कहानी: आईना
मां के अचानक आ जाने से गरिमा बहुत खुश हुई पर जब मां ने उस की सुखी गृहस्थी में बिखराव लाने की कोशिश की तो उस की सोई हुई भावनाएं जाग उठीं और उस ने बिखराव की पहली आहट पर ही विवेक का पहरा बिठा दिया.
सामान से लदीफंदी घर पहुंची, तो मैं ने बरामदे में मम्मी को इंतजार करते पाया.‘‘अरे मम्मी, आप कब आईं? न फोन, न कोई खबर,’’ मम्मी के पैर छूते हुए मैं ने उन से पूछा.
‘‘अचानक ही प्रोग्राम बन गया,’’ कहते हुए मम्मी ने मु झे गले लगा लिया. रामू, रामू, जरा चाय बनाना,’’ मैं ने नौकर को आवाज दे कर चाय बनाने को कहा.
‘‘तुम्हारे नौकर तो बहुत ट्रैंड हैं. मेरे आते ही चायपानी, सब बड़ी स्मार्टली करा दिया,’’ मम्मी बोलीं.
बातबात में इंग्लिश के शब्दों का इस्तेमाल करना मम्मी के व्यक्तित्व की खासीयत है. डाई किए कटे बाल, कानों में नगों वाले हीरे के टौप्स, गले में सोने की मोटी चेन में चमकता पैंडेंट, अच्छे मेकअप से संवरी उन की सुगठित काया सामने वाले पर अच्छा असर डालती है.
मैं ने प्रशंसा से मम्मी की ओर देखा, बादामी रंग पर हलके सतरंगी फूलों वाली साड़ी उन के गोरे तन पर फब रही थी. ड्राइवर सामान मेज पर रख कर चला गया था.
‘‘मम्मी, मैं बाजार से यह सामान लाई हूं, आप देखिए, मैं जरा हाथमुंह धो कर आती हूं,’’ कहती हुई मैं बाथरूम में चली गई.
‘‘हांहां, तुम फ्रैश हो कर आ जाओ,’’ मम्मी ने कहा.
मैं हाथमुंह धो कर आई तो मैं ने देखा, मेरे आने तक रामू मम्मी के सामने चाय के साथसाथ पकौडि़यों की प्लेट भी लगा चुका था.
मु झे देखते ही मम्मी बोलीं, ‘‘गरिमा, साडि़यां तो बहुत सुंदर हैं, लेकिन ये इतने सारे छोटेछोटे बाबा सूट किस के लिए लाई हो?’’ मम्मी पूछ तो मु झ से रही थीं पर उन की नजर हाथ में पकड़ी सोने की पतली चेन का निरीक्षण कर रही थी.
इतने सारे कहां, मम्मी? सिर्फ 5 सैट कपड़े हैं. भैरवी को बेटा हुआ है न, उसी के लिए लाई हूं,’’ मैं ने बताया.
‘‘अरे हां, याद आया. मैसेज तो आया था. मैं ने भी बधाई का लैटर भेज दिया था,’’ मम्मी बोलीं.
‘‘अच्छा किया, मम्मी, भैरवी को अच्छा लगा होगा. मैं भैरवी के घर जाने की ही तैयारी कर रही हूं. परसों इतवार है.
‘‘मैं ने 2 दिन की छुट्टी ले ली है. आज रात में ललितपुर से आदर्श यहां आ जाएंगे, कल सुबह यहां से निकलने का प्रोग्राम है. अब…’’ उत्साह से मैं बोलती ही जा रही थी.
‘‘चलो अच्छा है, आदर्श से भी मुलाकात हो जाएगी. मु झे भी कल मौर्निंग में ही वापसी निकलना है,’’ मम्मी बोलीं.
‘‘अरे, ऐसी क्या जल्दी है. हम लोग अपना प्रोग्राम थोड़ा बदल लेंगे. भैरवी के घर पहुंचने में सिर्फ 4 घंटे ही तो लगते हैं. और फिर, अपनी गाड़ी से जाना है, जब चाहें निकल लेंगे. इतने दिनों बाद तो आप आई हैं,’’ पकौडि़यां खाते हुए मैं बोली.
‘‘नहीं भई, मेरा प्रोग्राम तो एकदम डैफिनेट है. ठीक 7 बजे हम लोग यहां से निकल जाएंगे. ठंडेठंडे में कानपुर पहुंच जाएंगे,’’ मम्मी ने कहा.
‘‘हम लोग? यानी आप के साथ और भी कोई आया है?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा.
‘‘हमारी महिला समिति को मेरठ में एक ‘इन्क्वायरी’ करनी थी. तुम यहां पोस्टेड हो और मेरी सहेली सुलभा देशमुख की बेटी भी यहीं झांसी में मैरिड है. 2 मैंबर्स की टीम आनी थी, अच्छा चांस था. बस, हम दोनों तैयार हो गए. रास्ते में इन्क्वायरी का काम निबटाया. आज का दिन और एक रात अपनीअपनी बेटियों के साथ बिताएंगे और कल ईवनिग में 5 बजे समिति की मीटिंग में अपनी जांच रिपोर्ट दे देंगे. अब समिति की गाड़ी तो आनी ही थी, सो बिना खर्चे के बच्चों से मिलना हो गया,’’ कहती हुई मम्मी खिलखिला कर हंस पड़ीं.
चाय का स्वाद अचानक मेरे मुंह में कसैला हो गया. जाने क्यों, मम्मी का यह व्यावहारिक रूप मु झे कभी रास नहीं आया था. मैं मम्मी से मतलब निकालने की कला नहीं सीख सकी थी. केवल यही क्यों, मैं तो मम्मी से कुछ भी नहीं पा सकी थी. गोरी रंगत और तीखे नैननक्श के साथ लंबी कदकाठी और गठीले शरीर की स्वामिनी की कोख से मैं सांवली रंगत, साधारण नाकनक्श और सामान्य कदकाठी की संतान पैदा हुई थी.
मैं ने अपने पिता की छवि पाई थी. केवल रंगरूप में ही नहीं, स्वभाव भी मु झे पिता का ही मिला था. बचपन से ही मैं डरपोक, शांतिप्रिय, एकांतप्रेमी और पढ़ाकू थी. एकांतप्रेमी और पढ़ाकू होना शायद मेरी मजबूरी थी. गुजरा हुआ अतीत मु झ पर हावी होता जा रहा था.
रूपगर्विता मम्मी का मन, साधारण व्यक्तित्व वाले पति को कभी स्वीकार नहीं सका था. पति को छोड़ पाना मम्मी के वश में भी नहीं था, आर्थिक मजबूरियां थीं. परंतु मु झ जैसी कुरूप संतान उन पर बो झ थी. लेकिन मजबूरी यहां भी दामन थामे खड़ी थी. अपनी ही संतान को कहां फेंकें. सामाजिक बंधन थे. लिहाजा, उन्हें मेरी परवरिश का अनचाहा बो झ उठाना पड़ा. इस जिम्मेदारी को अंजाम भी दिया परंतु वात्सल्य की मिठास से मेरी झोली खाली ही रह गई. उसी शाख पर खिले दूसरे 2 सुंदर फूल मम्मी की प्रतिच्छाया थे. मम्मी का सारा प्यार उन्हीं पर निछावर हो गया.
मेरे प्रशासनिक सेवा में चयन की खुशी मम्मी की आंखों में चमकी थी. घर की उपेक्षित लड़की अचानक मम्मी की नजर में महत्त्वपूर्ण हो गई थी. मु झे मम्मी में यह बदलाव अच्छा लगा था, किंतु यहां भी छोटी बेटी के प्रति मम्मी का प्रेम उन पर हावी हो गया था और उन्हें यह अफसोस होने लगा था कि यदि ग्लोरी की शादी अब होती तो उसे भी प्रशासनिक अधिकारी पति मिल जाता.
बचपन में मम्मी की सहेलियां जब भी घर आतीं, मम्मी मु झे हमेशा रसोई में घुसा देतीं. नाश्तापानी बनाने की सारी मेहनत मैं करती किंतु ट्रे में सजा कर ले जाने का काम हमेशा मेरी अनुजा ग्लोरी का ही होता. उम्र के साथसाथ मैं ने इस सत्य को स्वीकार कर लिया और खुद ही लोगों के सामने जाने से कतराने लगी. धीरेधीरे मैं एकांतप्रिय होती चली गई. अपने अकेलेपन को भरने के लिए मैं ज्यादा से ज्यादा पढ़ने लगी जिस से मैं पूरी तरह पढ़ाकू ही बन गई. ग्लोरी, मेरी अनुजा, का यह नाम भी मम्मी का रखा हुआ था जो मम्मी का इंग्लिशप्रेम दर्शाता है. अपनी इसी खिचड़ी भाषा, शिष्ट शृंगार और सामाजिक संगठनों से जुड़ कर मम्मी खुद को उच्च वर्ग का दर्शाती हैं. ग्लोरी मेरी सगी बहन है, किंतु वह मम्मी की कार्बन कौपी. अधिकार से अपनी बात मनवाना और हर जगह छा जाना उस की फितरत में है.
‘‘गरिमा, गरिमा,’’ मम्मी की आवाज से मैं वापस वर्तमान में आ गई.
‘‘अरे, क्या सोचने लगी थी? बैठेबैठे सपनों में खो जाने की तेरी आदत अभी गई नहीं. इतनी देर से पूछ रही हूं, कुछ बोलती क्यों नहीं?’’ मम्मी ने कहा.
‘‘जी, क्या पूछ रही थीं, मम्मी?’’ मैं ने सवाल के जवाब में खुद ही सवाल कर डाला.
‘‘यह गुलाबी साड़ी कितने रुपए की है? मैं ग्लोरी के घर जाने वाली हूं, सोच रही हूं यह गुलाबी साड़ी ग्लोरी पर अच्छी लगेगी, उसे दे दूं,’’ वाणी में मिठास घोलते हुए मम्मी बोलीं.
‘‘ग्लोरी पर तो सारे रंग अच्छे लगते हैं. ये साडि़यां तो मैं भैरवी के लिए लाई हूं. अपने लिए लाई होती तो मैं जरूर दे देती,’’ मैं ने कहा.
गरिमा को समझ में आ गया था कि ग्लोरी का घर भी मम्मी की वजह से टूटा था इसलिए वह अपी मम्मी को समझाने की कोशिश करे लगी.
‘‘क्या? ये सब, मतलब ये सारा सामान तुम भैरवी को देने के लिए लाई हो?’’ मम्मी की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं
‘‘हां, मम्मी, भैरवी की पहली संतान को आशीर्वाद देने जा रहे हैं हम लोग,’’ मैं ने कहा.
‘‘अरे, तू होश में तो है? इतने सारे कपड़े, 5 साडि़यां, रजाईगद्दा, चादर, खिलौने, क्या तू ने उस का पूरा ठेका ले रखा है? और, जरा सा बच्चा सोने की चेन का क्या करेगा?’’ फैली नजरों से मम्मी मु झे देख रही थीं.
‘‘मम्मी, कैसी बात कर रही हैं आप? भैरवी की यह पहली संतान है,’’ मैं ने कहा.
‘‘कैसा क्या? तेरे भले की बात कर रही हूं. पहला बच्चा है तो क्या, कोई अपना घर उजाड़ कर सामान देता है किसी को?’’ मम्मी ने कहा.
‘‘छोडि़ए मम्मी, जो आ गया सो आ गया,’’ कह कर मैं ने इस अप्रिय प्रसंग को खत्म करना चाहा.
‘‘छोडि़ए कैसे? तुम फुजूलखर्ची छोड़ो और ऐसा करो, बहुत मन है तो बच्चे के कपड़ों के साथ एक साड़ी और मिठाई दे दो, बाकी सब वापस रख दो. हो जाएगा शगुन,’’ कहते हुए मम्मी ने आदतन अपना हुक्म सुना दिया.
‘‘मम्मी, ग्लोरी के पहली बेटी होने पर लगभग इतना ही सामान भिजवाया था आप ने. तब मैं ट्रेनिंग में ही थी, पैसों की भी तंगी थी, परंतु उस समय आप को यह सब फुजूलखर्ची नहीं लगी थी,’’ मु झे अब गुस्सा आने लगा था.
‘‘ग्लोरी तेरी सगी बहन है, उसे दिया तो क्या, सभी को बांटती फिरोगी,’’ मम्मी बोलीं.
‘‘भैरवी कोई गैर नहीं, मेरी सगी ननद है. जैसी ग्लोरी वैसी भैरवी,’’ मैं ने कहा.
‘‘बहन और ननद में कोई फर्क नहीं है क्या?’’ मम्मी भी गुस्से में आ गई थीं.
‘‘नहीं, कोई फर्क नहीं है. एक को मेरी मां ने जन्म दिया है तो दूसरी को मेरी सासुमां ने. एक ही प्यार का नाता है,’’ मैं बोली.
‘‘तेरा तो दिमाग खराब हो गया है, कोई फर्क नहीं दिखता,’’ मम्मी खी झ उठी थीं.
‘‘वैसे, फर्क तो है, मम्मी,’’ कुछ सोचती हुई मैं बोल पड़ी.
‘‘चलो, तुम्हारी सम झ में आया तो,’’ मम्मी खुश हो गईं.
‘‘भावना और परवरिश में फर्क है…’’ अभी मैं ने अपनी बात स्पष्ट करनी शुरू ही की थी कि रामू अदब से सामने आ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘मैडम, खाना लग गया है.’’
‘‘ठीक है, चलिए मम्मी, खाना खाते हैं. आप तो सुबह की निकली होंगी,’’ मैं उठते हुए बोली. इस अप्रिय संवाद के खत्म होने से मैं ने चैन की सांस ली.
‘‘हां, सुबह 6 बजे ही हम लोग कानपुर से चल दिए थे. सीधे मेरठ पहुंचे. 2 घंटे वहां लगे. 11 बजे मेरठ से चले और सीधे झांसी,’’ कहते हुए मम्मी भी उठ खड़ी हुईं.
खाना खा कर हम दोनों पलंग पर लेट गईं. घरपरिवार का हालचाल बतातेबताते मम्मी अचानक बोल पड़ीं, ‘‘अरे गरिमा, जो सामान वापस करना है, अपने ड्राइवर को बोल दो, वापस कर आएगा, नहीं तो तुम लोग 3 दिन के लिए चले जाओगे. इस दौरान शौपकीपर का सामान क्या पता बिक ही जाए. जब लेना नहीं है तो बेचारे का नुकसान क्यों कराया जाए.’’
‘‘कौन सा सामान?’’ कुछ सम झ नहीं सकी, लिहाजा मैं बोल पड़ी.
‘‘अरे, वही जो तुम भैरवी के लिए उठा लाई थीं,’’ मम्मी ने कहा.
‘‘मम्मी, क्यों वही बात फिर से शुरू कर रही हैं?’’ मेरे लहजे में शिकायत थी.
‘‘मतलब, तुम सामान वापस नहीं कर रही हो?’’ मम्मी अविश्वास से मेरी तरफ देख रही थीं.
‘‘नहीं, मम्मी, आप भला नहीं कर रही हैं. आप हमें स्वार्थी बनाने का प्रयास कर रही हैं,’’ मैं स्पष्ट शब्दों में बोल उठी.
‘‘गरिमा?’’ गुस्से से मम्मी की आवाज कांप गई.
मैं ने मम्मी का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से बोली, ‘‘मम्मी, मु झे मालूम है मेरी बात आप को ठेस पहुंचा रही है. इस विषय को मैं ने हमेशा टालना चाहा है. जब तक बात मेरे तक थी, मैं ने कोई विरोध नहीं किया, अपनेआप में सिमटती चली गई. लेकिन आप की दखल का असर अब हमारी गृहस्थी में भी होने लगा है. ग्लोरी का बिखरता दांपत्य आप की ऐसी सीखों का ही नतीजा है. अभी भी समय है मम्मी, खुद को रोक लीजिए. आप ने तो समाज सुधार का बीड़ा उठा रखा है. फिर अपनी बेटियों का घर क्यों…’’
मेरी बात बीच में काटती हुई मम्मी मेरा हाथ झटक कर बैठ गईं और गुस्से से बोलीं, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? मेरी फूल जैसी ग्लोरी को वे लोग सुखी नहीं रख रहे हैं और उस के
लिए दोषी मैं हूं? मैं तुम लोगों को स्वार्थी बना रही हूं? मैं तुम लोगों का भला नहीं चाहती? और तेरे साथ मैं ने क्या किया जो तू चली गई? पढ़ालिखा कर प्रशासनिक अधिकारी बना दिया, यही न? आज सीडीओ बनी सब पर रोब झाड़ती घूम रही है. हमेशा की डरीसहमी रहने वाली लड़की, आज मां से ही जवाबसवाल कर रही है,’’ मम्मी की आंखें अंगारे बरसा रही थीं.
‘‘मम्मी, प्लीज, शांत हो कर मेरी बात सुनिए,’’ मैं ने नरम पड़ते हुए कहा.
‘‘अच्छा, अभी भी सुनने को कुछ रह गया है क्या?’’ मम्मी झल्लाईं.
‘‘प्लीज मम्मी, मु झे मालूम है आप हमारा बुरा नहीं चाहतीं. अपनी लाड़ली ग्लोरी का बुरा तो आप सोच भी नहीं सकतीं किंतु अनजाने में ही आप भले के चक्कर में ऐसा कुछ कर जाती हैं जो आप के न चाहते हुए भी आप की संतान का बुरा कर बैठता है. मेरे और ग्लोरी के सुखी भविष्य के लिए मेरी बात सुन लीजिए,’’ मैं ने उन्हें सम झाते हुए कहा.
शायद मेरी बात मम्मी को कुछ सम झ आ रही थी या फिर ग्लोरी की बिखरती गृहस्थी को संवारने की इच्छा से मम्मी मेरी बात सुनने को तैयार हो गई थीं, मैं सम झ नहीं पा रही थी कि उन नजरों में क्या था.
‘‘क्या कहना चाहती हो, बोलो,’’ मम्मी के सपाट शब्दों में कोई भाव नहीं था.
मैं दुविधा में थी. मम्मी अपलक मेरी ओर देख रही थीं. थोड़ी देर हमारे बीच खामोशी पसरी रही, फिर मैं ने बोलना शुरू किया, ‘‘मेरी बात का गलत अर्थ मत लगाइएगा, मम्मी.’’
‘‘हां, बोलो,’’ मम्मी की तटस्थता बरकरार थी.
‘‘मम्मी, अभी आप ने मु झे बहन और ननद में फर्क करने की सलाह दी थी जिसे मैं ने मानने से मना कर दिया, क्योंकि निश्च्छल और निस्वार्थ प्यार क्या होता है, मैं ने अपनी शादी के बाद ही जाना है. पति का प्यार ही नहीं, मां का प्यार, बहन का प्यार…’’ मैं कहती चली गई.
‘‘अरे, हम प्यार नहीं करते क्या?’’ मम्मी की तटस्थता टूटी. उन के स्वर में आश्चर्य था.
‘‘जरूर करती हैं, लेकिन ग्लोरी और भैया से कम. मैं बचपन से ही काली व मोटी जो रही हूं,’’ मैं ने कहा.
‘‘हां, लेकिन आप तीनों के व्यवहार से मेरी कुरुपता मु झ पर हावी होती गई. नतीजतन, मैं हीनभावना से घिरती गई. किसी से बात करने का आत्मविश्वास मु झ में नहीं रहा,’’ मैं ने मम्मी से अपने मन की हकीकत बयान की.
‘‘अरे, कैसी बात कर रही हो? ऐसा कुछ कभी नहीं हुआ,’’ मम्मी बोलीं.
लेकिन अतीत की कसैली यादें मु झ पर हावी थीं. मैं अपनी ही रौ में बोले जा रही थी, ‘‘मम्मी, याद है मैं जब हाईस्कूल में थी, स्कूल में हमारी फेयरवैल पार्टी थी. मैं बहुत उत्साहित थी. आप की एक साड़ी मैं ने उस खास मौके पर पहनने के लिए कई दिनों पहले से अलग निकाल रखी थी. उस दिन जब मैं ने उसे पहनने के लिए निकाला तो ग्लोरी ने टोका था, ‘दीदी, तुम दूसरी साड़ी पहन लो. यह साड़ी मैं परसों पिकनिक में पहन कर जाऊंगी.’
‘नहीं, आज तो मैं यही साड़ी पहनूंगी. इतने दिनों से मैं ने इसे तैयार कर के रखा है. तुम्हें पहनना है तो तुम भी पहन लेना. मैं इसे गंदा नहीं करूंगी,’ मैं ने भी जिद की थी.
‘दीदी, तुम जो कुछ भी पहनती हो, कोई भी रंग तुम्हारे ऊपर खिलता तो है नहीं, बेकार की जिद मत करो,’ कहते हुए ग्लोरी ने साड़ी मेरे हाथ से ले ली थी. मैं खड़ी की खड़ी रह गई थी.
‘‘मम्मी, आप के सामने ग्लोरी मु झे इस तरह अप्रिय शब्दों में अपमानित कर के चली गई और आप कुछ नहीं बोली थीं.’’
‘‘अरे, तुम इतनी छोटी सी बात अब तक दिल से लगाए बैठी हो, गरिमा?’’ मम्मी अचंभित सी मु झे देख रही थीं.
‘‘यह आप के लिए छोटी घटना होगी मम्मी, लेकिन उस दिन के बाद से मैं ने कभी भी ग्लोरी और भैया की बराबरी नहीं की. मैं सब से कटती चली गई. अपने रंगरूप के कारण जो आत्मविश्वास मैं ने खो दिया था वह मु झे वापस मिला अपनी शादी के बाद.
गरिमा अपनी बहन के लिए उस वक्त लड़ न सकी लेकि उसे हमेशा इस बात का पश्चाताप रहेगा कि वह र्लोरी के लिए कुछ कर हीं पाई.
‘‘आईएएस की ट्रेनिंग के दौरान मु झे आदर्श मिले, जो सिर्फ नाम के ही नहीं विचारों के भी आदर्श हैं. आदर्श को जीवनसाथी में रूप की नहीं, गुणों की तलाश थी और हम परिणयसूत्र में बंध गए. ससुराल जाते हुए मैं बहुत आशंकित थी लेकिन मेरी सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं. ससुराल में सब ने मेरा खुलेमन से स्वागत किया. मेरा ससुराल सचमुच ‘घर’ था, जहां सब को एकदूसरे की भावनाओं का खयाल था. मेरी छोटीछोटी बातों की तारीफ होती. मैं किसी को रूमाल भी ला कर देती तो वे लोग एकदम खिल जाते. वे कहीं भी जाते तो मेरे लिए कुछ न कुछ जरूर लाते. तब मु झे अपने भाईबहन याद आते, जो सिर्फ अधिकार से लेना जानते हैं.’’
‘‘गरिमा, वे तुम से छोटे हैं,’’ मम्मी ने उन का पक्ष लेते हुए कहा.
‘‘मम्मी, आप ने हमेशा उन का पक्ष लिया है. इसीलिए वे जिद्दी हो गए हैं. मां होने का अर्थ हमेशा बच्चों की कमी पर परदा डालना नहीं होता बल्कि उन्हें सही राह दिखाना होता है. मम्मी, वे यदि छोटे हैं तो भैरवी भी तो छोटी ही है, लेकिन उस ने मु झे सही अर्थों में छोटी बहन का प्यार दिया. प्यार शब्द का अर्थ मैं ने इस परिवार में आ कर जाना है. प्यार में कोई लेनदेन नहीं होता, बस, प्यार होता है. बिना मेरी कमियों की तरफ इशारा किए भैरवी ने मेरे बालों की स्टाइल, मेरा पहनावा सब बदलवा दिया. मैं इस नई स्टाइल में काफी स्मार्ट लगने लगी जिस से मु झे मेरा खोया हुआ आत्मविश्वास वापस मिला. मैं भैरवी की आभारी हूं. उस के लिए कुछ भी करने का मेरा मन करता है. जितना सामान मैं भैरवी को दे रही हूं, इस से कहीं ज्यादा ही वह बेटे के होने पर लाई थी और ग्लोरी के लिए मैं ने क्या नहीं किया और वह क्या लाई थी, आप से छिपा नहीं है,’’ मैं ने शिकायती अंदाज में कहा.
‘‘गरिमा…’’ मम्मी बोलीं.
‘‘नहीं मम्मी, मु झे गलत मत सम िझए. मैं नहीं चाहती कि ग्लोरी मु झे कुछ दे, लेकिन ग्लोरी को देना सिखाइए. उस की सुखी गृहस्थी के लिए यह जरूरी है,’’ मैं ने कहा.
‘‘मु झे आज पता चला तुम अपने दिल में अंदर ही अंदर इतना कुछ छिपाए हुए थीं. आज अचानक तुम्हारे दर्द की परतें खुलने लगीं तो मैं…’’ मम्मी बोलीं.
मम्मी की बात बीच में काटते हुए मैं बोली, ‘‘मेरा छोडि़ए, मम्मी, जो अकेला बीता, वह मेरा बचपन था और वह बीत चुका है. मेरा वर्तमान खुशियों से भरा है. मेरा दांपत्य बहुत सुखी है और आज आप को अपनी गृहस्थी में दखल देने से पहले ही रोक कर मैं ने बिखराव की पहली आहट पर ही विवेक का पहरा बिठा दिया है. ग्लोरी यही नहीं कर सकी है,’’ मैं ने कहा.
‘‘मतलब… गरिमा, साफसाफ कहो, क्या कहना चाह रही हो तुम. मु झे तुम्हारी बात सम झ में नहीं आई. मैं ग्लोरी के लिए बहुत चिंतित हूं,’’ मम्मी ने कहा.
मेरी छोटी बहन के प्रति उन की ममता उमड़ रही थी. ग्लोरी के लिए उन का चिंतित होना बहुत ही स्वाभाविक था. अब उन की आंखों में अपरिचित सा भाव दिखाई दे रहा था.
अतीत चलचित्र सा मेरे मानस पटल पर उभर रहा था. परिवार की सब से छोटी, सब की लाड़ली बेटी ग्लोरी का हित मम्मी के लिए सदैव सर्वोपरि रहा है.
पापा के गहरे मित्र ने अपने बड़े बेटे, अक्षय का रिश्ता मेरे लिए भेजा था. दहेज विरोधी इतना संपन्न परिवार, उस पर प्रोबेशनरी अफसर लड़का. बस, मम्मी की दुनियादारी का ज्ञान उन की कोमल भावनाओं पर हावी हो गया और मम्मी ने यह रिश्ता ग्लोरी के लिए तय कर लिया. पापा के अलावा और किसी ने कोई विरोध नहीं किया. हमेशा की तरह पापा झुक गए और बड़ी के कुंआरी रहते छोटी बेटी का ब्याह हो गया. ससुराल से लौटी ग्लोरी अपनी कुंआरी बड़ी बहन की भावनाओं को सम झे बिना अपने वैवाहिक जीवन के खट्टेमीठे अनुभव सुनाती रही.
ग्लोरी की कोई गलती नहीं थी. उस ने दूसरे की भावनाओं को सम झना सीखा ही नहीं था और न ही उसे सिखाया गया.
‘‘गरिमा, गरिमा, क्या कह रही थीं तुम? एकदम चुप क्यों हो गईं?’’ मम्मी के टोकने से मैं फिर वर्तमान में लौट आई.
‘‘मम्मी, दूसरे की भावना को सम झना हर ब्याही लड़की के लिए बहुत जरूरी होता है. हरेक को पापा जैसा सहनशील पति और परिवार नहीं मिलता. दूसरे की भावना को सम झे बिना ससुराल में कोई भी लड़की तालमेल नहीं बिठा सकती. अब से ही सही, ग्लोरी को सही राह दिखाइए,’’ मैं ने मम्मी से कहा.
मौन हुई मम्मी मेरी तरफ देख रही थीं. शायद वे मेरी बातों की सचाई तोल रही थीं.
‘‘मम्मी,’’ मैं फिर बोली.
‘‘हां,’’ मम्मी का स्वर बहुत धीमा था.
‘‘मम्मी, याद है आप को जब हम लोग पहली बार ग्लोरी के घर गए थे. कितना दौड़दौड़ कर वह सब काम कर रही थी और कितना खुश थी, लेकिन एकांत मिलते ही आप ने उसे सम झाया था… ‘ग्लोरी, सारा काम तुम ही करोगी क्या? अपनी ननद को भी करने दो. और साड़ी के पल्ले को पिन से बालों में क्यों रोक रखा है? अरे, पल्ला सिर से गिरता है तो गिरने दो. अभी से अपने पैर जमाना स्टार्ट करो. नहीं तो बहू के बजाय नौकरानी बन कर रह जाओगी, मैं ने मम्मी को याद दिलाते हुए कहा.
सिर हिलाती हुई मम्मी बोलीं, ‘‘याद है, सब याद है, लेकिन लाख सम झाने पर भी ग्लोरी कहां कुछ कर पाई. रोजरोज की खिटखिट से बेचारी परेशान रहती है. सम झ में नहीं आता, उस के लिए क्या करूं. अक्षय है कि अलग रहने के लिए तैयार ही नहीं है,’’ मम्मी के स्वर में ग्लोरी के प्रति गहरी हमदर्दी थी.
‘‘मम्मी, आप की उस दिन की वह सलाह ग्लोरी के परिवार के बिखराब की पहली दस्तक थी, जिस की आहट ग्लोरी नहीं सुन सकी थी,’’ मैं ने कहा.
‘‘क्या…?’’ मम्मी फटीफटी आंखों से मेरी तरफ देख रही थीं.
‘‘मम्मी, जब किसी परिवार में कोई बाहरी व्यक्ति दखल देने लगता है तो उसी पल उस परिवार का बिखराव तय हो जाता है,’’ मैं ने मम्मी को सम झाते हुए कहा.
‘‘बाहरी? मैं, मैं ग्लोरी के लिए बाहरी व्यक्ति हो गई?’’ मम्मी चौंक कर बोलीं.
‘‘हां, मम्मी. यही कड़वी सचाई है, इसे स्वीकार कीजिए. देखिए, ग्लोरी का घरपरिवार वही है, ग्लोरी वहां रह रही है और वही बेहतर सम झ सकती है, उसे वहां कैसे रहना चाहिए. परंतु वह अपने विवेक से नहीं, आप के बताए रास्ते पर चलती है. इसीलिए अपनी शादी के 4 साल बाद भी वह अपने परिवार को पूरी तरह अपना नहीं पाई है.’’
कुछ पल के मौन के बाद मम्मी बोलीं तो उन की आंखें नम हो आई थीं, ‘‘ग्लोरी बहुत भोली है, वह कुछ सम झ नहीं पाती.’’
‘‘मम्मी, आप उस का भला चाहती हैं तो उसे उस के हाल पर छोड़ दीजिए. अक्षय हैं न उसे राह दिखाने के लिए. मम्मी, अक्षय अच्छा लड़का है और सब से बड़ी बात यह है कि वह ग्लोरी को बहुत प्यार करता है. एक बार उसे उस के हाल पर छोड़ कर देखिए.’’
‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो. मैं तो उस का…’’ कहतेकहते गला भर आया था. उन की आंखों से गरम आंसू टपक पड़े.
‘‘मम्मी, मु झे माफ कर दीजिए, मैं बहुत ज्यादा बोल गई. मैं आप को दुखी नहीं करना चाहती थी,’’ कहते हुए मेरा भी गला भर आया था.
मम्मी ने आगे बढ़ कर मु झे सीने से लगा कर कहा, ‘‘नहीं गरिमा, आज तुम ने मु झे सही आईना दिखाया है. मैं ने कभी इस नजरिए से नहीं सोचा था.’’
जाने कब तक हम मांबेटी एकदूसरे से लिपटी आंसू बहाती रहीं. दिल के तार दिल से जुड़ते गए और उस खारे जल के साथ मन की परतों में छिपे सारे गिलेशिकवे बह गए.
अब मन का आईना धुल कर चांदी सा चमकने लगा था मानो नवप्रभात के आगमन की सूचना दे रहा हो.
मैं ने मम्मी का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से बोली, ‘‘मम्मी, मु झे मालूम है मेरी बात आप को ठेस पहुंचा रही है. इस विषय को मैं ने हमेशा टालना चाहा है.’’