कहानी: टूटे पंख
चाय रखेरखे ठंडी हो गई. शारदा देखने भी नहीं आई कि उन्होंने चाय पी ली थी या नहीं. पत्नी के ऐसे रूखे व्यवहार से रमाकांत दुखी भी हुए थे और हैरान भी.
एकदम से अचानक सब बदल गया. रमाकांत को ऐसा लग रहा था मानो आसमान से उन्हें जमीन पर पटक दिया हो. अपने मानसम्मान पर ठेस वे कैसे बरदाश्त कर सकते थे…
मनाली में एक माह स्वास्थ्य लाभ करने के बाद रमाकांत दिल्ली लौटे थे. अगले दिन कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिन के कारण उन के मन को गहरी चोट लगी थी.
उन की पत्नी शारदा उन के लिए सुबह की चाय बना कर लाई. उन्होंने पहला घूंट भरा तो पाया कि चाय लगभग फीकी थी. ‘‘शारदा, तुम चाय में चीनी डालना भूल गई हो,’’ रमाकांत की आवाज में शिकायत के भाव थे.
‘‘मैं ने जानबू?ा कर चीनी कम डाली है. शुगर के मरीज को चाय फीकी ही पीनी चाहिए,’’ शारदा ने तीखे लहजे में जवाब दिया. ‘‘लेकिन फीकी चाय मैं पी नहीं सकता,’’ रमाकांत बोले.
‘‘आदत डालने से, आप से खूब पी जाएगी ऐसी चाय,’’ शारदा ने कहा.‘‘मु?ो नहीं डालनी ऐसी आदत. जाओ, चीनी ले कर आओ,’’ रमाकांत नाराज हो उठे.
‘‘मैं तुम्हारी सुनूं या डाक्टर का आदेश मानूं?’’ शारदा भी गुस्से से भर उठी.‘‘तुम चीनी नहीं लाओगी तो मैं यह चाय नहीं पीऊंगा,’’ रमाकांत ने प्याला साइड टेबल पर ?ाटके से रख दिया.
‘‘वह तुम्हारी मरजी है, पर मैं गलत काम में तुम्हारी भागीदार नहीं बनूंगी,’’ कह कर शारदा पैर पटकती उन के कक्ष से बाहर निकल गई.
अपने साथ शारदा की बातें करने का ऐसा नया अंदाज रमाकांत को बहुत बुरा लगा. उन की पत्नी की पहले कभी ऊंचे स्वर में उन से टेढ़ा बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी. उन का मूड पूरी तरह से बिगड़ गया.
चाय रखेरखे ठंडी हो गई. शारदा देखने भी नहीं आई कि उन्होंने चाय पी ली थी या नहीं. पत्नी के ऐसे रूखे व्यवहार से रमाकांत दुखी भी हुए थे और हैरान भी.
तकरीबन 9 बजे उन का एकलौता बेटा राजीव उन से मिलने कमरे में आया.‘‘पापा, इन कागजों पर जहांजहां क्रौस के निशान लगे हैं वहांवहां आप अपने हस्ताक्षर कर दीजिए,’’ रमाकांत के हाथ में पेन पकड़ाने के बाद राजीव ने कुछ कागज उन के सामने रखे.
‘‘तो यह बहुमंजिला शौपिंग कौंपलैक्स बनाने का ठेका आखिरकार हमें मिल ही गया है,’’ कागजों पर एक सरसरी निगाह डाल कर रमाकांत ने टिप्पणी की.
‘‘इस ठेके को पाने के लिए मु?ो बहुत मेहनत और भागदौड़ करनी पड़ी है,’’ राजीव के स्वर में अपनी प्रशंसा खुद करने के भाव स्पष्ट थे.
‘‘वह क्यों?’’ रमाकांत के माथे पर बल पड़े.‘‘कंपीटिशन बहुत तगड़ा हो गया है आजकल, पापा,’’ राजीव ने कहा.‘‘कितने में मिला है ठेका? क्या हमें अपना मुनाफा बहुत कम करना पड़ा है?’’ रमाकांत ने पूछा.
‘‘हां, पापा. इस ठेके को पाना हमारे लिए जरूरी था, नहीं तो मार्केट में हमारी कंपनी की साख और नाम को चोट पहुंचती,’’ राजीव ने कहा.
‘‘मैं लंच के बाद औफिस आऊंगा, तब मु?ो इस ठेके का ब्यौरा बताना,’’ कह कर रमाकांत कागजों पर हस्ताक्षर करने लगे.
‘‘आप औफिस आ कर क्या करोगे. डाक्टरों ने आप को औफिस के तनाव से दूर रह कर आराम करने के लिए कहा है, पापा,’’ राजीव का स्वर एकदम से उखड़ा हुआ सा हो गया.
राहुल अपनी मां संगीता के पास बैठा टैलीविजन पर कोई कार्टून फिल्म देख रहा था. रमाकांत की कड़कती आवाज सुन कर वे दोनों चौंक उठे.
‘‘मैं जानना चाहूंगा कि इस ठेके को पाने…’’
रमाकांत बोले तो राजीव उन की बात काटते हुए बोला, ‘‘औफिस के इन चक्करों में फंस कर अपने दिमाग और स्वास्थ्य पर अब और जोर मत डालिए, पापा,’’ हस्ताक्षर करे कागज रमाकांत के सामने से उठा कर राजीव उन से रूखे स्वर में बोला, ‘‘आप ने मु?ो ट्रैंड कर दिया है. अब मु?ो अपने हिसाब से काम करने दीजिए. अब आप आराम कीजिए. हां, वक्त से दवा लेना मत भूलना. मैं चलता हूं.’’
बीमारी के कारण रमाकांत को औफिस गए 2 महीने हो चुके थे. पहले राजीव उन के आदेश के बिना कोई कदम नहीं उठाता था. आज उन का बेटा उन्हें ऐसा एहसास करा गया था मानो रमाकांत द्वारा बनाई गई कंपनी में अब उन की कोई जरूरत ही नहीं रह गई थी.
नहानेधोने के बाद रमाकांत अपने कमरे से बाहर आए तो उन के कानों में टैलीविजन चलने की ऊंची आवाजें पहुंचीं. साथसाथ उन के 9 वर्ष के पोते राहुल के हंसने का स्वर भी उन्हें सुनाई पड़ा. ये आवाजें उन के बहूबेटे के कमरे से आ रही थीं.
‘‘राहुल, आज तुम स्कूल क्यों नहीं गए?’’ अपने बेटे के शयनकक्ष में पहुंच कर रमाकांत ने गुस्से से पूछा.
राहुल अपनी मां संगीता के पास बैठा टैलीविजन पर कोई कार्टून फिल्म देख रहा था. रमाकांत की कड़कती आवाज सुन कर वे दोनों चौंक उठे. राहुल घबरा उठा जबकि संगीता के चेहरे पर वैसा कोई भाव पैदा नहीं हुआ.
‘‘हमें इस का माथा गरम लगा था, इसीलिए इसे स्कूल नहीं भेजा,’’ संगीता ने नाखुश से अंदाज में जवाब दिया.
‘‘मु?ो तो यह भलाचंगा नजर आ रहा है, बहू,’’ रमाकांत ने अपने पोते को घूरा, ‘‘टैलीविजन देखने के बजाय तुम पढ़ क्यों नहीं रहे हो? पिछली कक्षा में तुम मुश्किल से पास हुए थे. इस बार क्या फेल ही होने का इरादा है?’’
राहुल ने खामोश हो अपनी गरदन ?ाका ली. तभी रमाकांत का ध्यान टैलीविजन की तरफ गया, ‘‘बहू, टैलीविजन पर कार्टून चैनल कैसे आ रहा है?’’ माथे पर नाराजगी के बल डाल कर उन्होंने संगीता की तरफ देखा.
‘‘पिछले महीने केबल टीवी का कनैक्शन लगवा लिया है,’’ कहती संगीता कुछ परेशान नजर आने लगी थी.
‘‘राहुल पढ़ाई में बहुत कमजोर है. इस बात को ध्यान में रख कर मैं ने केबल कनैक्शन कटवा दिया था. मेरे आदेश की खिलाफत कर के केबल कनैक्शन दोबारा क्यों लिया गया है?’’ रमाकांत ने नाराज हो कर कहा.
‘‘पिताजी, मेरे अकेले के कहने से नहीं बल्कि सब की ‘हां’ से केबल कनैक्शन लगवाया गया है,’’ संगीता चिढ़ उठी थी.
‘‘और अगर राहुल फेल हो गया तो वह किस की जिम्मेदारी होगी?’’ रमाकांत भड़क उठे.
‘‘इस की ट्यूशन लगवा दी है,’’ संगीता बोली.
‘‘बहुत खूब. चौथी क्लास के बच्चे को ट्यूशन, वाह,’’ रमाकांत ने व्यंग्य किया, ‘‘इस घर में सब पढ़ेलिखे हैं. केबल टीवी देखने की तुम सब को फुरसत है, पर बच्चे को पढ़ाने का किसी के पास समय नहीं है. किस का विचार था ट्यूशन लगवाने का?’’ रमाकांत भड़क उठे.
‘‘इन का,’’ संगीता का इशारा पति राजीव की तरफ था.
‘‘इस से तो मैं रात को बात करूंगा. फिलहाल, मैं केबल कनैक्शन का तार निकाल रहा हूं. खबरदार जो किसी ने उसे दोबारा लगाया. तुम सब के शौक के कारण राहुल का भविष्य खराब नहीं होने दिया जाएगा,’’ कह कर रमाकांत टैलीविजन की तरफ बढ़े. तभी संगीता ने आगे बढ़ कर उन का रास्ता रोक लिया.
अपनी बहू के इस दुस्साहस पर रमाकांत ऐसे हैरान हुए कि उन के मुंह से एक शब्द भी न फूटा.
‘‘पिताजी, कुछ भी करने से पहले आप अपने बेटे से बात कर लीजिए. वैसे आप राहुल के भविष्य की चिंता न करें और हमें भी अपने ढंग से जीने दें. केबल कनैक्शन का तार निकालना होगा तो राहुल के डैडी निकालेंगे,’’ ऐसा कह कर संगीता का यों तन कर उन के सामने खड़ा हो जाना रमाकांत के लिए एकदम अप्रत्याशित था. उन्हें लगा कि अगर उन्होंने केबल कनैक्शन का तार निकालने की इस वक्त कोशिश की तो संगीता उन का हाथ पकड़ लेगी, लिहाजा, खुद को बेहद अपमानित महसूस करते रमाकांत एक भी शब्द मुंह से निकाले बिना कमरे से निकल कर अपने शयनकक्ष में लौट आए.
अपने परिवार के सदस्यों से जो मानसम्मान उन्हें स्वाभाविक रूप से मिलता रहा था, वह अचानक क्यों नहीं मिल रहा है.
करीब 2 महीने पहले रमाकांत का खांसीजुकाम बिगड़ कर निमोनिया में बदल गया था. इलाज के लिए उन्हें अस्पताल में भरती होना पड़ा. वहां डाक्टरों ने पाया कि उन का शुगर व रक्तचाप का स्तर भी बहुत बढ़ा हुआ था. पूरी तरह से ठीक होने के लिए उन्हें महीनाभर अस्पताल में रहना पड़ा.
बीमारी से आई कमजोरी दूर करने के लिए वे मनाली हिल स्टेशन पर रहने चले गए. वहां एक महीने तक स्वास्थ्य लाभ करने के बाद जब वे घर लौटे तो उन्हें अपने घर के लोगों के बदले तेवरों का सामना करना पड़ रहा था.
पत्नी, बेटा और बहू सदा ही उन की आज्ञा का पालन व उन का मानसम्मान करते आए थे. घर आने के 24 घंटे के भीतर ही अब उन्हें ऐसा लगने लगा था मानो उन तीनों ने उन के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाने का निर्णय ले लिया था.
एक एक ईंट जोड़ कर उन्होंने अपनी घरगृहस्थी की इमारत बड़ी मेहनत से खड़ी की थी. अपने परिवार के किसी सदस्य का न कभी जानबू?ा कर मन दुखाया था और न ही उन्हें किसी सुखसुविधा की कमी होने दी थी.
वे स्वयं को अभी भी घर का मुखिया सम?ा रहे थे, लेकिन उन के परिवारजनों का रुख साफतौर पर बदल चुका था.
‘अपने परिवार के सदस्यों से जो मानसम्मान उन्हें स्वाभाविक रूप से मिलता रहा था, वह अचानक क्यों नहीं मिल रहा है,’ इस सवाल पर सारी दोपहर माथापच्ची करने के बाद भी वे इस का कोई जवाब नहीं निकाल पाए थे.
अपने मन की उदासी से मुक्ति पाने को वे शाम को पार्क में घूमने चले गए.
पार्क में रमाकांत की मुलाकात अपने मित्र रामगोपाल से हुई जो एक स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत थे. रमाकांत उन की सू?ाबू?ा व सम?ादारी की बहुत कद्र करते थे.
अपने दोस्त का मार्गदर्शन पाने के उद्देश्य से रमाकांत ने अपने मन की व्यथा रामगोपाल से कह दी.
उन की समस्या पर कुछ देर खामोश रह कर रामगोपाल काफी सोचविचार कर अपनी बात कहने को तैयार हुए.
‘‘तुम कितने दिन घर व औफिस से दूर रहे हो, रमाकांत?’’ रामगोपाल ने गंभीर लहजे में पूछा.
‘‘करीब 2 महीने बाद कल रात मैं अपने घर लौटा था.’’ रमाकांत ने जवाब दिया.
‘‘2 महीने पहले तक सब तुम्हारी बात आदरपूर्वक मानते थे?’’
‘‘बिलकुल,’’ रमाकांत बोले.
‘‘और आज कोई तुम्हारे हिसाब से चलने को तैयार नहीं?’’ रामगोपाल ने पूछा.
‘‘हां, दोस्त. अचानक ही मैं सब की नजरों में फालतू और बेकार का व्यक्ति बन कर रह गया हूं. मैं बिलकुल नहीं सम?ा पा रहा हूं कि एकाएक ही सब का व्यवहार मेरे साथ इतना रूखा और खराब क्यों हो गया है,’’ कहते हुए रमाकांत बहुत परेशान नजर आने लगे.
‘‘मैं सम?ाता हूं कि तुम्हारे घर में क्या घटा है, रमाकांत. देखो, अस्पताल जाने तक तुम घर के मुखिया थे. तुम्हारे अस्पताल में भरती होने पर मुखिया वाली जगह खाली हो गई. घर में ‘पावर वैक्यूम’ पैदा हुआ. और इस स्थिति का फायदा उठा कर तुम्हारे घर के हर सदस्य ने अपनीअपनी ताकत बढ़ा ली है. अब अगर तुम फिर से उन सब पर अपना दबदबा बनाने की कोशिश करोगे तो उन का विरोध करना स्वाभाविक है,’’ रामगोपाल ने अपना मत प्रकट किया.
‘‘तब क्या मैं अब हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाऊं? गूंगाबहरा बन जाऊं? पत्नी, बेटे व बहू के हाथों अपमानित होना स्वीकार कर लूं?’’ रमाकांत दुखी और क्रोधित नजर आ रहे थे.
‘‘सत्ता का स्वाद एक बार चख लेने के बाद कोई भी व्यक्ति उस से दूर रहना नहीं चाहता, रमाकांत. इत्तफाक से जो आजादी उन के हाथ लगी है, उसे उन तीनों में से कोई भी बिना लड़े?ागड़े खोना नहीं चाहेगा,’’ रामगोपाल बोले.
‘‘उन से उल?ाने का खयाल ही मु?ो अपमानजनक लगता है, रामगोपाल. मु?ो इज्जत देना, मेरा कहा मानना उन तीनों का कर्तव्य है,’’ रमाकांत ने कहा.
‘‘लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं तो अब क्या करोगे तुम?’’ रामगोपाल ने पूछा.
‘‘तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं?’’ रमाकांत ने कहा.
‘‘क्या तुम आज खुद को थकाहारा और बूढ़ा महसूस करते हो?’’ रामगोपाल ने रमाकांत की आंखों में ?ांकते हुए पूछा.
‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ रमाकांत ने दृढ़ स्वर में जवाब दिया.
‘‘भविष्य में अपना आत्मसम्मान बनाए रखना चाहते हो?’’ रामगोपाल ने कहा.
‘‘बिलकुल,’’ रमाकांत बोले.
‘‘तब नए सिरे से संघर्ष शुरू करो. तुम्हारे पास अब तक के सफल जीवन का लंबा अनुभव है. व्यावसायिक सू?ाबू?ा है. वे तीनों सम?ाते हैं कि तुम्हारे पंख बेकार हो गए हैं. तुम उन्हें फिर से ऊंची उड़ान भर कर दिखा दो. तुम्हारी ऊंचाई देख कर वे अपनेआप नतमस्तक हो जाएंगे, तुम्हारी इज्जत करने को मजबूर हो जाएंगे,’’ कहते हुए रामगोपाल का चेहरा आंतरिक उत्तेजना के कारण लाल हो उठा था.
‘‘घर के बड़ों को छोटों से इज्जत पाने के लिए कुछ कर दिखाना जरूरी है क्या, रामगोपाल? क्या आपसी प्रेम का संबंध इस के लिए काफी नहीं है?’’ रमाकांत ने उदास लहजे में पूछा.
‘‘मेरे दोस्त, समय बदल गया है. आज वस्तुओं की तरह व्यक्तियों का उपयोगी होना भी आवश्यक है. तभी उन की पूछ बनी रहती है. प्रेम और श्रद्धा की बातें आज के इंसान की सम?ा में नहीं आती हैं,’’ रामगोपाल ने सम?ाते हुए कहा.
रामगोपाल की बात समाप्त होने के बाद वे दोनों दोस्त देर तक खामोश बैठे रहे. उन के चेहरों पर छाई गंभीरता उन के मन में चल रही उथलपुथल की सूचना दे रही थी.
‘‘मु?ो बदलना होगा, रामगोपाल, उन्हें मु?ो अपना मानसम्मान वापस लौटाना ही होगा,’’ कुछ देर बाद ऐसा कहते हुए रमाकांत की आंखों में उभरी मजबूत संकल्प की चमक देखते ही बनती थी.
रमाकांत अगले दिन सुबह से ही एक अजीब, जुनूनी अवस्था का शिकार हुए नजर आने लगे थे. सुबह जल्दी नहा कर वे बाहर जाने को 8 बजे तक तैयार हो गए थे. उन के आदेश पर उन के पुराने ड्राइवर ने कार गैरेज से बाहर निकाल ली थी.
‘‘आप कहां जा रहे हो?’’ शारदा ने उन्हें तैयार होते देख कर पूछा.
‘‘कुछ काम से जा रहा हूं,’’ रमाकांत ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.
‘‘आप को आराम करना चाहिए,’’ शारदा बोली.
‘‘तुम मेरी फिक्र मत किया करो. मैं ठीक हूं,’’ रमाकांत ने कहा तो अपने पति के चेहरे पर छाई गंभीरता को देख कर शारदा से और कुछ कहते नहीं बना था.
वे अपनी दवाइयां साथ ले कर गए थे. लंच के समय भी उन का लौटना नहीं हुआ और न ही दिन में उन का कोई फोन आया. रात 8 बजे के करीब वे घर लौटे थे. तब तक घर वालों को उन की चिंता होने लगी थी.
रमाकांत दिनभर कहां रहे और क्या करते रहे, ये बातें उन के घर वालों के लिए रहस्य बनी रहीं, क्योंकि पूछने पर भी रमाकांत ने अपनी दिनभर की गतिविधियों के बारे में कोई सीधा जवाब उन्हें नहीं दिया था.
उन का रोज सुबह जल्दी घर से निकल जाना व देररात को लौटना करीब 10 दिन चला. तब कहीं जा कर राजीव को किसी परिचित से पता चला कि वे किस काम में उल?ो रहे थे.
उसे पता चला कि रमाकांत प्रौपर्टी डीलर बन गए हैं. उन्होंने पपनकलां में अपना औफिस भी खोल लिया है.
यह खबर मिलने के बाद रात को शारदा, राजीव व संगीता ने इस सिलसिले में रमाकांत से पूछताछ करने की कोशिश की, पर वे अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाए.
‘‘मैं खुद को व्यस्त रखना चाहता हूं. कभी बिल्डर था, अब प्रौपर्टी डीलर बन गया हूं. देखूं, मु?ा जैसे बीमार आदमी से नया काम कैसा चल पाता है,’’ इतना कह कर रमाकांत उन लोगों के पास से उठे और अपने कमरे में चले गए थे.
रोज सुबह रमाकांत 8 बजे तक घर से निकल जाते, रात को 8-9 बजे के बीच उन की वापसी होती. अपने कमरे में घुस कर वे न जाने किसकिस को फोन करते रहते.
उन की पत्नी और बेटेबहू जल्दी ही सम?ा गए कि रमाकांत उन के किसी सवाल का जवाब नहीं देना चाहते. रमाकांत अपनी नई जिंदगी से जुड़ी बातों में इन तीनों को हिस्सेदार नहीं बना रहे थे.
उन की पीठपीछे वे तीनों उन की आलोचना करते रहते थे. हमदर्द बनने की आड़ ले कर उन की गतिविधियों व दिनचर्या की मुखालफत करते.
रमाकांत तो मानो इन तीनों की उपस्थिति को भूल गए थे. उन पर हर वक्त अपने नए काम में सफल होने की धुन सवार रहती. वे पपनकलां के नक्शे का दिन में कई बार अध्ययन करते. जिस डायरी व रजिस्टर में संभावित सौदों का रिकौर्ड रखते, उन में घंटों उल?ो रहते. काम में ऐसा डूबते कि खानापीना भी उन का मशीनी अंदाज में होने लगा. एक अजीब सा उन्माद दिनरात उन के दिलोदिमाग पर छाया रहने लगा.
इंसान दिल लगा कर मेहनत करे तो सफलता उस के कदम चूमती ही है. धीरेधीरे रमाकांत का काम जमने लगा. प्रौपर्टी खरीदनेबेचने के सौदे कराने में वे सफल होने लगे.
उन की जानपहचान का दायरा तो पहले से ही बड़ा था, क्योंकि वे बिल्डर रहे थे. दूसरे बिल्डरों से उन की अच्छी जानपहचान थी, लिहाजा, अपने बनाए औफिस, दुकानों व फ्लैटों को बिकवाने में वे बिल्डर रमाकांत की सहायता लेने लगे. इमारतें बनाने में लगे सामान की गुणवत्ता की जानकारी उन्हें पहले से थी. उन की यह जानकारी आम ग्राहक को बहुत प्रभावित करती. ग्राहक का हित वे सदा ध्यान में रखते. इस कारण ग्राहक का उन के ऊपर जल्दी भरोसा बंध जाता. सालभर बीततेबीतते वे अपने इलाके के सफल प्रौपर्टी डीलर बनने में कामयाब हो गए थे.
कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों से रमाकांत के अच्छे व्यावसायिक संबंध उन के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुए थे. उन को शोरूम व औफिस दिलाने में उन्हें दूसरे साल में लाखों का फायदा हुआ था. ऐसी कंपनियों के उच्चाधिकारियों को प्रभावित कर के रमाकांत ने प्रौपर्टी डीलरों के बीच अपनी धाक जमा ली थी.
रमाकांत की इस सफलता ने उन के अपनों के नजरिए में बदलाव ला दिया. आरंभ में शारदा, राजीव और संगीता उन से खिंचेखिंचे रहते थे. पहले रमाकांत उन्हें दबानेडराने की कोशिश करते तो वे रमाकांत का तगड़ा विरोध करते लेकिन रमाकांत उन से उल?ो ही नहीं. अपनी नाराजगी व दिल पर लगी चोट को उन्होंने कभी उन के सामने शब्दों से प्रकट नहीं किया. घर में खामोश बने रह कर वे अपने नए काम की जड़ें मजबूत करने में खो कर रह गए थे.
रमाकांत की सफलता की खबरें राजीव के माध्यम से शारदा और संगीता तक पहुंचने लगीं. रमाकांत ने अपनी पुरानी कार बदल कर महंगी कार ले ली थी. फिर पूरी कोठी की मरम्मत व रंगरोगन उन्होंने अपने खर्चे से कराया. राजीव से एक पैसे की सहायता उन्होंने कभी नहीं मांगी थी. इन सब बातों से उन तीनों को यह अंदाजा लगाने में कठिनाई नहीं हुई कि रमाकांत अपने नए काम से तगड़ी कमाई कर रहे थे.
इसी कारण उन तीनों के व्यवहार में बदलाव आना शुरू हुआ था. उन की नजरों से उपेक्षा व नाराजगी के भाव गायब होने लगे. रमाकांत को घर में देख कर वे सभी संभल जाते. उन के हर काम को तत्परता व दिलचस्पी दिखाते हुए करते. रमाकांत की खामोशी से रुकावट आती थी, नहीं तो वे तीनों उन से खूब बातें कर के उन का दिल जीतने की पूरी कोशिश जरूर करते.
रमाकांत के अस्पताल में भरती होने की बात को तब करीब 2 साल होने को आए थे जब एक दिन राजीव सुबहसुबह रमाकांत से मिलने उन के शयनकक्ष में पहली बार आया.
‘‘पापा, जो बहुमंजिला शौपिंग कौम्प्लैक्स हम ने बनाया है उस की दुकानें बिक नहीं रही हैं.’’ राजीव परेशान नजर आ रहा था.
‘‘यह बात मु?ो क्यों बता रहे हो?’’ रमाकांत ने सपाट स्वर में कहा.
‘‘दुकानें न बिक पाने के कारण हमारी बड़ी पेमैंट फंस गई है. मालिक लोग दुकानें बेचे बिना हमारा पैसा नहीं लौटा पाएंगे,’’ राजीव बोला.
‘‘तुम ये सब बातें मु?ो क्यों बता रहे हो?’’ रमाकांत ने वही सवाल फिर दोहराया.
‘‘पापा, आप उन की दुकानें बिकवाने में दिलचस्पी लीजिए. अगर उन की दुकानें जल्दी नहीं बिकीं तो हमारी कंपनी बड़ी आर्थिक कठिनाइयों में फंस जाएगी,’’ राजीव की आंखों में चिंता के भाव जागे.
‘‘पुरानी कंपनी को हमारी मत कहो, राजीव. उस की जिम्मेदारी से तुम मु?ो मुक्त कर चुके हो. रही बात दुकानें बिकवाने की, तो मैं कमीशन ले कर खरीदनेबेचने का काम करता ही हूं. मालिकों से कहो कि वे मु?ा से इस सिलसिले में मिल लें,’’ रमाकांत ने सम?ाते हुए कहा.
‘‘पापा, मु?ो माफ कर दीजिए,’’ एकाएक राजीव भावुक हो उठा.
‘‘क्यों मांग रहे हो माफी?’’ रमाकांत चौंके.
‘‘पापा, मैं अकेला कंपनी नहीं चला सकता. मेरी काबिलीयत उतनी नहीं है. आप के अनुभव व मार्गदर्शन के अभाव में मैं ने पिछले 2 सालों में कई गलत निर्णय लिए हैं. आप को कंपनी के कामकाज को फिर से देखना शुरू करना पड़ेगा,’’ राजीव ने गिड़गिड़ाते स्वर में कहा.
‘‘मेरे पास खाली वक्त कहां है, राजीव. मैं अपने काम में…’’
रमाकांत की बात को काटते हुए राजीव बोला, ‘‘मैं कुछ नहीं सुनूंगा, पापा. आप की कुरसी मैं ने खाली कर दी है. आज से आप को कंपनी के औफिस में जरूर आना पड़ेगा,’’ ऐसा कह राजीव ने रमाकांत के पैर पकड़ लिए.
‘‘हां, कह दीजिए इसे और हम सब को माफ,’’ कहती शारदा चाय की ट्रे ले कर कमरे में आई, ‘‘छोटों से गलतियां हो जाती हैं. बड़ों को उन्हें माफ कर के अपना बड़प्पन कायम रखना चाहिए.’’
शारदा की आंखों में आंसू ?ालक रहे थे. पत्नी व बेटे के भावुक चेहरे देख कर रमाकांत को अपने गले में भी कुछ अटकता सा महसूस हुआ. उन्होंने ?ाक कर राजीव के हाथों को अपने हाथों में ले लिया.
‘‘मैं कुछ देर को औफिस आऊंगा, बेटे. देखो, जो हिम्मत से काम लेते हैं उन के बिगड़े काम सुधरने लगते हैं,’’ राजीव के सिर पर हाथ रख कर रमाकांत ने उसे प्यार से सम?ाया.
तभी संगीता व रोहित कमरे में आए, दोनों ने रमाकांत के पैर छुए और फिर सहमेसहमे से एक तरफ खड़े हो गए.
‘‘तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है, रोहित?’’ कह कर रमाकांत ने अपने पोते को पास आने का इशारा किया.
‘‘अच्छी चल रही है, दादाजी. अब मां मु?ो रोज पढ़ाने लगी हैं. मां ने केबल टीवी का कनैक्शन भी कटवा दिया है. मैं आप को अच्छे नंबरों से पास हो कर दिखाऊंगा,’’ रोहित ने कहा तो उस की बातें सुन कर रमाकांत ने उसे गले से लगा लिया.
‘‘आप की चाय में कितनी चीनी डालूं?’’ शारदा का यह सवाल सुन कर रमाकांत अनायास ही मुसकरा उठे.
एक पल में उन की सारी नाराजगी व मन की कड़वाहट जाती रही. अपना मानसम्मान फिर से वापस पा लेने में वे पूरी तरह सफल हो गए थे. अब उन्हें कोई तनाव या शिकायत नहीं थी.
उन के परिवारजनों ने उन्हें फिर से स्वेच्छा से घर का मुखिया मान लिया था. उन सब की आंखों में वे अपने प्रति श्रद्धा व सम्मान के भाव साफ पढ़ सकते थे.
अपनों से घिरे हुए रमाकांत इस क्षण से खुद को बहुत शांत, सुखी व संतुष्ट महसूस करने लगे.
‘‘आज शाम घर में दावत होगी. जिसे जो चाहिए उसे वह उपहार मेरी तरफ से मिलेगा. हम सब मिल कर इस घर को खुशियों से भर देंगे,’’ रमाकांत को ऐसा कहते सुन कर सभी के चेहरे खुशी व राहत के कारण फूल की तरह खिल उठे थे.