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कहानी: पराया लहू

वर्षा को मजबूरन सुधीर से दूसरा विवाह करना पड़ा लेकिन उस का बेटा लव लावारिस हो गया. सुधीर लव को अपनाने के लिए तैयार न था. वर्षा ने मायके में लव के साथ उपेक्षित व्यवहार होते देखा तो उस का मन अपने को धिक्कारने लगा.

वर्षा के हाथों में थमा मायके से आया भाभी का पत्र हवा से फड़फड़ा रहा था. वह सोच रही थी न जाने कैसा होगा लव, भाभी उस की सही देखभाल भी कर पा रही होंगी या नहीं.


भाभी ने लिखा था कि लव जब छत पर बच्चों के साथ पतंग उड़ा रहा था, नीचे गिर गया. उस के पैर की हड्डी टूट गई, पर उस की हालत गंभीर नहीं है, जल्दी ठीक हो जाएगा. शरीर के अन्य हिस्सों पर भी मामूली चोटें आई थीं. हम उस का उचित इलाज करा रहे हैं.


‘‘मां, तुम रो रही हो?’’ भरत ने पुकारा तो वर्षा की तंद्रा भंग हुई. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. उस ने झटपट आंखें पोंछीं और भरत को गोद में बैठा कर मुसकराने का यत्न कर पूछने लगी, ‘‘स्कूल से कब आया, भरत?’’


‘‘कब का खड़ा हूं, पर तुम ने देखा ही नहीं. बहुत जोरों से भूख लगी है,’’ भरत ने कंधे पर टंगा किताबों का बोझा उतारते हुए कहा.


‘‘अभी खाना परोसती हूं,’’ कहती हुई वर्षा रसोईघर में गई. फौरन दालचावल गरम कर लाई और भरत को खाना परोस दिया.


‘‘मां, तुम भी खाओ न,’’ भरत ने आग्रह किया.


उस का आग्रह उचित भी था क्योंकि प्रतिदिन वर्षा उस के साथ ही भोजन करती थी, लेकिन आज वर्षा के मुंह में निवाला चल नहीं पा रहा था. बारबार आंखों में आंसू आ रहे थे. मन लव के आसपास ही दौड़ रहा था.


भरत शायद उस के मन के भाव समझ गया था सो खाना खातेखाते रुक कर बोला, ‘‘किस की चिट्ठी आई है?’’


‘‘किसी की नहीं, देखो, मैं खा रही हूं,’’ वर्षा बोली. वह घर में बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी, सो होंठों पर नकली मुसकान ला कर बेमन से खाने लगी.


भरत संतुष्ट हो कर चुप हो गया, फिर वह खाना खा कर अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गया.


वर्षा उस के सिरहाने बैठ कर थोड़ी देर उस का सिर सहलाती रही. फिर जब भरत ऊंघने लगा तो वह अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर पड़ गई, पर मन फिर से मायके की दहलीज पर जा पहुंचा. कैसा होगा लव? इस दुर्घटना के क्षणों में उस ने मां को अवश्य याद किया होगा, वह उसे याद कर के रोया भी बहुत होगा, इतने छोटे बच्चे मां से दूर रह भी कैसे सकते हैं? हो सकता है लव ने आदित्य को भी याद किया हो, आदित्य का कितना दुलारा था लव. वह दफ्तर से आते ही लव को गोद में ले कर बैठ जाते, उस के लिए भांतिभांति के बिस्कुट, टाफियां व खिलौने ले कर आते.


उस वक्त लव था भी कितना प्यारा, गोराचिट्टा, गोलमटोल. जो देखता प्यार किए बिना नहीं रह पाता. जब लव डेढ़ वर्ष का हुआ तो उस ने नन्हेनन्हे बच्चों की फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता था. नन्हा सा दूल्हा बन कर कितना जंच रहा था लव.


यही सब सोच कर वर्षा की आंखों से फिर आंसू बहने लगे. रक्त कैंसर से आदित्य की मृत्यु न हुई होती तो उस का भरापूरा परिवार क्यों बिखरता. आदित्य जीवित होता तो उस का प्यारा लव इस तरह क्यों भटकता.


आदित्य को खो कर वर्षा 3 वर्ष के लव को सीने से चिपकाए मायके लौटी तो वहां उन दोनों मांबेटों को दिन बिताने कठिन हो गए. आदित्य के जीवित रहते जो भैयाभाभी उसे बारबार मायके आने को पत्र लिखते, वे ही एकाएक बेगाने बन गए. उन्हें उन दोनों का खर्च संभालना भारी लगा था.


सुधीर घर लौटा तो वर्षा खुद को रोक न पाई और कह उठी, ‘‘मैं 2 दिन के वास्ते मेरठ जाना चाहती हूं.’

तब दुखी हो कर पिता ने उस के पुनर्विवाह की कोशिशें शुरू कर दीं और एक अखबार में वैवाहिक विज्ञापन पढ़ कर सुधीर के घर वालों से पत्र व्यवहार शुरू किया तो सुधीर से उस का रिश्ता पक्का हो गया, पर सुधीर व उस के घर वालों की एक ही शर्त थी कि वे बच्चे को स्वीकार नहीं करेंगे. उन्हें सिर्फ बिना बच्चे की विधवा ही स्वीकार्य थी, जबकि सुधीर भी एक बेटे का बाप था. विधुर था और अपने बेटे की खातिर ही पुनर्विवाह कर रहा था, पर वह उस के बेटे का दर्द नहीं समझ पाया और उसे अस्वीकार कर दिया.


अपने जिगर के टुकड़े को मांबाप की गोद में छोड़ कर वर्षा, सुधीर से ब्याह कर ससुराल आ पहुंची थी, तब से सिर्फ पत्र ही लव की जानकारी पाने का साधन मात्र रह गए थे. पर उन पत्रों में यह भी लिखा होता कि वह अब हमेशा को लव को भूल कर अपने भविष्य को संवारे व सुधीर और भरत को किसी अभाव का आभास न होने दे. भरत को पूरी ममता दे.


मेरठ से आए हुए उसे पूरा वर्ष बीत गया, तब से एक बार भी वह मायके नहीं गई. सुधीर ने ही नहीं जाने दिया. हमेशा यही कहा कि अब मायके से कैसा मोह. घर में किसी वस्तु का अभाव है क्या. लेकिन अभाव तो वर्षा के मन में बसा था, वह एक दिन के लिए भी अपने लव को नहीं भूल पाती थी और अब भाभी के पत्र ने उस के मन की बेचैनी कई गुना बढ़ा दी थी. मन लव को बांहों में लेने और हृदय से लगाने को बेचैन हो उठा था.


सुधीर घर लौटा तो वर्षा खुद को रोक न पाई और कह उठी, ‘‘मैं 2 दिन के वास्ते मेरठ जाना चाहती हूं.’’


सुधीर ने वही रटारटाया उत्तर दे डाला, ‘‘क्या करोगी जा कर, वैसे भी आजकल तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं रहती, तीसरा महीना चल रहा है, वहां आराम कहां मिल पाएगा…’’


‘‘क्यों नहीं मिलेगा? भैयाभाभी क्या मुझे हल में जोतेंगे? मैं वहां पूरे दिन बिस्तर तोड़ने के अलावा और करूंगी भी क्या?’’ वर्षा जैसे विद्रोह पर उतर आई थी.


उस ने सास से भी जिद की, ‘‘बहुत दिन हो गए मुझे मायके वालों को देखे. दिल्ली से मेरठ का रास्ता ही कितना है. सिर्फ 2 घंटे का, फिर भी मैं साल भर से मायके नहीं जा पाई हूं और न कभी उन लोगों ने ही आने का साहस किया. फिर आनाजाना दोनों तरफ से होता है, एक तरफ से नहीं.’’


इस पर सास ने जाने की इजाजत  यह कहते हुए दे दी कि इस का मायके आनाजाना भी जरूरी है.


वर्षा अटैची में कपड़े रखने लगी तो भरत भी जिद कर उठा, ‘‘मैं भी तुम्हारे साथ जाऊंगा, मां. तुम्हारे बिना कैसे मन लगेगा?’’


साल भर में ही भरत उस से काफी हिलमिल चुका था और उसे ही अपनी सगी मां समझने लगा था.


भरत को रोतेबिसूरते देख सास ने उसे भी साथ ले जाने को कह दिया, ‘‘क्या हुआ, यह भी कुछ दिन को घूम आएगा. बेचारे को असली ननिहाल तो कभी मिला ही नहीं, सौतेला ही सही.’’


वर्षा ने भरत के कपड़े भी रख लिए. भरत के कपड़ों की अटैची अलग से तैयार हो गई. भले ही 2 दिनों को जाना हो, भरत को कई जोड़ी कपड़ों की आवश्यकता पड़ती थी. वह बारबार कपड़े मैले कर लेता था.


दोनों कार में बैठ कर मेरठ चल पड़े. रास्ते भर भरत उस की गोद में बैठ कर भांतिभांति के प्रश्न पूछता रहा.


वर्षा मायके पहुंच देर तक मां, भाभी के गले से लिपटी रोती रही. भाभी बारबार पूछती रहीं, ‘‘ठीक तो हो, दीदी? सुधीर ने आदित्य का गम भुला दिया या नहीं? सुधीर का व्यवहार तो ठीक है न?’’


वर्षा के मन में अपने लव का गम समाया हुआ था. वह क्या उत्तर देती, जैसेतैसे चाय के घूंट गले से नीचे उतारती रही.


फिर भाभी खुद ही उसे लव के कमरे में ले गईं. नीचे जगह कम होने के कारण लव छत पर बने कमरे में रहता था.


मूंज की ढीली चारपाई पर सिकुड़ी हुई मैली दरी पर अपाहिज बना पड़ा था लव. पहली नजर में वर्षा उसे पहचान नहीं पाई, फिर लिपट कर रोने लगी, ‘‘यह क्या दशा हो गई लव की?’’


लव काला, सूखा, कंकाल जैसा लग रहा था, वह भी मां को कठिनाई से पहचान पाया. फिर आश्चर्य से वर्षा की कीमती साड़ी व आभूषणों को देखता रह गया.


‘‘तू ठीक तो है न, लव?’’ वर्षा ने स्नेह से उस के सिर पर हाथ फिराया, पर लव को उस से बात करते संकोच हो रहा था. वह नए वस्त्र व जूतेमोजे पहने, गोलमटोल भरत को भी घूर रहा था.


‘‘मां, यह कौन है?’’ भरत ने लव को देख कर नाकभौं सिकोड़ते हुए पूछा.


वर्षा कहना चाहती थी कि लव तुम्हारा भाई है, पर यह सोच कर शब्द उस के होंठों तक आतेआते रह गए, क्या भरत लव को भाई के रूप में स्वीकार कर पाएगा? नहीं, फिर लव को भाई बता कर उस के बालमन पर ठेस पहुंचाने से क्या लाभ?


तभी भरत अगला प्रश्न कर बैठा, ‘‘मां, यह कितना गंदा है, जैसे कई दिनों से नहाया ही न हो, चलो यहां से, नीचे चलते हैं.’’


भाभी भरत को बहलाने लगीं, ‘‘दीदी, तुम लव से बातें करो न?’’


वर्षा की निगाहें पूरे कमरे का अवलोकन कर रही थीं. कमरा काफी गंदा था. छतों तथा दीवारों पर मकडि़यों के बड़ेबड़े जाले और धूल की परतें जमी हुई थीं. उसे याद आया कि इस कमरे में तो घर का कबाड़ रखा जाता था.


भाभी जैसे उस के मन के भाव ताड़ गईं सो मजबूरी जताते हुई बोलीं, ‘‘दीदी, क्या करें, घर में कोई नौकर तो है नहीं, मांजी ने ही इस कमरे का सामान निकाल कर इस की सफाई की थी. वही लव की देखभाल करती हैं. मुझे तो रसोई से ही फुरसत नहीं मिल पाती, फिर छोटे बच्चे भी ठहरे…’’


‘‘ठीक कहती हो, भाभी,’’ कहती हुई वर्षा लव के सिरहाने बैठ गई, क्योंकि कमरे में कोई कुरसी नहीं थी और स्टूल पर दवाइयां व पीने का पानी रखा हुआ था.


‘‘लव, मुझे मां कहो न,’’ कहती हुई वर्षा उस के बालों में हाथ फेरने लगी.


वर्षा सीढि़यों की तरफ बढ़ गई. बीच में ही भाभी ने पूछना शुरूकर दिया, ‘‘दीदी, तुम लव के लिए कपड़े, खिलौने वगैरह कुछ ले कर नहीं आईं.

‘‘मां,’’ बड़ी कठिनाई से लव कह सका, जैसे कोई अपराध कर रहा हो. तुम कहां चली गई थीं?’’


‘‘मैं…’’ वर्षा का स्वर गले में ही अटक गया. कैसे कहे कि उस ने पुनर्विवाह कर लिया. आदित्य की यादें मिटाने की खातिर वह सुधीर का दामन थाम चुकी है. फिर लव को वह सब पता भी तो नहीं है. जिस वक्त सुधीर से उस की शादी मंदिर में हुई थी, लव को घर में छिपा कर रखा गया था.


‘‘मां, मेरे लिए नए कपड़े नहीं लातीं?’’ एकाएक लव की आंखों में आकांक्षाओं की चमक तैर उठी.


वर्षा को याद आया, वह लव से यही कह कर घर से निकली थी कि वह उस के लिए नए कपड़े खरीदने बाजार जा रही है, फिर 1 वर्ष पश्चात आज ही लौट कर आई है. वर्षा की पलकें भीग उठीं कि कितनी पुरानी बात याद रखी है लव ने. वह उस के पुराने, घिसेफटे, कपड़े देखती रही, भाभी कहां नए कपड़े दिलवा पाती होंगीं?


‘‘मां, मेरे नए कपड़े दे दो न?’’ लव जिद करने लगा.


वर्षा के मन में आया कि वह भरत के नए कपड़े ला कर लव को पहना दे. नाप ठीक आएगा क्योंकि दोनों हैं भी एक आयु के पर वह ऐसा नहीं कर सकी. मन में डर की लहर सी उठी कि अगर भरत ने कपड़ों की बाबत सुधीर व मांजी को बता दिया तो?


तभी भाभी ने टोका, ‘‘चलो दीदी, पहले भोजन कर लो, बाद में ऊपर आ जाना.’’


वर्षा सीढि़यों की तरफ बढ़ गई. बीच में ही भाभी ने पूछना शुरूकर दिया, ‘‘दीदी, तुम लव के लिए कपड़े, खिलौने वगैरह कुछ ले कर नहीं आईं?’’


वर्षा उत्तर नहीं दे पाई तो भाभी के चेहरे पर रूखापन छा गया. वह कुछ कड़वेपन से कहने लगीं, ‘‘लव है तो तुम्हारी कोख जाया ही, तुम्हें उस का ध्यान रखना चाहिए. सुधीर की आमदनी भी तो कम नहीं है, घर में सभी कुछ मौजूद है. रुपए तुम्हारे हाथ में भी तो रहते होंगे?’’


वर्षा को लगा कि भाभी ने जानबूझ कर उसे इस तरह का पत्र लिखा था, जिस से वह मेरठ आ कर उन्हें कुछ दे जाए. भाभी शुरू की लालची जो ठहरीं, दूसरों पर खर्च करना इन्होंने कहां सीखा है.


मां ने खाना परोस दिया पर वर्षा के मुंह में यह सोच कर निवाला नहीं चल पाया कि बेचारा लव, पेट भर कहां खाता होगा.


मां समझाती रहीं, ‘‘तुम्हें ऐसी स्थिति में खूब खानापीना चाहिए. बच्चा अच्छा पैदा होगा तो सुधीर भी तुम्हें अधिक पसंद करेगा.’’


पिता और भैया भरत को लाड़प्यार करते रहे, भैया उसे स्कूटर पर बिठा कर दुकान पर ले गए. वहां से उसे टाफियां व फल दिलवा कर लाए.


मां और भाभी उस से सुधीर, भरत व ससुराल की ही बातें करती रहीं तो ऊब कर उस ने खुद ही लव की चर्चा छेड़ी, ‘‘लव कैसा पढ़ रहा है? कैसे नंबर आए?’’


‘‘ठीक है, अधिक पढ़ कर भी उसे क्या करना है. थोड़ा बड़ा होगा तो मामा के साथ, उस की दुकान पर काम करने लगेगा,’’ मां बोलीं.


वर्षा सोचने लगी, फिर तो लव पूरे घर के लिए मुफ्त का नौकर बन कर रह जाएगा. सभी लोग उस पर भांतिभांति के हुक्म चलाते रहेंगे.


सब ने भोजन कर लिया तो भाभी बरतन समेटने लगीं, पर लव के भूखे रहने का किसी को आभास तक नहीं रहा. तब वर्षा अपने साथ लाए फल व मिठाई तस्तरी में रख कर लव को देने चली गई.


लव अकेला पड़ा था. वर्षा का मन फिर से भीगने लगा. वह उस के नजदीक बैठ कर प्यार से उसे खिलाने लगी. फिर उठ कर चली तो लव ने उस की साड़ी का पल्लू थाम लिया और बोला, ‘‘कुछ देर और बैठो, मां.’’


वर्षा रुक कर उस के सिर पर हाथ फेरती रही. लव ने सुख का आभास कर के आंखें बंद कर लीं, पर भरत की पुकार पर वर्षा को नीचे आना पड़ा.


अगले दिन सुबह नाश्ते से निबट कर उस ने लव की चारपाई छत पर डाल दी और जाले साफ कर के कमरा रगड़रगड़ कर धोया, अगरबत्तियां जला कर बदबू दूर की फिर उस के मैले वस्त्रों को धो कर चमकाया. तत्पश्चात वह लव की मालिश करने बैठ गई.


वर्षा ने भरत की नजर बचा कर 500 रुपए का एक नोट भाभी को थमा दिया और बोली, ‘‘भाभी, लव का इलाज अच्छी तरह से कराती रहना.

मां कहती रहीं, ‘‘मैं कर दूंगी, तू फालतू की मेहनत क्यों कर रही है. इस कमरे में अकेला लव थोड़े ही सोता है, मैं भी तो सोती हूं.’’


मगर वर्षा के हाथ नहीं रुके, वह लव के सारे काम खुद ही निबटाती रही.


दोपहर ढलते ही अचानक ड्राइवर वर्षा व भरत को लेने आ पहुंचा तो सब को आश्चर्य हुआ. मां ने टोक दिया, ‘‘अभी 2 दिन कहां पूरे हुए हैं?’’


ड्राइवर बोला, ‘‘मुझे साहब ने दोनों को तुरंत लाने को कहा है. साहब भरत को बहुत प्यार करते हैं. भरत के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते. इस के अलावा सब लोगों को एक शादी पर भी जाना है.’’


बेटी पराए घर की अमानत ठहरी सो मां भी कहां रोक सकती थीं. वह वर्षा की विदाई की तैयारी करने लगीं, पर सुधीर का न आना सब को खल रहा था.


पिताजी आर्द्र स्वर में कह उठे, ‘‘हम चाहे कितने भी गरीब सही पर दामाद का स्वागत करने में तो समर्थ हैं ही. विवाह के बाद दामाद एक बार भी हमारे घर नहीं आए.’’


‘‘मां, तुम लोग भी तो दिल्ली आया करो, आनाजाना तो दोनों तरफ से होता है.’’


‘‘ठीक है, हम भी आएंगे,’’ मां आंचल से आंखें पोंछती हुई बोलीं.


वर्षा ने भरत की नजर बचा कर 500 रुपए का एक नोट भाभी को थमा दिया और बोली, ‘‘भाभी, लव का इलाज अच्छी तरह से कराती रहना.’’


भाभी ने लपक कर नोट को अपने ब्लाउज में खोंस लिया और मुसकरा कर बोलीं, ‘‘लव की चिंता मत करो, दीदी, वह हमारा भी तो बेटा है.’’


आखिर में वर्षा ऊपर जा कर लव से मिल कर भारी मन से ससुराल के लिए विदा हुई. कार आंखों से ओझल होने तक घर के सभी लोग सड़क पर खड़े रहे.


वर्षा रास्ते भर सोचती रही कि उस ने साल भर तक मेरठ न आ कर लव के साथ सचमुच बहुत अन्याय किया है. अपनी जिम्मेदारियां दूसरों के गले मढ़ने से क्या लाभ, लव की देखभाल उसे खुद ही करनी चाहिए.


वह इस बारे में सुधीर से बात करने के लिए अपना मन तैयार करने लगी. सुधीर को न तो दौलत का अभाव है न वह कंजूस है. वह थोड़ी नानुकुर के बाद उस की बात अवश्य मान लेगा व लव को अपना लेगा. फिर तो कोई समस्या ही नहीं रहेगी.


सुधीर घर में बैठा उन दोनों की प्रतीक्षा कर रहा था. भरत कार से उतर कर पिता की तरफ दौड़ पड़ा. सुधीर ने उसे गोद में उठा लिया, ‘‘मेरा राजा बेटा आ गया.’’


‘‘हां, देखो पिताजी, मैं क्या लाया हूं?’’ भरत, ननिहाल में मिले खिलौने दिखाने लगा. मांजी ने चाय बना कर सब को प्याले थमा दिए. सब पीने बैठ गए.


मांजी व सुधीर भरत से मेरठ की बातें पूछने लगे, ‘‘तुम्हारे नानानानी, मामामामी सब कुशल तो हैं न?’’


भरत उत्साहित हो कर छोटीछोटी बातें भी बताने लगा, फिर एकाएक कह उठा, ‘‘वहां बहुत गंदा एक लड़का भी देखा. उस के दांत भी बहुत गंदे थे. उस ने ब्रश भी नहीं किया था.’’


‘‘बहू, यह किस के बारे में कह रहा है?’’ मांजी पूछ बैठीं तो वर्षा को लव के बारे में सबकुछ बताना पड़ा.


सुधीर सबकुछ सुनता रहा, पर उस ने एक शब्द भी लव के बारे में नहीं कहा. वर्षा को उस की यह चुप्पी नागवार गुजरी. वह उस से कुछ कहना ही चाहती थी कि मांजी ने टोक दिया, ‘‘बहू, बातें फिर कभी हो जाएंगी, इस वक्त शादी में चलने की तैयारी करो, नहीं तो देरी हो जाएगी.’’


मांजी के मायके में किसी रिश्तेदार की शादी थी. वर्षा ने भरत को तैयार किया, फिर खुद भी तैयार होने लगी. रास्ते भर खामोश रही पर वर्षा भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी, वह सुधीर से बात करने के पक्के मनसूबे बना चुकी थी.


आखिर एक दिन वर्षा को मौका मिल ही गया. मांजी भरत को ले कर पड़ोस में गई हुई थीं. वर्षा ने बात शुरू कर दी, ‘‘लव को भैयाभाभी के आश्रित बना कर अधिक दिनों तक वहां नहीं रखा जा सकता.’’


‘‘फिर वह कहां जाएगा?’’


‘‘उसे हम अपने साथ ही रख लें, तभी उचित रहेगा.’’


‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ कहते हुए सुधीर के चेहरे पर कठोरता छा गई, ‘‘मैं ने तुम से शादी ही इस शर्त पर की थी कि…’’


‘‘मेरी बात समझने की कोशिश करो. जिस प्रकार भरत मेरा बेटा है उसी प्रकार लव भी तुम्हारा बेटा है. फिर उसे साथ रखने में कैसी आपत्ति,’’ वर्षा ने उस की बात काटते हुए कहा.


‘‘मैं तुम्हारे लव को अपना बेटा कैसे मान सकता हूं? सपोज करो, मैं ने उसे बेटा मान भी लिया तो भी क्या मैं उसे घर में रखने की इजाजत दे दूंगा? क्या मेरा भरत, लव को अपना सकेगा? मां अपना सकेंगी?’’


यह सुन कर वर्षा चुप बैठी सोचती रही.


सुधीर उसे समझाने के अंदाज में फिर बोला, ‘‘अपनी भावुकता पर नियंत्रण रखो वर्षा, लव को भूल जाने में ही तुम्हारी भलाई है. उसे उस के हाल पर ही छोड़ दो.’’


‘‘मैं मां हूं, सुधीर,’’ वर्षा सिसक पड़ी, ‘‘अपनी संतान को तिलतिल कर मरते हुए कैसे देख सकती हूं? लव अब पहले से आधा भी नहीं रह गया. वह न ढंग से खा पाता है न पढ़ पाता है. भैयाभाभी के साथ और अधिक रह लिया तो उस का भविष्य खराब हो जाएगा.’’


‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता, वर्षा. किसी अन्य को घर में आश्रय दे कर मैं अपने भरत के रास्ते में कांटे नहीं बो सकता,’’ सुधीर ने दोटूक जवाब दे दिया.


वर्षा को चुप्पी लगानी पड़ गई, साथ ही उस के हृदय में बनी सुधीर की छवि भी बिगड़ती चली गई कि कितना महान समझा था उस ने सुधीर को, लेकिन वह तो मात्र पत्थर निकला.


अब दोनों के बीच में अदृश्य दीवार खड़ी हो गई. वर्षा मन ही मन कुढ़ती रहती. उस का मन अब सुधीर से बोलने को भी नहीं होता था. वह उस के प्रश्नों का उत्तर हां या न में दे कर सामने से हट जाती व अपनी तरफ से कोई बात नहीं करती.


भरत भी उस की आंखों में चुभने लगा था. उस का मन विद्रोह कर बैठता, ‘जब सुधीर उस के लव को नहीं स्वीकारता तो वही क्यों भरत को छाती से लगाती रहे? पराए जाए अपने तो नहीं बन सकते, भरत से कौन सा उस का लहू का रिश्ता है? बड़ा हो कर भरत भी उसे आंखें दिखाने लगेगा. फिर वह उसे अपना क्यों समझे?’


दोनों के मध्य पनपता अवरोध मांजी की पैनी निगाहों से नहीं छिप सका. वह बारबार पूछने लगीं, ‘‘बहू, जब से तुम मायके से लौटी हो तुम ने हंसना बंद कर दिया है. यह उदासी तुम्हारे होने वाले बच्चे के लिए अच्छी नहीं.’’


वर्षा खुद को सामान्य दिखाने का प्रयास करती रहती पर मांजी संतुष्ट नहीं हो पाती थीं.


कभी वह कुरेदतीं, ‘‘सुधीर ने कुछ कहा है क्या? वह भी आजकल खामोश रहता है. तुम दोनों में कोई अनबन तो नहीं हो गई?’’


वर्षा ने उन्हें इस डर से सबकुछ नहीं बताया कि मांजी ही कौन सी उस की सगी हैं. जब सुधीर ही उस का दर्द नहीं समझा तो मांजी कैसे समझेंगी.


वह मांजी से भी दूर रह कर अंतर्मुखी बनने लगी. एक सुबह उठ कर मांजी ने घर में ऐलान किया कि वे हरिद्वार गंगा स्नान को जाएंगी. प्रौढ़ावस्था में उन्हें मोहमाया के बंधन तोड़ कर आत्मिक शांति पाने के प्रयास शुरू करने हैं. मांजी का यह कथन सभी को अटपटा लगा क्योंकि वे अब तक धर्म, कर्म तथा पंडेपुजारियों को पाखंड की संज्ञा देती आई थीं पर हरिद्वार जाने पर आपत्ति किसी ने नहीं दिखाई. सुधीर ने भी कह दिया, ‘‘इसी बहाने प्राकृतिक दृश्यों को देख कर तुम्हारा स्वास्थ्य उत्तम हो जाएगा.’’


मांजी कार में बैठ कर अकेली ही हरिद्वार रवाना हो गईं. इस के बाद तो हरिद्वार जाना उन का नियम सा बन गया. वह महीने में 2-4 चक्कर हरिद्वार के लगाने लगीं.


वर्षा यह सोच कर अब और अधिक क्षुब्ध रहने लगी कि कैसे मांबेटे हैं जिन्हें सिर्फ अपने शौैकसिंगार व स्वास्थ्य का ही खयाल है, किसी और की जरा सी भी चिंता नहीं है. कम से कम मांजी को तो लव के बारे में कुछ पूछना चाहिए था, पर मांजी भी स्वार्थी ठहरीं. एक दिन उस ने फिर से मेरठ जाने का निश्चय किया. सुधीर से छिपा कर कुछ रुपए भी पर्स में रख लिए, सोचा कि लव की दवाइयां खरीदने में काम आ जाएंगे.


थोड़ी नानुकुर के बाद सुधीर ने उसे मेरठ जाने की इजाजत दे दी पर ड्राइवर को खूब समझा दिया कि उसे आज ही वर्षा को साथ ले कर लौटना है.


भरत को इस बार सुधीर ने नहीं जाने दिया. बहला दिया कि मां रात तक तो वापस लौट ही आएगी. सुधीर के कठोर व्यवहार से आहत वर्षा, रास्ते भर आंसू पोंछती रही.


मां और भाभी उसे देखते ही स्वागत के लिए लपकीं, लेकिन वर्षा तो अपने लव को हृदय से लगाने को व्याकुल थी, इसलिए घर में घुसते ही उतावलेपन से सीढि़यों की तरफ दौड़ पड़ी. परंतु छत पर पहुंचते ही जैसे उसे काठ मार गया, क्योंकि लव का कमरा खाली था. उस का बिस्तर व कोई सामान भी दिखाई नहीं दे रहा था. वह चकित सी खड़ी सोचती रही, कहां गया लव?


उस के मन में सैकड़ों आशंकाएं तैर उठीं, कहीं लव को कुछ हो तो नहीं गया?


मां व भाभी दोनों, उस के पीछेपीछे सीढि़यां चढ़ कर ऊपर आ पहुंचीं. वर्षा उन की तरफ मुड़ी व बदहवासी में चिल्लाने लगी, ‘‘मां, बताओ मेरे लव को क्या हुआ? वह कहां चला गया? तुम ने मुझे उस के बारे में कभी पत्र में भी कुछ नहीं लिखा. क्या हुआ मेरे बेटे को…’’ वह रो पड़ी.


‘‘दीदी, हमारी भी तो सुनो,’’ भाभी उस के आंसू पोंछने लगीं.


‘‘क्या तुम्हारी सास ने कभी कुछ नहीं बताया?’’


‘‘नहीं, वह क्यों बताएंगी? उन्हें लव से क्या लेनादेना? कहां है लव…’’


‘‘तुम्हारी सास ने उसे उचित देखभाल के लिए अस्पताल में भर्ती करा दिया है. वह कई बार यहां आ चुकी हैं व लव के इलाज पर पानी की तरह पैसा बहा रही हैं.’’


वर्षा घोर आश्चर्य से जकड़ गई कि क्या ऐसा होना संभव है? पर मांजी को लव की बीमारी के बारे में कैसे पता लगा? कहीं उन्होंने छिप कर तो नहीं सुन लिया था?


वह उसी वक्त अस्पताल जाने के लिए उतावली हो उठी, पर मां ने जबरदस्ती उसे एक प्याला चाय पिला दी. फिर उस के साथ सभी लोग अस्पताल पहुंच गए.


लव साफसुथरे वस्त्र पहने स्वच्छ सफेद शैया पर लेटा हुआ था, मां को देखते ही उठने का प्रयास करने लगा. वर्षा ने उसे सहारा दे कर बिठाया व स्नेह से उस का मुंह चूमने लगी, ‘‘मेरा राजा बेटा, ठीक तो है न?’’


वह लव को पहले की अपेक्षा स्वस्थ देख कर संतुष्टि का आभास कर रही थी.


‘‘दादीमां नहीं आईं?’’ लव इधरउधर देख कर पूछ बैठा.


‘‘वह आएंगी, बेटे,’’ वर्षा उसे प्रसन्न देख कर खुशी से गद्गद हुई जा रही थी.


‘‘देखो, दादी मां ने मुझे कितने पैसे दिए हैं, खिलौने व मिठाइयां भी दिलवाई हैं,’’ लव सारा सामान दिखाने लगा.


कुछ वक्त लव के साथ बिता कर वर्षा अस्पताल से मायके लौट आई. फिर दिल्ली लौटी तो आते ही सास के पैर पकड़ कर कृतज्ञता के बोझ से दब कर रो पड़ी, ‘‘मांजी, आप महान हैं, हरिद्वार जाने के बहाने मेरे लव पर प्यार लुटाती रहीं…पराए लहू पर…’’


‘‘लव पराया कहां है, मेरा पोता है. जब तुम हमारी हो गईं तो लव भी तो अपना हुआ,’’ मांजी ने उसे उठा कर छाती से लगा लिया.


‘‘लेकिन सुधीर उस से नफरत करते हैं,’’ कह कर वर्षा चिंतित हो उठी, ‘‘वह सुनेंगे तो नाराज हो उठेंगे.’’


‘‘सुधीर ने लव को घर में रखने से ही तो इनकार किया है, उस का खर्च उठाने से तो नहीं? मैं लव को छात्रावास में रख कर पढ़ाऊंगी, उसे अच्छा इनसान बनाने में कोई कमी नहीं छोडूंगी.’’


वर्षा जानती थी कि सुधीर में मांजी का कोई भी आदेश टालने की हिम्मत नहीं है. उस का मन सुखसंतोष से भर उठा था कि अब उस का लव अनाथ नहीं रहा. उस के सिर पर मांजी की सबल छत्रछाया मौजूद है.

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