कहानी: ये कैसी बेबसी
मुंबई की लोकल ट्रेन जैसे ही प्लेटफौर्म पर रुकी तो फर्स्ट क्लास के डब्बे में फर्स्ट क्लास वाले आदमी चढ़ गए. फर्स्ट क्लास वाली औरतें भी अपने डब्बे में चढ़ गईं.मुंबई की लोकल ट्रेन जैसे ही प्लेटफौर्म पर रुकी तो फर्स्ट क्लास के डब्बे में फर्स्ट क्लास वाले आदमी चढ़ गए. फर्स्ट क्लास वाली औरतें भी अपने डब्बे में चढ़ गईं. तभी एक नंगधड़ंग आदमी फर्स्ट क्लास लेडीज डब्बे में चढ़ गया. वह खुश दिख रहा था. उस के दांत और आंखें चमक रही थीं. शेष पूरा बदन काला था.
वह जैसे ही चढ़ा, औरतों ने चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘‘यह फर्स्ट क्लास का डब्बा है. उतरो नीचे,’’ मगर उस को तो जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ रहा था. वह अब भी हंस रहा था. औरतों की आवाजें सुन कर फर्स्ट क्लास वाले पुरुष भी चिल्लाने लगे, ‘‘अरे, क्या कर रहा है? देखता नहीं, वह लेडीज डब्बा है?’’ मगर वह तो हंसे ही जा रहा था. लोग चिल्ला रहे थे. औरतें चिल्ला रही थीं. मगर उसे कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था. और वह उतरने को तैयार ही नहीं था.
अब तो ट्रेन भी चल पड़ी थी. मुंबई की लोकल ट्रेन कुछ सैकंड्स के बाद किसी का इंतजार नहीं करती. चाहे कोई नंगधड़ंग आदमी फर्स्ट क्लास लेडीज डब्बे में ही क्यों न चढ़ जाए. लोग चिल्लाए जा रहे थे, ‘‘उतर, उतर जा…’’
अब तो उतर भी नहीं सकता है. एक बार को तो मुड़ा कि उतर जाए मगर ट्रेन चल दी थी. तभी एक फर्स्ट क्लास वाले भाई साहब को कुछ ज्यादा ही जोश आ गया और वे चेन खींच कर ट्रेन को रोक देना चाहते थे और उस नंगधड़ंग आदमी को लेडीज डब्बे से उतार देना चाहते थे, जिसे सब लोग थोड़ी ही देर में समझ गए कि वह पागल है.
उसे किसी की बात का कोई असर नहीं हो रहा था. लोग चिल्लाए जा रहे थे. औरतें चिल्लाए जा रही थीं और वह हंस रहा था. तभी किसी ने कहा, ‘‘अब तो ट्रेन चल दी. अब उतरेगा भी तो कैसे?’’ और यह सुन कर जो हाथ चेन खींचने ही वाले थे, पता नहीं क्या सोच कर रुक गए.
अब सब की सांसें तेज हो गई थीं. वह पागल लेडीज डब्बे में सफर कर रहा था. वह भी फर्स्ट क्लास में, और बिना टिकट के. उस के पास तो पहनने को कपड़े भी नहीं थे और कपड़े नहीं थे तो जेब भी नहीं थे और जेब ही नहीं, टिकट का वह क्या करता? उस का काला शरीर सब को डराए जा रहा था.
फिर वह थोड़ा सा लेडीज की ओर बढ़ा, फिर औरतों ने और चिल्लाना शुरू कर दिया. फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे लोग फिर से खड़े हो गए. वह तो लेडीज और जैंट्स के बीच में एक दीवार है वरना इतने में तो जाने कितने लोग लेडीज डब्बे में पहुंच चुके होते अब तक. तभी एक भाई साहब बोले, ‘‘पता नहीं कहां से आया है?’’ यह सवाल वाकई सोचने लायक है. कहां से आया होगा वह? उमर होगी करीब 25 साल. आंखें अंदर धंसी हुईं. गाल पिचके हुए. बदन पर एक भी कपड़ा नहीं. कहां से आया होगा वह?
अब जब ट्रेन चल दी और उस के उतरने का कोई सवाल नहीं है, तब लोगों ने कहना शुरू कर दिया, ‘‘अगले स्टेशन पर उतर जाना,’’ वह यह कहने वालों की ओर देख कर ऐसे हंस रहा था जैसे कहने वाला कोई बंदर हो और वह एक बच्चे की तरह कोई बंदर देख कर खुश हो रहा हो.
हंसते हुए उस के दांत दिखाई देते थे. उस के दांत एकदम साफ थे, बल्कि चमक रहे थे. इस से पता चलता है कि वह कसरत से अपने दांतों को साफ करता रहा होगा या बहुत दिनों से उस ने कुछ खाया नहीं होगा. उस की हालत कुछ ऐसी थी जैसे उस का सब कुछ जल्दी ही में छिन गया हो, वह कोई बड़ा सदमा बरदाश्त नहीं कर पाया और पागल हो गया.
उस ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए तो औरतें और भी डर गईं, पता नहीं क्या करेगा? मगर उस ने ट्रेन में खड़े होने वाले लोगों के लिए बने हैंडिल को पकड़ लिया. ट्रेन चल रही थी तो वह भी हिल रहा था. गिर न जाए, इसलिए उस ने हैंडिल पकड़ लिया.
अब सब फर्स्ट क्लास वाले आदमी और औरतें बेसब्री से इंतजार कर रहे थे कि अगला स्टेशन आए और यह बला उतरे और तब सब की जान में जान आएगी.
बारिश भी तेज हो रही थी. पूरी मुंबई में पानी भरा हुआ था. अंधेरा भी गहरा चुका था. वह पागल अगले स्टेशन पर भी उतर कर जाएगा कहां? उस के पास जब कपड़े नहीं हैं, तो घर भी नहीं होगा, जाहिर सी बात है. और ऊपर से ये फर्स्ट क्लास वाले लोग जल्दी मचाए हुए हैं कि उतर…उतर…ये लेडीज डब्बा है…फर्स्ट क्लास है…
काला बदन. बदन पर कपडे़ नहीं. नंगधड़ंग. दिमागी तौर पर लाचार. औरतें उसे ऐसे घूर रही थीं कि उतर जा…नहीं तो चलती ट्रेन से बाहर फेंक देंगे. और वह है कि हंसे जा रहा था. पता नहीं, किस पर हंस रहा था वह?
बहरहाल, सब की राहत के लिए अगला स्टेशन करीब आ गया और एक बार फिर सब की आवाजें गूंजने लगीं, ‘‘उतर जा, स्टेशन आ गया, अगले डब्बे में चला जा.’’
वह हंसते हुए इस तरह मुंडी हिलाता था जैसे बच्चों के साथ कोई खेल खेल रहा हो और उस से मुंडी हिलाने के लिए कहा गया हो.
अगला स्टेशन आ गया और वह पागल हंसतेहंसते उतर ही गया. किस पर हंस रहा था वह? उस का कौन सा क्लास था…? उस के उतरते ही पूरे डब्बे में सन्नाटा छा गया जैसे सब लोग कुछ सोचने के लिए मजबूर हो गए हों, माना वह पागल था लेकिन वे सब…वे तो समझदार लोग थे…क्या यही थी उन की समझदारी?