कहानी: निर्णय
पति को ले कर फिल्मी हीरो की छवि मन में बसाए रजनी ससुराल आ तो गई लेकिन ससुराल और मायके के बीच पैंडुलम बनी रजनी के सलोने सपने क्या पूरे हो पाए?
रजनी कब से बस स्टैंड पर खड़ी थी. घंटों उसे इस तरह से अकेले खड़े देख कर आसपास के शोहदे इकट्ठे होने लगे थे. अचानक एक आया और उस के बगल से धक्का सा मारता हुआ निकल गया. रजनी खिसिया कर रह गई. अपनी इस हालत पर रोना आ गया उसे. उसे लगा, वह इसी लायक है. कब से खड़ी है. अनिश्चय की अवस्था थी तो यहां तक आई ही क्यों? अब क्या करे, कहां जाए, लौट जाए. अभी भी क्या बिगड़ा है. घर जा कर निर्भय से कह देगी कि यों ही कहीं निकल गई थी. उसे क्या पता चलेगा कि रजनी के मन में क्या चल रहा था और वह क्या सोच कर घर से निकली थी. लौटने का रास्ता तो अभी भी खुला ही है. परंतु वापस लौटने का अर्थ है उन्हीं स्थितियों में पुन: वापस लौट जाना जिन से वह दूर भाग जाना चाहती है. क्या वह मायके जाने वाली बस में चढ़े? बस स्टौप पर खड़ेखड़े ही उस को अपना अतीत याद आ गया.
5 भाईबहनों में तीसरे नंबर की रजनी की सुंदरता ही उस की सब से बड़ी पूंजी थी. उस के खिले हुए गोरे रंग के आगे सूरज की धूप भी फीकी लगती. बचपन से ही घरबाहर के लोगों की बातों से उस के अंदर अपनी इस विशिष्टता का एहसास हो गया था. उस ने पढ़ाई में परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं समझी.
सुंदर लड़कियों को पढ़ने की क्या जरूरत? उन के सपनों का राजकुमार तो घोड़े पर सवार हो कर आता है, फिल्मी हीरो की तरह ले जाता है और जीवन भर उन के लिए पलकपांवड़े बिछा कर रखता है. यही सुंदर सा ख्वाब रजनी का भी था. उस के पापा भी लड़कियों को ज्यादा शिक्षित करने और बड़ी उम्र तक घर बिठाए रखने के हिमायती नहीं थे. 18 वर्ष की होतेहोते उस के लिए योग्य वर की खोज शुरू हो गई थी. बड़ी लड़की की शादी तो उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में ही कर दी थी.
रजनी की सोच भी इस स्तर से ऊंची न उठ पाई. किसी तरह से इंटर पास कर घर बैठ कर अपने लिए योग्य वर मिलने का इंतजार करने लगी. इतना अवश्य हुआ कि उस ने स्वयं को सिलाईकढ़ाई व पाककला में निपुण कर लिया था. घर के कामकाज में कुशल रजनी मां की लाड़ली थी. एक दिन रजनी इस घर को छोड़ कर चली जाएगी, यह सोच कर ही मां का कलेजा कांप जाता. पर यथार्थ तो यही था. मां जानती थीं कि आज नहीं तो कल, रजनी को जाना ही है.
आज रजनी को देखने कुछ लोग आ रहे थे. छोटी बहन कितनी उत्साहित है. रजनी कम बेचैन नहीं है. उसे देखने आने वाला कैसा होगा, उस से क्याक्या पूछेगा, यही सब सोच रही है. वह अच्छी लगे, इस के लिए खुद को उस ने ढंग से सजायासंवारा है. सुंदर सलोनी रजनी से कौन ब्याह करना न चाहेगा, उसे खुद पर पूरा विश्वास था और हुआ भी ऐसा ही.
निर्भय उसे देखने आया और एक ही नजर में हां कर गया. वह खुद सांवला था और गोरीचिट्टी रजनी को देखते ही अपनेआप को भूल गया.
सांवले या काले लड़कों को गोरी दुलहन की बड़ी चाह होती है और लड़कों का कोई रंग थोड़े ही देखा जाता है. नानी कहती थीं लड़का तो घी का लड्डू होता है, टेढ़ा भी हो तो भी कोई बात नहीं. रजनी भी इसी सोच का एक हिस्सा थी. अपनी खुद की सोच विकसित करने का न उसे माहौल मिला था न उस में खुद इस की क्षमता थी. बस, समय के बहाव में बहती चली गई और जैसा होता गया उसे स्वीकारती गई. इसी तरह ब्याह कर रजनी निर्भय के घर आ गई.
बड़ा सा संयुक्त परिवार था निर्भय का. सास, ससुर, जेठ, जेठानी, देवर, ननद कोई सा रिश्ता बाकी न था. रजनी से सभी को बड़ी अपेक्षाएं थीं. सुघड़, कार्यकुशल, सब का आदरसम्मान करने वाली बहू की छवि सब रजनी में देखना चाहते थे. रजनी भी सब की अपेक्षाओं पर खरी उतरने के प्रयास में लग गई. पर इन सब के बीच उस का एक निजी अस्तित्व भी था, मन में बसी इच्छाएं भी थीं.
निर्भय के साथ समय बिताने, घूमनेफिरने जैसी सहज इच्छाएं थीं जो हर नईनवेली के दिल में विवाह के शुरू के दिनों में होती हैं. परंतु शादी के शुरू के दिनों में ही रजनी के समक्ष निर्भय का व्यक्तित्व उजागर हो गया. परिवार के लोग, परिचित उसे मस्तमौला कहते. जहां जाता वहीं का हो कर रह जाता. घर पर कोई उस का इंतजार कर रहा है, परिवार के लोग उस से कुछ अपेक्षाएं रखते हैं, इन सब बातों का उसे कोई खयाल न था. नईनवेली पत्नी के प्रति भी उसे आकर्षण न था. बस, सारा दिन बिता कर रात को घर आ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेता. खाना भी बाहर खा आता. वह रजनी को चाहता तो था पर उस चाहत को अभिव्यक्त करना और रजनी की भावनाओं को समझने व उन्हें महत्त्व देने की न उस में समझ थी न इच्छा.
संयुक्त परिवार में रहते हुए पत्नी को ले कर कहीं घूमने जाने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाता. परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ही रजनी का समय कटता. यहांवहां घूमते रहना निर्भय का शगल था. उस ने ठेकेदारी के लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा था. काम मिलने के लिए अफसरों के साथ लगा रहता. विभागीय अधिकारियों को भी अपने चारों ओर घूमने वाले कारिंदे चाहिए होते हैं, सो वे निर्भय को अपने साथ लिए रहते. आवश्यकअनावश्यक वे जहां भी दौरे पर जाते निर्भय को बुलावा आ जाता और निर्भय साथ चल देता. दिन या समय की उसे कोई चिंता न रहती.
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रजनी सोचती, यदि इसी तरह जीवन काटना था तो निर्भय ने उस से विवाह ही क्यों किया. रजनी मायके जाती, चाहे जितने दिन रह आए, वह कभी उसे लिवाने न आता. हमेशा वह अपने भाई के साथ ही वापस आती. ससुराल आ कर फिर उसी माहौल में कुछ समय में ही उस का मन विरक्त हो जाता और फिर वह मायके आ जाती. और कोई ठिकाना तो था नहीं.
अकेली कहां जाती. इतनी शिक्षा और आत्मविश्वास भी नहीं था कि वह खुद के बूते कुछ करने की सोचती. रजनी मन मसोस कर रह जाती. क्यों उस ने मन लगा कर पढ़ाई नहीं की. आज वह अपने पैरों पर खड़ी होती तो इस तरह मुहताज न होती. कभी ससुराल कभी मायके के बीच पेंडुलम बनी रजनी को अपना जीवन इतना व्यर्थ लगने लगा कि कई बार आत्महत्या जैसे विचार भी उस के मन में आने लगे थे.
मायके आ कर रजनी मम्मी, पापा, भाई, बहनों के साथ स्वयं को खुश रखने की कोशिश करती, सब के अनुसार खुद को ढाल कर चलने की कोशिश करती ताकि उस का बारबार मायके आना किसी को अखरे नहीं. मां उस की मनोस्थिति को समझती थीं. परंतु फिर भी, जब मन उकता जाता तो वह फिर ससुराल लौट जाती, यही उस के जीवन का ढर्रा बन गया था.
निर्भय की बहुत ज्यादा कमाई नहीं थी कि वह पत्नी को आर्थिक रूप से ही खुश रख सके. इसी तरह 10 वर्ष बीत गए. घिसटतीघिसटती रसहीन जिंदगी. रजनी का लावण्य भी फीका पड़ गया. पर इतना अवश्य हो गया कि नन्हा अभिनव उस की गोद में आ गया. रजनी का समय अभिनव के प्यारदुलार, देखभाल में कटने लगा. उसे लगा जैसे उस के जीवन के वसंत में नए पुष्प खिल गए हों. बेटे के जन्म से निर्भय के व्यक्तित्व में भी कुछ स्थायित्व आया. वह अब घर पर ज्यादा समय देने लगा.
रजनी को लगा अब उस का जीवन व्यवस्थित हो जाएगा. पर अभिनव अभी 6 माह का भी नहीं हुआ था कि निर्भय फिर वही अपनी पुरानी जीवनशैली पर लौट आया. सुबह जाता तो फिर पता ही न होता कब लौटेगा, कहां गया है, कहां खाना खाया, कहां रहा, कुछ बताने की उसे आवश्यकता नहीं थी. रजनी कुछ पूछने की कोशिश करती तो उसे चुप करा देता. औरत को इतना अधिकार कहां कि पति से पूछताछ करे.
कभीकभी तो वह कईकई दिन वापस न आता. कोई स्थायी कामधंधा करने की वह सोचता नहीं. रजनी के ससुर ने अनेक बार उसे घर के पास ही जनरल स्टोर की दुकान खोल लेने की सलाह दी पर उस ने कभी उन की बात पर ध्यान न दिया. निर्भय को तो बड़ेबडे़ अफसरों के साथ घूमने, गेस्टहाउसों में रुकने, साहबों की पत्नियों की चाटुकारिता करने की आदत पड़ गई थी. घरपरिवार के साथ स्थायित्व के साथ रहना उसे सुहाता नहीं था.
पत्नी, बच्चे की उसे कोई चिंता न थी. वे तो परिवार के सदस्यों के साथ सुरक्षित थे ही. जीवित रहने, पेट भरने के सिवा भी पत्नी की कुछ इच्छाएं होती हैं, इस बात पर निर्भय अपना दिमाग जाया ही नहीं करना चाहता था.
रजनी सोचती कि वह क्या करे, उस का जीवन क्या बन कर रह गया है. अकेली वह कुछ कर नहीं सकती. पति का साथ उस के हिस्से में नहीं है. अपने बच्चे को वह अच्छी परवरिश कैसे देगी. उसे अच्छे स्कूल में कैसे पढ़ाएगी. रजनी का दिमाग जैसे फटने लगता. अगर वह आत्महत्या कर लेगी तो अभिनव का क्या होगा? वह अपनेआप को संभालने की कोशिश करती परंतु लौट कर फिर उसी उलझन में उलझ जाती.
रजनी के पिता बीमार पड़ गए तो वह मायके आई थी. उस की दीदी, जीजाजी में कुछ अनबन चल रही थी. अचानक हालात इतने बिगड़ गए कि दीदी ने चूहे मारने की दवा खा ली. 3 बच्चों को बिलखता छोड़ वह इस संसार से विदा हो गई. जीजाजी पुलिस केस में फंस गए. रजनी आई तो बीमार पिता को देखने थी, पर यहां दीदी के बच्चों की देखभाल में व्यस्त हो गई. अपने पारिवारिक जीवन से तो उसे पहले ही कोई लगाव न था और अब तो अभिनव, दीदी के बच्चों के बीच वह भूल ही गई कि उस का अपना एक पति और ससुराल भी है. याद रखने योग्य कुछ ऐसा था भी नहीं, जो स्मृतियों में जिंदा रहता. इसलिए आसानी से भूल भी गई. अब तो यही घर उसे अपना लगने लगा. पतिव्रता, शादीशुदा जैसे शब्दों के माने समझने को उस का दिल तैयार ही न होता.
6 माह होने को आए, रजनी ससुराल नहीं गई. लेकिन निर्भय आज उसे लेने आ रहा था. क्या वह वापस चली जाए? क्या निर्भय बदल गया होगा? अगर वह चली गई तो दीदी के बच्चों का क्या होगा जिन्होंने उसे अपनी मां का दरजा दे दिया है.
सवालों की उधेड़बुन के बीच रजनी वापस आ गई निर्भय के घर. आखिर वह उस की पत्नी है. उस का असली घर तो यही है. निर्भय अभिनव का पिता है. 15 दिन भी नहीं बीते कि रजनी को महसूस हो गया कि यहां कुछ भी नहीं बदला है. निर्भय वही है. उसे रजनी की कोई परवा नहीं है. उसे वापस लेने तो वह इसलिए चला गया था क्योंकि लोगों के सवालों का जवाब देतेदेते वह परेशान हो गया था और घर वालों का बड़ा दबाव था. पर रजनी तो वापस फिर उसी कैदखाने में आ गई जहां न उस के होने का कोई महत्त्व है और न उस के अस्तित्व का किसी को एहसास है.
आज रजनी इस बस स्टौप पर खड़ी है, वापस जाने के लिए. दीदी के बच्चों की देखभाल के लिए कोई नहीं है. सब से ज्यादा, वहां उस के होने का कोई महत्त्व तो है. वह हाड़मांस की कोई पुतली नहीं है, जीतीजागती इंसान है. उस का अपना एक अस्तित्व है. निर्भय के साथ सारा जीवन इस तरह से काटने की कल्पना से ही उसे घबराहट होने लगती. नहीं, वह निर्भय के पास वापस नहीं जाएगी. वह वहीं जाएगी जहां उस की कद्र है, उस के होने का कोई महत्त्व है और जहां लोगों को उस की जरूरत है. रजनी अपना बैग उठा कर बस में चढ़ गई.