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सिफारिश-पैसा सब है पर इलाज नहीं, किसी के सिर से मां-पिता का उठा साया

गाजीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली. कोरोना काल में इंसान तो मर ही रहे हैं, अब इंसानियत भी दम तोड़ने लगी है। कहीं ऑक्सीजन के लिए हाहाकार है तो कहीं रेमडेसिविर की कालाबाजारी की वजह से कई लोग दुनिया छोड़ चुके हैं। कोरोना तो लोगों को मार ही रही है, व्यवस्थाएं भी लोगों को कम तबाह नहीं कर रही हैं। भारत में यूपी हो या बिहार, दिल्ली हो या महाराष्ट्र चारों तरफ से कोरोना काल में लाचारी की तस्वीरें सामने आ रही हैं। कोई पैसों के अभाव में अपनोंको नहीं बचा पाया तो किसी के पास पैसा और पावर सब था, मगर इलाज नहीं मिलने से उसका संसार खत्म हो गया। कोरोना की दूसरी लहर में स्थिति कितनी विकराल हो चुकी है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक शख्स पिता की अस्थियां विसर्जित कर मां को देखने जाता है तो उसके हाथ में डॉक्टर डेथ सर्टिफिकेट थमा देते हैं। चलिए जानते हैं ऐसी हृदयविदारक घटनाओं को, जिससे यकीन हो जाएगा कि इस कोरोना ने कैसे लोगों को लाचार बना दिया है। 

व्यथा कथा 1:  पापा मर चुके थे और डॉक्टर कहते रहे वेंटीलेटर पर हैं

मेरेठ में म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट के पुराने कारोबारी सुनील गुप्ता (57) की मेडिकल अस्पताल के कोविड वॉर्ड में कोरोना से मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टर वेंटीलेटर पर उनका इलाज चलने का दिलासा देते रहे, लेकिन वॉर्ड ब्वॉय ने शव की फोटो दिखाकर दिलासे की पोल खोल दी। इसके बाद उन्हें आनन-फानन में मृत घोषित किया गया। टीपीनगर क्षेत्र में गुप्ता कॉलोनी निवासी सुनील गुप्ता को दो दिन पहले मेडिकल के कोविड वॉर्ड में भर्ती किया गया। बेटे आशु गुप्ता के अनुसार, भर्ती होने के बाद से ही उन्हें पिता का हाल-चाल मिलना बंद हो गया। उनका मोबाइल स्विच ऑफ हो गया। कोविड वॉर्ड के कंट्रोल रूम ने भी कुछ नहीं बताया। 


शनिवार सुबह परिजन कोविड वॉर्ड पहुंचे। एक वॉर्ड ब्वॉय से बातचीत की। उसने सुबह 8 बजे आशु को बताया कि उनके पिता की शुक्रवार रात ही मौत हो चुकी थी। बतौर सुबूत, उसने शव का फोटो दिखाया, जिसमें किसी भी तरह का उपचार नहीं चल रहा था, जबकि डॉक्टर परिजनों से कह रहे थे कि मरीज वेंटिलेटर पर है। परिजनों ने हंगामा किया तो सुबह करीब साढ़े 10 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। भाजपा नेता आशीष अग्रवाल ने उच्चाधिकारियों से शिकायत की है।


व्यथा कथा 2: सिफारिश, पैसा सबकुछ था...बस नहीं था तो सिर्फ इलाज

गाजियाबाद के गोविंदपुरम निवासी कोरोना संक्रमित शशि शर्मा (52) के परिजनों के पास पैसा, सिफारिश सबकुछ था, नहीं था तो सिर्फ इलाज। शशि के परिजन अस्पताल में बेड के लिए चार घंटे भटकते रहे लेकिन सब बेकार। अंत में कोरोना से जंग लड़ते-लड़ते शशि हार गईं और दुनिया को अलविदा कह गईं। हालांकि, मौत के बाद भी परेशानियों से छुटकारा नहीं मिला। अंतिम संस्कार को पहुंचे तो वहां भी लाशों की कतार थी, जिसके चलते अंतिम यात्रा के लिए भी चार घंटे इंतजार करना पड़ा।


गोविंदपुरम के गौड़ होम सी-731 निवासी शशि शर्मा 21 अप्रैल को कोरोना पॉजिटिव आईं। गाजियाबाद-हापुड़ में हॉस्पिटल नहीं मिला। 22 अप्रैल की रात ग्रेटर नोएडा के ग्रीन सिटी हॉस्पिटल ने प्राथमिक उपचार देकर मेरठ रेफर कर दिया। रात 12:10 बजे परिजन उन्हें मेरठ मेडिकल लाए, यहां बेड खाली नहीं मिला। यहां से निजी अस्पताल और फिर जिला अस्पताल पहुंचे। जिला अस्पताल से फिर मेडिकल भेज दिया। इस तरह सुबह के चार बज गए। यहां एक घंटा इंतजार के बाद पांच बजे शशि को एडमिट किया। इमरजेंसी वॉर्ड में मारामारी थी। परिजनों के अनुसार, स्ट्रेचर गंदा था तो दवाइयों के कार्टन बिछाकर मां को उस पर लेटा दिया। कोई देखने वाला नहीं था। धीरे-धीरे उनका ऑक्सीजन लेवल गिरता गया और 24 अप्रैल की दोपहर 12:40 बजे शशि की सांसों की डोर टूट गई।


खुद बॉडी पैक की, खुद ही खींचा स्ट्रेचर: मौत के बाद अस्पताल स्टाफ ने परिजनों को पॉलीपैक थमा दिया। खुद बॉडी पैक करनी पड़ी। खुद ही स्ट्रेचर खींचते हुए बॉडी को बाहर लाए। अंतिम संस्कार करने ब्रजघाट पहुंचे तो लाशों की कतार थी। चार घंटे वेटिंग के बाद नंबर आया। जैसे-तैसे अंतिम संस्कार हो सका। 


व्यथा कथा-3  पिता की अस्थियां विसर्जित कर मां को देखने पहुंचे तो थमा दिया डेथ सर्टिफिकेट

दिल्ली के रोहणी निवासी परिवार पर कोरोना का ऐसा कहर बरपा कि सुनने वाले का कलेजा कांप जाए। कोरोना की चपेट में आए दिल्ली निवासी दंपति तीन दिन के भीतर ही काल के गाल में समा गए और बच्चों को अकेला छोड़ गए। शुक्रवार को ब्रजघाट पर अपनी मां की अस्थि विसर्जन करने पहुंचे भाई-बहन को पुरोहित ने जब हिन्दुस्तान अखबार में प्रकाशित दो दिन पहले पिता की अस्थि विसर्जन की फोटो दिखाई तो दोनों भाई-बहन फूट फूटकर रोए। 


युवक ने बताया कि जब वह पिता की अस्थि विसर्जन कर अस्पताल मां को देखने पहुंचे तो उन्होंने मां का भी डेथ सर्टिफिकेट थमा दिया। पुरोहित ने बताया कि दोनों दिल्ली के रोहणी निवासी हैं और एक दिन पहले ही अपने पिता की अस्थि विसर्जन के लिए आए थे। सिर्फ तीन दिन में कोरोना ने दोनों को अनाथ कर गया।

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