कहानी: तुम से मिल कर
गले स्टेशन पर पानी के लिए अनंत उतरा. खाली सीट देखते ही नए आए सज्जन वहां बैठने लगे. अपने में ही सिमटी रूही ने अब मुंह खोला, ‘‘मेरा भाई है यहां, पानी लेने गया है.’’
नी पिएगी?’’ अनंत ने रूही से पूछा.
ट्रेन शोर के साथ दौड़ती जा रही थी. रूही अपने 8 महीने के पेट के साथ निढाल दिख रही थी.
अप्रैल का आखिरी हफ्ता, गरम हवा के थपेड़े और ट्रेन में बैठे पसीने की मार से तरबतर लोग. रिजर्र्वेशन के बावजूद डब्बा दिन में पैसेंजर्स से ठसाठस भरा था.
पटना की ओर रुख था अनंत और रूही का. अनंत अपनी बहन रूही को डिलिवरी के लिए मायके ले जा रहा था. यह सबकुछ आखिरी वक्त में तय हुआ, वरना ससुराल वाले रूही की डिलिवरी अपने पास भोपाल में ही कराना चाहते थे. दरअसल, ऐन वक्त पर रूही की ननद के बेटे का गिर कर हाथ टूट जाना, ननद का नौकरी में होना, उस की सास का अपनी बेटी के पास चले जाना आदि तय कार्यक्रम में हेरफेर का कारण बने.
ट्रेन बढ़ती जा रही थी, हां, यात्री उस से कहीं ज्यादा स्पीड में डब्बे में आते जा रहे थे. गरमी की छुट्टी भी एक वजह थी यात्रियों की अधिकता की. लोग रूही की स्थिति देख आपस में चिपक कर बैठे थे. दोपहर की गरमी से परेशान रूही बारबार पानी मांग रही थी. खिड़की बंद करने के बावजूद ट्रेन की ढीली खिड़कियां ऊपर की ओर चढ़ जातीं और बाहर की बहुत ही गरम हवा अंदर आ कर मुंह सुखा जाती. खीरे वाले ने इसी बीच उपस्थिति दर्ज कराई तो कई पैंसेंजरों की सूखी जीभें तर हुईं.
यात्रियों के सिर के ऊपर पंखा चल रहा था या उन पर हंस रहा था, यह जानने के लिए बारबार वे पंखे की ओर देखते और अपने पास मौजूद अखबार या गमछे को हिलाहिला कर हवा को महसूस करते. चल तो रहा था पंखा मगर सिर्फ तसल्ली के लिए, बहुत ही धीमेधीमे.
अगले स्टेशन पर पानी के लिए अनंत उतरा. खाली सीट देखते ही नए आए सज्जन वहां बैठने लगे. अपने में ही सिमटी रूही ने अब मुंह खोला, ‘‘मेरा भाई है यहां, पानी लेने गया है.’’
‘‘जब आएगा देखा जाएगा, बहनजी.’’
‘‘यह सीट रिजर्व है, हमारी है.’’
‘‘अरे बहनजी, इतनी भीड़ में कहां कोई रिजर्व. रात में सोते वक्त ही अब खाली होगी. उस से पहले नहीं.’’
सामने की बर्थ पर रीना बैठी थी. वह रूही को देखे जा रही थी. उस की बर्थ पर भी नए आए यात्रियों की जोरआजमाइश कम नहीं थी.
रीना की बर्थ ऊपर की थी. उस पर 3 लोग आसन जमाए थे. मिडिल बर्थ खोली नहीं जा सकी थी, वरना वह भी… नीचे वाली बर्थ उस की मां की थी. उस पर भी 5 लोग बैठे थे और छठे के लिए रहरह कर गुंजाइश बनाने की कोशिश जारी थी.
रूही की स्थिति पर मन ही मन व्यथित होती हुई रीना उस के मामले में खुद को दखल देने से नहीं रोक पाई. उस सज्जननुमा दुर्जन से पंगा लेते हुए रूही के शब्दों को आगे बढ़ाते बोली, ‘‘इन का भाई अभी आता ही होगा, क्यों परेशान कर रहे हैं इन्हें, इन को बहुत तकलीफ है, दिखता नहीं?’’
‘‘तकलीफ है तो एसी क्लास का टिकट क्यों नहीं लिया?’’ सज्जन अपनी सज्जनता छोड़ते जा रहे थे.
रीना सोच में पड़ गई. कैसेकैसे लोग होते हैं. अभी वह कुछ बोलती, इस से पहले ही वे सज्जन फिर बोल पड़े, ‘‘और आप कौन होती हैं बीच में बोलने वाली?’’
रीना के दिमाग में कई शोर बज उठे. भाईभतीजावाद के इस जमाने में सब को अपने में ही मरनेखपने दो. एक तो आप किसी को परेशान देख आगे बढ़ जाओ क्योंकि सभी को यही स्वाभाविक लगता है, दूसरे आप किस के कौन से भाईभतीजा हो, इस का प्रमाण दो. बिना किसी रिश्ते के आप किसी के लिए खड़े होंगे, यह तो हो ही नहीं सकता न. रूही का उस से पीछा छुड़ाने को रीना कह पड़ी, ‘‘यह मेरी ननद है, समझे.’’
रूही ने रीना को आश्चर्य से देखा. और उन सज्जन के सीट से हट जाने पर मुसीबत से मुक्ति का आनंदलाभ लेती वह भाई अनंत का इंतजार करने लगी. रीना के प्रति उस ने एक छोटा सा धन्यवाद भी नहीं दिया, रीना ने उम्मीद भी नहीं की.
अनंत पानी और नाश्ता ले कर रूही के पास आया और सीट पर बैठ गया. रूही भाई से अपने साथ हुई घटना का ज्योंज्यों जिक्र करती, वह रीना की ओर देखदेख कर जाने क्याक्या सोचता. इतने में एक वृद्धा ने अनंत से अपना भारी सूटकेस बर्थ के नीचे ढकेलने का आग्रह किया. रीना को काफी आश्चर्य हुआ कि अनंत और रूही दोनों ही ऐसे बैठे रहे जैसे उन्होंने कुछ सुना ही न हो. रीना ने उठ कर वृद्धा के कहेनुसार सूटकेस को सीट के नीचे सरका दिया.
अब शाम होने को आई थी. लोगबाग, जो अपनी गोलाईभर की सीट को जन्मजन्मांतर का कब्जा सम झ बैठे थे, आने वाले स्टेशनों पर उतरते चले गए. ट्रेन का डब्बा अब कुछ सांस लेने लायक हो गया था.
रीना का 3 साल का बेटा टीटो सो कर उठ चुका था और अपनी मासूम शरारतों से सहयात्रियों का ध्यान खींच रहा था. वह कई बार दौड़दौड़ कर अनंत और रूही के पास भी गया. वे दोनों नाश्ता करने में व्यस्त थे. रीना के बच्चे को भी अनदेखा करते रहे.
अब तक रीना की मां मुखर हो चुकी थीं. उन्होंने अनंत से पूछा, ‘‘इन के पति क्या करते हैं?’’
‘‘सौफ्टवेयर इंजीनियर हैं,’’ अनंत ने न चाहते हुए भी सब के सामने जवाब देने की मजबूरी के चलते कहा.
रूही की तरफ देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘पहला है?’’
‘‘जी,’’ शरमा कर रूही ने जवाब दिया तो रीना की आंखें अनजाने ही नम होने लगीं. शायद कोई पिघलता सा एहसास था, जिस ने उस का आंचल पकड़ कर खींचा था.
रूही ने स्त्रीसुलभ जिज्ञासावश रीना की ओर देख पूछ लिया, ‘‘भैया क्या करते हैं?’’
रीना की मां इस सवाल के लिए जैसे तैयार ही बैठी थीं. दर्द था, अपराधबोध था, या बेटी के सामने अपना दिल खोलना चाहती थीं जो अब तक हो न सका था, कहा, ‘‘कहां रहे वे. विदेश जा रहे थे, प्लेन क्रैश में 40 लोगों की मौत हुई थी. हमारी रीना का भविष्य खत्म हो गया. मेरी ही गलती थी शायद, मैं ने ही इस रिश्ते के लिए जोर दिया था.’’
‘अब से मैं जाटव के हाथ का ही पानी पिऊंगा,’ रूही के दिमाग में यह वाक्य जैसे जोर से फटा. कम बोलने वाला लड़का, यह क्या कह गया. 29 वर्ष का अनंत वैसे तो रूही से 3 साल ही उम्र में बड़ा था, लेकिन उस के सीधेपन की वजह से रूही उस पर हमेशा अपना हुक्म चलाती आई है. आज इस हाल में वह कुछ कह नहीं पाई, वरना इस सत्यानाश के लिए वह भैया को कभी छोड़ती नहीं. इतना बड़ा अनर्थ कर दिया अनंत ने.
मिश्रा परिवार में 3 बार पूजाअर्चना होती है नियम से. अन्य जाति के लोग द्वार पर आ कर रुक जाते हैं. घर में चायपानी के लिए उन का अलग बरतन होता है. हाथों से छू कर अम्मा उन्हें कभी कुछ नहीं परोसतीं. सब बाइयां ही करती हैं.
बाई के घर में घुसते ही अम्मा अपने यहां रखी साड़ी देती हैं पहनने को. उस के माथे पर गंगाजल छिड़कती हैं. तब जा कर वह इस घर का काम शुरू करती है. तब भी अम्मा इन कामवालियों के पीछे दौड़ती ही रहती हैं. एकबार ये बरतन धो देती हैं तो अम्मा फिर उन्हें दोबारा धोती हैं. मंदिर का सारा काम बेटी और अम्मा के हाथ में. और यहां एक पल में इस महामूर्ख ने सब करम तमाम कर डाला.
यह लड़की तो जाटव है, कामवाली बाइयों के लिए भी अछूत. पर देखो, पढ़लिख कर कमाऊ हो कर क्या शान से खुद को प्रस्तुत कर रही है.
मारे क्रोध के रूही ने मुंह फेर लिया. तब तक स्टेशन आ चुका था, जहां रीना के मामा की सूचना पर एक असिस्टैंट नर्स के साथ डाक्टर मौजूद था. बहन को ले कर यहां उतरते समय अनंत ने एक छोटी सी दृष्टि रीना पर डाली और दो शब्दों के जरिए उस से उस का फोन नंबर ले लिया.
अब तक रूही दर्द से छटपटाने लगी थी. रीना वैसे तो कम बोलने वालों में से थी, लेकिन जब बोलने पर आ जाती है तो अच्छेअच्छों की बोलती बंद कर देती है.
इतने सारे लोगों के बीच रीना अपने समय का चीथड़ा खोलना नहीं चाहती थी. ऊपर से अनंत, अच्छाखासा, देखनेभालने में तरोताजा इंसान उसे ही एकटक अपनी नजरों से निगलता जा रहा था. रीना ने मां को इशारों से रोकना चाहा लेकिन वे अनंत को पुत्रसम मान आंखों से बहते आसुंओं को पोंछपोंछ कर बताती ही जा रही थीं.
‘‘और है ही कौन मेरा? एक बेटा, वह भी अमेरिका जा कर बस गया. उस ने अमेरिकी लड़की से शादी कर ली और वहीं की नागरिकता भी ले ली. 3 साल में एक बार दर्शन देता है. बेचारी मेरी यह रीना होम साइंस के फाइनल ईयर में अच्छे रैंक से पास हुई, साथ में डेढ़ साल के बेटे को संभालती हुई. बस, सब खत्म हो गया. ऐक्सिडैंट में दामाद की मौत के साथ ही इस की जिंदगी सूनी हो गई. देवर ने शादी की, देवरानी ने इतने जाल रचे कि अब इस का वहां टिकना मुश्किल हो गया है.’’
रीना के रोके न रुक रही थी उस की मां. कई लोग कभी ध्यान देते, कभी अनसुना करते. लेकिन कई मानो में परखा गया कि आत्मकेंद्रित अनंत रीना की मां की बात बड़े ध्यान से सुन रहा था. रीना की मां को भी अरसे बाद कोई अच्छा श्रोता मिला था. वे कहती गईं.
‘‘मैं ही ले आई इसे, वहां क्यों जान खपाए. टीटो भी पल जाएगा हमारे साथ.’’
वे अनंत की ओर उम्मीद से देख रही थीं कि उन्होंने सही ही किया हो, इस पर एक राय मिल जाए.
अनंत उन की बातों में खो चुका था. अचानक जैसे होश आ गया हो, बोला, ‘‘हां, हां, ठीक ही तो किया.’’
इधर शाम होतेहोते अब इक्केदुक्के लोग ही चढ़उतर रहे थे. बल्कि, उतरने वाले ही अधिक थे.
रात के 8 बज रहे थे. लोग डिनर लेना शुरू कर चुके थे. रीना अपने बेटे टीटो को खाना खिलाने की तैयारी करने लगी थी. इतने में रूही को दर्द महसूस हुआ. वह बर्थ पर निढाल हो गई. धीरेधीरे दर्द बढ़ने लगा. भाई से पानी की बोतल मांगी. गरमी ने पानी की बोतल खाली करवा दी थी. रात में अब पानी वाले विके्रता आने वाले नहीं थे और भोर में 5 बजे के बाद ट्रेन पटना पहुंचने वाली थी.
रूही की हालत धीरेधीरे नाजुक होने लगी. अनंत असहाय सा इधरउधर देखता रहा. ट्रेन में कहां डाक्टर… रीना जल्द अपने गिलास में पानी भर रूही के पास आई. उस की ओर जैसे ही उस ने पानी बढ़ाया, दर्द से ऐंठती रूही ने धीरे से पूछा, ‘‘आप लोग किस जात से हो?’’
रीना की सोच अलग थी. जाति जब इंसान के आपस के प्रेम में दीवारें खड़ी करे, वह त्याज्य हो जाती है, ऐसा मानना था रीना का. वह तिलमिला गई. उस ने पानी का गिलास उस की तरफ बढ़ाए रखा और कहा, ‘‘पहले पानी पी लो, फिर जाति बता देंगे.’’
रूही ने पानी नहीं लिया. रीना की मां ने उस का आशय सम झ रीना से कहा, ‘‘रहने दे, रीना.’’ फिर रूही से मुखातिब होते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, हम जाटव हैं, आप लोग… अच्छा, सम झ गई, मिश्रा, चार्ट में देखा तो था.’’
रीना को आरक्षण के कारण अच्छे स्कूल में दाखिला मिल गया था. उस का पति भी विदेश में नौकरी कर चुका था और अब उस का व्यक्तित्व निखर चुका था. रीना कहीं से निम्न जाति की नहीं लगती थी. हां, मां में पुरानापन साफ झलकता था.
‘‘अब कैसे प्यास बु झेगी, बेटी?’’
अब तक रूही दर्द से छटपटाने लगी थी. रीना वैसे तो कम बोलने वालों में से थी, लेकिन जब बोलने पर आ जाती है तो अच्छेअच्छों की बोलती बंद कर देती है. वह बुत बने खड़े अनंत की ओर देखती हुई बोली, ‘‘पानी जब शरीर के अंदर प्रवेश करता है तो उस का हाइजीन इफैक्ट देखा जाता है, गंदा पानी तो नहीं, विषैला तो नहीं. यह कहां का फंडा पाल रखा है आप लोगों ने, इस जात का पानी और उस जात का पानी. बहन से कहिए कि पानी पी ले, बाद में पीने को तरसेगी क्योंकि दर्द के मारे पी नहीं पाएगी.’’
अनंत था तो बड़ा हट्टाकट्टा, रोबीला सा नौजवान मगर ठेठ लकीर का फकीर. पटना का विशुद्ध ब्राह्मण. बचपन का देखा, सुना, सीखा ही उस की लकीर थी. उस से आगे बढ़ने की न तो उस की मंशा थी और न ही हिम्मत.
‘‘कैसे पिला दें, जी. वह खुद ही नहीं पिएगी. अपना धर्म पहले है.’’
अपनी पंडिताई का सुर बरकरार था उस के अंदाज में.
‘‘कमाल की सोचते हैं, आप लोग. एक नहीं, 2-2 जिंदगियां साथ लिए जा रहे हैं, आप. उन्हें बचाना धर्म नहीं? कहां पर रहता है आप का धर्म?’’
‘‘आप से बात ही नहीं करनी मु झे,’’ अक्खड़ की तरह वह रीना से मुंह मोड़ बैठ गया.
हताश सी रीना रूही की स्थिति पर परेशान होने लगी. वह होम साइंस की छात्रा थी. ऐसी स्थिति में प्राथमिक व्यवस्था कर लेने का उसे ज्ञान था. उसे एहसास हो गया था कि गरमी, थकान और अंतिम दिनों में ज्यादा हिलनेडुलने की स्थिति बच्चे के अचानक आगमन का कारण बन सकती है.
इधरउधर से कई चीजों का उस ने जुगाड़ कर लिया. अपने टीटो के दूध बनाने के लिए वह साथ में जार ले जा रही थी और एक फ्लास्क गरम पानी तो उस के पास ही मौजूद था. तत्काल उस ने उसी क्षेत्र में रेलवे में खलासी पद पर कार्यरत अपने मामा को फोन लगाया. वस्तुस्थिति की जानकारी अपनी प्रिय भांजी से पा कर मामा ने तुरंत अगले स्टेशन पर एक डाक्टर को भिजवा दिया. इसी जद्दोजेहद में रूही की छोटी सी बच्ची इस दुनिया में आ चुकी थी. रीना पूरी तरह उन दोनों के लिए जैसे समर्पित हो गई थी.
अनंत साहब ‘मिश्रा’ होने का लबादा ओढ़े, लाचार और अवाक से देखते रहे और रीना उस की ही आंखों के सामने एक यज्ञ को पूर्णाहुति तक पहुंचाने में कामयाब हो गई.
अचानक टिकट बनवाने की वजह से उन्हें इतनी तकलीफ में स्लीपर क्लास में जाना पड़ रहा है. आज रूही की जो स्थिति थी, अगर सब लोग सिर्फ अपने में ही सिमटे रहते, रीना अगर अपने साथ हुए व्यवहार का बुरा मान आगे नहीं आती, तो रूही और बच्चे का तो आज बड़ा बुरा अंजाम होता.
रीना के प्रति अनंत कृतज्ञता कैसे जाहिर करे. अचानक उस ने रीना से पानी मांगा. अवाक सी उसे देखते हुए रीना ने पानी दे दिया. अनंत ने रूही को दिखा कर पूरा पानी पी लिया और रूही से कहा, ‘‘जा, बता देना घर में, अब से मैं जाटव के हाथ का ही पानी पिऊंगा.’’
रूही बीच में कूद पड़ी, ‘‘बाबूजी, यह रीना जाटव है.’’ जाटव पर जोर था. रूही ने आगे जोड़ा, ‘‘विधवा है, एक बच्चे की मां.’’ यह सुनते ही अम्मा भी बुराभला कहने लगीं.
पटना पहुंच कर रीना ने सब से पहले अपने लिए एक नौकरी ढूंढ़ी. उसे एक प्राइवेट नर्सिंग होम में डाइटीशियन की नौकरी जल्दी मिल भी गई. फिलहाल उस के लिए इतना काफी था. मां, पिताजी के साथ उस का बेटा टीटो पलने लगा.
उस शाम रीना नर्सिंग होम से घर के लिए निकल ही रही थी कि एक अनजान नंबर से कौल आई. उस के रिसीव करते ही उस ने इतना ही कहा, ‘‘अपना पता दे सकोगी अभी?’’
अरे, यह अनंत है. उसे अच्छा ही लगा. फिर भी स्त्रीसुलभ विरोध दर्शाते हुए पूछा, ‘‘क्या?’’
‘‘अमेरिका के राष्ट्रपति पूछ रहे हैं, इसलिए.’’
‘‘अच्छा, तुम मजाक भी कर सकते हो. मैं तो सम झ रही थी कि तुम बस ऊंचानीचा, भेदभाव ही कर सकते हो.’’
‘‘माफ करो, इसलिए तो आना चाहता हूं तुम्हारे पास, बहुतकुछ सीखना चाहता हूं तुम से. जीवन को सुंदर तरीके से जीना चाहता हूं. कुएं से बाहर निकलना चाहता हूं. पहली बार एहसास हुआ कि इंसान कितना प्यारा हो सकता है. पता दो न, प्लीज.’’
एक घंटे में अनंत रीना के दरवाजे पर खड़ा था. घर में उस की भरपूर आवभगत की गई. लेकिन खानेपीने के मामले में चाह कर भी किसी ने पहल नहीं की. अनंत ने आखिर रीना से पानी मांग ही लिया.
रीना ने भेदभरी निगाहें रख उस से पूछा, ‘‘सच? पानी?’’
वह शर्मिंदा सा होता हुआ बोला, ‘‘हां, दो न, हो सके तो चाय भी.’’
दरअसल, ज्यादा पढ़ालिखा न होने की वजह से उस में आत्मविश्वास कम था और अभिव्यक्ति भी. 12वीं के बाद से वह पिता का कारोबार ही संभाल रहा था.
बाजार इलाके में उस के पिता की लाइन से 30 दुकानें किराए पर थीं. उन पैसों की उगाही का काम अनंत के जिम्मे था. पैसे का हिसाब लगाना और जातिबिरादरी के बीच उठनाबैठना, बस, इतनी ही जिंदगी थी उस की. उम्र निकलती जा रही थी, मगर ब्याह को बाबूजी मान नहीं रहे थे. बिरादरी में सब से ऊंचा दहेज देने वाला कोई परिवार हो, तो बात बने. लेकिन इतना दहेज का औफर अब तक अनंत के लिए कोई ला न पाया था कि जिस से बाबूजी संतुष्ट हो पाते.
अब रीना की वजह से अनंत में काफी बदलाव आ गया था. बेवजह दोनों मिलते. धीरेधीरे दूरियां कम होने लगी थीं.
रीना की मां वैसे चाहती तो थीं कि बेटी का घर फिर से बस जाए. पर अनंत के घर में रीना निभा सकेगी, इस पर उन्हें पूरा शक था. उन की सीधी सोच थी कि वे लोग तो सिर्फ सेवा के लिए बने हैं, बराबरी कैसे कर सकते हैं उन से.
एक रोज शाम की चाय के वक्त अनंत ने अपने घर में बात छेड़ी. रूही अपने पति और सालभर की बेटी के साथ वहीं थी. अनंत ने सीधे कहा, ‘‘बाबूजी, मैं रीना से शादी करूंगा. वह प्राइवेट नर्सिंग होम में डाइटीशियन है, काफी पढ़ीलिखी है.’’
‘‘पढ़ीलिखी होने से क्या, जाति क्या है?’’ बाबूजी ने तल्खी से कहा. मन ही मन उन्हें दहेज की भी चिंता थी.
‘‘पढ़ेलिखे होने से हमारी विरासत के लिए अच्छा होगा. नई पीढ़ी ज्यादा सम झदार होगी,’’ अनंत सम झाने की कोशिश में था.
रूही बीच में कूद पड़ी, ‘‘बाबूजी, यह रीना जाटव है.’’ जाटव पर जोर था. रूही ने आगे जोड़ा, ‘‘विधवा है, एक बच्चे की मां.’’ यह सुनते ही अम्मा भी बुराभला कहने लगीं. बाबूजी तो हतप्रभ थे. बेटा इतना बिगड़ चुका है कि जाटव को घर की बहू बनाएगा. वह भी विधवा. उन्होंने आखिरकार अपनी चप्पल अनंत पर दे मारी.
अनंत ने उस के बाद इतना ही कहा, ‘‘रूही, इसी रीना जाटव ने तुम्हारी और तुम्हारी बेटी की जान बचाई थी.’’
अम्मा बोल पड़ीं बीच में, ‘‘उस से क्या होता है, कुजात लड़की को इस वजह से सिर पर बिठा लें?’’
‘‘इस तरह की लड़कियों को तो हम रास्ते से उठा कर ला कर रातभर रख कर सुबह छोड़ आते थे. बुरा हो इस आरक्षण का कि ये सिर पर बैठने लगीं,’’ बाबूजी बोले.
‘‘यानी आप लोग मानोगे नहीं,’’ अनंत हताश हो चुका था.
जीजा को छोड़ लगभग सभी ने एक सुर में कहा, ‘‘कभी नहीं, शादी हमारी पसंद से होगी.’’
अनंत जीजा को रीना से मिलवा चुका था. वह कहीं से भी अनपढ़ या असभ्य नहीं लगती थी. आखिर उस के पिता, भाई सब अच्छी नौकरियों में थे. पैसे की किल्लत नहीं थी. बस, जाति का मतभेद था.
अनंत सब छोड़छाड़ घर से निकल गया. उस ने रीना से कोर्ट मैरिज करने का फैसला कर लिया. कोर्ट में साथ में थे रीना के मातापिता और अनंत के जीजा सार्थक.
टीटो नानानानी के साथ ही पल रहा था. पर अनंत ने कह दिया था कि टीटो को जब चाहे रीना अपने पास ला सकती है.
रूही के अपने पति के पास दूसरे शहर वापस चले जाने के बाद अनंत के मातापिता अकेले ही रह गए.
गुमान के सिंहासन से खुद को बांध इस बुजुर्ग दंपती ने हमेशा ही आसपड़ोस से खुद को अलग रखा. खुद की श्रेष्ठता के मान ने उन्हें दूसरों के छू जाने तक से डरा कर रखा. जाति और कुल का गौरव इन के लिए इतना बड़ा था कि इंसानी रिश्ते इन से दूर होते गए. अब 2 साल से अनंत भी रीना से शादी करने की वजह से दूर कर दिया गया था. अनंत उन लोगों के लिए अछूत हो गया था. उन्होंने मान लिया था कि वंशनाश हो गया है.
जिंदगी एकसी कब चली है और वह भी मनमुताबिक? अम्मा की गठिया की बीमारी ने इतना भयावह रूप धारण किया कि वे बिस्तर से उठने के लायक न रहीं. बेटी दूर शहर से साल में हफ्तेभर के लिए आती. उस के सहारे जिंदगी कैसे चले? बाबूजी का शरीर भी अब गिरने पर था.
आखिर अम्माजी ने अनंत को फोन लगाया. अनंत का गुस्सा उतरा नहीं था. उस ने जाने से साफ मना कर दिया. लेकिन रीना कहां उपेक्षा कर सकती थी. वह उसी दिन उन के पास दौड़ी गई. वहां पहुंच कर उस ने बड़ी दयनीय स्थिति देखी. बिस्तर पर पड़ेपड़े अम्मा का जातधरम का गुमान छूट चुका था. खाना बाइयां ही बनातीं. घर की अव्यवस्था और अम्माजी की स्थिति देख रीना की आंखें नम हो गईं. वह बिस्तर के पास खड़ी थी. अम्मा ने उस का हाथ पकड़ बिस्तर पर बिठा लिया.
रीना के हाथों को अपने हाथों में ले कर अम्मा ने कहा, ‘‘काम न आया वह ?जातधरम. आखिरी वक्त में इंसान का प्रेम ही काम आता है. बाई नेहा को मैं ने ‘मत छू, मत छू’ कह कर कितना दुत्कारा था. आज वह कितना प्यार लुटाती है. दिल से काम करती है बेचारी. ऊंचनीच के भ्रम में किसी के घर तक नहीं जाती थी मैं. किसी की मदद भी मैं ने कभी नहीं की. यह सोचा करती थी कि उन के पास जाना पड़ेगा तो उन्हें छूना पड़ेगा और जात चली जाएगी.’’
रीना को याद आया, ट्रेन में एक वृद्धा के सूटकेस हटाने के अनुरोध को अनंत ने किस तरह अनसुना कर दिया था. अच्छा, तो इसी शिक्षा की वजह से. वह तो तब सम झ भी नहीं पाई थी कि इतना निर्दयी कैसे है यह इंसान.
रीना ने अम्मा को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मैं आ गई हूं न, मां, हमेशा के लिए. मैं देखूंगी सब को. बेटे को भी जल्दी ले आऊंगी, आप चिंता न करो.’’
अम्मा आंसू पोंछती सी बोलीं, ‘‘तूने मेरी बेटी और उस की बच्ची की जान बचाई, जानबू झ कर जात के नाम पर तु झे हम ने आयागया कर दिया. अब फिर से तू आ गई हमें तारने. सच में इंसानियत जिसे कहते हैं वह तो ऐसी ही होती है.’’
मिलन की इस बेला में विचारों में जमी बर्फ पिघलने लगी थी. हवाओं में स्नेहिल ताजगी महसूस हो रही थी. अब तो अनंत भी वापस आ गया था. अम्मा की सेवा करती रीना की आंखों में अनंत देखता और उस की आंखें प्रेम से लबालब हो जातीं. दिल में उस के एक ही बात गूंजती रहती, ‘रीना, तुम से मिल कर…’