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बलिया का अनोखा 'वैशाख नन्दन' मेला, दो दिनों में ही सैकडों गधों की होती है खरीद और बिक्री

गाजीपुर न्यूज़ टीम, बलिया. गधों को वैसे गधा, गदहा और वैशाख नन्दन भी कहा जाता है। वैशाख नन्दन एक शास्त्रीय शब्द है और देवभाषा संस्कृत में भी गधे को वैशाख नंदन कहा गया है। बहरहाल, चिलकहर ग्राम पंचायत के शिव मंदिर पर लगने वाले गदहों के मेले में इस बार भारी भीड़ उमड़ रही है। महा शिवरात्रि के मौके पर लगने वाला मेला क्षेत्र तथा जनपद के अलावा प्रदेश भर में भी जाना जाता है। मुख्य गधा पालक अपने अपने गधों के साथ मेले में खरीद और बिक्री करने के लिए आते हैं। ईंट भट्ठों से लेकर कपड़ा धुलने वाले धोबी समाज में भी उन्‍नत नस्‍ल के गधों की डिमांड बनी रहती है। शिवरात्रि के मौके पर लगने वाला यह मेला दो दिन तक रहता है। यह मेला शुक्रवार को समाप्त हो जायेगा और बिक्री खरीद का वार्षिक कारोबार अगले वर्ष के इंतजार में सिमट जाएगा। कनौजिया समाज के लिये चिलकहर में गधों के इस मेले में प्रतिवर्ष हजारों गधे खरीदे और बेचे जाते हैं। 

मेले तो लोगों ने बहुत देखे होंगे पर विशेष तौर पर गधों के मेले का बलिया जिले में बड़ा करोबार सदियों से ददरी मेले में रहा है। लेकिन दस साल से अलग लग रहा गधों का यह अनोखा मेला ऐसा है कि नेपाल तक से खरीदार अपने कारोबारी जरूरतों के लिए लंबे समय से आते रहते हैं। इस मेले में 40 हजार रुपये से लेकर 60 हजार रुपये तक के गधे अपनी क्षमता के अनुसार बिकते हैं। यहां पर गधे से लेकर खच्‍चरों तक की डिमांड पर उपलब्‍धता कारोबारी सुनिश्चित करते हैं। हालांकि, पशुओं का देश में दूसरा सबसे बड़ा मेला ददरी भी सर्दियों में पशुपालकों और कारोबारियों के लिए बेहतर मौका उपलब्‍ध कराता है। 


यहां के चिलकहर गांव में हर वर्ष महाशिवरात्रि पर दो दिवसीय मेला लगता है। लगभग दस साल पहले स्थानीय धोबी समाज के लोगों ने इसकी शुरुआत की, जो अब व्यापक रूप ले चुका है। शिव मंदिर पर लगने वाले मेले में भारी भीड़ होती है। अमूमन पूर्वांचल भर में ईंट भट्ठों पर गधों से काम लिया जाता है। इसके अलावा संकरी गलियों से मकान आदि का मलबा निकालने में भी इन्हीें का इस्तेमाल किया जाता है। इस समय ईंट पथाई का सीजन भी चल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक दो दिन में 700 से 800 गधे और खच्चरों की बिक्री होती है। इस मेले में बलिया के अलावा गाजीपुर जनपद के कुछ गांवों के विक्रेता भी आते हैं। मेले में गधों और खच्‍चरों के बच्‍चों से लेकर तैयार नस्‍लों तक की बिक्री होती है। यहां पर नस्‍लों की परख करने वाले मेले में घूम घूम कर बेहतर प्रजाति का चयन कर अपने काम और जरूरतों के मुताबिक खरीद करने प्रतिवर्ष आते हैं।  


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