कहानी: गहरी नजर
जनार्दन आगरकर के लिफ्ट से बाहर आते ही आशु ने उसे घेर लिया. दोनों में बातें होने लगीं. आशु उस से जोश में हाथ हिलाहिला कर बातें कर रही थी. जबकि जनार्दन शांति से बातें कर रहा था.
इंसपेक्टर मोहन देशपांडे अदालत से बाहर निकल रहे थे तो उन के साथ चल रही आशु हाथ हिलाहिला कर कह रही थी, ‘‘मैं बिलकुल नहीं मान सकती. भले ही अदालत ने उसे बेगुनाह मान कर बाइज्जत बरी कर दिया है, लेकिन मेरी नजरों में जनार्दन हत्यारा है. वही पत्नी का कातिल है. यह दुर्घटना नहीं, बल्कि जानबूझ कर किया गया कत्ल था और इसे अचानक हुई दुर्घटना का रूप दे दिया गया था.’’
‘‘लेकिन शक की कोई वजह तो होनी चाहिए,’’ मोहन देशपांडे ने आगे बढ़ते हुए कहा, ‘‘हम ख्वाहमख्वाह किसी पर आरोप तो नहीं लगा सकते. अदालत ठोस सबूत मांगती है, सिर्फ हवा में तीर चलाने से काम नहीं चलता.’’
‘‘जनार्दन ने अपनी पत्नी का कत्ल किया है. यह सच है.’’ आशु ने चलते हुए मुंह फेर कर कहा, ‘‘इस में शक की जरा भी गुंजाइश नहीं है.’’
‘‘अच्छा, अब इस बात को छोड़ो और कोई दूसरी बात करो.’’ मोहन ने कहा, ‘‘कई अदालत उसे रिहा कर चुकी है.’’
‘‘मेरी बात मानो,’’ आशु ने कहा, ‘‘जनार्दन को भागने मत दो. वह वाकई मुजरिम है. अगर वह हाथ से निकल गया तो तुम सारी जिंदगी पछताते रहोगे.’’
‘‘आखिर तुम मेरा मूड क्यों खराब कर रही हो?’’ इंसपेक्टर मोहन ने नाराज होते हुए कहा, ‘‘मैं ने सोचा था कि अदालत से फुरसत पाते ही हम कहीं घूमनेफिरने चलेंगे, जबकि तुम फिर जनार्दन आगरकर का किस्सा ले बैठीं. मुझे लगता है, इस घटना ने तुम्हारे दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला है?’’
‘‘हां, शायद तुम ठीक कह रहे हो,’’ आशु ने कहा.
उस समय उस की नजरें एक ऐसे आदमी पर जमी थीं, जो लिफ्ट से बाहर निकल रहा था. वही जनार्दन आगरकर था. मोहन देशपांडे भी उसे ही देख रहा था. आशु तेजी से उस की ओर बढ़ते हुए बोली, ‘‘मोहन, तुम यहीं रुको, मैं अभी आई.’’
मोहन ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन वह रुकी नहीं. जनार्दन आगरकर मध्यम कद का दुबलापतला आदमी था. लेकिन चेहरेमोहरे से वह अपराधी लग रहा था. उस का एयरकंडीशनर के स्पेयर पार्ट्स सप्लाई का काम था. 15 दिनों पहले उस की पत्नी पहाड़ की चोटी से गहरे खड्ड में गिर कर मर गई थी. उस समय वह उस की तसवीर खींच रहा था. उस की पत्नी सुस्त और काहिल औरत थी, सोने की दवा लेने की वजह से हमेशा नींद में रहती थी.
जनार्दन पहाड़ की उस चोटी पर उसे घुमाने ले गया था, ताकि उस की तबीयत में कुछ सुधर हो सके और वह नींद की स्थिति से मुक्त हो सके. उस पहाड़ के पीछे बर्फ से ढकी चोटियां दिख रही थीं. जनार्दन ने पत्नी से फोटो खींचने के लिए कहा. वह फोटो खींच रहा था, तभी न जाने कैसे उस की पत्नी का पैर फिसल गया और वह 50 फुट नीचे गहरी खाई में जा गिरी.
जनार्दन आगरकर के लिफ्ट से बाहर आते ही आशु ने उसे घेर लिया. दोनों में बातें होने लगीं. आशु उस से जोश में हाथ हिलाहिला कर बातें कर रही थी. जबकि जनार्दन शांति से बातें कर रहा था. वह आशु के हर सवाल का जवाब मुसकराते हुए दे रहा था.
इस बीच इंसपेक्टर मोहन देशपांडे का मन कर रहा था कि वह उस आदमी का मुंह तोड़ दे. क्योंकि उसे भी पता था इसी ने पत्नी का कत्ल किया था. लेकिन कोई सबूत न होने की वजह से वह बाइज्जत बरी हो गया था. जनार्दन चला गया तो आशु इंसपेक्टर मोहन के पास आ गई. इसंपेक्टर मोहन ने पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम जनार्दन के पास क्यों गई थीं?’’
आशु ने जवाब देने के बजाए होंठों पर अंगुली रख कर चुप रहने का इशारा किया. इस के बाद फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘हमें जनार्दन का पीछा करना होगा. ध्यान रखना, वह निकल न जाए. समय बहुत कम है, इसलिए जल्दी करो. मैं रास्ते में तुम्हें सब बता दूंगी.’’
आशु सिर घुमा कर इधरउधर देख रही थी. अचानक उस ने कहा, ‘‘वह रहा, वह उस लाल कार से जा रहा है, जल्दी करो.’’
उन की गाड़ी लाल कार का पीछा करने लगी. जनार्दन की कार पर नजरें गड़ाए हुए मोहन ने पूछा, ‘‘आखिर इस की क्या जरूरत पड़ गई तुम्हें?’’
‘‘देखो मोहन, जनार्दन समझ रहा है कि अदालत ने उसे रिहा कर दिया है. इस का मतलब मामला खत्म. जबकि मेरे हिसाब से उस का मामला अभी खत्म नहीं हुआ है. अब हमें उस से असली बात मालूम करनी है.’’ आशु ने कहा.
‘‘तुम ने जनार्दन आगरकर से क्या बातें की थीं?’’
‘‘मैं ने कहा था कि मैं उस की अदाकारी की कायल हूं. अदालत के कटघरे में उस ने जिस मासूमियत का प्रदर्शन किया, वह वाकई तारीफ के काबिल था. मैं ने उस के आत्मविश्वास की तारीफ की तो उस ने मुझे रायल क्लब चलने को कहा.’’
‘‘तो क्या तुम उस के साथ वहां जाओगी? यह अच्छी बात नहीं है.’’ मोहन ने कहा.
‘‘मैं क्लब में उसे खूब शराब पिला कर उस से सच उगलवाना चाहती हूं.’’ आशु ने इत्मीनान के साथ कहा.
‘‘लेकिन मैं तुम्हें इस तरह का फालतू काम करने की इजाजत नहीं दूंगा.’’ मोहन ने नाराज हो कर कहा.
‘‘अच्छा, इस बात को छोड़ो और ड्राइविंग पर ध्यान दो. जनार्दन आगरकर की कार दाईं ओर घूम रही है. उसे नजर से ओझल मत होने देना, वरना जिंदगी भर पछताओगे.’’
‘‘आखिर तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है? जनार्दन आगरकर की रिहाई के बाद भी तुम उस का पीछा क्यों कर रही हो?’’ मोहन ने जनार्दन की कार पर नजरें जमाए हुए पूछा.
‘‘देखो मोहन,’’ आशु ने गंभीरता से कहा, ‘‘अदालत में जनार्दन ने खुद को इस तरह दिखाया था, जैसे वह बहुत दुखी है, लेकिन उस की आंखें भेडि़ए जैसी चमक रही थीं. उस के अंदाज में काफी सुकून लग रह था, जैसे वह पत्नी को खत्म कर के बहुत खुश हो. उस के भावनाओं का अंदाजा एक औरत ही लगा सकती है और मैं ने उस के दोगलेपन को अच्छी तह महसूस किया है.
‘‘अपनी तसल्ली के लिए ही मैं उस से बात करने गई थी. उस की बातों से मैं ने अंदाजा लगा लिया कि यह आदमी बहुत ही चालाक और दगाबाज है. उस ने पत्नी को धक्का दे कर मारा है.’’
‘‘अच्छा तो तुम ने इस हद तक महसूस कर लिया?’’ मोहन ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें तो सीबीआई में होना चाहिए था.’’
जनार्दन की कार दाईं ओर घूमी तो आशु ने कहा, ‘‘अब यह कहां जा रहा है?’’
‘‘अपने घर… आगे इसी इलाके में वह रहता है.’’ मोहन ने कहा.
जर्नादन ने अदालत में माना था कि उस के अपनी पत्नी से अच्छे संबंध नहीं थे. दोनों में अकसर कहासुनी होती रहती थी. यह बात जनार्दन के पड़ोसियों ने भी बताई थी. आशु ने कहा, ‘‘जनार्दन ने अदालत में कहा था कि वह अपनी पत्नी को घुमाने के लिए पहाड़ों की उस चोटी पर ले गया था. कैमरा भी साथ ले गया था, इसलिए वहां एक सुंदर चट््टान पर उस ने पत्नी को खड़ा कर दिया, ताकि उस की यादगार तसवीर खींच सके.
‘‘इधर उस ने तसवीर खींची और उधर उस की पत्नी का पैर चट्टान से फिसल गया. जनार्दन ने उस समय की खींची हुई तसवीर भी अदालत में पेश की थी. सवाल यह है कि उस ने वह तसवीर सबूत के लिए अदालत में क्यों पेश की, उस की क्या जरूरत थी?’’
‘‘हां, यह बात तो वाकई गौर करने वाली थी,’’ मोहन ने कहा, ‘‘इस का मतलब यह है कि इस के पीछे कोई चक्कर था.’’
‘‘काश! वह तसवीर मैं देख पाती,’’ आशु ने कहा, ‘‘उस तसवीर से कोई न कोई सुराग जरूर मिल सकता है.’’
‘‘तसवीर देखनी है? वह तो मेरे पास है.’’ कह कर मोहन ने अपनी जेब से पर्स निकाला और उस में से एक तसवीर निकाल कर आशु की तरफ बढ़ा दी.
आशु ने तसवीर ले कर उसे गौर से देखते हुए कहा, ‘‘चलो, इस से एक बात तो साबित हो गई कि तुम इस फैसले से संतुष्ट नहीं हो. तभी तो यह तसवीर साथ लिए घूम रहे हो. तुम्हारी नजरों में भी जनार्दन खूनी है.’’
‘‘हां आशु, कई चीजें ऐसी थीं कि जिन्होंने मुझे उलझन में डाल दिया था.’’
तसवीर को देखते हुए आशु बोली, ‘‘कितनी प्यारी औरत थी. शायद जनार्दन ने उसे इंश्योरेंस के लालच में मार डाला है या फिर किसी दूसरी औरत का चक्कर हो सकता है. लेकिन मुझे लग रहा है कि यह तसवीर दुर्घटना वाले दिन की नहीं है. यह तसवीर पहले की उस समय की है, जब पतिपत्नी में अच्छे संबंध थे. इस में जनार्दन की पत्नी बहुत खुश दिखाई दे रही है, जो इस बात का सबूत है कि यह तसवीर अच्छे दिनों की है.’’
‘‘तुम्हारे विचार से जनार्दन ने पत्नी को कैसे मारा होगा?’’ मोहन ने पूछा.
‘‘जनार्दन ने पत्नी को घर पर मारा होगा या फिर कार में.’’ आशु ने कहा, ‘‘संभव है, जनार्दन उसे जान से न मारना चाहता रहा हो, लेकिन वार जोरदार पड़ गया हो, जिस से वह मर गई हो. इस के बाद जनार्दन ने एक पुरानी तसवीर निकाली, जिस में वह पहाड़ की चोटी पर खड़ी मुसकरा रही थी. उस के बारे में उस ने यह कहानी बना दी. पत्नी की लाश को ले जा कर पहाड़ की चोटी से नीचे खड्ड में गिरा दी.’’
बातें करते हुए आशु की नजरें जनार्दन की कार पर ही टिकी थीं. उस की कार एक अपार्टमेंट में दाखिल हुई, तभी आशु ने कहा, ‘‘तुम ने मृतका के कपड़ों को देखा था? क्या वह वही कपड़े पहने थी, जो इस तसवीर में पहने है.’’
‘‘हां बिलकुल, मैं यह देख चुका हूं.’’ मोहन ने कहा.
‘‘अगर जनार्दन ने पत्नी को खत्म करने के बाद तसवीर वाले कपड़े पहनाए होंगे तो सलीके से नहीं पहनाया होगा.’’ आशु ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘कोई न कोई गलती उस ने जरूर की होगी.’’
‘‘मैं ने मुर्दाघर में लाश देखी थी. लाश पर वही कपड़े थे, जो तसवीर में है.’’ मोहन ने कहा.
‘‘वह तो ठीक है, तुम एक मर्द हो. इस मामले में कोई न कोई गलती जरूर रह गई होगी.’’ आशु ने कहा, ‘‘अगर मैं तुम्हारे साथ होती तो बहुत ही सूक्ष्मता से निरीक्षण करती.’’
आशु तसवीर को गौर से देखती हुई बोली, ‘‘इन छ: बटनों की लाइन के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है? क्या यह लाइन उस के कोट पर उस समय भी थी, जब लाश मुर्दाघर में लाई गई थी?’’
‘‘हां, यह लाइन मौजूद थी.’’ मोहन ने कहा.
‘‘उस के कोट के दाईं तरफ वाले कौलर के करीब?’’ आशु ने पूछा.
‘‘हां,’’ मोहन ने सिर हिलाते हुए कहा.
जनार्दन की कार अब तक पार्किंग में दाखिल हो चुकी थी. मोहन ने भी खाली जगह देख कर अपनी कार रोक दी. जनार्दन उन दोनों को देख चुका था. वह कार से उतरा और उन की ओर बढ़ा. उस के चेहरे पर नाराजगी साफ झलक रही थी. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग मेरा पीछा क्यों कर रहे हो? जबकि अदालत ने मुझे बेकसूर मान लिया है. मैं तुम्हारे खिलाफ मानहानि का मुकदमा करूंगा.’’
मोहन ने धैर्यपूर्वक कहा, ‘‘नाराज होने की जरूरत नहीं है. हम किसी दूसरे मामले में इधर आए हैं. उस से तुम्हारा कोई संबंध नहीं है.’’
‘‘अच्छा तो फिर यह लड़की अदालत के बाहर मेरे पास क्यों आई थी?’’ जनार्दन ने पूछा.
‘‘मेरा इस मामले से कोई लेनादेना नहीं है.’’ मोहन ने कहा.
‘‘तुम मेरा पीछा कर रहे हो, मैं इस बात की शिकायत करूंगा. मेरा वकील तुम्हारे खिलाफ अदालत में मुकदमा दायर करेगा.’’
‘‘जनार्दन, अदालत ने तुम्हें बरी कर दिया तो क्या हुआ, हमारी नजर में तुम अब भी अपराधी हो. तुम बच नहीं सकोगे.’’ आशु ने कहा.
आशु की बात सुन कर जनार्दन ने तीखे स्वर में कहा, ‘‘आखिर दिल की बात जुबान पर आ ही गई? मुझे शक था कि तुम मेरे पीछे लगी हो.’’
‘‘हां, मैं तुम्हारे पीछे लगी हूं,’’ आशु ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘तुम ने अदालत में अपनी पत्नी की जो तसवीर पेश की थी, वह दुर्घटना वाले दिन की नहीं है. तुम ने यह तसवीर पहले कभी खींची थी. बताओ, तुम ने यह तसवीर अदालत में पेश कर के क्या साबित करने की कोशिश की?’’
आशु की बात सुन कर जनार्दन के चेहरे का रंग उड़ने सा लगा. बड़ी मुश्किल से उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं दूंगा, क्योंकि अदालत में सवालजवाब हो चुका है. अब जो भी बात करनी है, मेरे वकील से करना.’’ कह कर वह अपार्टमेंट की सीढि़यों की तरफ बढ़ गया.
‘‘मेरे खयाल से हमें कुछ भी हासिल नहीं हुआ,’’ मोहन ने कहा, ‘‘लेकिन तुम ने मुझे एक आइडिया जरूर दे दिया. मैं उस तसवीर को दोबारा देखना चाहूंगा.’’
कह कर मोहन ने आशु से वह तसवीर ले ली और उसे गौर से देखने लगा. अचानक वह उत्साह से बोला, ‘‘तुम ठीक कह रही हो, सबूत मिल गया.’’
कह कर मोहन अपार्टमेंट की ओर बढ़ा तो आशु ने पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’
‘‘अपराधी को पकड़ने, अगर मैं ने जरा भी देर कर दी तो वह फरार होने में सफल हो जाएगा.’’ मोहन ने कहा.
आशु भी मोहन के साथ चल पड़ी. लौबी में जनार्दन के नाम की प्लेट लगी थी. जिस पर फ्लैट नंबर 102 लिखा था. दोनों उस के फ्लैट के सामने थे. मोहन ने दरवाजे पर दस्तक देने के बजाए जोरदार ठोकर मारी. दरवाजा खुल गया तो दोनों आंधीतूफान की तरह अंदर दाखिल हुए. जनार्दन बैड पर रखे सूटकेस में जल्दीजल्दी सामान रख रहा था.
दोनों को देख कर वह चीखा, ‘‘क्यों आए हो यहां, क्या चाहते हो मुझ से?’’
मोहन ने उस की नजरों के सामने उस की पत्नी की तसवीर लहराते हुए कहा, ‘‘यह लड़की बहुत अक्लमंद है. इस ने तो कमाल ही कर दिया. मुझे भी पीछे छोड़ दिया. तुम ने अपनी पत्नी को इसी फ्लैट में मारा था, फिर उस की लाश को अपनी कार में डाल कर उस पहाड़ की चोटी पर ले गए थे. जहां से उसे गहरी खाई में फेंक दिया था.’’
‘‘देखो इंसपेक्टर,’’ जनार्दन ने अकड़ने के बजाए नरमी से कहा, ‘‘इस मुकदमे का फैसला सुनाया जा चुका है और इस तसवीर ने यह साबित कर दिया है कि…’’
‘‘इसी तसवीर ने तो तुम्हें झूठा साबित किया है,’’ मोहन ने कहा, ‘‘तुम ने यह तसवीर काफी समय पहले खींची थी. लेकिन जब तुम ने अपनी पत्नी का कत्ल किया तो उसे हादसे का रूप देने के लिए उस की लाश को तसवीर वाले कपड़े पहना दिए.
‘‘लेकिन जब लाश को पुलिस ने खाई से निकाल कर अपने कब्जे में लिया तो तुम्हें लगा कि तुम ने लाश को जो कोट पहनाया है, उस में तुम से एक गलती हो गई है. उस में बटनों की लाइन दाईं तरफ थी, जबकि तसवीर में बाईं तरफ है.’’
‘‘तुम बिलकुल अंधे हो, तसवीर को गौर से देखो.’’ जनार्दन ने गुस्से में कहा.
‘‘मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई है.’’ ’’ मोहन ने कहा, ‘‘जब तुम्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो तुम ने तसवीर का निगेटिव पलट कर नई तसवीर बनवा ली. नई तसवीर में मृतका के कोट के दाएं कौलर के नीचे बटनों की लाइन दिखाई दे रही है, यही तसवीर तुम ने हमें दी थी. लेकिन तुम यहां एक गलती कर गए. निगेटिव को उलटने से कोट के कौलर के साथ भी सब कुछ उलटा हो गया. आमतौर पर पुरुषों के कोट के दाईं कौलर की तरफ बटन.’’
अभी मोहन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि जनार्दन ने उस की तरफ छलांग लगा दी. लेकिन इंसपेक्टर मोहन ने उस का बाजू पकड़ लिया और उसे घुमाते हुए दीवार पर दे मारा. इस के बाद जनार्दन को उठा कर उस के सूटकेस के पास फेंक कर कहा, ‘‘मिस्टर जनार्दन, अब तुम अपना अपराध स्वीकार कर लो.’’
तभी जनार्दन ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल कर मोहन और आशु की तरफ तान कर कहा, ‘‘तुम दोनों अपने हाथ ऊपर उठा लो, वरना मैं गोली मर दूंगा. कोई होशियारी मत दिखाना.’’
जनार्दन ने दूसरे हाथ से सूटकेस बंद करते हुए कहा, ‘‘मेरे रास्ते से हट जाओ. मैं और लाशें अपने नाम के साथ नहीं जोड़ना चाहता.’’
‘‘मूर्ख आदमी, तुम ज्यादा दूर अपनी कार नहीं जा सकोगे, क्योंकि मैं ने उस में गड़बड़ी कर दी है.’’ मोहन ने उसे घृणा देखते हुए कहा.
‘‘ठीक है, मैं तुम्हारी कार ले जाऊंगा.’’ जनार्दन ने कहा, ‘‘लाओ, उस की चाबी मेरे हवाले करो.’’
‘‘ठीक है,’’ यह कह कर मोहन ने चाबी निकालने के लिए जेब में हाथ डालना चाहा.
‘‘खबरदार, जेब में हाथ मत डालो. मुझे बताओ कि चाबी किस जेब में है. मैं खुद निकाल लूंगा.’’ जनार्दन चिल्लाया.
‘‘मेरे कोट की दाईं जेब में.’’ मोहन ने कहा.
जनार्दन ने उस के कोट की दाईं जेब की ओर हाथ बढ़ाया. उसी समय फायर हुआ, जिस की आवाज से कमरा गूंज उठा. इस के साथ ही जनार्दन बौखला कर दूर जा गिरा और आशु जोरजोर से चीखने लगी. फिर जमीन पर गिर पड़ी. दरअसल वह फायर जनार्दन ने किया था, मगर बौखलाहट के कारण वह फायर बेकार चला गया.
इंसपेक्टर मोहन के लिए इतनी मोहलत काफी थी. उस ने जनार्दन के कंधे पर फ्लाइंग किक मार कर उसे गिरा दिया. थोड़ी ही देर में उस ने जनार्दन के हाथों में हथकडि़यां लगा दीं. फिर उस ने आशु को उठा कर बैड पर बिठाया. उसे तसल्ली दी और किचन से पानी ला कर पिलाया.
थोड़ी देर बाद आशु संभल गई. मोहन ने कहा, ‘‘सुनो आशु, पहले तो मैं ने मजाक में कहा था कि तुम जैसी लड़की हमारे पुलिस स्क्वायड में शामिल नहीं होनी चाहिए. लेकिन अब मैं पूरी गंभीरता से कह रहा हूं कि तुम हमारे पुलिस स्क्वायड की अहम जरूरत हो. अगर तुम हमारे साथ शामिल हो गईं तो न जाने कितने केस हल हो जाएंगे, तमाम अपराधी कानून की गिरफ्त में आ जाएंगे और बेकसूर लोगों को रिहाई मिल जाएगी.’’
यह सुन कर आशु मुसकराने लगी.