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क्या रोजा रखा हुआ शख्स कोरोना वैक्सीन लगवा सकता है, प्लाज्मा दे सकता है?

गाजीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली. रमजान का महीना शुरू हो चुका है और कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन लगवाना भी जरूरी है, क्या रोजे की हालत में वैक्सीन लगवा सकते हैं? क्या रोजा रखे हुए शख्स प्लाज्मा डोनेट कर सकता है? इस तरह के कई सवाल लोग पूछ रहे हैं, आपने में मन में भी ऐसे कुछ सवाल होंगे। हमने ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानने की कोशिश की जान-माने इस्लामिक विद्वान और फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मुकर्रम अहमद से खालिद अमीन ने :

क्या रोज़ा रखा हुआ शख्स वैक्सीन लगवा सकता है?

इसका सीधा जवाब तो यही है कि नहीं लगवा सकते। लेकिन एक सवाल यह उठता है कि रोज़ा रखकर ही क्यों लगवानी है वैक्सीन? शरीयत में हमें छूट मिली है कि हम हेल्थ से जुड़ी जरूरतों के लिए रोज़ा छोड़ सकते हैं। हमारा यह कहना है कि ये वैक्सीन कोई आम इंजेक्शन नहीं है। इसके बाद लोगों को ऑब्जर्वेशन में भी रहना पड़ता है और अगर कुछ दिक्कत हो तो ट्रीटमेंट भी मिलता है। ऐसे में वैक्सीन जिस दिन लगवानी हो उस दिन रोज़ा न रखें तो ही बेहतर है। इसके अलावा आजकल कई जगहों पर रात में भी वैक्सीन लग रही है, उस वक्त भी लगवा सकते हैं।


कोई अगर रोज़े से है और किसी को प्लाज्मा डोनेट करना चाहे तो दे सकता है?

बिल्कुल दे सकता है। इस्लाम में किसी की जान बचाना बहुत ही सवाब का काम बताया गया है। प्लाज्मा देने में कोई दिक्कत नहीं है, खून भी दिया जा सकता है लेकिन प्लाज्मा या खून रोजेदार को चढ़ाया नहीं जा सकता है। डोनेट करके वक्त भी इस बात का ध्यान रखें कि रोज़ा तोड़ने की नौबत न आए। मजबूरी में रोज़ा छोड़ना कोई गुनाह नहीं है लेकिन रोज़ा तोड़ना बहुत बड़ा गुनाह है, उससे बचना चाहिए।


तरावीह इस वक्त घर में पढ़ना सही है या मस्जिद में?

इस वक्त जो हालात हैं उन्हें देखते हुए हम तो लगातार लोगों से अपील कर रहे हैं कि तरावीह फिलहाल घरों में ही पढ़ें। सबसे जरूरी है कि 5 वक्त की फर्ज नमाज की आदत डाली जाए। तरावीह तो सुन्नत है और इसे जमात से पढ़ना सुन्नते किफाया है यानी घर में अकेले भी पढ़ी जा सकती है। घर में दो-चार लोग मिलकर जमात बना लें तो और अच्छा है। जहां तक मस्जिद में तरावीह पढ़ने का सवाल है तो सरकार की जो गाइडलाइंस हैं उनका सभी को पालन करना ही चाहिए। इसके अलावा तरावीह की नमाज क्योंकि एक से डेढ़ घंटे चलती हैं ऐसे में मस्जिद में ज्यादा लोग होंगे तो इंफेक्शन होने का खतरा भी ज्यादा होता है जबकि और नमाजों में 5 से 7 मिनट का ही वक्त लगता है।


अगर किसी वजह से रोज़ा छोड़ना पड़े तो उसके बदले में क्या करना चाहिए?

इस्लाम में इस बात की पूरी छूट दी गई है कि मजबूरी या बीमारी की हालत में लोग रोज़ा छोड़ सकते हैं। और उसके बदले साल में कभी भी रोज़ा रखा जा सकता है। इसके अलावा जिस दिन का रोज़ा छोड़ें उस दिन किसी जरूरतमंद को 2 किलो 45 ग्राम गेहूं या उसके बराबर रकम दे दें।


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