अवध मा होरी खेलैं रघुबीरा...492 वर्ष बाद जन्मभूमि पर विराजे श्रीरामलला की होली में इस बार अद्भुत उमंग
गाजीपुर न्यूज़ टीम, अयोध्या। श्रीरामलला परात्पर ब्रह्म ही नहीं अनादि कालीन नगरी अयोध्या के यशस्वी सूर्यवंश के राजकुमार के रूप में स्वीकृत-शिरोधार्य हैं। उनकी शान में भक्त कोई कसर नहीं छोड़ते हैं और उनकी पूजा राजाओं के राजा यानी राजाधिराज के रूप में होती रही है। 492 वर्ष बाद अपनी जन्मभूमि पर विराजे रामलला की होली में इस बार अद्भुत उमंग है।
इसमें कोई शक नहीं कि युगों पूर्व रामलला अपनी जन्मभूमि पर पूरी महिमा के साथ स्थापित थे। वह जिन महाराज दशरथ के पुत्र थे, उनकी शक्ति-समृद्धि का डंका पूरे आर्यावर्त में बजता था। स्पष्ट है कि दशरथ नंदन के रूप में रामलला के लिए दुर्लभ से दुर्लभ दुनियावी जरूरतें सुलभ थीं। श्रीराम के स्वधाम गमन के बाद जिस स्थल पर उनका जन्म हुआ था, वहां उनके पुत्र कुश ने भव्य-दिव्य स्मारक का निर्माण कराया। लंबे समयांतराल के कारण द्वापर युग में यदि श्रीराम के जन्म का स्मारक धूमिल पड़ा तो इसे भगवान श्रीकृष्ण ने नया जीवन प्रदान किया।
एक बार पुन: रामजन्मभूमि को नवजीवन की जरूरत पड़ी तो इसे पूरा करने के लिए दो हजार वर्ष पूर्व महाराज विक्रमादित्य जैसे शासक सामने आए। महाराज विक्रमादित्य ने श्रीराम को यशस्वी नायक एवं महापुरुष के साथ ही आराध्य के तौर पर रामनगरी में प्रतिष्ठापित किया। उन्होंने रामजन्मभूमि पर अति भव्य एवं विशाल मंदिर का निर्माण कराने के साथ श्रीराम के समकालीन रामनगरी के अन्य स्थलों का भी जीर्णोद्धार कराया।
अनेक प्राचीन ग्रंथों से महाराज विक्रमादित्य के समय नवनिर्मित राममंदिर और रामनगरी की भव्यता का वर्णन मिलता है। इस भव्यता के बीच रामलला के दरबार में विभिन्न उत्सव एवं अनुष्ठानों के आयोजन का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि रामलला के दरबार में रामजन्मोत्सव, सावन का झूलनोत्सव, विजयादशमी, दीपावली एवं होली जैसे पर्व श्रीराम की गरिमा के अनुरूप पूरी भव्यता से मनाए जाते रहे हैं।
करीब डेढ़ सहस्त्रब्दि तक रामलला की गौरव-गरिमा का यह सिलसिला तब बाधित हुआ, जब मुगल आक्रांता बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीरबाकी ने तोप से रामजन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर को ध्वस्त करा दिया। इसके बाद रामलला के दरबार में होली तो नहीं खेली जा सकी, पर उन्हें पुन: प्रतिष्ठित कराने के लिए रामभक्त स्वयं को दांव पर लगाकर खून की होली खेलते रहे। इस सपने के साथ कि वह दिन पुन: आएगा, जब अपने आराध्य की जन्मभूमि पर दिव्य और भव्य मंदिर में होली के हुलास में डुबकी लगाएंगे। ऐसी कोशिश और इसी इंतजार में दिन, महीने, साल ही नहीं शताब्दियां गुजर गईं।
रामजन्मभूमि मुक्ति का आंदोलन अनेक चरणों और अनेक सपनों के साथ गुजरा। 22-23 दिसंबर, 1949 की रात चमत्कारिक घटनाक्रम के बीच रामलला पुन: अपनी जन्मभूमि पर स्थापित हुए, पर गरिमा के अनुरूप न्याय नहीं संभव हो पाया। हालांकि विवादित ढांचे में रामलला की नित्य पूजा-अर्चना के साथ विभिन्न उत्सवों के अवसर पर कार्यक्रम की परंपरा जरूर आगे बढ़ती रही। रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्रदास उन दिनों को याद करते हैं, जब ढांचा नहीं ढहाया गया था और होली के मौके पर सुरक्षाकर्मियों के अलावा काफी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित होते थे। रामलला का दरबार अबीर-गुलाल से सराबोर होता था। ऐसा करने वाले निहाल तो होते थे, पर उनके मन में यह बात होती थी कि एक दिन रामलला पूर्णत: स्वायत्त होंगे और उनकी जन्मभूमि पर होली जैसा उत्सव कहीं अधिक भव्यता के साथ मनाया जाएगा।
नौ नवंबर, 2019 को रामलला के हक में आए फैसले से न केवल रामलला का संपूर्ण स्वत्त-स्वायत्तता प्रतिष्ठित हुई, बल्कि रामलला से जुड़े सदियों के स्वप्न ने भी अंगड़ाई ली। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पूर्व ही जहां भव्य मंदिर निर्माण की तैयारियां फल-फूल रही थीं, वहीं विभिन्न पर्वों को भव्यता से मनाए जाने का प्रतिमान गढ़ा जाने लगा। फैसला आने के बाद यदि भव्य मंदिर निर्माण की तैयारी जमीनी स्तर पर मुखर हुई तो रामलला को अस्थाई मंदिर से हटाकर कहीं अधिक सुविधा-सज्जा से युक्त वैकल्पिक गर्भगृह में स्थापित किया गया।
वर्ष 2020 का रामजन्मोत्सव इसी वैकल्पिक गर्भगृह में मनाया गया, जो इस सच्चाई का साक्षी था कि आने वाले दिनों में रामलला की गौरव यात्र सतत् उत्कर्ष की ओर उन्मुख होगी। इस बीच, जहां मंदिर निर्माण का क्रम आगे बढ़ने के साथ भव्य मंदिर और उसमें रामलला के स्थापित होने की प्रतीक्षा तीव्र हो उठी है, वहीं रामलला की गौरव-गरिमा में चार चांद लगाने की हर कोशिश परवान चढ़ती जा रही है। 29 मार्च, 2021 की होली बदलाव के इस दौर की शानदार नजीर बनने को है। रामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने रामलला के प्रधान अर्चक आचार्य सत्येंद्रदास से होली में होने वाली व्यवस्था के बारे में जानकारी मांगी है साथ ही यह संकेत दिया है कि इस बार की होली या भविष्य की होली कहीं अधिक भव्यता के साथ मनाई जाएगी।
होली में मिलेगी नई पोशाक : छह दिसंबर, 1992 को ढांचा ढहाए जाने के बाद रामलला की होली प्रतीकात्मक तौर पर सिमट कर रह गई थी। न्यायालय की ओर से नियुक्त रिसीवर की निगरानी में रामलला को वर्ष में एक बार सात पोशाकें मिलती थीं। ये सात पोशाकें रामलला सप्ताह के सातों दिन एक-एक कर पहनें या फिर उत्सव के अवसर पर, यह पुजारी पर निर्भर था। अब परिदृश्य बदलने के साथ होली के अवसर पर रामलला के लिए नई पोशाक सिली जा चुकी है। पुजारी प्रसन्न हैं कि वे होली के अवसर पर रामलला को नई पोशाक धारण कराएंगे।
एक क्विंटल पंजीरी व 50 लीटर पंचामृत का प्रसाद : पारंपरिक व्यवस्था के तौर पर होली के मौके पर रामलला को एक क्विंटल पंजीरी, 50 लीटर पंचामृत व पांच किलो पेड़ा और फल का भोग लगता रहा है। इस बार पारंपरिक व्यवस्था के अलावा रामलला को राजभोग के साथ अबीर-गुलाल अर्पित किया जाएगा।
रंगभरी एकादशी से प्रशस्त हुई संभावना : रामलला के प्रति समर्पित होने वाली होली की संभावना गुरुवार को रंगभरी एकादशी से ही परिभाषित हुई। यद्यपि फाल्गुन शुक्ल एकादशी यानी रंगभरी एकादशी के अवसर पर प्रत्येक वर्ष बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी से नागा साधु शोभायात्र निकालते हैं, लेकिन इस बार इस उत्सव में रामलला के प्रति होली से जुड़ी संभावना भी समाहित थी। सच्चाई यह है कि रामजन्मभूमि मुक्ति के बिना रामनगरी छाती पर बोझ लेकर जीती रही है और अब रामनगरी न केवल इस बोझ से मुक्त हुई है, बल्कि विभिन्न अवसरों पर इसका उत्साह सातवें आसमान पर होता है।