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कहानी: पुरानी महबूबा

होली की कविता सुना कर तो तुम ने मेरा दिल फिर से एक बार जीत लिया. जिंदा दिल कर दिया. जानू, होली और फिर से तुम्हारी याद में मेरे दिल के सुस्त पड़े चैंबरों में प्रेम उमंग की हरकत शुरू हो गई है.

इस बार राधेश्यामजी होली में खुद को रोक न पाए. भई महबूबा संग बाथटब में होली मनाने का मौका कोई छोड़ता है भला. उन के दबे अरमान फिर से जाग उठे और फिर निकल पड़े वे सफेद कुरतापाजामा पहने… इधर राधेश्यामजी ने कई सालों से होली नहीं खेली थी. होली पर वे हमेशा घर में ही कैद हो कर रहते थे. एक दिन रविवार को सुबहसुबह राधेश्यामजी का मोबाइल बजा, तो उन्होंने तुरंत हरा बटन दबा कर फोन को कान पर लगाया. उधर से आवाज आई, ‘‘धौलीपुरा वाले राधू बोल रहे हो?’’ राधेश्यामजी ने कहा, ‘‘हां भई हां, बोल रहा हूं. मगर अब मैं धौलीपुरा महल्ले को छोड़ कर ‘रामभरोसे लाल’ सोसाइटी में रह रहा हूं. गंदी नाली और गलीकूचे वाला महल्ला छोड़ गगन चूमते अपार्टमैंट में रहने का मजा ही अलग है और यहां मु झे अब कोई राधू नहीं कहता.


यहां मेरी इज्जत है. इसलिए इस सोसाइटी के लोग मु झे प्यार से राधेश्यामजी कह कर इज्जत से बुलाते हैं. बताइए आप कौन साहिबा बोल रही हैं?’’ फिर उधर से आवाज आई, ‘‘मैं वही जिस के महल्ले की गलियों और कालेज के आसपास तुम चक्कर लगाया करते थे. मैं रिकशे पर बैठ कर कालेज जाती थी, तो तुम अपनी साइकिल पर सवार हो कर आहिस्ता से मु झे छेड़ते और फिल्मी प्रेमगीत गाते हुए निकल जाते थे. होली पर तो हमेशा ही मु झे अकेले में रंगने और मेरे ही आसपास फटकने की कोशिश में लगे रहते थे तुम. कई बार तो होली आने से पहले ही तुम ने मेरे घर की छत पर बने बाथरूम में मु झे पकड़ कर अकेले में मेरे अंगअंग रंगने और मेरे कोमल गाल अपने कठोर गाल से रगड़ने की बुरी कोशिश भी की थी. लेकिन यह सब मैं आज बोल रही हूं, तुम्हारी अपनी शन्नो.’’ ‘‘अरे, अरे… शन्नो. वह तपेश्वरी देवी मंदिर के पास पटकापुर वाली शन्नो. कहो, कैसी हो?


आज कैसे याद किया मु झे? तुम्हारी आवाज तो मेरी साली साहिबा से काफी हद तक मिलती है.’’ ‘‘जी जनाब, अपनी साली साहिबा को अब मारिए गोली. हो सकता है मेरी आवाज आप की साली से मिलतीजुलती हो. क्या बताऊं जी, बस, आज अचानक पुरानी यादें ताजा हो आईं. सो सोचा, इस बार तुम्हें होली पर अपने नजदीक बुला ही लूं. वर्षों की देर से ही सही, चलो, जीतेजी तुम्हारे अरमान पूरे कर ही दूं. अब मैं भी इस बार होली पर तुम्हीं संग रंग खेलूं, तुम्हीं संग भीगूं, तुम्हीं संग होली गीत गाऊं, तुम्हीं संग नाचूं, तुम्ही संग गुजिया खाऊं, अरमान रखती हूं.’’ अपनी पुरानी महबूबा शन्नो की बात सुनते ही राधेश्यामजी ने कहा, ‘‘क्या हुआ अकेली हो, तुम्हारा परिवारशरिवार कहां है,


जानू? होली की कविता सुना कर तो तुम ने मेरा दिल फिर से एक बार जीत लिया. जिंदा दिल कर दिया. जानू, होली और फिर से तुम्हारी याद में मेरे दिल के सुस्त पड़े चैंबरों में प्रेम उमंग की हरकत शुरू हो गई है. मेरे शरीर की धमनियों में सूखता जा रहा लाल रक्त भी अब बल्लियों उछलने लगा है.’’ शन्नो बोली, ‘‘मारो गोली परिवारशरिवार को. पहला प्यार तो पहला ही होता है. बाकी सब तो दिखावटी रिश्तेनाते होते हैं. इसलिए मैं भी अब तक तुम को कहां भूल पाई हूं. आ जाइएगा इस बार होली पर हमारे द्वार. इस बार होली के मौके पर कोई भी नहीं है हमारे घर पर. मेरा घर और मैं, बस, एकदम अकेली रहूंगी घर पर. इसलिए जम कर होली खेलने का सुनहरा मौका है. मेरे यहां तो बाथरूम में भी अब बाथटब लगा है. हो जाएगी जम कर उस में चुपचाप रंगमग्न होली.


जरूर आ जाइएगा इस बार हमारे साथ होली खेलने. और हां, नया सफेद कुरतापाजामा पहन कर ही आना तो मु झे रंगने में ज्यादा मजा आएगा. चलो, अब जल्दी से मेरे घर का पता नोट करो.’’ राधेश्यामजी भी अपने उखड़े हुए दांतों के दर्द को भूल और बिना लाठी का सहारा लिए हुए ऐसे उठ खड़े हुए मानो 21 वर्ष के नौजवान हों और बोले, ‘‘बताओ जल्दी से अपना पता, बताओ. आता हूं इस होली पर तुम्हें रंगने और खुद को भी रंगवाने. अपने वर्षों पुराने अरमान पूरे करने का मौका हाथ लगा है. भला कौन कमबख्त नहीं आएगा. मैं वादा करता हूं कि जरूर आऊंगा होली खेलने. दिल खोल कर तैयार रहिएगा.’’ अपनी महबूबा शन्नो से बातचीत करने के बाद राधेश्यामजी मन ही मन चुपचाप सोचने लगे, ‘‘अच्छा ही हुआ कि इतनी उम्र में भी अभी मेरी अक्ल दाढ़ नहीं उखड़ी, बरकरार है.


वरना अक्ल दाढ़ निकलने के बाद तो सभी पुराने रिश्ते पोपले हो जाते हैं. भतीजेभतीजी तक अपनी बूआजी से तो अपने प्रेम का पुराना रिश्ता निभाते हैं और अपने प्रिय फूफाजी को उम्र के 58वें पड़ाव पर चिढ़ाते हुए गाल फुलाफुला कर फू… फां… फू… फां… कहकह कर खाने वाली आटापंजीरी फूंकने और बातबात पर चिढ़ाने लगते हैं. सगे साले और सलहजें भी रिश्ता निभातेनिभाते परेशान हो जाते हैं. वे भी दूरी बना लेने में ही फायदा सम झते हैं. केवल साली ही आधी घरवाली बन कर अपने प्यारे जीजाश्री का साथ निभाती है. अपनी दीदी की मदद में भी अपना हाथ बंटाती है.’’ इधर रसोई में रह कर अपने कान लगाए ड्राइंगरूम में बैठे हुए आहिस्ताआहिस्ता मोबाइल पर बतियाते हुए उन की पत्नी ने सबकुछ सुन लिया, तो वे चायनाश्ते की प्लेट ले कर आते हुए बोलीं, ‘‘अजी इस बार किस के साथ होली खेलने का प्रोग्राम बन रहा है.


आप तो कहते थे मु झे होली बिलकुल भी पसंद नहीं है. मैं ने आप को पिछले कई वर्षों से होली खेलते नहीं देखा. मैं चाहती हूं आप मेरे साथ होली खेलें. लेकिन आप हर साल मना करते ही आ रहे हैं. न खुद होली खेलते हैं और न किसी को खेलने देते हैं. और अब इस बार किस के साथ होली का प्रोग्राम बन रहा था.’’ राधेश्यामजी ने पत्नी को मुसकराहटभरी गोली मारी और बोले, ‘‘अरे, मैं कहां होलीबोली. मेरा प्रमोशन आने वाला न होता तो सीधे ही नए बड़े साहब को मना कर देता. अब बड़े साहब हैं तो उन को मना भी तो नहीं किया जा सकता. ऊपर से प्रमोशन के बाद पोस्ंिटग का भी सवाल है. कहीं सूदूर क्षेत्र में भेज दिया तो तुम्हारामेरा साथ बिछुड़ जाएगा और मु झे वहां अकेले ही रहना पड़ेगा. सूदूर डिफिकल्ट स्टेशनों पर फैमिली रखना मना होता है. बस, इसलिए उन से होली खेलने, उन के घर आने की हां करनी पड़ी. बड़े साहब से ही बात हो रही थी. वही बुला रहे हैं मु झे होली पर और कह रहे हैं,


मैं इस बार होली का पहला रंग तुम से ही लगवाऊंगा. होली पर हमारे घर जरूर आना, वह भी नया सफेद कुरतापाजामा पहन कर.’’ होली के दिन राधेश्यामजी ने नया सफेद कुरतापाजामा पहना और पत्नी से बोल कर होली खेलने जाने लगे, तो उन की पत्नी बोलीं, ‘‘अकेले मत जाइए. पिंटू को भी लेते जाइए. यह आप को गाड़ी में ले जाएगा और बड़े साहब के साथ होली खेलने के बाद सावधानी से घर वापस भी ले आएगा.’’ जैसेतैसे उन्होंने पत्नी को मना किया कि रहने दो, पिंटू को क्यों तंग करती हो. उस की परीक्षा नजदीक है, उसे पढ़ने दो. वहां किसी ने गीले रंगों से रंगवंग दिया और खांसीजुकाम हो जाएगा और कहीं जुकाम छाती तक पहुंच गया तो भयंकर बुखार से पीडि़त भी हो सकता है.


फिर उस की परीक्षा चौपट हो जाएगी. वैसे भी होली तो हर साल आती है. विज्ञान में एक बार फेल हो गया, तो खामख्वाह ही साल बढ़ जाएंगे. सेहत अलग से खराब होगी, सो अलग. राधेश्यामजी ने उम्र की अंतिम पारी से पहले फिर से अपनेआप को रोमांचभरे उत्साह से भरा और अकेले ही चल पड़े अपनी पुरानी शन्नो के घर की तरफ. मन में शन्नो के शब्द गूंज रहे थे, ‘जरूर आ जाइएगा इस बार हमारे साथ होली खेलने. तुम्हीं संग रंग खेलूं, तुम्हीं संग भीगूं, तुम्हीं संग होली गीत गाऊं, तुम्हीं संग नाचूं, तुम्ही संग गुजिया खाऊं.’ अपनी पुरानी महबूबा शन्नो के बाथरूम में लगे बाथटब को सोचते हुए उन का पैर धम्म से गली की नाली में जा धंसा और छपाक से ‘छपाक’ की आवाज के साथ नाली का गंदा कीचड़युक्त पानी उन के पाजामे व कुरते को बदरंग कर गया. तेज बदबू सी भी आ रही थी, सो अलग. ‘उफ, उफ,’ कहते हुए उन्होंने अपनेआप को और अपने बढ़े नंबर वाले चश्मे को संभाला और वापस अपने घर की तरफ लपके. घर पहुंच कर पत्नी से बोले, ‘‘भागवान, दूसरा नया सफेद कुरतापाजामा निकालो.


यह तो रास्ते में ही बदरंग हो गया. बड़े साहब ने कहा था नया सफेद कुरतापाजामा ही पहन कर घर आना. अब ऐसे गया तो क्या सोचेंगे कि बड़ा नालायक है, जरा सा कहना तक नहीं मानता, कैसे करूं इस का प्रमोशन.’’ पत्नी उन से ज्यादा सम झदार थीं, सो बोलीं, ‘‘मु झे पता था इसलिए मैं ने पहले से ही आप के लिए एक जोड़ी दूसरा नया सफेद कुरतापाजामा और काला बुरका रख रखा था. लो, इसे पहन लो. काले बुरके में जाओगे तो गली का टुच्चा बदमाश हो या फूफा, कोई भी तुम पर रंग नहीं फेंक सकेगा. कुरतापाजामा साफ रहेगा तो आप के बड़े साहब भी आप को देख कर खुश हो जाएंगे.’’ पत्नी साहिबा की सम झदारी पर उन्होंने मधुर सहानुभूति जताते हुए उन के गाल पर सूखा हाथ कोमलता से फेरा, तो वे शरमा गईं, बोलीं, ‘‘आज इतने वर्षों बाद आप का प्यार पा कर मैं धन्य हो गई.


वरना आप के हाथ में अब वह दम कहां जो पहले कभी मेरे पूरे शरीर को स्पर्श मात्र से ही आनंदित कर देते थे. मैं आप का प्यार पा कर अनेक बार बिस्तर पर दोहरी हो जाती थी. और आप का उत्साह मु झे अपनी बांहों में कस कर जकड़ लेता था. लेकिन अब तो होली हो या दीवाली, आप की मीठी जबान भी तीखी कटार लिए सब पर सवार रहती है.’’ राधेश्यामजी ने कहा, ‘‘अरे नहीं, नहीं पगली, छोड़ दो पुरानी बातों को. ताना मत मारो. आज होली है. बड़े साहब के यहां से होली खेल कर आने दो, तुम्हारे साथ भी जम कर खेलूंगा होली. तुम्हें फिर से उत्साह से भर दूंगा. तुम फिर से मचल उठोगी.’’ अपनी पत्नी को बहलातेफुसलाते हुए राधेश्यामजी ने मौके की निजी नाजुकता को सम झा और नया सफेद कुरतापाजामा व बुरका पहन सीधे भाग चले अपने बड़े साहब यानी पुरानी महबूबा शन्नो के घर की तरफ.


राधेश्यामजी ने अपनी पुरानी महबूबा शन्नो के दरवाजे पर पहुंच कर डोरबेल बजाई और दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगे. तभी छत पर से किसी ने लोहे के हुक लगी हुई डोरी उन के ऊपर ऐसे डाली कि उस डोरी में लगा हुआ लोहे का हुक सीधे उन के बुरके में जा फंसा और डोरी खींचने पर पूरा बुरका ऊपर की तरफ उठ गया. तभी यह क्या था, उन के सफेद कुरते पर ‘छपाक’, ‘छपाक’ तमाम सारे गोबर, कीचड़, तारकोल, मिट्टी और न जाने क्याक्या के ढेलों का धमाल, धमाधम, धमाधम ठाकठाक, पट्टपट्ट हो उठा. जैसेतैसे उन्होंने अपनेआप को संभाला. पीछे की तरफ हटे तो उन का पैर खटाक से कीचड़ वाले गड्ढे में जा गिरा. फिर उठने के लिए हुए तो उन की चप्पलें कीचड़ में ऐसी धंसी कि जड़ ही हो गईं. जैसेतैसे उन्होंने अपनी चप्पलों को कीचड़ को समर्पित कर अपने पैर बाहर निकाले और नंगे पैर अपने आगे से गीले और पीछे से कीचड़ से चीकट हुए पाजामे को संभालते हुए अपनी पुरानी महबूबा शन्नो के खयालों के साथ आगे बढ़े, तो उन्हें अपनी बदरंग हालत पर तरस आया और वह महबूबा के घर का दरवाजा खुलने से पहले ही मुड़ कर जाने लगे.


तो पीछे से आवाज आई, ‘‘बुरा न मानो जीजाजी, होली है.’’ राधेश्यामजी ने पीछे मुड़ कर देखा. उन की साली साहिबा और पत्नी अपने हाथों में रंगगुलाल लिए खड़े थे. उन के मुड़ते ही वे सब उन को रंगनेपोतने में जुट पड़े और साली साहिबा ने उन्हें पकड़ कर उन की पत्नी के साथ सीधे ही बाथरूम में ले जा कर बंद करते हुए उन के पजामे का नाड़ा जोर से खींचते हुए कहा, ‘‘जीजाजी, अब लीजिए मेरी दीदी के साथ बाथटब का मजा और फिर इस बार नव होली मनाइए. उन्हें शीतल कर रतिरंग कर दीजिए. मैं अभी आप के लिए स्पैशल जौहर इश्क अंबर, अश्वगंधा, शिलाजीत और श्वेत-मूसलीयुक्त एक गिलास गरम दूध ले कर आती हूं. उस में मिली स्पैशल जौहर इश्क अंबर नामक जड़ीबूटी पहली सुहागरात के दिन की तरह चुस्तदुरुस्त कर देगी आप और आप के ढीले पड़े शरीर के अंगअंग को.


मुझे यकीन है, आप आज सदा के लिए भूल ही जाएंगे अपनी पुरानी महबूबा शन्नो को. अब तो आप दीदी को ही शन्नो मान कर होली खेलिए. दीदी तो हमेशा तैयार रहती हैं आप के साथ मलमल कर, पकड़पकड़ कर और रगड़रगड़ कर होली खेलने के लिए. आप हैं कि कभी उन की सुनते ही नहीं.’’ ‘‘बाथटब में होली खेल कर राधेश्यामजी बाहर निकले तो उन्होंने पूछा, यह सब किस की योजना थी तो उन की साली साहिबा बोलीं, ‘‘दीदी ने मु झे बताया कि एक रात बिस्तर पर आप ही तो सपने में बड़बड़ा रहे थे. मेरी शन्नो, मैं आज भी तुम्हारे साथ होली खेलने का अरमान रखता हूं.


तुम्हीं तो मेरे जमाने की मेरी प्रिय प्रेमिका हो. इस बार मु झे बुला लो अपने पास होली खेलने के लिए. और कवितारूप गुनगुना रहे थे, तुम्हीं संग रंग खेलूं, तुम्हीं संग भीगूं, तुम्हीं संग होली गीत गाऊं, तुम्हीं संग नाचूं, तुम्ही संग गुजिया खाऊं.’’ प्रिय जीजाजी, बस, आप की कविता सुन कर हम दोनों ने मिल कर यह ‘समृद्ध होली खेलो’ योजना बना डाली. राधेश्यामजी ने कहा, ‘‘अरे ऐसा नहीं हो सकता. मैं तो सपने देखता ही नहीं हूं. और कविता करना तुम्हीं संग रंग खेलूं, तुम्हीं संग भीगूं, तुम्हीं संग होली गीत गाऊं… तो मेरे बस से बाहर की बात है. मैं सपने देखता भी हूं तो कभी बड़बड़ाता नहीं हूं. ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है.’’ इस बात पर कमलपुष्प समान हंसती हुई साली साहिबा बोलीं, ‘‘रहने दीजिए जीजाजी, आजकल मोबाइल का जमाना है. दीदी ने आप की सारी बड़बड़ाहट और गुनगुनाहट की रिकौर्डिंग कर रखी है.


कहें तो सुनाऊं.’’ ‘‘चलचल, बस कर अब रहने भी दे,’’ कह कर राधेश्यामजी ने अपनी साली साहिबा से कहा, ‘‘चलो, अब सभी बच्चों को भी यहां बुला लेना चाहिए. आज बहुत दिनों बाद फिर से होली की पार्टी करते हैं और महल्लेभर में शाम को सभी के घर जाजा कर होली की हार्दिक बधाई देते हैं.’’ इस बार साली साहिबा बोलीं, ‘‘मेरे प्यारे भोलेभाले जीजाजी, सुना है मेवाड़, राजस्थान की कवयित्री मीराबाई को तो एक नजर में श्याम से प्यार हो गया था. दीदी को तो राधे और श्याम दोदो रूप में आप यानी राधेश्याम मिल गए. बड़ी भाग्यशाली हैं वे. इस होली के बाद मु झे भी कहीं किसी के संग सदा के लिए बांधिए ना. वरना कहीं ऐसा न हो कि मैं आप संग ही सदा के लिए यहीं न रह जाऊं.’’


राधेश्यामजी और उन की पत्नी ने जैसे ही सुना तो दोनों एकसाथ बोले, ‘‘चल पगली, चिंता मत कर. तेरे हाथ भी अब जल्दी ही पीले कर दिए जाएंगे. अगले महीने तु झे देखने वाले आ रहे हैं. कानपुर चटाई महल्ले वाले चाचा के जानकार हैं. लड़का एमटैक टैक्निकल डायरैक्टर है.’’ तब तक उधर राधेश्यामजी के बच्चे भी सामने आ चुके थे. उन्होंने सर्फसाबुन का पाउडर घोला. उस में गहरा पक्का पीला रंग मिलाया और पूरी पीलीपीली झागयुक्त पक्के रंग की बालटी अपनी मौसी के ऊपर उड़ेल दी और कहा, ‘‘लो मौसी, हमारा इरादा तो आप के केवल हाथ ही नहीं, पूरा पीला कर के ही आप को ससुराल भेजने का है. ताकि आप वहां सदा पीलीपीली ही रहना, यहां की तरह बातबात पर तुनकतुनक कर किसी से भी लालपीली कभी मत होना.’’ बच्चों की बात सुन कर राधेश्यामजी का पूरा परिवार हंसी के ठहाके लगा कर होली की खुशियां लुटाने लगा. इस बार उन की साली साहिबा भी पीला गुलाब बन मंदमंद मुसकरा कर शरमा उठीं. लेखक- डा. आलोक सक्सेना


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