'मुख्तार अंसारी' खुद तो हमेशा जीतता रहा लेकिन अपने राजनीतिक दलों के लिए साबित हुआ 'पनौती'
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. वर्ष 1996 से मऊ से विधायक रहा मुख्तार अंसारी हमेशा खुद तो जीतता रहा पर अपने राजनीतिक दलों व साथियों के लिए पनौती ही साबित हुआ है। जब जिससे जुड़ा, उसे ले ही डूबा। 1995 में जेल से छूटने के बाद 1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने उसे अपने सिंबल से मऊ से चुनाव मैदान में पहली बार उतारा। मुख्तार चुनाव जीतकर विधायक बना, अगले चुनाव में बसपा सत्ता से बेदखल हो गई।
2002 में मुख्तार ने समाजवादी पार्टी के समर्थन से चुनाव जीता तो 2007 में सपा चलती बनी। इसके बाद 2012 में मुख्तार ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल से चुनाव लड़ा, समीकरण साधने के लिए बदायूं के डीपी यादव की पार्टी से गठबंधन किया और उन्हें गाजीपुर से चुनाव लड़ाया, मुख्तार तो जीत गया, डीपी यादव का बोरिया-बिस्तर बंध गया। 2017 के चुनाव के पूर्व सपा में शामिल हुआ तो उसे लेकर परिवार में ही रार हो गई। पहले चाचा-भतीजा और फिर बाप-बेटे की लड़ाई पूरी दुनिया ने देखी। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए अंसारी कुनबा बसपा में शामिल हो गया, मुख्तार के बड़े भाई अफजाल तो सांसद बन गए पर बसपा की हालत पतली हो गई।
इसी चुनाव में कभी मुख्तार के खास रहे अतुल राय ने घोसी से बसपा का टिकट हासिल किया तो चुनाव के पहले ही दुष्कर्म के केस में जेल गए तो अभी तक जमानत नहीं हो सकी, अब उन्होंने भी मुख्तार पर दुष्कर्म मामले में साजिश रचकर जेल भेजवाने का आरोप लगाया है। मुख्तार के जितने करीबी थे, उन सब पर आपराधिक गिरोहों में काम करने या उन्हें लाभ पहुंचाने के आरोप में कार्रवाई चल रही है। इसमें बड़े-बड़े रसूखदार तो सफेदपोश और व्यवसायी भी शामिल हैं।
राबिनहुड के चेहरे के पीछे की असलियत
गरीबों की मदद के नाम पर राबिनहुड की छवि प्रचारित करवाने वाले मुख्तार की असलियत यह नहीं है। सच तो यह है कि मुख्तार जिसकी भी मदद करता है, उसका अपने कामों के लिए भरपूर उपयोग करता है। जो इसके यहां एक बार गया, वह बकायदा उसके आफिसियल कंप्यूटर में नाम-पता सहित दर्ज हो जाता है। वह आम हो या खास, जो जिस लायक हो, उसके जिम्मे वह काम लगा दिया जाता है। प्रभाव वाले लोगों को चुनाव में वोटों का ठेका दिया जाता है, खर्च के लिए रुपये भी। चुनाव बाद दी गई जिम्मेदारी के मुताबिक वोट नहीं मिले तो मतदाताओं में बांटे जा चुके रुपयों की उससे निर्ममता से वसूली की जाती है। आम आदमी के लिए भी किसी को वोट दिलाने, किसी और गरीब को उसके यहां तक मदद के लिए लिवा जाने के काम सौंपे जाते हैं। मतलब यह कि मुख्तार जिसका काम करता है, उससे बदले में उसकी औकात के अनुसार काम लेना भी बखूबी जानता है।