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कहानी: माफी

शिफाली और प्रमोद तथा उनके परिजन साथ ही कोर्ट से बाहर निकले, उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे. चार साल की लंबी जदोजहद के बाद आज फैसला हो गया था.

शिफाली और प्रमोद को आज कोर्ट से तलाक के कागज मिल गए थे. लंबी प्रक्रिया के बाद आज कुछ सुकून मिला. शिफाली और प्रमोद तथा उनके परिजन साथ ही कोर्ट से बाहर निकले, उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे. चार साल की लंबी जदोजहद के बाद आज फैसला हो गया था.


दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ 6 साल ही रह पाए थे.


चार साल तो तलाक की कार्यवाही में ही बीत गये गए.


शेफाली के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी प्रमोद के घर से लेना था और प्रमोद के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो उसने शेफाली से लेने थे.


साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि प्रमोद शेफाली को  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त देगा.शेफाली और प्रमोद दोनो एक ही  औटो में बैठकर प्रमोद के घर आये.  आज ठीक 4 साल बाद आखिरी बार ससुराल जा रही थी शेफाली, अब वह कभी इन रास्तों से इस घर तक नहीं आएगी. यह बात भी उसे कचोट रही थी कि जहां वह 4 साल तक रही आज उस घर से उसका नाता टूट गया है. वह  दहेज के सामान की लिस्ट लेकर आई थी, क्योंकि सामान की निशानदेही तो उसे ही करनी थी.


सभी रिश्तेदार अपनेअपने घर जा चुके थे. बस, तीन प्राणी बचे थे. प्रमोद,शेफाली और उस की मां. प्रमोद यहां अकेला ही रहता था, क्योंकि उसके पेरेंट्स गांव में ही रहते थे.


शेफाली और प्रमोद की इकलौती 5 साल की बेटी जो कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक शेफाली के पास ही रहेगी. प्रमोद महीने में एक बार उससे मिल सकता है.


घर में  घुसते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गईं. कितनी मेहनत से सजाया था शेफाली ने इसे. एक एक चीज में उसकी जान बसती थी. सबकुछ उसकी आंखों के सामने बना था. एकएक ईंट से उसने धीरेधीरे बनते घरौदे को पूरा होते देखा था. यह उसका सपनो का घर था. कितनी शिद्दत से प्रमोद ने उसके सपने को पूरे किए थे.


प्रमोद थकाहारा सा सोफे पर पसर गया और शेफाली से बोला, “ले लो जो कुछ भी तुम्हें लेना है, मैं तुम्हें नही रोकूंगा.”


शेफाली बड़े गौर से प्रमोद को देखा और सोचने लगी 4 साल में कितना बदल गया है प्रमोद. उसके बालों में  अब हल्की हल्की सफेदी झांकने लगी थी. शरीर पहले से आधा रह गया है. चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई थी.


शेफाली स्टोर रूम की तरफ बढ़ी, जहां उसके दहेज का समान पड़ा था. कितना था उसका सामान. प्रेम विवाह था दोनो का. घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे.


प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की. क्योंकि प्रेमी जोड़ी को हर कोई टूटता हुआ देखना चाहता है.


बस एक बार पीकर बहक गया था प्रमोद. हाथ उठा बैठा था उस पर. बस तभी वो गुस्से में मायके चली गई थी.


फिर चला था लगाने सिखाने का दौर. इधर प्रमोद के भाईभाभी और उधर शेफाली की माँ. नौबत कोर्ट तक जा पहुंची और आखिर तलाक हो गया. न शेफाली लौटी और न ही प्रमोद लेने गया.


शेफाली की मां जो उसके साथ ही गई थीं,बोली, ” कहां है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता. बेच दिया होगा इस शराबी ने ?”


“चुप रहो मां,” शेफाली को न जाने क्यों प्रमोद को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा.


फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट से मिलाया गया.


बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया.


शेफाली ने सिर्फ अपना सामान लिया प्रमोद के समान को छुआ तक नही.  फिर शेफाली ने प्रमोद को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया.


प्रमोद ने बैग वापस शेफाली को ही दे दिया, ” रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में .”


गहनों की किम्मत 15 लाख रुपये से कम नही थी.


“क्यों, कोर्ट में तो तुम्हरा वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था.”


“कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, शेफाली. वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है.”


सुनकर शेफाली की मां ने नाकभों चढ़ा दीं.


“मुझे नही चाहिए.


वो दस लाख रुपये भी नही चाहिए.”


“क्यों?” कह कर प्रमोद सोफे से खड़ा हो गया.


“बस यूं ही” शेफाली ने मुंह फेर लिया.


“इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएंगे.”


इतना कह कर प्रमोद ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया. शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था.


शेफाली की मां गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी.


शेफाली को मौका मिल गया. वो प्रमोद के पीछे उस कमरे में चली गई.


वो रो रहा था. अजीब सा मुंह बना कर.  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने  की जद्दोजहद कर रहा हो. शेफाली ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था. आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला.


मग़र वह ज्यादा भावुक नही हुई.


सधे अंदाज में बोली, “इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक प्रमोद?”


“मैंने नही तलाक तुमने दिया.”


“दस्तखत तो तुमने भी किए.”


“माफी नही मांग सकते थे?”


“मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने. जब भी फोन किया काट दिया.”


“घर भी तो आ सकते थे”?


“मेरी हिम्मत नही हुई थी आने की?”


शेफाली की मां आ गई. वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई. “अब क्यों मुंह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया.”


शेफाली के भीतर भी कुछ टूट रहा था. उसका दिल बैठा जा रहा था. वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी. जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी. कैसे कैसे बचत कर के उसने और प्रमोद ने वो सोफा खरीदा था. पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था.”


फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई. कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी. उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई.


घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई. माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया. प्रमोद बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था. एक बार तो उसे दया आई उस पर. मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है.


उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा. अस्त व्यस्त हो गया था पूरा कमरा. कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे थे.


कभी कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?


फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वह प्रमोद से लिपट कर मुस्करा रही थी.


कितने सुनहरे दिन थे वो.


इतने में मां फिर आ गई. हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई.


बाहर गाड़ी आ गई थी. सामान गाड़ी में डाला जा रहा था. शेफाली सुन सी बैठी थी. प्रमोद गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया.


अचानक प्रमोद कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया.


बोला,” मत जाओ…माफ कर दो.”


शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी. सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए. शेफाली ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया .


और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई प्रमोद से. साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे.


दूर खड़ी शेफाली की माँ समझ गई कि कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही.


काश, उनको पहले मिलने दिया होता?


अगर माफी मांगने से ही रिश्ते टूटने से बच  जाएं, तो माफ़ी मांग लेनी चाहिए.

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