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कहानी: गड़ा धन

लात लगने और चिल्लाने की आवाज से राजू की नींद तो खुल ही गई थी. आंखें मलता, दारूबाज बाप को घूरता हुआ वह गुसलखाने की ओर जाने लगा.

‘‘चल बे उठ… बहुत सो लिया… सिर पर सूरज चढ़ आया, पर तेरी नींद है कि पूरी होने का नाम ही नहीं लेती,’’ राजू का बाप रमेश को झकझोरते हुए बोला.


‘‘अरे, अभी सोने दो. बेचारा कितना थकाहारा आता है. खड़ेखड़े पैर दुखने लगते हैं… और करता भी किस के लिए है… घर के लिए ही न… कुछ देर और सो लेने दो…’’ राजू की मां लक्ष्मी ने कहा.


‘‘अरे, करता है तो कौन सा एहसान करता है. खुद भी तो रोटी तोड़ता है चार टाइम,’’ कह कर बाप रमेश फिर से राजू को लतियाता है, ‘‘उठ बे… देर हो जाएगी, तो सेठ अलग से मारेगा…’’


लात लगने और चिल्लाने की आवाज से राजू की नींद तो खुल ही गई थी. आंखें मलता, दारूबाज बाप को घूरता हुआ वह गुसलखाने की ओर जाने लगा.


‘‘देखो तो कैसे आंखें निकाल रहा है, जैसे काट कर खा जाएगा मुझे.’’


‘‘अरे, क्यों सुबहसुबह जलीकटी बक रहे हो,’’ राजू की मां बोली.


‘‘अच्छा, मैं बक रहा हूं और जो तेरा लाड़ला घूर रहा है मुझे…’’ और एक लात राजू की मां को भी मिल गई.


राजू जल्दीजल्दी इस नरक से निकल जाने की फिराक में है और बाप रमेश सब को काम पर लगा कर बोतल में मुंह धोने की फिराक में. छोटी गलती पर सेठ की गालियां और कभीकभार मार भी पड़ती थी बेचारे 12 साल के राजू को.


यहां राजू की मां लक्ष्मी घर का सारा काम निबटा कर काम पर चली गई. वह भी घर का खर्च चलाने के लिए दूसरों के घरों में झाड़ूबरतन करती थी.


‘‘लक्ष्मी, तू उस बाबा के मजार पर गई थी क्या धागा बांधने?’’ मालकिन के घर कपड़े धोने आई एक और काम वाली माला पूछने लगी.


माला अधेड़ उम्र की थी और लक्ष्मी की परेशानियों को जानती भी थी, इसलिए वह कुछ न कुछ उस की मदद करने को तैयार रहती.


‘‘हां गई थी उसे ले कर… नशे में धुत्त रहता है दिनरात… बड़ी मुकिश्ल से साथ चलने को राजी हुआ…’’ लक्ष्मी ने जवाब दिया, ‘‘पर होगा क्या इस सब से… इतने साल तो हो गए… इस बाबा की दरगाह… उस बाबा का मजार… ये मंदिर… उस बाबा के दर्शन… ये पूजा… चढ़ावा… सब तो कर के देख लिया, पर न ही कोख फलती है और न ही घर पनपता है. बस, आस के सहारे दिन कट रहे हैं,’’ कहतेकहते लक्ष्मी की आंखों से आंसू आ गए.


माला उसे हिम्मत बंधाते हुए बोली, ‘‘सब कर्मों के फल हैं री… और जो भोगना लिखा है, वह तो भोगना ही पड़ेगा.’’


‘‘हां…’’ बोलते हुए लक्ष्मी अपने सूखे आंसुओं को पीने की कोशिश करने लगी.


‘‘सुन, एक बाबा और है. उस को देवता आते हैं. वह सब बताता है और उसी के अुनसार पूजा करने से बिगड़े काम बन जाते हैं,’’ माला ने बताया.


‘‘अच्छा, तुझे कैसे पता?’’ लक्ष्मी ने आंसू पोंछते हुए पूछा.


‘‘कल ही मेरी रिश्ते की मौसी बता रही थी कि किस तरह उस की लड़की की ननद की गोद हरी हो गई और बच्चे के आने से घर में खुशहाली भी छा गई. मुझे तभी तेरा खयाल आया और उस बाबा का पताठिकाना पूछ कर ले आई. अब तू बोल कि कब चलना है?’’


‘‘उस से पूछ कर बताऊंगी… पता नहीं किस दिन होश में रहेगा.’’


‘‘हां, ठीक है. वह बाबा सिर्फ इतवार और बुधवार को ही बताता है. और कल बुधवार है, अगर तैयार हो जाए, तो सीधे मेरे घर आ जाना सुबह ही, फिर हम साथ चलेंगे… मुझे भी अपनी लड़की की शादी के बारे में पूछना है,’’ माला बोली.


लक्ष्मी ने हां भरी और दोनों काम निबटा कर अपनेअपने रास्ते हो लीं. लक्ष्मी माला की बात सुन कर खुश थी कि अगर सबकुछ सही रहा, तो जल्दी ही उस के घर की भी मनहूसियत दूर हो जाएगी. पर कहीं राजू का बाप न सुधरा तो… आने वाली औलाद के साथ भी उस ने यही किया तो… जैसे सवालों ने उस की खुशी को ग्रहण लगाने की कोशिश की, पर उस ने खुद को संभाल लिया.


सामने आम का ठेला देख कर लक्ष्मी को राजू की याद आ गई.


‘राजू के बाप को भी तो आम का रस बहुत पसंद है. सुबहसुबह बेचारा राजू उदास हो कर घर से निकला था, आम के रस से रोटी खाएगा, तो खुश हो जाएगा और राजू के बाप को भी बाबा के पास जाने को मना लूंगी,’ मन में ही सारे तानेबाने बुन कर लक्ष्मी रुकी और एक आम ले कर जल्दीजल्दी घर की ओर चल दी.


घर पहुंच कर दोनों को खाना खिला कर सारे कामों से फारिग हो लक्ष्मी राजू के बाप से बात करने लगी. शराब का नशा कम था शायद या आम के रस का नशा हो आया था, वह अगले ही दिन जाने को मान गया.


अगले दिन राजू, उस का बाप और लक्ष्मी सुबह ही माला के घर पहुंच गए और वहां से माला को साथ ले कर बाबा के ठिकाने पर चल दिए.


बाबा के दरवाजे पर 8-10 लोग पहले से ही अपनीअपनी परेशानी को दूर कर सुखों में बदलवाने के लिए बाहर ही बैठे थे. एकएक कर के सब को अंदर बुलाया जाता. वे लोग भी जा कर बाबा के घर के बाहर वाले कमरे में उन लोगों के साथ बैठ गए.


सभी लोग अपनीअपनी परेशानी में खोए थे. यहां माला लक्ष्मी को बीचबीच में बताती जाती कि बाबा से कैसा बरताव करना है और इतनी जोर से समझाती कि नशेड़ी रमेश के कानों में भी आवाज पहुंच जाती. एकदो बार तो रमेश को गुस्सा आया, पर लक्ष्मी ने उसे हाथ पकड़ कर बैठाए रखा.


तकरीबन 2 घंटे के इंतजार के बाद उन की बारी आई, तब तक 5-6 परेशान लोग और आ चुके थे. खैर, अपनी बारी आने की खुशी लक्ष्मी के चेहरे पर साफ झलक रही थी. यों लग रहा था, मानो यहां से वह बच्चा ले कर और घर की गरीबी यहीं छोड़ कर जाएगी. चारों अंदर गए. बाबा ने उन की समस्या सुनी. फिर थोड़ी देर ध्यान लगा कर बैठ गया.


कुछ देर बाद बाबा ने जब आंखें खोलीं, तो आंखें आकार में पहले से काफी बड़ी थीं. अब लक्ष्मी को भरोसा हो गया था कि उस की समस्या का खात्मा हो ही जाएगा.


बाबा ने कहा, ‘‘कोई है, जिस की काली छाया तुम लोगों के घर पर पड़ रही है. वही तुम्हारे बच्चा न होने की वजह है और जहां तुम रहते हो, वहां गड़ा धन भी है, चाहो तो उसे निकलवा कर रातोंरात सेठ बन सकते हो…’’


रमेश और लक्ष्मी की आंखें चमक उठीं. उन दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा, फिर रमेश बाबा से बोला, ‘‘हम लोग खुद ही खुदाई कर के धन निकाल लेंगे और आप को चढ़ावा भी चढ़ा देंगे. आप तो जगह बता दो बस…’’


बाबा ने जोर का ठहाका लगाया और बोले, ‘‘यह सब इतना आसान नहीं…’’


‘‘तो फिर… क्या करना होगा,’’ रमेश उतावला हो उठा.


‘‘कर सकोगे?’’


‘‘आप बोलिए तो… इतने दुख सहे हैं, अब तो थोड़े से सुख के बदले भी कुछ भी कर जाऊंगा.’’


‘‘बलि लगेगी.’’


‘‘बस, इतनी सी बात. मैं बकरे का इंतजाम कर लूंगा.’’


‘‘बकरे की नहीं.’’


‘‘तो फिर…’’


‘‘नरबलि.’’


रमेश को काटो तो खून नहीं. लक्ष्मी और राजू भी सहम गए.


‘‘मतलब किसी इनसान की हत्या?’’ रमेश बोला.


‘‘तो क्या गड़ा धन और औलाद पाना मजाक लग रहा था तुम लोगों को. जाओ, तुम लोगों से नहीं हो पाएगा,’’ बाबा तकरीबन चिल्ला उठा.


माला बीच में ही बोल उठी, ‘‘नहीं बाबा, नाराज मत हो. मैं समझाती हूं दोनों को,’’ और लक्ष्मी को अलग ले जा कर माला बोलने लगी, ‘‘एक जान की ही तो बात है. सोच, उस के बाद घर में खुशियां ही खुशियां होंगी. बच्चापैसा सब… देदे बलि.’’


लक्ष्मी तो जैसे होश ही खो बैठी थी. तब तक रमेश भी उन दोनों के पास आ गया और माला की बात बीच में ही काटते हुए बोला, ‘‘किस की बलि दे दें?’’


‘‘जिस का कोई नहीं उसी की. अपना खून अपना ही होता है. पराए और अपने में फर्क जानो,’’ माला बोली.


यह बात सुन कर रमेश का जमा हुआ खून अचानक खौल उठा और माला पर तकरीबन झपटते हुए बोला, ‘‘किस की बात कर रही है बुढि़या… जबान संभाल… वह मेरा बेटा है. 2 साल का था, जब वह मुझे बिलखते हुए रेलवे स्टेशन पर मिला था. कलेजे का टुकड़ा है वह मेरा,’’ राजू कोने में खड़ा सब सुनता रहा और आंखें फाड़फाड़ कर देखता रहा.


बाबा सब तमाशा देखसमझ चुका था कि ये लोग जाल में नहीं फंसेंगे और न ही कोई मोटी दक्षिणा का इंतजाम होगा, इसलिए शिष्य से कह कर उन चारों को वहां से बाहर निकलवा दिया.


राजू हैरान था. बाहर निकल कर राजू के मुंह से बस यही शब्द निकले, ‘‘बाबा, मैं तेरा गड़ा धन बनूंगा.’’


यह सुन कर रमेश ने राजू को अपने सीने से लगा लिया. उस ने राजू से माफी मांगी और कसम खाई कि आज के बाद वह कभी शराब को हाथ नहीं लगाएगा.

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