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Ghazipur: कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर- महामण्डलेश्वर

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. कलिकाल में चंडी के साथ विनायक की पूजा सबसे अधिक सार्थक एवं फल देने वाली होती है। इस प्रचंड कलिकाल में यदि कोई आदमी पूजा पाठ अनुष्ठान सफलता पूर्वक एवं मनोयोग से कर सकता है तो वह तात्कालिक शक्ति की उपलब्धता को ध्यान में ही रखकर कर सकता है। 

इसके लिए एक मात्र साधन माता दुर्गा व भगवान गणेश की पूजा ही है। दुर्गा की पूजा थोड़े समय में, कम सामग्री में तथा किसी भी स्थान पर की जा सकती है। बस उस स्थान, सामग्री एवं मुहूर्त के अनुरूप दुर्गा का भी रूप होना चाहिए। उपरोक्त बातें सिद्धपीठ हथियाराम मठ पर चल रहे तीन दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान “रजत जयंती समारोह” के तहत महामंडलेश्वर स्वामी भवानीनंदन यति जी महाराज ने कहा। उन्होंने कहाकि इसीप्रकार गणपति के भी विविध रूपों की पूजा का विधान है। श्रीऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश-साधना ‘कलौ चण्डी-विनायकौ’- कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। 


‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी’ साधना को प्रवहमान करने वाली मूल शक्ति है। यज्ञाचार्य सुरेश जी त्रिपाठी ने कहाकि मार्कंडेय पुराण में वर्णित दुर्गा के नौ रूप अप्रमेय, अनुपम, अलौकिक एवं शाश्वत रूप है। इनकी पूजा में बहुत कठोर व्रत, प्रतिबन्ध एवं तपस्या की आवश्यकता होती है। किन्तु इसका फल चिरस्थाई तथा जन्म जन्मान्तर के लिए होता है। किन्तु मातृखंड में वर्णित रूपों का अनुष्ठानं तात्कालिक सुख देने वाला, संकट दूर करने वाला एवं बाधा-रोग-शोक आदि से मुक्ति देने वाला होता है। रजत जयंती समारोह के तहत तीन दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान में दूसरे दिन बुधवार को एक दिवसीय शतचंडी महायज्ञ के तहत 25 वैदिक विद्वानों द्वारा दुर्गा सप्तशती का 100 बार पाठ किया गया। इस मंत्रोच्चारण से समूचा सिद्धपीठ गूंज उठा। 


इसके साथ ही भगवान सिद्धिविनायक की पूजन अर्चन भी विधि विधान के साथ किया गया। इस अवसर पर पूर्व कैबिनेट मंत्री व नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी, पूर्व कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश सिंह, जंगीपुर विधानसभा क्षेत्र विधायक डॉ वीरेंद्र यादव, पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री जैकिशन साहू, मार्कण्डेय यादव, रमेश यादव, सन्तोष यादव, आचार्य संजय पाण्डेय, आचार्य बालकृष्ण पांथरी, सर्वेश पाण्डेय, प्राचार्य डॉ रत्नाकर त्रिपाठी, श्रवण तिवारी, आचार्य शरवेंद्र चन्द्र पाण्डेय, दीपक जी महाराज, लौटू प्रसाद इत्यादि उपस्थित रहे।

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