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Ghazipur: जैनमुनि प्रसन्न सागर का लहुरीकाशी में भव्य स्वागत

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. एक लाख किमी से अधिक पदयात्रा कर विहार पर निकले जैनमुनि प्रसन्न सागर महाराज का मंगलवार को गाजीपुर में गंगा के रास्ते मंगल प्रवेश हुआ। गहमर के नरवांघाट पर पूर्व कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश सिंह समेत सैकड़ों लोगों के साथ गंगा किनारे उनका स्वागत किया। जैन समाज ने जैन संतों के स्वागत एवं दर्शन के लिए विशेष तैयारियां की गई, देर शाम जैनमुनि ने भक्तों के बीच प्रवचन किया। मुनि प्रसन्नसागर महाराज द्वारा रचित कृति ‘भीतर का सच वितरित की गई।

गाजीपुर में मंगलवार शाम नौका विहार कर पहुंचे जैन मुनि प्रसन्न सागर महाराज का गंगा तट पर सैकड़ों ग्रामीणों ने स्वागत किया। उनके साथ मुनि पीयूष सागर महराज समेत कई जैन संत भी पहुंचे। नाव से उतरते ही पूर्व पर्यटन मंत्री ओमप्रकाश सिंह ने उनके पांव पखारे और चरणरज मस्तक पर लगाई। जयघोष के बीच मुनि प्रसन्न सागर को गंगा किनारे प्रवास स्थल पर लाया गया। पूर्व मंत्री समेत कई लोगों ने उन्हें श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद लिया तो पूजन-वंदन भी किया। आहार ग्रहण करने से पहले धामक भजन प्रस्तुत किए गए। जिनको सुनकर भक्त भाव-विभोर हो गए। आयोजित कार्यक्रम में मुनि पीयूष सागर महाराज ने कहा कि उपवास रखने के पीछे का लंबा इतिहास है। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने के साथ कोरोना काल में अपने हिस्से का भोजन दूसरों को प्राप्त कराने की मंशा से उन्होंने ऐसा किया।


बुधवार सुबह जैन मुनि ने बुधवार सुबह को प्रात: जिनेंद्र प्रार्थना, दीपार्चना एवं शांति धारा संपन्न कराई। आहारचर्या के उपरांत पदयात्रा करते हुए भक्तों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। मुनि प्रसन्न सागर महाराज करीब 35 प्रांतों की एक लाख से किमी से अधिक की पदयात्रा कर भगवान महावीर तथा सामाजिक सुधार का संदेश दे रहे हैं। दोपहर बार वे बक्सर के रास्ते बिहार प्रांत के लिए रवाना हो गए। इस दौरान ओपी सिंह, मन्नू सिंह, अनिल सिंह यादव, शशि कुमार, पिंटू सिंह समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।


प्रवचन में मन की पवित्रता और निर्मलता का संदेश

मुनिप्रसन्न सागर महाराज ने गहमर में भक्तों को प्रवचन दिए। रात्रि में मंगल आरती के साथ लंबा प्रवचन चला। उन्होंने भक्तों को सत्य और अहिसा के रास्ते पर चलने की सीख दी। साथ ही महाभारत काल में हुए घटनाक्रम का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि अपना भला सोचे वो दुर्योधन है, जो अपनों का भला सोचे वह युधिष्टर है, जो सबका भला सोचे वह नारायण परमात्मा है। इसलिए हमें खुद तय करना है कि हम क्या बनना चाहते हैं।


प्रवचन में कहा कि धर्म आत्मसात करना चाहिए। जिस प्रकार एक दवा बाहर लगाने की होती है, दूसरी दवा शरीर के अंदर लेने की। उसी प्रकार धर्म को केवल बाहरी दिखावे से नहीं जोड़ें। उसे आत्मसात करना चाहिए। जो धर्म आत्मसात होगा, वही जीवन में बदलाव लाएगा। जब तक मन पवित्र और निर्मल नहीं हो, प्रभु प्राप्ति संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि इन दिनों धर्म खूब होता है, मगर सही तरीके से नहीं होता है। इस जीवन में सब कुछ उन्हीं को मिलता है, जिनके पास कुछ नहीं होता जैसे कि संत या मुनि। मुनि का पद ऐसा होता है जिसके आगे सभी शीश झुकाते हैं, आज्ञा का पालन करते हैं। जैन मुनि आचार्य प्रसन्न सागर महाराज ने कहा कि मनुष्य का मन अनुभूत है। मन हंसाता भी है, रुलाता भी है। मन की बाल्टी पर संतोष की पेंदी लगा दो तो शायद मन इतना परेशान नहीं होगा। वह बुधवार सुबह आयोजित प्रवचन सभा में मंगल आशीर्वाद दे रहे थे.

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