाए. सिर्फ दालचावल भी इतना रस ले कर खाएंगे कि मैं उन का मुंह देखती रह जाती हूं कि क्या सचमुच उन्हें इतना मजा आ रहा होगा खाने में.


हम तीनों अगर कोई मूवी देखने जाएं और अगर मूवी खराब हुई तो शैली और मैं कार में मूवी की आलोचना करेंगे. अगर विपिन से पूछेंगे कि कैसी लगी तो कहेंगे कि अच्छी तो नहीं थी पर अब क्या मूड खराब करना. टाइमपास करने गए थे न, कर आए. हंसी आ जाती है इस फिलौसफी पर.


हद तो तब थी जब हमारे एक घनिष्ठ रिश्तेदार ने निरर्थक बात पर हमारे साथ दुर्व्यवहार किया. हमारे संबंध हमेशा के लिए खराब हो गए. जहां मैं कई दिनों तक दुख में डूबी रही, वहीं थोड़ी देर चुप बैठने के बाद उन्होंने मुझे प्यार भरे गंभीर स्वर में कुछ यों समझाया, ‘‘नीरा, बस भूल जाओ उन्हें. यही संतोष है कि हम ने तो कुछ बुरा नहीं कहा उन्हें और अगर किसी अपने से इतना दिल दुखे तो वह फिर अपना कहां हुआ. अपने से तो प्यार, सहयोग मिलना चाहिए न… जो इतने सालों से मानसिक कष्ट दे रहे थे, उन से दूर होने पर खुश होना चाहिए कि व्यर्थ के झूठे रिश्तों से मुक्ति मिली, ऐसे अपने किस काम के जो मन को अकारण आहत करते रहें.’’


विपिन के बारे में ही सोचतेसोचते मैं ने अपने सारे काम निबटा लिए थे. आज अपनी ही कही बात में मेरा ध्यान था. ऐसे अनगिनत उदाहरण


हैं जब मुझे लगता है काश, मैं विपिन की तरह होती. हर बात को उन की तरह सोच लेती. हां, उन के जीने के अंदाज से जलन होती है मुझे,


पर इस जलन में असीमित प्रेम है मेरा, सम्मान है, गर्व है, खुशी है. उन की सोच ने मुझे जीवन में कई बार मेरे भावुक मन को निराशाओं से उबारा है.


शाम को विपिन जब औफिस से लौटे तो सामान्य बातचीत के बाद उन्होंने किचन में झांका, तो हंस पड़े, ‘‘मैं जानता था तुम मानोगी नहीं. सारे काम कर लोगी… क्यों किया ये सब?’’


‘‘जब जानते हो मानूंगी नहीं तो यह भी पता होगा कि पूरा दिन गंदा घर मुझे अच्छा नहीं लगता.’’


‘‘अच्छा, ठीक है तबीयत तो ठीक है न?’’


‘‘हां,’’ वे जब तक फ्रैश हो कर आए, मैं ने चाय बना ली थी.


चाय पीतेपीते मुसकराए, ‘‘चलो, बताओ क्यों जलती हो मुझ से? सोचा था, औफिस से फोन पर पूछूंगा, पर काम बहुत था. अब बताओ.’’


‘‘यह जो हर स्थिति में तालमेल स्थापित कर लेते हो न तुम, इस से जलती हूं मैं. बहुत हो गया, आज गुरुमंत्र दे ही दो नहीं तो तुम्हारे जीने के अंदाज पर रोज ऐसे ही जलती रहूंगी मैं,’’ कह कर मैं हसी पड़ी.


विपिन ने मुझे गहरी नजरों देखते हुए कहा, ‘‘जीवन में जो हमारी इच्छानुसार न हो, उसे चुपचाप स्वीकार कर लो. जीवन जीने का यही एकमात्र उपाय है, ‘टेक लाइफ एज इट कम्स’.’’


मैं उन्हें अपलक देख रही थी. सादे से शब्द कितने गहरे थे. मैं तनमन से उन शब्दों को आत्मसात कर रही थी.


अचानक उन्होंने शरारत भरे स्वर में पूछा, ‘‘अब भी मुझ से जलन होगी?’’


मैं जोर से हंस पड़ी.

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