कहानी: आत्मसम्मान
विकास के घर की पहली मंजिल पर एक रसोई और एक ड्राइंगरूम है. काश, इस मंजिल पर एक बैडरूम भी होता, जिस में हम रह सकते, क्योंकि इस उम्र में सीढि़यां चढ़नाउतरना काफी मुश्किल होता है.
बहूबेटे के पास रामकिशोरजी पत्नी कमला के साथ मौंट्रियल चले तो गए, लेकिन उन की दिनचर्या व बहू के रूखे व्यवहार से वे बहुत आहत हुए. किसी तरह दिन काटते रहे. लेकिन अचानक हुई घटना ने उन्हें पूरी तरह झक झोर कर रख दिया…
5 बजे से ही बर्फ पड़नी शुरू हो गई थी. मौसम विभाग ने आज कम से कम 20 सैंटीमीटर बर्फ पड़ने का पूर्वानुमान लगाया था. मैं सोचने लगा कि साल का आखिरी दिन है, शाम के 3 बजे से ही लोग औफिसों से अपने घर चले गए होंगे, क्योंकि आज की शाम 7 बजे से ही घरघर में नए साल की पार्टियां होंगी. रैस्टोरैंट व होटलों में तो नए साल के स्वागत में खूब पार्टियां होती ही हैं. विकास भी औफिस से 4 बजे आ गया था.
वह मौंट्रियल में किसी बैंक में काम करता था. वह अपनी नौकरी के बारे में मु झ से अधिक बात नहीं करता था. नौकरी उस की अच्छी ही होगी, क्योंकि वह खूब सूटबूट पहन कर काम पर जाता है और उस ने कार भी अच्छी खरीदी हुई है. घर भी काफी बड़ा है.
मौंट्रियल शहर से 15 किलोमीटर दूर ‘डोलार्ड’ नाम के नगर में विकास का तीनमंजिला घर है. ऊपरी मंजिल पर सोने के 3 कमरे हैं. विकास और रमा के कमरे में तो बाथरूम भी है. एक कमरा 8 साल की नंदिनी का है और दूसरा 3 साल के विमल का. विमल घर पर ही रहता है, उस ने स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया है. विमल के जन्म पर ही विकास ने हमें जिद कर के यह कह कर भारत से बुला लिया था कि बच्चों को पालने में परेशानी होती है.
नंदिनी के होने पर रमा को कुछ महीने काम से छुट्टी मिल गई थी, परंतु उस के बाद उन दोनों को काफी परेशानी हो गई थी. वे नंदिनी को सुबह क्रैच में छोड़ जाते थे और शाम को लौटते वक्त ले आते थे, पर क्रैच चलाने वाली उस औरत को वे हर सप्ताह तकरीबन उतने ही पैसे दे देते थे जितनी रमा की तनख्वाह थी. फिर भी कम से कम रमा की नौकरी तो बरकरार रहती थी. नौकरी छोड़ कर यदि रमा घर बैठे नंदिनी की देखभाल करती तो बाद में उसे नौकरी कहां मिल सकती थी.
नंदिनी को क्रैच में छोड़ने पर सब से बड़ी समस्या यह थी कि नंदिनी आएदिन बीमार रहती थी. वहां इतने बच्चों के कारण उसे आएदिन खांसीजुकाम और बुखार रहता था. उस की बीमारी और कभीकभी अपनी बीमारी का बहाना बना कर रमा को आएदिन छुट्टी लेनी पड़ती थी. कनाडा में नौकरी करने वाले घर पर छोटे बच्चों की बीमारी की समस्या को खास महत्त्व नहीं देते.
विकास हमारी अकेली संतान है. उस के बाद घर में कोई संतान नहीं जन्मी, इसलिए जब नंदिनी का जन्म हुआ तो हम दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. अपनी पोती को देखने हम यहां आ गए और 4-5 महीने मौंट्रियल में रह कर वापस भारत लौट गए थे, पर यहां आ कर मौंट्रियल से बाहर कहीं गए ही नहीं. इच्छा तो घूमनेफिरने की थी भी, परंतु छोटे बच्चे के साथ घूमनाफिरना कहां आसान होता है और शायद उस समय विकास भी काम की तरफ से काफी तनाव से गुजर रहा था. विकास तो शायद हम दोनों को घुमाने ले भी जाता, परंतु रमा को हमें इधरउधर घुमाने में खास दिलचस्पी न थी.
विकास के साथ रमा को देखने जब हम सब लोग पहली बार करोलबाग, उस के मातापिता के घर गए थे तब की रमा और आज की रमा में जमीनआसमान का फर्क है. तब वह मूक बनी सिमटी सी याचना कर रही थी, ‘मु झे अपने चरणों में स्थान दे दो’ और अब हम दोनों उस के घर में आए थे, जिस की सही मानो में वही मालकिन थी. वह कितनी बदलीबदली नजर आई. हमारा बेटा तो उस के हाथों की कठपुतली ही था. वक्त के साथ इंसान भी कितनी जल्दी बदल जाता है.
विकास के घर की पहली मंजिल पर एक रसोई और एक ड्राइंगरूम है. काश, इस मंजिल पर एक बैडरूम भी होता, जिस में हम रह सकते, क्योंकि इस उम्र में सीढि़यां चढ़नाउतरना काफी मुश्किल होता है. अब 2 साल से हम विकास के घर के तहखाने में ही रह रहे हैं, जहां 2 कमरे और एक बाथरूम है. शायद विकास ने इन्हें हमारे लिए ही सोच कर बनवाया होगा. नंदिनी के होने पर जब पहली बार हम आए थे तब तहखाने में न तो कमरे थे, न बाथरूम. विमल के होने पर जब हम आए थे तब हम भारत से ही बोरियाबिस्तर बांध कर आए थे. उस समय विकास ने अपने घर के तहखाने में 2 कमरे और बाथरूम बनवा लिए थे.
टीवी पर शाम के 7 बजे की खबरें आ रही थीं, जिन में शराब की दुकानों पर लगी ग्राहकों की लंबी लाइनें दिखाई जा रही थीं.
नंदिनी और विमल के होने पर हमारे रहने का इंतजाम दूसरी मंजिल पर ही था, परंतु जब से विमल 6 महीने का हुआ था, रमा ने उसे अलग कमरे में सुलाना शुरू कर दिया था. इसलिए विकास ने हमारा सामान घर के तहखाने में शिफ्ट कर दिया था. शुरू में तो हमें अपना कमरा ठीक नहीं लगा, क्योंकि तहखाने के हमारे कमरे में कोई खिड़की नहीं थी, जिस से वहां काफी अंधेरा रहता था. दिन में भी ट्यूबलाइट जलानी पड़ती थी. फिर धीरेधीरे आदत पड़ गई. तहखाने में बहुत ही शांति रहती है. लगता है जैसे हम सारी दुनिया से कट गए हैं.
कनाडा में अजीब सा रिवाज है कि हर बच्चे को अपना अलग कमरा चाहिए. अगर भारत में भी ऐसा होता तो शायद हमारा गुजारा चलता ही नहीं. शक्ति नगर के उस छोटे से 2 कमरे के घर में हम ने अपनी सारी जिंदगी गुजार दी थी. विकास भी हमारे साथ शादी के बाद उस 2 कमरे के किराए के मकान में रहा था और जब नंदिनी को ले कर आया था तब तो वह हमारे साथ ही रहा था, परंतु रमा अधिकतर नंदिनी के साथ अपने पीहर में ही रही.
टीवी पर शाम के 7 बजे की खबरें आ रही थीं, जिन में शराब की दुकानों पर लगी ग्राहकों की लंबी लाइनें दिखाई जा रही थीं. कनाडा और अमेरिका जैसे देशों में नए साल का स्वागत करने के लिए लोग लाखोंकरोड़ों डौलर शराब पर खर्च कर देते हैं. यानी अमेरिका में नए साल पर लोग शराब पर उतना पैसा खर्च कर देते हैं जितना कि श्रीलंका जैसे देशों का पूरा सालाना बजट भी नहीं होता. हम भारतीय विदेशियों की अच्छी आदतें तो चाहे नहीं सीखे, परंतु उन की गलत आदतें जरूर सीख लेते हैं. विकास और रमा खूब पीते हैं, यह हमें अच्छी तरह मालूम है. हमारे सामने हमारा लिहाज कर के तो नहीं पीते, परंतु हमारी पीठपीछे खूब पीते हैं. रात को जब पार्टियों से आते हैं तो हमें इस बात का एहसास तो अवश्य हो जाता है कि दोनों ही नशे में झूम रहे होते हैं और फिर दोपहर देर तक सोते हैं. कभीकभी 2 बजे तक सो कर उठते हैं.
शुरूशुरू में तो हम दोपहर का खाना खाने के लिए उन के सो कर उठने का इंतजार करते थे, पर अब हम उन के बिना ही खाना खा लेते हैं. इतनी देर तक कमला तो इंतजार कर भी ले, पर मु झ से भूखा नहीं रहा जाता, फिर दोपहर को देर से खाने से मेरे पेट का सारा सिस्टम खराब हो जाता है. कमला अपने बेटेबहू का इंतजार करती है कि कब वे उठें और कब वह उन्हें खाना खिलाए.
हमारे देखतेदेखते ही हालात बदल गए. जब मेरी और कमला की शादी हुई थी, कमला तब अम्मा और बाबूजी की सेवा में ही लगी रहती थी. वह अम्मा और बाबूजी को खाना खिला कर ही खाना खाती थी. पर अब बेटेबहू के लिए तरकारी अलग से रख कर ही खाना खाती है और उन की प्रतीक्षा करती है कि कब वे दोपहर को सो कर उठ कर आएंगे और कब वह उन्हें खाना खिलाएगी.
कमला और मैं अकसर सोचते हैं कि हम ने भारत छोड़ कर मौंट्रियल में आने का निर्णय सोचसम झ कर नहीं लिया. अच्छा रहता हम भारत में ही पड़े रहते. कम से कम शक्ति नगर में हमारा 2 कमरे का किराए का वह घर तो था. किराए के मकान में आने से मकान मालिक तो बेहद खुश था, क्योंकि बरसों से हम उस के उन 2 कमरों का किराया जो चुका रहे थे, पर अब हम ने इस बारे में सोचना ही छोड़ दिया था. हमारी आखिरी सांस बेटे के घर की छत के नीचे गुजरे, इस से अच्छा और क्या हो सकता है. कम से कम मरने पर हमारी चिता को अग्नि देने हमारे पास हमारा बेटा तो होगा. दिल्ली में होते तो हमारे मरने पर विकास कैसे समय पर अपना फर्ज निभाता, क्योंकि मौंट्रियल से दिल्ली पहुंचने में 2-3 दिन तो लग ही जाते.
60 साल की उम्र में वैसे तो कुछ न कुछ लगा ही रहता है, पर आज कमला की तबीयत सवेरे से ही कुछ ढीली चल रही थी. मैं ने उस से अस्पताल चलने को कहा तो वह नहीं मानी. ‘ठीक हो जाएगी कल तक,’ कह कर उस ने मेरा मुंह बंद कर दिया और घर का कामकाज करती रही. 5 बजे रमा अपने औफिस से घर आ गई थी और अपने बैडरूम में आराम कर रही थी. वह 7 बजे ऊपर से आई और खाना खा कर तैयार होने चली गई. वे लोग सपरिवार नए साल की पार्टी में जा रहे थे, पर उस में हम दोनों शामिल नहीं थे. वैसे भी पार्टियों में वे हमें कभीकभार ही ले जाते हैं. कनाडा में पार्टियां देर रात तक चलती हैं.
विकास और रमा पार्टी से शायद ही कभी 3-4 बजे से पहले आए हों. हां, जब कभी कोई भारत से आए अपने मातापिता को मित्रों से मिलाना चाहता है तब विकास और रमा अपने साथ हमें भी ले जाते हैं. हमें पार्टी में ले जाने में शायद रमा को संकोच होता है और अगर विकास को भी होता हो तो कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि वक्त के साथसाथ इंसान की नसों में बहता खून भी बदल जाता है.
9 बजे विकास, रमा और बच्चे तैयार हो गए. मैं और कमला कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. ‘‘हम लोग जा रहे हैं, मम्मी. जहां हम जा रहे हैं वहां का फोन नंबर मैं ने फोन के पास लिख कर रख दिया है. जरूरत हो तो फोन कर लेना,’’ विकास बोला, ‘‘और मम्मी, पापा, नया साल आप को मुबारक हो,’’ कहता जाने लगा. हम दोनों ने भी विकास और बच्चों को गले से लगाया. रमा कुछ खिसिया सी गई, पर वह कुछ कह न पाई.
‘‘ठीक है, अब तो नए साल में ही मिलेंगे. मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ कमला बोली.‘‘क्या हुआ, मम्मी? डाक्टर को फोन किया क्या?’’ विकास ने पूछा.‘‘नहीं, ठीक हो जाएगी,’’ कमला बोली.
‘‘तबीयत ज्यादा खराब हो तो फोन कर देना, डैडी,’’ विकास बोला, पर रमा के चेहरे का रंग ही बदल गया. वह अलमारी में से सर्दी के कोट निकाल कर लाई व नंदिनी और विमल को बड़बड़ाती हुई पहनाने लगी, ‘‘विकास, मम्मी की यह आदत मु झे बहुत ही खराब लगती है. जब भी हम पार्टी में जाते हैं, मूड खराब कर देती हैं. अब आप पार्टी का आंनद कैसे लेंगे, जबकि आप को मम्मी की बीमारी का खयाल आएगा. भारत में उन्होंने खुद तो अपनी जिंदगी का आनंद नहीं लिया, अब हमें भी जिंदगी का आनंद नहीं उठाने देतीं.’’
‘‘धीरे बोलो रमा, मम्मीडैडी सुन लेंगे,’’ विकास दबी जबान से बोला.
लगभग 11 बजे अचानक कमला को घबराहट हुई. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, बोलने में भी उसे परेशानी हो रही थी.
‘‘सुन लेंगे, मेरी बला से. मैं कोई उन से डरती हूं. मैं भारत में रहने वाली बहू नहीं जो सास की गुलामी करूं. यह मेरा घर है, यहां मेरा हुक्म चलेगा. इस घर में वही होगा जो मैं चाहूंगी.’’
रमा की आवाज हम दोनों को साफसाफ सुनाई दे रही थी. तभी जोर से दरवाजा बंद होने की आवाज आई. वे लोग घर से चले गए थे. अवश्य ही रमा की बक झक कुछ देर तक तो विकास को सुननी पड़ी होगी. मालूम नहीं विकास को तब कैसा महसूस होता है जब रमा हमारे बारे में बेकार की बातें करने लगती है. चाहे हमारे सामने वह चुप रहता है, परंतु उसे सम झाने की कोशिश अवश्य करता होगा. आखिर उस की रगों में हमारा ही खून है, खून अवश्य ही रंग लाता होगा या फिर अपने घर की सुखशांति बनाए रखने के लिए खून के घूंट पी कर चुप रहता है.
मैं ने सोचा शायद बाहर अभी भी बर्फ पड़ रही है, मैं ने खिड़की के परदे से बाहर झांकने की कोशिश की, पर बर्फ के कारण खिड़की के शीशे अपारदर्शी हो गए थे, इसलिए कुछ दिखाई न दिया. नववर्ष की पूर्व संध्या होने के कारण सड़कों पर ट्रैफिक भी काफी होगा. रात को नशे की अवस्था में विकास सब के साथ कार ड्राइव कर के आएगा, यह सोच कर मेरा मन कांप उठा.
कमला को हलकी सी नींद लग गई थी. 10 बज गए थे.
‘‘अगर तुम्हें नींद आ रही है तो सोने चलते हैं,’’ मैं ने कमला से कहा.
‘‘नहीं, सोएंगे तो 12 बजे के बाद ही. पता नहीं, नए साल की पूर्वसंध्या पर मैं आप के साथ होऊंगी भी कि नहीं,’’ कमला बोली.
‘‘अच्छा बोलो, कमला. तुम्हें कुछ हो गया तो मैं कैसे जीऊंगा. तुम्हारे अलावा दुनिया में मेरा असली मानो में है ही कौन,’’ कहते हुए मेरे आंसू टपकने लगे जोकि कमला से छिपे नहीं रहे, पर कमला ने मेरा मन रखने को यह भी नहीं कहा कि हमें किस चीज की कमी है. हमारे बेटेबहू तो हैं ही.
लगभग 11 बजे अचानक कमला को घबराहट हुई. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, बोलने में भी उसे परेशानी हो रही थी. मैं ने तुरंत एंबुलैंस के लिए फोन किया. मौसम की खराबी के कारण एंबुलैंस को आने में कम से कम 10-15 मिनट तो लग ही जाएंगे, यही सोच कर मैं ने टैलीफोन के पास ही रखे एक कागज पर विकास के लिखे नंबर पर फोन किया, पर वहां घंटी बजती रही, किसी ने फोन नहीं उठाया. शायद पार्टी के शोरगुल की वजह से किसी ने सुना नहीं था. मैं रिसीवर रख कर कमला की ओर भागा. वह होश में नहीं थी, परंतु उस की सांस चल रही थी.
कुछ ही मिनटों बाद एंबुलैंस वालों ने दरवाजे की घंटी बजाई. कमला को ले कर हम लगभग 11 बजे अस्पताल पहुंचे.
इमरजैंसी के रिसैप्शन काउंटर पर बैठे क्लर्क ने ‘हैपी न्यू ईयर’ कह कर हमारा स्वागत किया. वे लोग कमला को अंदर ले गए. मैं बाहर बैठा रहा. मैं जल्दी में वह कागज भी अपने साथ लाना भूल गया जिस में विकास ने फोन नंबर लिखा था. तब मु झे अपनी याददाश्त पर बहुत झुं झलाहट हुई, क्योंकि अगर नंबर होता तो मैं विकास को फोन कर के बुला लेता.
अचानक याद आया कि अस्पताल के पड़ोस में ही विकास के एक मित्र रहते हैं, क्यों न उन्हें कमला की बीमारी के बारे में खबर कर दूं, ताकि यदि उन्हें पता हो कि विकास आज किस के यहां पार्टी में गया है तो वे विकास को बता सकें, पर वे तो शायद खुद भी नया साल मनाने कहीं बाहर गए होंगे, यह सोच कर मैं ठिठक गया.
डेढ़ बजे कमला का डाक्टर भारी कदमों से इमरजैंसी वार्ड से बाहर निकल कर मेरी ओर आया. मु झे मालूम था कि वह मु झ से क्या कहने जा रहा है, ‘‘आई एम वैरी सौरी, रामकिशोरजी. कमलाजी अब इस दुनिया में नहीं हैं. मरते समय वे बिलकुल शांत थीं. हमारे वार्ड में आने के लिए कुछ मिनट बाद ही उन का देहांत हो गया था.’’
और यह कह कर डाक्टर वहां से चला गया. मैं वहीं बैंच पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद एक नर्स आई और बोली, ‘‘आप यहां खामोश बैठ कर क्या करेंगे. अस्पताल की कार आप को आप के घर छोड़ आएगी. अब आप को घर जा कर आराम करना चाहिए.’’
थोड़ी देर बाद नर्स मेरा हाथ पकड़ कर मुझे कार तक ले गई. घर पहुंचतेपहुंचते 3 बज गए थे. मैं लिविंग कम ड्राइंगरूम में ही बैठा रहा. मेरी सम झ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. शरीर में जैसे जान ही न थी. अचानक मु झे विकास को फोन करने का खयाल आया. मैं उठा और फोन मिलाया. कुछ देर तक घंटी बजती रही. इतनी रात गए फोन की घंटी सुन कर शायद उन्हें अच्छा न लगा, सो उन्होंने बताया कि विकास उन की पार्टी से आधा घंटा पहले निकल चुका था. मैं ने सोचा, अब तो विकास और रमा आने वाले ही होंगे.
थोड़ी ही देर में विकास और रमा बच्चों के साथ आ गए. रमा विमल को गोदी में ले कर ऊपर बैडरूम में चली गई और नंदिनी उस के पीछे थी. विकास के मुंह से आती शराब की बू कुछ ही देर में घर में फैल गई. वह अलमारी में अपना कोट रख कर लिविंगरूम में आया और बोला, ‘‘डैडी, बहुत रात हो गई है. आप भी जा कर सो जाओ. मम्मी से ही कुछ सीखो, जो समय पर सो जाती हैं.’’ और विकास मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही सीटी बजाता ऊपर अपने बैडरूम में चला गया. उसे मैं उस की मां के निधन की सूचना भी नहीं दे पाया. पार्टी के जश्न के कारण या शराब के नशे में वह यह भी भूल गया था कि जब वह पार्टी में जा रहा था तब उस की मां बीमार थी.
मेरी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. मैं सोचने लगा, ‘काश, मैं भी विकास की मां की तरह लंबी नींद सो जाऊं और कभी न उठूं. यह तो अच्छा था कि कमला को आखिरी दिन तक मेरा साथ मिला था, पर जाने से पहले उस ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं उस के बेटेबहू के साथ अपने जीवन के बाकी दिन किस तरह आत्मसम्मान के साथ बिता सकूंगा.